लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 2. प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण था आस्ट्रिया के युवराज और उसकी पत्नी की हत्या । 1914 ई० के 28 जून को आस्ट्रिया के युवराज आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड और उसकी पत्नी होहेनबर्ग की काउंटेस की हत्या बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में सर्ब जाति के एक बोस्निया निवासी ने की । आस्ट्रिया ने सर्बिया पर आक्रमण कर दिया । आस्ट्रिया और सर्बिया की युद्ध घोषणा होते ही यूरोप के अन्य बड़े राष्ट्र स्वयमेव कूटनीतिक संधि यों के कारण युद्ध की ओर खींच गए ।
प्रश्न 2. उग्र राष्ट्रीयता प्रथम विश्व युद्ध का किस प्रकार एक कारण था ?
उत्तर- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता का संचार उग्र रूप से होने लगा । समान जाति, धर्म, भाषा और ऐतिहासिक परम्परा के लोग एक साथ मिलकर अलग देश का निर्माण चाहने लगे । आस्ट्रिया-हंगरी के स्लाव जाति के लोगों ने सर्वस्लाव आन्दोलन की शुरुआत की । फलतः आस्ट्रिया-हंगरी का रूस के साथ संबंध कटु बना दिया । इसी प्रकार सर्वजर्मन आन्दोलन शुरू हुआ जिसका लक्ष्य बाल्कन प्रायद्वीप में जर्मन साम्राज्य का विस्तार था। इस तरह उग्रराष्ट्रवाद ने यूरोपीय देशों के आपसी संबंध को तनावग्रस्त बना दिया जो आगे चलकर प्रथम विश्वयुद्ध का एक कारण बना ।
प्रश्न 3. “द्वितीय विश्वयुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध की ही परिणति थी।" कैसे ?
उत्तर-वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी । इस संधि द्वारा जर्मनी को जिस तरह अपमानित और दण्डित किया गया, जिसे जर्मनी की जनता ने स्वीकार नहीं किया, द्वितीय विश्वयुद्ध का मूल कारण बना । उस समय विजयोन्मत्त राष्ट्र यह नहीं सोच सके कि जर्मनी को सदा के लिए कुचलकर रखना कितना खतरनाक होगा । जर्मनी जैसा स्वाभिमानी देश इस तरह की स्थिति सहन नहीं कर सकता था । जैसे ही हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी का पुनरुद्भव हुआ उसने वर्साय की संधि का उल्लंघन करना शुरू कर दिया । इसके लिए उसने उग्र आक्रामक नीति का अनुसरण किया जिसने संसार को एक अन्य विश्वयुद्ध के निकट पहुँचा दिया। इस तरह स्पष्ट है कि द्वितीय विश्वयुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध की ही परिणति थी ।
प्रश्न 5.द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए हिटलर कहाँ तक उत्तरदायी था ?
उत्तर- जर्मनी में नाजी दल की सफलता और हिटलर का सत्ता पर अधिकार करना-दोनों घटनाएँ अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण थीं । हिटलर का सत्तारूढ़ होना विश्वशान्ति के लिए खतरे की बात थी । हिटलर की नीति धी-जर्मन राज्य का विस्तार । वह वर्साय संधि को टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहता था । सत्तारूढ़ होते ही उसने निःशस्त्रीकरण सम्मेलन से अपने • प्रतिनिधियों को बुला लिया और कुछ ही दिनों बाद राष्ट्रसंघ से जर्मनी को हटा लिया। उसने वर्साय संधि का उल्लंघन करना शुरू कर दिया । उसने • निःशस्त्रीकरण की नीति को त्यागकर सैनिकवाद की नीति अपनाई । उसने उग्र आक्रामक नीति का अनुसरण किया जिसने संसार को एक अन्य विश्वयुद्ध में झोंक दिया । हिटलर अपनी आक्रामक नीति को सफल बनाने में जी जान से लगा हुआ था । रूस-जर्मनी सन्धि वास्तव में 20वीं शताब्दी की एक आश्चर्यजनक घटना थी । इस सन्धि ने द्वितीय विश्वयुद्ध का बिगुल बजा दिया ।
प्रश्न 7. तुष्टिकरण की नीति क्या है ?
उत्तर-इंगलैंड ने तुष्टीकरण की नीति अपनायी जो बहुत हद तक द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेवार थी । स्वयं चर्चिल ने स्वीकार किया था कि हमारी तुष्टीकरण नीति का एक दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह हुआ कि हिटलर को विश्वास हो गया कि ब्रिटेन तथा फ्रांस इसके विरुद्ध युद्ध करने में सक्षम नहीं थे। ब्रिटेन अपनी तुष्टीकरण नीति के तहत फ्रांस से अलग हटता गया तथा जर्मनी एवं जापान को सहयोग देने लगा । ब्रिटेन मुसोलिनी को संतुष्ट करने के लिए ही राष्ट्रसंघ के प्रतिबन्धों को कड़ाई से लागू नहीं होने दिया । इसी कारण हिटलर द्वारा राइनलैंड के सैन्यीकरण के समय भी कोई कदम नहीं उठाया । हिटलर द्वारा आस्ट्रिया के अपहरण किए जाने पर भी ब्रिटेन ने विरोध नहीं किया । चेकोस्लोवाकिया का विनाश इस उद्देश्य से किया गया कि हिटलर प्रोत्साहित होकर रूस पर आक्रमण कर देगा । इस प्रकार ब्रिटेन की तुष्टीकरण की नीति ने हिटलर की साम्राज्यवादी लिप्सा को बढ़ाने में मदद की ।
प्रश्न 8. राष्ट्रसंघ क्यों असफल रहा ?
उत्तर- राष्ट्रसंघ बड़े-बड़े राज्यों के स्वार्थ तथा साम्राज्यवादी भावना पर नियंत्रण नहीं रख सका । बड़े राज्यों ने धीरे-धीरे राष्ट्रसंघ से अपना संबंध विच्छेद कर लिया और सिद्ध कर दिया कि शांति सम्मेलन द्वारा निर्मित यूरोप अधिक काल तक शांत नहीं रह सकता और विश्व में पुनः एक विनाशकारी युद्ध होगा । इस तरह राष्ट्रसंघ अस्तित्व विहीन-सा हो गया । अब इस संस्था का कोई औचित्य ही नहीं रहा । अतः राष्ट्रसंघ अपने उद्देश्य में असफल हो गया ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे हैं
उत्तर-प्रथम विश्वयुद्ध के उत्तरदायी कारणों में निम्नलिखित प्रमुख
(i) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा-औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोपीय देशों के समक्ष व्यावसायिक माल की खपत और कच्चे माल की प्राप्ति की समस्या उत्पन्न हुई जिसका हल उन्हें साम्राज्य विस्तार में ही दिखाई दिया। साम्राज्यवाद की भावना से प्रेरित होकर यूरोप के सभी शक्तिशाली राष्ट्र एशिया तथा अफ्रीका में उपनिवेश स्थापित करने का प्रयास करने लगे । इंगलैंड, फ्रांस, रूस, जर्मनी आदि राष्ट्र एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी थे । इस तरह यूरोपीय राष्ट्रों के बीच का सम्बन्ध कटु होता चला गया जो अन्ततः प्रथम विश्वयुद्ध के रूप में प्रकट हुआ ।
(ii) उग्रराष्ट्रवाद- प्रथम विश्वयुद्ध का दूसरा कारण यूरोपीय देशों में उग्रराष्ट्रवाद था । उग्र राष्ट्रवाद के नशे में बहकर यूरोप के छोटे-बड़े सभी राष्ट्र अपने-अपने प्रभाव का विस्तार विश्वभर में करना चाहते थे । इंगलैंड, फ्रांस एवं जर्मनी जैसी यूरोपीय शक्तियाँ यह विश्वास करने लगी थीं कि वे अपने साम्राज्य का यथेष्ट विस्तार करके ही संसार की असभ्य जातियों का उद्धार कर सकते हैं । शक्तिशाली राष्ट्रों की यह मनःस्थिति प्रथम विश्वयुद्ध को बुलावा दे रही थी
(iii) सैन्यवाद-यूरोपीय देश सैनिक शक्ति पर सारा ध्यान केन्द्रित कर रहे थे । फ्रांस, जर्मनी आदि प्रमुख यूरोपीय देश अपनी राष्ट्रीय आय का लगभग 85 प्रतिशत सैनिक तैयारियों पर व्यय कर रहे थे । जल सेना के क्षेत्र में शुरू से ही इंगलैंड का आधिपत्य था, जर्मनी ने इसको चुनौती के रूप में लिया और इंगलैंड को नीचा दिखाने के लिए जहाजी बेड़ा बनाना शुरू किया ।
(iv) गुटों का निर्माण - साम्राज्यवादी लिप्सा के शिकार शक्तिशाली यूरोपीय देश अपने-अपने हितों के अनुरूप गुटों का निर्माण करने लगे थे । परिणामस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप गुटों में विभाजित हो गया । यूरोप धीरे-धीरे सैनिक शिविर का रूप लेता जा रहा था । यूरोप में गुटबन्दी का जन्मदाता जर्मनी के चांसलर-बिस्मार्क को माना जाता है । उसने सन् 1879 ई० में आस्ट्रिया के साथ द्वैध सन्धि की । 1882 ई० में एक त्रिगुट बना, जिसमें जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी और इटली शामिल हुए। यह त्रिगुट बिस्मार्क ने फ्रांस के विरुद्ध बनायी थी । इस त्रिगुट के विरोध में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने 1907 ई० में एक त्रिदेशीय संधि बनाई । इन दोनों गुटों की उपस्थिति ने भयावहता को तय कर दिया । युद्ध की
प्रश्न 2. प्रथम विश्व युद्ध के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम निम्नवत थे
(i) प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप जर्मनी, आस्ट्रिया, रूस और तुर्की के प्राचीन राजवंशों की निरंकुशता का अन्त हो गया और वहाँ गणतंत्र की स्थापना हुई । एशिया, अफ्रीका और चीन में भी गणतंत्रवाद की लहर पहुँची।
(ii) प्रथम विश्वयुद्ध के फलस्वरूप यूरोप के प्रायः सभी देशों में लोकतांत्रिक राज्यों की स्थापना हुई, राजनीतिक कार्यों में जनता को भाग लेने का अधिकार मिला और सार्वभौम मताधिकार प्रथा प्रारंभ हुई ।
(iii) युद्ध के परिणामस्वरूप यूरोप में राष्ट्रीयता का उदय हुआ, राष्ट्रीय राज्यों का निर्माण हुआ तथा उपनिवेशों में नव जागरण का संचार हुआ ।
(iv) प्रथम विश्वयुद्ध के फलस्वरूप लोकसत्तावादी शासन का अंत हुआ और स्वेच्छाचारी शासन का अभ्युदय हुआ । जर्मनी में तानाशाह हिटलर और इटली में तानाशाह मुसोलिनी का उदय भी प्रथम विश्वयुद्ध का परिणाम था ।
(v) प्रथम विश्वयुद्ध के फलस्वरूप श्रमिक आन्दोलन को प्रोत्साहन मिला। मजदूरों ने अपना वेतन वृद्धि करने और काम के घंटे निश्चित करने की माँग की । एतदर्थ मजदूरों ने मजदूर संघ कायम किए ।
(vi) प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप काले-गोरे का भेदभाव कम हो गया । जिससे आगे चलकर भविष्य में अन्तर्राष्ट्रीयता की स्थापना में काफी मदद मिली ।
प्रश्न 3. क्या वर्साय संधि एक आरोपित संधि थी ?
उत्तर-वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी क्योंकि इस संधि पर किसी प्रकार की बहस नहीं हो सकी थी । जर्मनी के प्रतिनिधियों को सम्मेलन में संधि की शर्तों पर बातचीत करने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया । उन्हें केवल संधिपत्र पर हस्ताक्षर करने और उसे स्वीकार करने के लिए बुलाया गया था। पेरिस सम्मेलन के सदस्यों ने जर्मनी से की जानेवाली संधि की रूप-रेखा तैयार कर ली और 7 मई को जर्मन सरकार के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया गया । साथ ही जर्मन सरकार को यह भी दिया गया कि उस पर विचार कर छह सप्ताह के भीतर उसे अपने विचारों को लिख भेजना जर्मन सरकार संधि की शर्तों पर विचार करने के उपरान्त एक विशाल आवेदन पत्र जिसमें अनेक परिवर्तनों के लिए प्रार्थना की गई थी, मित्र राष्ट्रों के प्रधान समिति के पास भेज दिया। समिति ने जर्मनी के प्रार्थना पत्र में कुछ को स्वीकार कर लिया और नवीन मसविदे को जर्मनी के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया तथा एक निश्चित तिथि तक पास करने को कहा । 2 जून को सरकार को बाध्य होकर इस संधि-पत्र को स्वीकार करना पड़ा ।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी । इसका मुख्य उद्देश्य हर तरह से जर्मनी को पंगु बनाना था । मित्रराष्ट्रों ने जर्मनी और उसके साम्राज्य को आपस में बाँट लिया ।
प्रश्न 4. बिस्मार्क की व्यवस्था ने प्रथम विश्वयुद्ध का मार्ग किस प्रशस्त किया ?
उत्तर- जर्मन साम्राज्य के निर्माण के बाद बिस्मार्क जो रक्त और लोहे की नीति में विश्वास करता था, शांति और संगठन की नीति का समर्थक हो गया । लेकिन वह इस सत्य से भी परिचित था कि नवीन जर्मन राज्य का सबसे भयंकर शत्रु फ्रांस है और इसलिए उसने यह नीति अपना ली कि जिस तरह भी हो फ्रांस को यूरोप की राजनीति में तटस्थ बनाए रखा जाए और उसका किसी भी राष्ट्र के साथ गठबंधन नहीं होने दिया जाए । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बिस्मार्क ने चार बड़े राष्ट्रों के साथ मित्रता की संधि की । इससे वह अपने उद्देश्य में बहुत कुछ सफल रहा । उसने यूरोप के चार बड़े राष्ट्रों-रूस, आस्ट्रिया, इंगलैंड और इटली को अपने पक्ष में रखा। लेकिन बिस्मार्क की इस व्यवस्था में सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि इस तरह की नीति का सफलतापूर्वक पालन बिस्मार्क या उसी तरह का प्रतिभाशाली व्यक्ति ही कर सकता था । जर्मन साम्राज्य का नया सम्राट कैसर-विलियम द्वितीय अनुभवहीन तथा दंभी व्यक्ति था । राजनीतिक दाँव-पेंच में उसका पासा उलटा पड़ा, जिसका परिणाम यह हुआ कि फ्रांस को अपना अकेलापन दूर करने का मौका मिल गया । उसने रूस की सहायता से अलग गुट कायम किया । इसमें पीछे चलकर इंगलैंड भी शामिल हो गया । इस तरह यह त्रिराष्ट्रीय मैत्री बन गया । यूरोप में इस तरह के दो शक्तिशाली गुटों के कायम हो जाने से युद्ध की आशंका बहुत बढ़ गई ।
प्रश्न 5. द्वितीय विश्वयुद्ध के क्या कारण थे ? विस्तारपूर्वक लिखें ।
उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के निम्नलिखित कारण थे :
(i) वर्साय सन्धि का अनौचित्य-वर्साय संधि से सबसे अधिक क्षति जर्मनी को हुई क्योंकि मित्रराष्ट्रों ने स्वार्थ के वशीभूत होकर उसके साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार किया। इसके विपरीत मनोवांछित आशा के पूर्ण न होने पर इटली को भी इससे निराशा हुई । इसी कारण मुसोलनी के नेतृत्व में इटली में शक्ति का उदय हुआ और कुछ समय पश्चात् जर्मनी में हिटलर का उदय हुआ। फलतः द्वितीय विश्वयुद्ध के आगमन की सूचना मिलने लगी ।
(ii) राष्ट्रसंघ की अकर्मण्यता-राष्ट्रसंघ बड़े-बड़े राज्यों के स्वार्थ और साम्राज्यवादी भावना पर नियंत्रण रखने में असमर्थ रहा । शक्तिशाली राष्ट्रों ने राष्ट्रसंघ से अपना संबंध-विच्छेद कर लिया और यह साबित कर दिया कि शांति सम्मेलन द्वारा निर्मित यूरोप अधिक समय तक शान्त नहीं रह सकता । फलतः द्वितीय विश्वयुद्ध के आगमन की सूचना मिलने लगी ।
(iii) हथियार बंदी-भावी युद्ध की आशंका से प्रत्येक राष्ट्र अस्त्र-शस्त्रों में वृद्धि करने तथा गुटबंदियों में सम्मिलित होने का प्रयत्न करने लगा । निःशस्त्रीकरण सम्मेलनों के विफल हो जाने से राज्यों ने सीमाओं के किलेबन्दी करनी आरंभ की ताकि शत्रु सरलता से उनकी सीमाओं में प्रवेश नहीं कर पाए। फ्रांस और जर्मनी ने अलग-अलग अपनी सीमाओं की किलेबन्दी की । फलतः द्वितीय विश्वयुद्ध अवश्यंभावी हो गया ।
(iv) हिटलर का उदय-चूँकि मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी पर कठोर शर्तें और नियंत्रण लगाए थे अतः हिटलर ने जर्मनी में शक्ति प्राप्ति के उपरांत वर्साय स्पष्टतया इंकार कर दिया । जर्मनी अपनी हार को संधि के शर्तों को मानने नहीं भूला था । वह फ्रांस से बदला लेने पर उतारू था । हिटलर ने जर्मनी की सैनिक शक्ति को काफी सुदृढ़ता प्रदान की । इस तरह हिटलर का जर्मनी में उदय होना द्वितीय विश्वयुद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना । ।
(v) फ्रांस की सुरक्षा की भावना- जर्मनी से सुरक्षा हेतु फ्रांस अपने अस्त्र-शस्त्रों तथा सैनिकों की वृद्धि में निरंतर प्रयत्नशील रहा । कुछ समय पश्चात् इंगलैंड का ध्यान भी इस ओर आकृष्ट हुआ । इंगलैंड ने भी अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि करना आरंभ किया । इस प्रकार दूसरे राष्ट्र भी अपने को भावी युद्ध के लिए तैयार करने में संलग्न हो गए । ऐसी स्थिति में द्वितीय विश्वयुद्ध का होना अवश्यंभावी हो गया ।
(vi) गृहयुद्ध-गुटबंदी और सैनिक संधियाँ भी द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेवार थी । शान्ति बनाए रखने के नाम पर यूरोप में अनेक संधियाँ हुईं। जिसके परिणामस्वरूप यूरोप पुनः दो गुटों में बँट गया । एक गुट का नेता जर्मनी बना और दूसरा गुट का नेता फ्रांस बना । इस गुटबंदी से सम्पूर्ण यूरोप का माहौल विषाक्त हो गया था । विषाक्त माहौल में शंका के लिए हर छोटी बात महत्त्वपूर्ण थी ।
प्रश्न 6. द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का उल्लेख करें ।
उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए :
(i) धन-जन की अपार क्षति-द्वितीय विश्वयुद्ध में भयंकर नरसंहार और रक्तपात हुआ। इसमें नरसंहार के लिए सभी साधनों को काम में लाया गया। मशीनगन, टैंक, तोपखाना, एटमबम सभी से काम लिया गया और इस परिस्थिति में लाखों नर-नारियों की हत्या स्वाभाविक थी । इस युद्ध में कितना अधिक धन का अपव्यय हुआ । यह ठीक-ठीक आँका नहीं जा सका है केवल ब्रिटेन को जो नुकसान पहुँचा उसकी क्षतिपूर्ति के लिए 1800 करोड़ रुपयों की जरूरत थी । रूस, फ्रांस आदि देशों को तो और अधिक क्षति पहुँची। क्योंकि उन देशों की भूमि पर लड़ाइयाँ लड़ी गई थीं । ।
(ii) यूरोपीय श्रेष्ठता और उपनिवेशों का अन्त - द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् एशिया महादेश से यूरोपीय राष्ट्रों की प्रभुता करीब-करीब समाप्त हो गयी । युद्ध के बाद भारत, श्रीलंका, बर्मा, मिस्र, मलाया आदि देशों ने स्वतंत्रता पायी । यूरोपीय श्रेष्ठता का भी अंत हो गया ।
(iii) इंगलैंड की शक्ति में ह्रास और रूस तथा अमेरिका की शक्ति में वृद्धि - युद्ध में प्रत्यक्षतः जर्मनी, जापान और इटली की हार हुई थी। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में इंगलैंड की भी हार हुई । युद्ध के बाद इंगलैंड विश्व की सबसे बड़ी शक्ति नहीं रह गया । इसके उपनिवेश मुक्त हो गए, शक्ति और संसाधन सीमित हो गए तथा इसके बदले रूस और अमेरिका अपनी असीम आर्थिक संसाधनों के साथ विश्व की राजनीति में शक्तिशाली देश के रूप में उभरे ।
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(iv) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना-द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण कर विश्व शांति को कायम रखने का प्रयास किया गया ।
(v) विश्व में गुटों का निर्माण-पहले विश्व की राजनीति में इंगलैंड का बोलबाला था, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व साम्यवादी और पूँजीवादी में बँट गया । साम्यवादी खेमे का नेतृत्व रूस कर रहा था और पूँजीवादी खेमे का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। एक गुटनिरपेक्ष राज्यों के संघ के रूप में तीसरा खेमा सामने आया, यह मूलतः नवोदित स्वतंत्र और विकासशील राष्ट्र थे । अब पूँजीवादी और साम्यवादी दोनों ही राष्ट्रों की मानसिकता में बदलाव आयी और उपनिवेशों की स्थापना से बचने लगे । इस तरह साम्राज्यवाद का स्वरूप भी परिवर्तित हो गया
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