भगत सिंह पर भाषण

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भारत के क्रन्तिकारी
आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में
क्रांति के सन्देश को फ़ैलाने के लिए नौजवान
भारत सभा का गठन किया, भारत में गणतंत्र
की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ
मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ
का गठन किया, लाला लाजपत राय की मौत
का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी
सॉन्डर्स की हत्या की, बटुकेश्वर दत्त के साथ
मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका
शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता
संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे।
मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च
बलिदान देने वाला यह वीर सदा के लिए अमर
हो गया। उनके लिए क्रांति का अर्थ था
अन्याय से पैदा हुए हालात को बदलना। भगत
सिंह ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे
में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक
आकर्षित हुए। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन
को उखाड़ फेकने और भारतीय समाज के
पुनर्निमाण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल
करना जरुरी था।
हालाँकि अंग्रेज सरकार ने उन्हें
आतंकवादी घोषित किया था पर सरदार भगत
सिंह व्यक्तिगत तौर पर आतंकवाद के
आलोचक थे। भगत सिंह ने भारत में
क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी।
उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य का
विनाश करना था। अपनी दूरदर्शिता और दृढ़
इरादे जैसी विशेषता के कारण भगत सिंह को
राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से हटकर थे।
ऐसे समय पर जब गांधी और भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस ही देश की आजादी के लिए एक मात्र
विकल्प थे, भगत सिंह एक नयी सोच के साथ
एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने
आये।
प्रारंभिक जीवनभगत सिंह का जन्म
पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां
गावं के एक सिख परिवार में 27 सितम्बर
1907 को हुआ था। उनकी याद में अब इस
जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह
नगर रख दिया गया है। वह सरदार किशन
सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे।
भगत सिंह का परिवार स्वतंत्रता संग्राम से
सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था। उनके पिता
किशन सिंह और चाचा अजित सिंह ग़दर पार्टी
के सदस्य थे। ग़दर पार्टी की स्थापना ब्रिटिश
शासन को भारत से निकालने के लिए
अमेरिका में हुई थी। परिवार के माहौल का
युवा भगत सिंह के मष्तिष्क पर बड़ा असर
हुआ और बचपन से ही उनकी नसों में
देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी।
1916 में लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय
में पढ़ते समय युवा भगत सिंह जाने-पहचाने
राजनेता जैसे लाला लाजपत राय और रास
बिहारी बोस के संपर्क में आये। उस समय
पंजाब राजनैतिक रूप से काफी उत्तेजित था।
जब जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड हुआ तब
भगत सिंह सिर्फ १२ वर्ष के थे। इस हत्याकांड
ने उन्हें बहुत व्याकुल कर दिया। हत्याकांड के
अगले ही दिन भगत सिंह जलिआंवाला बाग़
गए और उस जगह से मिट्टी इकठ्ठा कर इसे
पूरी जिंदगी एक निशानी के रूप में रखा। इस
हत्याकांड ने उनके अंग्रेजो को भारत से
निकाल फेंकने के संकल्प को और सुदृढ़ कर
दिया
क्रन्तिकारी जीवन1921 में
में जब
महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ
असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब
भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में
सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा
गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के
बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब
भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका
विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष
पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने
का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। अपनी पढाई
जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में
लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय
विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय
क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ
पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे
क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।


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