तू जिन्दा है तो……................कविता, कवि शंकर शैलेन्द्र द्वारा रचित एक पुरुषार्थवादी कविता है। प्रस्तुत कविता गहरे जीवन राग और उत्साह को प्रकट करती है। इस जीवन राग में अतीत के दुखदायी पलों को भुलाकर आशा और जीत की नई दुनिया का स्वागत करने की प्रेरणा है। इस कविता के माध्यम से कवि मनुष्य को प्रयत्नशील रहने की प्रेरणा देते हैं।
इनका कहना है कि मनुष्य को अपने पुरुषार्थ से स्वर्ग को धरती पर लाने का संकल्प लेना चाहिए।
1. तू जिन्दा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर
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अगर कहीं है स्वर्ग तो....................................
तू जिन्दा है तो.............................................
शब्दार्थ — जिन्दा = जीवित, जिंदगी। यकीन = विश्वास, भरोसा। गम = दुख, कष्ट। सितम = जुल्म, अत्याचार। गुजर = बीतना । चमन भावार्थ / व्याख्या- कवि शंकर शैलेन्द्र लोगों को उत्साहित करते हुए कहते हैं कि : बाग, फुलवारी। बहार = शोभा, सुन्दरता । जब तक तुम्हारे शरीर में प्राण है, तुम्हें जीवन मार्ग में आनेवाली सारी कठिनाइयों को भूलकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयत्न करना चाहिए, ताकि हम अपने अदम्य साहस एवं कठोर परिश्रम से धरती को स्वर्ग बना सके। कवि इन पंक्तियों में कहना चाहते हैं कि तुम ज़िंदा रहो और जीत में विश्वास रखो । संसार में दुःख के चार दिन
और जुर्म के चार दिन गुज़र जायेंगे। अभी जो बुरे दिन चल रहे हैं, वे भी गुज़र जायेंगे। फिर जीवन रूपी चमन में बहार आयेगी । तुम अपने पुरुषार्थ में विश्वास रखो अगर कहीं स्वर्ग है तो उसे ज़मीन पर उतार दो ।
2. सुबह और शाम......................................
.....................................उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो............................................
शब्दार्थ- गगन = आकाश, आसमान। झूम-झूम कर = मस्ती में, खुशी में झुमते हुए। सिंगार श्रृंगार । = भावार्थ / व्याख्या -कवि लोगों का ध्यान प्राकृतिक सौन्दर्य की ओर आकृष्ट करते हैं। वे कहते हैं सुबह और शाम की सुनहरी किरणों को देखकर यह धरती खुशी से झूम उठी है। कवि के कहने का तात्पर्य है कि इन सुनहरी किरणों के निकलते ही वातावरण में
अनुपम सौन्दर्य छा जाता है। कवि कहते हैं कि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ और पराक्रम से उसी सौन्दर्य से इस धारती पर उतारकर इसे स्वर्ग जैसा सुन्दर बना दे।
3. हजार भेष धर के आई मौत.........................
.......................................उतार ला जमीन पर
तू जिन्दा है तो..............................................
शब्दार्थ- भेष = वेशभूषा। मौत = मृत्यु। छल = धोखा। उमर = उम्र, जिंदगी। भावार्थ / व्याख्या-इन पंक्तियों का भाव है कि मृत्यु तुम्हारे दरवाजे पर हज़ार वेश बनाकर उपस्थित होती है। परंतु तुम्हारे संघर्ष के कारण मौत तुम्हें छल नहीं सकी।।
नयी सुबह के साथ तुझे जिंदगी की नयी उम्र मिली है। मौत तेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकी। तुम अपने पुरुषार्थ से धरती पर स्वर्ग उतार लाओ, मौत से मत डरो।
4. हमारे कारवां को............................................
............................................उतार ला जमीन पर
शब्दार्थ- कारवां = काफिला। मंजिल = लक्ष्य। इंतजार = प्रतीक्षा। भावार्थ / व्याख्या-कवि इन पंक्तियों में कहना चाहता है कि हमारे संघर्ष के काफ़िले को केवल मंजिल की तलाश है। हम विपत्तियों की पीठ पर सवार होकर विजय प्राप्त करना चाहते हैं। हम इन आँधियों और तूफानों में एक साथ कदम मिलाकर चलें। हमें अपने पुरुषार्थ पर विश्वास है। हमें जीत अवश्य मिलेगी।
5. जमीं के पेट में पली........................उतार ला जमीन पर.......................
शब्दार्थ- जमीं = जमीन, धरती। अगन = आग। जलजले = भूकंप। स्वराज = अपना राज, आजादी, स्वतंत्रता। मुसीबत = कठिनाई। कुचलना = मिटाना, खत्म करना। भावार्थ / व्याख्या-इन पंक्तियों का भाव है कि धरती के पेट से क्रांति भूकंप पैदा हुए हैं। इस क्रांति-भूचाल के सामने रोग और शोक नहीं टिकेंगे। आइए, इस क्रांति की ज्वाला में हम साथ चलें और मुसीबतों के सर को कुचल डालें। पेट की आग
ही समाज में महाक्रांति पैदा करती है।
6. बुरी है आग पेट की.....................उतार ला जमीन पर.....................
शब्दार्थ- पेट की आग = भूख। दिल के दाग छल, कपट, धोखा। दबना कमजोर पड़ना, झुक जाना। जुल्म = अत्याचार। नवीन = नया।= भावार्थ / व्याख्या-कवि भूख से दग्ध शोषण पर आधारित क्रांति का आह्वान करता है। पेट की आग जब प्रखर होती है, तो महाक्रांति का जन्म होता है। जनता के पेट की आग और दिल के जख्म इंकलाब (क्रांति) सृजन करते हैं। इस महाक्रांति में शोषण के महल ढह जाते हैं और जनता के लिए शांति के नये घर बनते हैं। कवि चाहता है कि जुर्म के महल ध्वस्त हों और समाज में प्रेम और शांति के नये घर बनें।
7. नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई................................ला जमीन पर ।
उत्तर- 1. जीत, 2. दाग, 3. उमर
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रशन 1. संघर्ष करने वाले मजदूर-किसानों को मौत से क्यों नहीं डरना चाहिए ?
उत्तर- समाज में इंकलाब करने वाले मजदूर-किसान मौत से नहीं डरते हैं। उसके दरवाजे पर मौत हजारों चेहरे बदल कर आती हैं । परंतु मौत इंकलाबी संघर्षरत मेहनतकश किसान-मजदूरों को धोखा नहीं दे पायी है। वह हारकर इनके दरवाजों
से चल गयी है । मौत हारती हैं । हर सुबह नयी रोशनी देती है।
2. कब अत्याचारों के महल गिरेंगे और कब नये घरों के निर्माण होंगे?
उत्तर- जब पेट की आग और दिल के दाग मिलकर ध्वंस रचकर नया विद्रोह खड़ा होगा, तब उस विद्रोह की आग में अत्याचारों के महल गिर जाएँगे और श्रमिकों के लिए नये-नये घर तैयार होंगे। विनाश के बाद ही नवनिर्माण होगा।
3. ज़मी के पेट में पली अगन, पले हैं जलजले' का भाव स्पष्ट करें।
इस पंक्ति का भावार्थ है कि धरती के पेट की आग भूचाल को जन्म देती है । दुनिया में भूखे जन ही क्रांति का सृजन करते हैं। पेट की आग को रोकना कठिन है । इसमें भूकंप की ताकत और इंकलाब की शक्ति छिपी होती है।
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