दरियादास
मैथिली अभ्यास 1
बिहार राज्य के अन्तर्गत भोजपुर जिला के धरकंधा निवासी पीरनशाह के पुत्र के रूप में सन् 1674 में जनमल दरियादास उच्च कोटि के संत आ समाज सुधारक रहीं। इहाँ के सामाजिक, धार्मिक आ सांस्कृतिक आडंबरन पर करारा प्रहार करलीं। समाज में धर्म के नाम पर फइलल, जात-पात, ऊँच-नीच, हिंदू-मुसलमान जइसन सामाजिक विकृतियन के समाप्त के के सभका के ईश्वर के संतान के रूप में समान भाव से रहे के उपदेश देलीं। जदपि समाज के आडंबरवादी लोगन द्वारा इहाँ के सिद्ध संत के रूप में आदर देलस। इहाँ के शिष्यन में जात धरम आ ऊँच नीच के कवनो भेद भाव ना रहे। समाज के अछूत मुसलमान आ बाद में सवर्ण लोग तक इहाँ के लोहा मानके गुरु रूप में स्वीकार कइलस। इहाँ के लगभग बीस गो किताबन के रचना कइलीं। जवन दरिया सागर में एके जगे संग्रहित बा। आजो इहाँ के नाम पर दरिया पंथ चलेला। एह पंथ के माने वाला हजारो भक्त बाड़न । कई स्थान पर आश्रम के निर्माण भइल बा। मुख्य आश्रम इहाँ के जन्म स्थान धरकंधा आश्रम मानल जाला। 106 बरिस के दीर्घ जीवन जिअला के बाद सन् 1780 में दरिया साहेब के देहावसान भइल। सामाजिक समरसता आ सांप्रदायिक सद्भावना स्थापित करे वाला संत कबीरदास दादू रैदास बगैरह के कोटि में इहों के समादृत बानी।
विषय प्रवेश
संत कवि दरियादास एह संकलित पदन में निरगुन ब्रह्म के सर्व व्यापकता पर प्रकाश डलले बानी। इहाँ के कहनाम बा कि भीतर के जमल मइल के धोअला बिना ऊपरी तन के साफ कइला से सत्पुरुष पर माया के असर नइखे, बाकिर सभे देवता, जोगी, जती, त्रिदेव आदि माया के फेर में झूल रहल बाड़न इंगला पिंगला आ सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से सुकृत द्वारा बतावल विधि से ब्रह्म के जानल जा सकेला शब्द तत्व के महत्त्व पर दरिया साहेब प्रकाश डलले बानी। तन के महल में रहे वाला हरि के जुगुति से प्राप्त कहल जा सकेला। एही तथ्य के बतावे के / कोशिश एह पदन में कहल गइल बा।
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