1. बौद्ध एवं जैन धर्म की दो समानताएँ बतायें।
उत्तर- (i) बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म दोनों शुद्ध एवं नियमित जीवन के पक्षपाती थे।
(ii) दोनों धर्मों में अहिंसा के सिद्धान्त पर बल दिया गया एवं पशुओं की बलि का घोर विरोध किया गया ।
2. आइन-ए-अकबरी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर- आइन ए अकबरी (संक्षेप में आइन) जिसे अकबर के दरबार इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा था। खेतों की नियमित जुताई की तसल्ली करने के लिए राज्य के नुमाइंदों द्वारा करों की उगाही के लिए और राज्य व ग्रामीण सत्तापोशों यानी कि जमींदारों के बीच के रिश्तों के नियमन के लिए जो इंतजाम राज्य ने किए थे, उसका लेखा जोखा इस ग्रंथ में बड़ी सावधानी से पेश किया गया है ।
3.झूम खेती क्या है ?
उत्तर-झूम खेती (slah and burn farming) एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिए जाते हैं। इसके पश्चात् इस भूमि को छोड़ दिया जाता है जिस पर पुनः पेड़-पौधे उग आते हैं।
4. संथाल विद्रोह कब आरंभ हुआ ?
उत्तर- संथाल या हूल विद्रोह 1955 हुआ था। यह चार भाईयों सिद्ध, कान्हू, चाँद और भैरव के नेतृत्व में हुआ। चाँद और भैरव 10 जुलाई 1955 को अंग्रेजी गोली से मारे गए। जबकि अन्य भाईयों को बाद में पकड़कर फाँसी दे दी गई
5.नेता कौन थे ? तांत्या टोपे कौन था ? उसकी मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर- तांत्या टोपे नाना साहिब की सेना का एक कुशल, अत्यधिक साहसी, परमवीर एवं विश्वसनीय सेनापति था। उसने 1857 के विद्रोह में कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध कुशलता से गुरिल्ला नीति अपनाते हुए अंग्रेजी सेना की नाक में दम कर दिया था। उसने अंग्रेज जनरल बिन्द्रहैम को बुरी तरह परास्त किया तथा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का पूर्ण निष्ठा से सहयोग दिया। कालान्तर में सर कोलिन कैम्पवेल ने उसे हराया तथा 1858 में अंग्रेजों ने तांत्या टोपे को फाँसी की सजा दे दी।
6. लोथल कहाँ है ? इतिहास अध्ययन में इस स्थान का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-लोथल (Lothal) : ईंट के कृत्रिम गोदी बाड़े वाला यह एकमात्र सिंधु शहर है। यह सिंधुवासियों का मुख्य बंदरगाह रहा होगा। चावल की खेती का प्राचीनतम (1800 ई.पू.) उदाहरण लोथल से प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा एकमात्र स्थल अहमदाबाद के निकट रंगपुर है जहाँ से चावल का भूसा प्राप्त हुआ है।
7. कमल महल कहाँ है ? इसका क्या उपयोग था ?
उत्तर- कमल महल हम्पी, कर्नाटक के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। कमल के आकार का यह दो मंजिला महल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है । कमल महल 'हजारा राम मंदिर' के समीप ही स्थित है। यह महल इण्डो इस्लामिक शैली का मिश्रित रूप है ।
8. हड़प्पा सभ्यता के 4 प्रमुख केन्द्रों के नाम बतायें ।
उत्तर- हड़प्पा संस्कृति के चार प्रमुख केन्द्र निम्नलिखित हैं
1. हड़प्पा,
2. मोहनजोदड़ों
3. रोपड़,
4. कालीबंगा
5. लोथल,
6. बनावली ।
9. विशाल अन्नागार पर टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- सार्वजनिक भवनों में स्तम्भों वाला हाल और अन्न संग्रहालय विशेषकर उल्लेखनीय हैं। स्तम्भों वाला हाल 30 वर्ग फुट का और अन्न-संग्रहालय 200 x 50 फुट का, जिसमें 50 × 20 वर्ग फुट के स्टोर (भण्डार) होते थे ।
10. सिन्धु घाटी सभ्यता में शवों के दाह संस्कार के कितने प्रकार थे ?
उत्तर- सिन्धु घाटी की सभ्यता में शवों को दफनाने एवं जलाने की दोनों प्रथाएँ प्रचलित थीं । शव के साथ उनके आभूषण, बर्तन एवं हथियार भी रखे जाते थे ।
11. मगध साम्राज्य के उत्थान के दो कारण बतायें ।
उत्तर- मगध साम्राज्य के उत्थान के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. एक यह कि मगध क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी ।
2. दूसरे यह कि लोहे की खदानें (आधुनिक झारखंड में) भी आसानी से उपलब्ध थीं जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।
3. जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे, जो सेना के एक महत्त्वपूर्ण अंग थे। साथ ही गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था। कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
12. गाँधी के जीवन में निम्नलिखित चार वर्षों का महत्त्व बतायें :
(A) 1915 (C) 1930 (B) 1920 (D) 1948
उत्तर- (A) 1915 -गाँधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 में महात्मा की उपाधि दी थी ।
(B) 1920 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरूआत की थी।
(C) 1930 ई० में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत हुई।
(D) 1948-महात्मा गाँधी की मृत्यु, 30 जनवरी 1948 को हुई थी ।
13.कम्यूनल अवार्ड क्या था ?
उत्तर- ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्मजे मैक्डोनल्ड ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श के फलस्वरूप 16 अगस्त 1932 को कम्युनल अवार्ड की घोषणा की । इस निर्णय में दलितों को भी मुस्लिम, सिख आदि की तरह पृथक निर्वाचन मंडल प्रदान किया गया । दलित वर्ग को दो जगह वोट देने का अधिकार मिला ।
14. क्रिप्स मिशन भारत कब आया ? इस मिशन के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर- क्रिप्स मिशन मार्च 1942 में भारत आया । इसके अध्यक्ष सर स्टेफोर्ड क्रिप्स थे ।
15. बाबू कुँवर सिंह कौन थे ? 1857 की क्रांति का नेतृत्व पटना में किसने किया था ?
उत्तर- कुँवर सिंह आरा (जगदीशपुर), बिहार में एक स्थानीय जमींदार थे। वह बड़े जमींदार होने के कारण लोगों में राजा के नाम से विख्यात थे। कुँवर सिंह की उम्र बहुत कम थी तो भी उन्होंने आजमगढ़ तथा बनारस में अंग्रेजी फौज को पराजित किया । उन्होंने छापामार युद्ध पद्धति से अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये। उन्होंने ब्रिटिश सेनापति मार्कर को पराजित कर गंगा पार अपने प्रमुख किले जगदीशपुर पहुँचने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने ही 1857 की क्रांति का नेतृत्व पटना में किया था। अप्रैल 1858 में उनकी मृत्यु हो गई ।
16.भारत की सर्वप्रथम रेल कब और किन स्टेशनों के बीच चली ?
उत्तर- भारत की सर्वप्रथम रेल 1853 में बॉम्बे वी०टी० स्टेशन से ठाणे के बीच चली ।
17. सर एडविन लुटियन्स कौन थे ?
उत्तर- सर एडविन लुटियंस एक ब्रिटिश आर्किटेक्ट थे । सर एडविन लुटियंस साल 1920 से 1940 के दौरान बने हुए वास्तुशिल्प डिजाइन और निर्माण के लिए जाने जाते हैं । इसमें लुटियंस बंगला जोन भी शामिल है।
18. सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन दो सभ्यताओं के नाम बतायें ।
उत्तर- सिन्धु घाटी सभ्यता के समकालीन
(क) मोसोपोटामिया तथा
(ख) चीन की सभ्यताएँ थीं ।
19. मौर्यकालीन इतिहास के किन्हीं दो प्रमुख साहित्यिक स्रोतों के नाम बतायें ।
उत्तर- मौर्यकालीन इतिहास के दो प्रमुख साहित्यिक स्रोत हैंतथा
(i) मेगास्थनीज की इंडिका
(ii) कौटिल्य का अर्थशास्त्र ।
20. हर्यक वंश का संस्थापक कौन था ? उसका कार्यकाल बतायें ।
उत्तर- हर्यक वंश का संस्थापक बिंबिसार था । बिंबिसार 544 ईसा पूर्व में मगध का राजा बना । बिंबिसार की राजधानी गिरीव्रज (राजगृह) थी । बिंबिसार के विषय में हमें बौद्ध ग्रंथ महावंश से जानकारी मिलती है ।
21. उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का प्रारंभ किसने किया था ? उनका जीवन परिचय दें ।
उत्तर- उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का प्रारंभ रामानंद ने किया था। बारहवी शताब्दी के आरंभ में रामानंद द्वारा यह आंदोलन दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाया गया रामानंदी संप्रदाय (बैरागी सम्प्रदाय) के प्रवर्तक रामानन्दाचार्य का जन्म सम्व 1236 में हुआ था । उनके जन्म के समय और स्थान के बारे में ठीक ठीक जानकार उपलब्ध नहीं है । शोधकर्ताओं ने जो जानकारी जुटाई है उसके अनुसार रामानंद के पित का नाम पुण्यसदन और माता का नाम सुशीला देवी था ।
22. खालसा पंथ की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर -: खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोविन्द सिंह जी ने 1699 को वैशाखी वा दिन आनंदपुर साहिब में की। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवाक खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया ।
23. उपनिवेशवाद का क्या अर्थ है ?
उत्तर- उपनिवेशवाद का अर्थ है किसी संमृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा अपने विभिन्न हितों को साधने के लिए किसी निर्बल किन्तु प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण राष्ट्र के विभिन्न संसाधनों का शक्ति के बल पर उपभोग करना । वस्तुतः हम किसी शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा निहित स्वार्थवश किसी निर्बल राष्ट्र के शोषण को उपनिवेशवाद कह सकते हैं।
24. हड़प्पा सभ्यता के आर्थिक जीवन की विवेचना करें ।
उत्तर- मोहनजोदड़ों एवं हड़प्पा की खुदाई में जो वस्तुएँ मिली हैं, उनसे हम सिन्धु घाटी के लोगों के सामाजिक और आर्थिक जीवन का भी अनुमान लगा सकते हैं। खुदाई में जो हड्डियाँ और खोपड़ियाँ मिली हैं उनसे उस सभ्यता के लोगों का द्रविड़ या आर्य होने का अनुमान है परंतु कुछ लोग उन्हें सुमेरियन या क्रीट निवासी बताते हैं
निश्चिततः यह काल अपने प्रतापी राजाओं और अपनी सर्वोत्कृष्ठ संस्कृति के कारण भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्ण के समान प्रकाशित है। मानव जीवन के सभी क्षेत्रों ने उस समय प्रफुल्लता एवं समृद्धि के दर्शन किये थे।
। सिन्धु घाटी के पुरुष धोती पहनते थे ऊपर चादर या शाल ओढ़ते थे। आभूषण स्त्रियाँ व पुरुष दोनों पहनते थे। आभूषणें में अँगूठी, गले का हार, करधनी और कुंडल थे आभूषण सोने, चाँदी, कीमती पत्थर, हाथी- दाँत, घोंघा, हड्डियों के बने होते थे । हड़प्पा के लोग सौन्दर्य प्रेमी थे । वे लोग कई प्रकार के पाउडर, सुगंधित तेल तथा (सुर्खी) का प्रयोग करते थे । हड़प्पा का भोजन बहुत सादा था। वे गेहूँ, जौ, दूध, सब्जी, माँस, मछली का प्रयोग करते थे । ।हड़प्पा निवासियों के प्रमुख व्यवसाय कृषि व पशुपालन थे। इसके अतिरिक्त वस्त्र बुनना, बर्त्तन व आभूषण बनाना व व्यापार करना वहाँ के लोगों का पेशा था । वे लोग गाय, बैल, बकरी, भैंस, व ऊँट आदि पशु पालते थे। शिकार खेलना, मछली पकड़ना, साँडों की लड़ाई करवाना, पक्षी पालन आदि उनके मनोरंजन के साधन थे । -
25. गुप्तकाल को "भारत का स्वर्णयुग" क्यों कहा जाता है ?
उत्तर- गुप्त साम्राज्य प्राचीन भारतीय इतिहास के उस युग का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें सभ्यताओं की संस्कृति के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई तथा हिंदू संस्कृति अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँच गयी । गुप्तकाल की चहुमुखी प्रगति को ध्यान में रखकर ही इतिहासकारों ने उस काल को स्वर्ण युग (Golden Age) की संज्ञा से अभिहित किया है ।
निश्चितत: यह काल अपने प्रतापी राजाओं और अपनी सर्वोत्कृष्ठ संस्कृति के कारण भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्ण के समान प्रकाशित है। मानव जीवन के सभी क्षेत्रों ने उस समय प्रफुल्लता एवं समृद्धि के दर्शन किये थे।
निम्न विशेषताओं के कारण गुप्त काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' माना जाता है :
(i) राजनीतिक एकता का काल (ii) महान सम्राटों का काल (iii) आर्थिक समृद्धि का काल (iv) धार्मिक सहिष्णुता का काल (v) श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का काल (vi) साहित्य, विज्ञान एवं कला के चरमोत्कर्ष का काल (vii) भारतीय संस्कृति के प्रचार का काल ।
(i) राजनीतिक एकता का काल-मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात पहली बार इतने व्यापक रूप से राजनीतिक एकता स्थापित की गयी । अपने उत्कर्ष काल में गुप्त साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था । दक्षिणापथ के शासक उनकी राजनीतिक प्रभुसत्ता स्वीकार करते थे ।
(ii) महान सम्राटों का काल-गुप्तकाल में महान एवं यशस्वी सम्राटों का उदय हुआ जिसने अपनी विजयों द्वारा एकछत्र शासन की स्थापना की । समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त થે । द्वितीय, विक्रमादित्य, स्कन्द गुप्त आदि उस काल के योग्य तथा प्रतापी सम्राट निम्न विशेषताओं कारण गुप्त काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' माना जाता है :
(iii) आर्थिक समृद्धि का काल- आर्थिक दृष्टि से गुप्त साम्राज्य समृद्धि का काल था। लोगों की जीविका का प्रमुख स्रोत कृषि कर्म ही था । बसचाई की उत्तम व्यवस्था की गयी थी। कृषि के साथ-साथ व्यापार और व्यवसाय भी उन्नति पर थे ।
(iv) धार्मिक सहिष्णुता का काल-गुप्त राजाओं का शासनकाल वैष्णव धर्म की उन्नति के लिए प्रसिद्ध है। परंतु अन्य धर्मों के प्रति वे पूर्णरूपेण उदार व सहिष्णु बने रहे ।
की वस्तु कही जा सकती है। यह व्यवस्था प्रत्येक दृष्टि से उदार एवं लोकोपकारी थी । शांति एवं व्यवस्था का राज्य था जहाँ आवागमन पूर्णतया सुरक्षित था।
(v) श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का काल-प्रतिभावान गुप्त नरेशों ने जिस शासन व्यवस्था का निर्माण किया वह न केवल प्राचीन अपितु आधुनिक युग के लिए भी आदर्श
(vi) साहित्य, विज्ञान एवं कला के चरमोत्कर्ष का काल- गुप्तकालीन शांति एवं सुव्यवस्था के वातावरण में साहित्य, विज्ञान एवं कला का चरमोत्कर्ष हुआ। संस्कृत राजभाषा के पद पर आसीन हुई तथा संस्कृत साहित्य का अभूतपूर्व विकास हुआ। महान कवि कालिदास उस युग की अमूल्य धरोहर हैं। कला के विविध पक्षों वास्तु, तक्षण चित्र आदि का सम्यक् विकास हुआ ।
(vii) भारतीय संस्कृति के प्रचार का काल : गुप्तकाल भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार के लिए प्रसिद्ध है । यद्यपि गुप्त के पहले से ही उत्साही भारतीयों ने मध्य और दक्षिण पूर्वी एशिया के विभिन्न भागों में अपना उपनिवेश स्थापित किए तथापि उन उपनिवेशों में हिंदु संस्कृति का प्रचार विशेषतया गुप्त काल में हुआ ।
उपरोक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में गुप्त साम्राज्य को स्वर्ण युग माना जाता है। किन्तु कुछ आधुनिक युग के इतिहासकार जिसमें आर० एस० शर्मा रोमिला थापर आदि प्रमुख हैं गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहना उचित नहीं मानते हैं ।
26. गुरु नानक देव पर एक लेख लिखें ।
उत्तर-I. नानक का संक्षिप्त जीवन परिचय-
(1) प्रस्तावना-भारत महान सन्तों, सुधारकों, धर्म प्रवर्त्तकों तथा प्रचारकों की भूमि है। महान् गुरु नानक देव राष्ट्र के उन महान् विभूतियों में आते हैं जो मानव शरीर में ईश्वरीय अवतार माने जाने लगे हैं ।
(2) संक्षिप्त जीवन विवरण- सिख धर्म के प्रणेता गुरुनानक देव रावी के तट पर स्थित तलवण्डी (आधुनिक ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में नवम्बर 1469 ई. में एक खत्री परिवार में उत्पन्न हुए थे। उनके पिता का नाम मेहता कालूचन्द था । उनका विवाह 18 वर्ष की अवस्था में ही हो गया था और उन्हें पिता के व्यवसाय-लेखा-जोखा तैयार करने में प्रशिक्षित करने के लिए फारसी की शिक्षा दी गई थी किन्तु नानक का झुकाव प्रारंभ से ही आध्यात्मवाद एवं भक्ति की ओर था और वे सत्संग में बहुत आनन्द उठाया करते थे । गृहस्थ जीवन में उन्हें किसी आनन्द का अनुभव नहीं हुआ । यद्यपि उनके दो पुत्र (श्रीचन्द और लखमीदास) थे लेकिन उन्हें कुछ समय के गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के बाद जब आध्यात्मिक दृष्टि मिली तो उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया। वे काव्य रचना करते थे और सारंगी के साथ गाया करते थे । संसार के बहुजीवी के कल्याणार्थ इन्होंने अनेक यात्राएँ कीं । कहते हैं कि वे चीन, बर्मा, श्रीलंका, अरब, मिस्र, तुर्की, अफगानिस्तान आदि देशों में गए । उनके दो शिष्य बाला और मरदाना प्रायः उनके साथ रहे । बड़ी संख्या में लोग उनकी ओर आकृष्ट हुए । 1539 ई. में उनकी मृत्यु हुई ।
II. गुरुनानक की शिक्षाएँ एवं विचार-(i) एकेश्वरवाद- कबीर की भाँति नानक ने भी एकेश्वरवाद पर बल दिया। उन्होंने ऐसे इष्टदेव की कल्पना की जो अकाल मूर्त्त, अजन्मा तथा स्वयंभू है। उनके विचारानुसार ईश्वर की न तो स्थापित किया जा सकता है और न ही निर्मित । वह स्वयंभू है, वह अलख, अपार, अगम एवं इंद्रियों से परे हैं । उसका “कोई काल है न कोई कर्म और न ही कोई जाति है। उन्होंने कहा-“पारब्रह्म प्रभु एक है, दूजा नहीं कोय ।”
(ii) भक्ति एवं प्रेम मार्ग तथा आदर्श चरित्र- गुरुनानक देव के अनुसार ईश्वर के प्रति भक्ति और प्रेम से ही मुक्ति सम्भव है, इसके लिए वर्ण, जाति और वर्ग का कोई भेद नहीं है। उनके अनुसार अच्छे व्यवहार एवं आदर्श तथा उच्च चरित्र से ईश्वर की निकटता प्राप्त की जा सकती है ।
(iii) गुरु की महत्ता अनिवार्य तथा आडम्बरों का विरोध-गुरु नानक ने भी मार्ग दर्शन के लिए गुरु की अनिवार्यता को पहली शर्त्त माना । उन्होंने मूर्तिपूजा, तीर्थ यात्रा आदि धार्मिक आडम्बरों की कटु आलोचना की। उन्होंने अवतारवाद का भी विरोध किया।
(iv) जगत के कण-कण में ईश्वर है- गुरु नानक ने संसार को माया से परिपूर्ण नहीं बल्कि इसके कण-
(v) जीव तथा आत्मा में अटूट संबंध है- नानक के विचारानुसार जीव परमात्मा से उत्पन्न होता है । जीवन में परमात्मा निवास करता है तथा आत्मा अमर है । कण में ईश्वरीय शक्ति को देखा है।
(vi) मध्यम वर्ग तथा समन्वयवादी दृष्टिकोण- गुरु नानक ने अपने भक्तों को मध्यम मार्ग अपनाने पर बल दिया, जिस पर चलकर गृहस्थ-आश्रम का पालन भी हो सकता
। है और आध्यात्मिक जीवन भी अपनाया जा सकता है । कबीर की भाँति नानक ने भी साम्प्रदायिकता का विरोध किया तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया। वस्तुतः उनका लक्ष्य एक नए धर्म की स्थापना करना नहीं था । उनका पवित्रतावादी दृष्टिकोण शांति सद्भावना, भाईचारा स्थापित करने के लिए ही हिन्दू मुस्लिम के मध्य मतभेद दूर करना था। उन्होंने इसका अनुभव किया कि समाज के घाव को भरने के लिए धार्मिक मतभेद दूर करना परमावश्यक है । उनके विचारानुसार हिन्दू एवं इस्लाम ईश्वर के पास पहुँचने के चाहे दो अलग-अलग मार्ग हैं लेकिन इन दोनों का लक्ष्य एक है-ईश्वर प्राप्ति । उनके अनुसार हिन्दू-मुस्लिम संत परवरदीगार के दीवाने हैं। वे दोनों सम्प्रदायों में समन्वय तथा एकता स्थापित कर देश में सद्भावना तथा शांति की स्थापना करना चाहते थे
III. सामाजिक शिक्षाएँ एवं विचार-
(i) उन्होंने जातिवाद का विरोध किया। वे सच्चे मानववादी थे। उन्होंने मानव समाज की सेवा को ही सच्ची ईश्वर-आराधना माना। वे मानव को समान मानते थे तथा मानव मात्र से प्रेम की शिक्षा देते थे। उनका प्रेम मौखिक न होकर सेवा भावना से ओत-प्रोत था ।
(ii) उनका स्त्रियों के प्रति सुधारवादी दृष्टिकोण था। उन्होंने स्त्रियों को महान् माना है । गुरु नानक ने अपने धर्म में स्त्रियों के खोए हुए अधिकारों को वापस दिलाया । उन्होंने स्त्रियों तथा पुरुषों की समानता पर बल दिया ।
(iii) आर्थिक शिक्षाएँ एवं विचार- गुरु नानकदेव ने गरीब को अमीर से अधिक प्यार किया तथा ईमानदारी की कमाई को सच्ची कमाई माना ।
(iv) जगत के कण-कण में ईश्वर है- गुरु नानक ने संसार को माया से परिपूर्ण नहीं बल्कि इसके कण-कण में ईश्वरीय शक्ति को देखा है ।
(v) जीव तथा आत्मा में अटूट संबंध है- नानक के विचारानुसार जीव परमात्मा से उत्पन्न होता है। जीवन में परमात्मा निवास करता है तथा आत्मा अमर है।
(vi) मध्यम वर्ग तथा समन्वयवादी दृष्टिकोण- गुरु नानक ने अपने भक्तों को मध्यम मार्ग अपनाने पर बल दिया, जिस पर चलकर गृहस्थ आश्रम का पालन भी हो सकता
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