अध्याय 1
संविधान क्यों और कैसे ?
1.किसी देश का संविधान उसकी राजनीतिक प्रक्रिया का वह मूलभूत ढाँचा निर्धारित करता है, जिसके द्वारा उसकी जनता शासित होती है।संविधान हैं?
2.संविधान किसी राज्य की सरकार के तीनों प्रमुख अंगों (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) की स्थापना करता है।
3- संविधान सरकार के तीनों अंगो की शक्तियों की व्याख्या करता है तथा साथ ही उनके कर्तव्यों की सीमा तय करता है
4- संविधान सरकार के तीनों अंगों के बीच आपसी सम्बन्धों तथा उनका जनता के साथ संबंधों का विनियमन करता है।
5- संविधान जनता की विशिष्ट सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रकृति, आस्था और आकांक्षाओं को पूरा करने का काम करता है, तथा अराजकता को रोकता है।
6 संविधान की आवश्यकताः-
A• मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज विभिन्न प्रकार के समुदायों से बनता है। इन समुदायों में तालमेल बैठाने के लिए संविधान जरूरी है।
B• संविधान जनता में आपसी विश्वास पैदा करने के लिए मूलभूत नियमों का समूह उपलब्ध करवाता है।
C.अन्तिम निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी? संविधान यह तय करता संविधान सरकार निर्माण के नियमों एवं उपनियमों तथा उसकी शक्तियों एवं
सीमाओं को तय करता है।
D• एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए भी संविधान जरूरी है।
7* भारतीय संविधान सभा का निर्माणः-
A• जुलाई 1945 में इंग्लैण्ड में नई लेबर पार्टी सरकार सत्ता में आई, तब भारतीय संविधान सभा बनने का मार्ग खुला। वायसराय लार्ड वेवल ने इसकी पुष्टि की
B• कैबिनेट मिशन योजना के अनुसा–संविधान निर्माण–निकाय की सदस्य संख्या-389 निर्धारित की गई। जिनमें से 292 प्रतिनिधि ब्रिटिश भारत के गर्वनरों के अधीन ग्यारह प्रांतो से, 04 प्रतिनिधि चीफ कमिश्नरों के चार प्रांतों (दिल्ली, अजमेर- मारवाड, कुर्ग तथा ब्रिटिश बलूचिस्तान) से और 93 प्रतिनिधि-भारतीय रियासतों से लिए जाने थे।
C• ब्रिटिश प्रांत के प्रत्येक प्रांत को उनकी जनसंख्या के अनुपात में संविधान सभा में स्थान दिए गए। (10 लाख लोगों पर एक स्थान)
D• प्रत्येक प्रांत की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों- मुसलमान, सिख एवं सामान्य में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बांटा गया।
E• 3 जून, 1947, मांउटबेटन योजना के अनुसार भारत-पाकिस्तान विभाजन तय हुआ, परिणाम स्वरूप पाकिस्तान के सदस्य-संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे और भारतीय संविधान सभा के वास्तविक सदस्य संख्या 299 रह गई।
8* संविधान सभा का स्वरूपः-
A• संविधान सभा का विधिवत उद्घाटन -दिन- सोमवार, 09 दिसम्बर 1946 को प्रातः ग्यारह बजे हुआ।
B• 9 दिसम्बर 1946 को डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया तथा 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया तथा संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर को चुना गया।
C• 13 दिसम्बर 1946 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इसमें भारत के भावी प्रभुत्ता–सम्पन्न लोकतांत्रिक
गणराज्य की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। जिसे 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा ने स्वीकार कर लिया।
D• 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत भारतीय संविधान में 448 अनुच्छेद, 25 भाग तथा 8 अनुसचियां थी। इस समय अनुसूचियों 8 से बढ़कर 12 हो गई हैं।
E• संविधान को बनाने में 2 वर्ष 11 महीने तथा 18 दिन का समय लगा तथा कुल 166 बैठकें हुई।
F• 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को विधिवत रूप से लागू कर दिया गया।
9. भारतीय संविधान के स्रोतः-
A• संविधान का लगभग 75 प्रतिशत अंश भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिया गया था।
B• 1928 में नियुक्त मोतीलाल नेहरू कमेटी रिपोर्ट से 10 मूल मानव अधिकारों को शामिल किया गया।
C• अन्य देशों की संवैधानिक प्रणाली:-
(क) ब्रिटिश संविधानः
(i) सर्वाधिक मत के आधार पर चुनाव में जीत का फैसला।
(ii) सरकार का संसदीय स्वरूप।
(iii) कानून के शासन का विचार।
(iv) विधायिका में अध्यक्ष का पद और उसकी -
कानून निर्माण की विधि।
(ख) अमेरिका का संविधानः
(i) मौलिक अधिकारों की सूची । संविधान की प्रस्तावना
(ii) न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता। उप राष्ट्रपति का पद
(ग) आयरलैंड का संविधानः
(i) राज्य के नीति निर्देशक तत्व। राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों का प्रावधान
(घ) फ्रांस का संविधानः
(1) स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व का सिद्धान्त।
(ड) कनाडा का संविधानः
(i) एक अर्द्ध-संघात्मक सरकार का स्वरूप (सशक्त केन्द्रीय सरकार वाली संघात्मक व्यवस्था)
(ii) अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धान्त।
प्रश्नः 1. संविधान क्या है? 2 नंबर के प्रशन
उत्तर. संविधान नियमों, कानूनों और सिद्धांतों का समूह है, जिसके द्वारा किसी राज्य की सरकार शासन करती हैं
प्रश्नः 2. डॉ. भीमराव अम्बेडकर संविधान सभा में किस समिति के अध्यक्ष थे?
उत्तर. डॉ. भीमराव अम्बेडकर संविधान सभा प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।
प्रश्नः 3. भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
प्रश्नः 4. समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विकास बनाना किसका पहला कार्य है?
उत्तर. संविधान का।
प्रश्नः 5. नस्ली भेदभाव के पुराने इतिहास का उदाहरण कौन-सा देश है?
उत्तर. दक्षिण-अफ्रीका।
प्रश्नः 6. संविधान सरकार को कौन-सा सामर्थ्य प्रदान करता है?
उत्तर. सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठाने (कार्य करने) का सामर्थ्य प्रदान करते है।
प्रश्नः 7. संविधान की प्रस्तावना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर. संविधान का प्रारम्भिक परिचय ही संविधान की प्रस्तावना है।
प्रश्नः 8. ‘कठोर संविधान से आप क्या समझते है?
उत्तर. ऐसा संविधान जिसमें सरलतापूर्वक संशोधन परिवर्तन नहीं किए जा सकता।
प्रश्नः 9. 14 अगस्त 1947 को विभाजित भारत के संविधान सभा सदस्य कितने थे?
उत्तर. 299 सदस्य।
प्रश्नः 10. पुराने सोवियत संघ के संविधान में निर्णय का अधिकार किसे दिया गया था?
उत्तर. कम्यूनिस्ट पार्टी को।
प्रश्नः 11. अंतिम रूप से पारित भारतीय संविधान पर कितने सदस्यों ने हस्ताक्षर किए।
उत्तर. 284 सदस्यों में।
प्रश्नः 12. भारतीय संविधान में वर्तमान में कितनी अनुसूचियाँ है?
उत्तर. बारह (12) अनुसूचियाँ हैं।
प्रश्नः 13. संविधान सभा के प्रांतीय विधान सभाओं में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने अपने प्रतिनिधियों का चुनाव किस पद्धति द्वारा किया गया?
उत्तर. समानुपतिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमण मत पद्धति द्वारा।
प्रश्नः 14. क्रिप्स मिशन किस वर्ष भारत आया?
उत्तर. मार्च 1942 में ।
प्रश्नः15. क्रिप्स मिशन ने भारतीय संविधान के संदर्भ में क्या कहा था?
उत्तर. क्रिप्स मिशन ने सुझाया कि भारतीय संघ की स्थापना संविधान के द्वारा होगी, जिसका निर्माण संविधान सभा द्वारा किया जायेगा।
6 अंक प्रश्नः-
प्रश्नः 1. हमें संविधान की क्या आवश्यकता है? सविस्तार समझाइए।
उत्तर. संविधान की आवश्यकता- देश का सर्वोच्च कानून बनाने, सरकार का निर्माण करने, शासन-व्यवस्था के तरीके बताने, सरकारों के प्रकारों (संसदात्मक/अध्यक्षात्मक/एकात्मक/संघात्मक) की जानकारी देने, सरकार के अंगों के बीच शक्तियों का बंटवारा करने । मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए है तथा अन्य।
प्रश्नः 2. भारतीय संविधान सभा की रचना, ब्रिटिश मंत्रीमंडल की किस समिति द्वारा प्रस्तावित की गई थी? इस योजना के प्रस्तावों को सविस्तार समझाइए।
उत्तर. (i) ब्रिटिश मंत्रिमंडल समिति-कैबिनेट मिशन'।
(ii) सदस्यों का चयन - ब्रिटिश प्रान्तों से (292) + देशी रियासतों से (93) + चीफ कमिशनरों से (4) = 389 सदस्य।
(iii) प्रत्येक प्रांत की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों-मुसलमान, सिख और सामान्य में बंटवारा।
(iv) प्रांतीय विधानसभाओं में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने अपने प्रतिनिधियों को चुना।
(५) देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के चुनाव का तरीका उनके परामर्श इसे तय किया गया आदि ।
प्रश्नः 3. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर. संविधान की विशेषताएँ-
(1) जन प्रतिनिधियों द्वारा निर्मित, लिखित एक सम्पूर्ण संविधान।
(ii) यह सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का निर्माण करता है।
(iii) नागरिकों को मूल अधिकार के साथ मूल कर्तव्यों की याद दिलाता है।
(iv) स्वतंत्र न्यायपालिका है।
(v) संसदीय शासन व्यवस्था ।
(vi) राज्य के नीति निर्देशक तत्व आदि।
प्रश्नः 4. उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए कि भारतीय संविधान कठोर एवं लचीलापन का समन्वय है?
उत्तर. भारतीय संविधान कठोर एवं लचीलापन का समन्वय-सैद्धांतिक तौर पर भारत का संविधान कठोर है- अनुच्छेद 368 के अनुसार कुछ विषयों में
संशोधन के लिए संसद के सदस्यों के दो तिहाई बहुमत के अतिरिक्त कम से कम आधे राज्यों के विधान मंडलों का समर्थन आवश्यक है। (विशेष बहुमत)। - लचीलापन बहुत से संशोधन प्रावधानों को संसद के साधारण बहुमत से पास कर के संशोधित कर दिया जाता है।
प्रश्नः 5. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित निम्नलिखित शब्दों को सविस्तार समझाइए—
(क) न्याय,
(ख) स्वतंत्रता,
(ग) समानता,
(घ) बंधुत्व,
(ड.) धर्मनिरपेक्षता,
(च) समाजवादी।
उत्तर. न्याय-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करना। स्वतंत्रता-अभिव्यक्ति, विचार, विश्वास, धर्म, कर्म और उपासना भक्ति की स्वतंत्रता ।समानता - सभी प्रकार के भेदभावों का अन्त या भेदभावों से मुक्ति। बंधुत्व- देश के हर नागरिक के बीच आपसी प्यार/स्नेह के भाव पैदा करना। धर्म निरपेक्षता-सभी धार्मिक विचारों वाले नागरिकों को धर्म को मानने की आजादी। समाजवादी सरकार का उद्देश्य अधिक से अधिक जन कल्याण, समाज कल्याण के कार्य हो, लोकहित कारी कार्य हो । समाज सर्वोपरी ।
में अच्छे लोग आएँ।
(क) संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्योंकि उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है।
6. संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
उत्तर:- भारतीय संविधान की रचना करने वाली संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच से नहीं हुआ था, किन्तु उसमें अधिक-से-अधिक वर्ग के लोगों को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया था। भारत के विभाजन के बाद संविधान सभा के सदस्यों में कांग्रेस के सर्वाधिक 82 प्रतिशत सदस्य थे। ये सदस्य सभी विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते थे। अतः यह कहना किसी भी दृष्टि से सही नहीं होगा कि संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई और इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
7:- संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्योंकि उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
यह कथन भी सही नहीं है कि संविधान सभा के सदस्यों में प्रत्येक विषय पर आम सहमति थी और संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया। भारतीय संविधान का केवल एक विषय ऐसा था जिस पर संविधान सभा के सदस्यों में आम सहमति थी और वह विषय था-“मताधिकार किसे प्राप्त हो?” इस विषय के अतिरिक्त संविधान के सभी विषयों पर संविधान सभा के सदस्यों के बीच गहन विचार-विमर्श और वाद-विवाद हुआ।
संविधान के विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श के लिए आठ कमेटियों का गठन किया गया था। सामान्यतया पं० जवाहरलाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुलकलाम आजाद तथा डॉ० भीमराव अम्बेडकर इन कमेटियों के अध्यक्ष पद पर पदस्थ थे। ये सभी लोग ऐसे विचारक थे जिनके विचार विभिन्न विषयों पर कभी एकसमान नहीं होते थे। डॉ० अम्बेडकर तो कांग्रेस और महात्मा गांधी के कट्टर विरोधी थे। उनका आरोप था कि कांग्रेस और महात्मा गांधी ने कभी अनुसूचित जातियों की उन्नति के लिए गम्भीर प्रयास नहीं किए। पं० जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच भी अनेक विषयों पर गम्भीर मतभेद थे। किन्तु फिर भी सबने एक साथ मिलकर काम किया। कई विषयों पर फैसले मत-विभाजन द्वारा भी लिए गए। अतः यह कहना गलत है कि संविधान सभा के सदस्यों में प्रत्येक विषय पर आम सहमति थी।यह कथन भी गलत है कि संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया। निम्नांकित महत्त्वपूर्ण और बड़े फैसले संविधान सभा द्वारा ही लिए गए-भारत में शासन प्रणाली केन्द्रीकृत होनी चाहिए अथवा विकेन्द्रीकृत।केन्द्र व राज्यों के बीच कैसे सम्बन्ध होने चाहिए। राज्यों के बीच कैसे सम्बन्ध होने चाहिए। न्यायपालिका की क्या शक्तियाँ होनी चाहिए।
क्या संविधान को सम्पत्ति के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। उपर्युक्त के अतिरिक्त अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण और बड़े फैसले संविधान सभा द्वारा ही लिए गए जो भारत की शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था का मूल आधार हैं।
9. संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है।
यह कथन भी गलत है कि भारतीय संविधान मौलिक नहीं है, क्योकि इसकी अधिकांश भाग विश्व के अन्य देशों के संविधान से ग्रहण किया गया है। सही अर्थों में संविधान सभा के सदस्यों ने अन्य देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं के स्वस्थ प्रावधानों को लेने में कोई संकोच नहीं किया। किन्तु इसे नकल करने की मानसिकता भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने ग्रहण किए गए प्रावधानों को अपने देश की व्यवस्थाओं के अनुकूल बना लिया। अतः भारतीय संविधान की मौलिकता पर कोई प्रश्न चिह्न लगाना नितान्त गलत है।
10.किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो, तो क्या होगा?
उत्तर-
प्रत्येक देश के संविधान में ऐसी संस्थाओं का प्रावधान किया जाता है जो देश का शासन चलाने में सरकार की सहायता करती हैं। इन संस्थाओं को कुछ शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ भी सौंपी जाती हैं और यह अपेक्षा की जाती है कि ये संस्थाएँ सीमा में रहकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करें और जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करें। यदि कोई अपनी निर्धारित शक्ति से बाहर जाकर अपने कार्य का संचालन करती है तो यह माना जाता है कि वह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रही है। और संविधान को नष्ट कर रही है। इसीलिए प्रत्येक देश के संविधान में संस्थाओं के गठन के साथ ही उनकी शक्तियों और सीमाओं का विवेचन स्पष्ट रूप से कर दिया जाता है ताकि संस्थाएँ शक्तियों के पालन में तानाशाह न बन जाएँ। इस व्यवस्था को न्यायसंगत बनाने के लिए यह भी आवश्यक है कि संविधान में प्रत्येक संस्था को प्रदान की गई शक्तियों का सीमांकन इस प्रकार किया जाए कि कोई भी संस्था संविधान को नष्ट करने का प्रयास न कर सके। संविधान की रूपरेखा बनाते समय शक्तियों का बँटवारा इतनी बुद्धिमत्ता से किया जाना चाहिए कि कोई भी संस्था एकाधिकार स्थापित न कर सके। ऐसा करने के लिए यह भी आवश्यक है कि शक्तियों का बँटवारा विभिन्न संस्थाओं के बीच उनकी जिम्मेदारियों को देखकर किया जाए।
उदाहरणार्थ, भारत के संविधान में शक्तियों का विभाजन विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच किया गया है, साथ ही निर्वाचन आयोग जैसी स्वतन्त्र संस्था को शक्तियाँ व जिम्मेदारियाँ अलग से सौंपी गई हैं। केन्द्र और राज्यों के बीच भी शक्तियों का निर्धारण किया गया है। इस शक्ति-सीमांकन से यह निश्चित हो जाता है कि यदि कोई संस्था शक्तियों का गलत उपयोग करके संवैधानिक व्यवस्थाओं का हनन करने का प्रयास करती है तो अन्य संस्थाएँ उसे ऐसा करने से रोक सकती हैं। भारतीय संविधान में नियंत्रण व सन्तुलन’ (Checks and Balances) के सिद्धान्त का प्रतिपादन शक्तियों के सीमांकन के लिए ही किया गया है। यदि विधायिका कोई ऐसा कानून बनाती है। जो देश की जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करता हो तो न्यायपालिका ऐसे कानून को अमल में लाने पर रोक लगा सकती है और कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकती है। आपात्काल के दौरान बनाए गए अनेक कानूनों को उच्चतम न्यायालय द्वारा बाद में असंवैधानिक घोषित किया गया। कार्यपालिका की शक्तियों को सीमा में बाँधने के लिए विधायिका उस पर अनेक प्रकार के अंकुश लगाती है। संसद में सदस्य प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव आदि प्रस्तुत कर कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखते हैं। इस प्रकार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का सीमांकन संविधान की रचना करते समय ही कर दिया जाता है और ये सभी संस्थाएँ अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र रूप से अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए कार्य करती रहती हैं।
प्रश्न 11.शासकों की सीमा का निर्धारण संविधान के लिए क्यों जरूरी है? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे?
उत्तर-
संविधान का एक कांम यह है कि वह सरकार या शासकों द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किए। जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार उनका कभी उल्लंघन नहीं कर सकती।
संविधान द्वारा सरकार या शासकों की शक्तियों पर सीमाएँ लगाना इसलिए आवश्यक है ताकि वे अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न कर सकें और जनता के हितों को नुकसान न पहुँचा सकें। संसद नागरिकों के लिए कानून बनाती है, कार्यपालिका कानूनों को जनता द्वारा अमल में लाने का कार्य करती है और यदि कोई कानून जनता की भावनाओं और हितों के अनुरूप नहीं होता तो न्यायपालिका ऐसे कानून को अमल में लाने से रोक देती है अथवा उस पर प्रतिबन्ध लगा देती है। भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए संसद को न्यायपालिका ने यह निर्देश दे दिया है कि संसद संविधान के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। संविधान सरकार अथवा शासकों की शक्तियों को कई प्रकार से सीमा में बाँधता है। उदाहरणार्थ, संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की विवेचना की गई है। इन मौलिक अधिकारों का हनन कोई भी सरकार नहीं कर सकती। नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना किसी कारण के बन्दी नहीं बनाया जा सकता। यही सरकार अथवा शासक की। शक्तियों पर एक सीमा या बन्धन कहलाती है। देश का प्रत्येक नागरिक अपनी रुचि और इच्छा के अनुसार कोई भी व्यवसाय करने के लिए स्वतन्त्र है। इस स्वतन्त्रता पर सरकार कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती। नागरिकों को मूल रूप से जो स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं; जैसे-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, देश के किसी भी भाग में स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने की स्वतन्त्रता, संगठन बनाने की स्वतन्त्रता आदि पर सरकार सामान्य परिस्थिति में कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती। कोई भी सरकार स्वयं किसी व्यक्ति से बेगार नहीं ले सकती और न ही किसी व्यक्ति को यह छूट दे सकती है कि वह किसी भी रूप में किसी व्यक्ति का शोषण करे अथवा उसे बन्धुआ मजदूर बनाकर रखे। इस प्रकार सरकार के कार्यों पर सीमाएँ लगाई जाती हैं। अधिकांश देशों के संविधानों में कुछ मौलिक अधिकारों का प्रावधान अवश्य किया जाता है। अधिकारों के बिना मनुष्य का जीवन निरर्थक है।
प्रश्न 8जब-जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना असम्भव था, जो अमेरिकी सेना को पसन्द न हो। क्या आपको लगता है कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?
उत्तर-
जापान का संविधान उस समय बनाया गया था जब वह अमेरिकी सेना के कब्जे में था। अतः जापान के संविधान में की गई व्यवस्थाएँ अमेरिकी सरकार की इच्छाओं को ध्यान में रखकर की गई थीं। जापान तत्कालीन परिस्थितियों में अमेरिकी सरकार की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकता था। इसका मूल कारण यह था कि अधिकांश देशों के संविधान लिखित थे। इन लिखित संविधानों में राज्य से सम्बद्ध विषयों पर अनेक प्रावधान किए जाते थे जो यह निर्देशित करते थे कि राज्य किन सिद्धान्तों का पालन करते हुए सरकार चलाएगा। सरकार कौन-सी विचारधारा अपनाएगी। किन्तु जब किसी देश पर कोई दूसरा देश कब्जा कर लेता है तो उस देश के संविधान में शासक देश की इच्छाओं के विपरीत कोई प्रावधान नहीं किया जा सकता। अतः यहाँ निष्कर्ष रूप में कहना होगा कि जापान के तत्कालीन संविधान में अमेरिकी शासकों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया होगा।
भारत की स्थिति जापान की स्थिति के ठीक विपरीत थी। भारत अपनी स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए अन्तिम लड़ाई लड़ रहा था और यह लगभग निश्चित हो चुका था देश को आजादी अवश्य प्राप्त होगी। भारतीय संविधान की रचना पर औपचारिक रूप से एक संविधान सभा ने दिसम्बर, 1946 में विचार करना शूरू किया था; अर्थात् आजादी प्राप्त होने से केवल नौ माह पूर्व भारत के लिए एक संविधान बनाने की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी थी। भारत पर अंग्रेजों का नियन्त्रण लगभग समाप्ति के कगार पर था; अतः भारतीय संविधान में अंग्रेजों के दबाव के कारण कोई प्रावधान स्वीकार करना असम्भव था।
भारत ने लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था को अपनाया। उसने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दिनों में जिन समस्याओं का अनुभव किया था, उनके समाधान का मार्ग ढूंढ़ने का प्रयास किया। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान बनाने वाली संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के लम्बे समय तक चले संघर्ष से काफी प्रेरणा ली। संविधान सभा के सदस्यों को समाज के सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त था। इसीलिए देश में भारतीय संविधान को अत्यधिक सम्मान प्राप्त हुआ। संविधान की प्रस्तावना के प्रारम्भिक शब्द हैं “हम, भारत के लोग ……….|” ये शब्द यह घोषित करते हैं कि भारत के लोग संविधान के निर्माता हैं। यह ब्रिटेन की संसद का उपहार नहीं है। इसे भारत के लोगों ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से पारित किया था। संविधान सभा में सभी प्रकार के विचारों वाले लोग थे। इस संविधान सभा का गठन उन लोगों के द्वारा हुआ था जिनके प्रति लोगों की अत्यधिक विश्वसनीयता थी। इस प्रकार भारत में संविधान बनाने का अनुभव बिल्कुल अलग है।
प्रश्न 12.
रजत ने अपने शिक्षक से पूछा–“संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँगी। यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बताएँ कि मैं इस दस्तावेज की बातों का पालन क्यों करू?” अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते?
उत्तर-
यदि मैं रजत का शिक्षक होता तो उसके प्रश्न का संक्षेप में निम्नलिखित उत्तर देता भारत का संविधान एक गतिशील जीवन्त दस्तावेज है। भारत ने जो संविधान अपनाया है, वह 57 वर्षों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है। इस अवधि में हम भारत के लोग अनेक दबावों और तनावों से गुजरे हैं। जून, 1975 में आपात्काल की घोषणा एक दुःखद घटना थी। ऐसी घटना एक लोकतान्त्रिक देश में कभी नहीं घटनी चाहिए थी। संसद सर्वोच्च है या न्यायपालिका-इस विषय पर एक तीखा विवाद उठाा था। किन्तु समय के साथ-साथ कठिन परिस्थितियाँ अपने आप सुलझती चली गईं। संविधान आज भी सजीव और सशक्त है।”
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था। तब से लेकर सन् 2007 तक इसमें 93 संशोधन किए जा चुके हैं। इतनी बड़ी संख्या में संशोधनों के बाद भी यह संविधान 57 वर्षों से अधिक समय से अस्तित्व में है। अतः इस संविधान को 50 साल से भी अधिक पुरानी दस्तावेज कहना गलत है। इस संविधान को बीते दिनों की पुस्तक इसलिए भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह कठोर होने के साथ-साथ पर्याप्त रूप से लचीला भी है। देश में सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने के लिए इसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है। संविधान में प्रस्तुत किए गए अधिकांश प्रावधानों की प्रकृति इस प्रकार की है कि उन्हें कभी पुराना नहीं कहा जा सकता।
इस संविधान की रचना उस संविधान सभा द्वारा की गई है जिसमें 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के प्रतिनिधि थे और कांग्रेस देश के सभी वर्गों, धर्मों, विचारधाराओं और जातियों का प्रतिनिधित्व करती थी। ये सभी व्यक्ति अत्यधिक योग्य और अनुभवी थे। अतः यह कथन भी तर्कसंगत नहीं है कि संविधान निर्माताओं द्वारा आपसे राय नहीं ली गई। जो संविधान सभा संविधान निर्माण का कार्य कर रही थी—वह सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व कर रही थी-अर्थात् वह आपका भी प्रतिनिधित्व कर रही थी। भारतीय संविधान का प्रारूप देश की बदलती परिस्थितियों के कारण पैदा होने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने में पूरी तरह से सक्षम है।
प्रश्न 10.
संविधान के क्रिया-कलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने तीन अलग-अलग पक्ष दिए-
(क) हरबंस – भारतीय संविधान एक लोकतान्त्रिक ढाँचा प्रदान करने में सफल रहा है।
(ख) नेहा – संविधान में स्वतन्त्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत् वादा है।
चूंकि यह वादा पूरा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।
(ग) नाजिमा – संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया।
क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं, यदि हाँ, तो क्यों? यदि नहीं, तो आप अपना पक्ष बताएँ।
उत्तर-
(क) हरबंस का कथन सही है। भारत का संविधान एक लोकतान्त्रिक ढाँचा देने में सफल रहा है। संविधान में यह घोषणा की गई है कि प्रभुत्व शक्ति’ जनता में निहित है। संविधान की प्रस्तावना के प्रारम्भिक शब्द हैं- “हम, भारत के लोग ये शब्द यह उद्घोषणा करते हैं। कि भारत के लोग’ संविधान के निर्माता हैं। लोकतन्त्र का अर्थ है-थोड़े-थोड़े समय के बाद शासकों का चयन। नए संविधान के अन्तर्गत अब तक देश में चौदह आम चुनाव कराए जा चुके हैं। भारत एक गणतन्त्र भी है। यहाँ किसी पुश्तैनी शासक को मान्यता नहीं दी गई है। राष्ट्रपति भारतीय गणतन्त्र का मुखिया है जिसे पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिए चुना जाता है। भारत में प्रत्येक वयस्क व्यक्ति मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार है, बशर्ते वह पागल न हो और अपराध या अवैध गतिविधियों के कारण अयोग्य घोषित न किया गया हो। संविधान द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, सभा और सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता तथा संघ और समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। भारतीय संविधान का उदारवादी लोकतान्त्रिक स्वरूप इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि यह भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को अवैधानिक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करता है। सभी नागरिकों को प्राप्त अन्य अधिकारों में धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार और कानून के समक्ष समानता का अधिकार भी शामिल है।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सरकारी कार्यालयों या उपक्रमों में रोजगार देने के लिए उपयुक्त व्यवस्थाएँ की गई हैं। उनके लिए लोकसभा और राज्य विधानमण्डलों में भी सीटें आरक्षित की गई हैं। सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को भी आरक्षण प्रदान किया गया है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए मौलिक अधिकार, न्यायालय की स्वतन्त्रता, विधि का शासन आदि को अपनाया गया है। इस प्रकार भारत में लोकतन्त्र की नींव रखी गई है और इसे शक्तिशाली बनाने के हर सम्भव प्रयास किए गए हैं। अत: हरबंस को कथन पूरी तरह सही है कि भारत का संविधान एक लोकतान्त्रिक ढाँचा देने में सफल रहा है।
(ख) नेहा का कथन भी सही है। उसका कथन है कि संविधान में स्वतन्त्रता, समानता और भाईचारा सुनिश्चित करने का वादा किया है, किन्तु वादा पूरा नहीं हुआ है इसलिए संविधान असफल है। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार देश की सरकार नागरिकों की स्वतन्त्रता पर विशेष अवसरों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है। समानता के अधिकार का क्रियान्वयन आज भी सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। समाज के दबे-कुचले वर्ग को आज भी शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। कृषि-भूमि के अधिकांश भाग पर दबंग और सम्पन्न लोगों का कब्जा है। ग्रामीण लोगों को आज भी इनके खेतों पर मजदूरों के रूप में कठोर परिश्रम करना पड़ता है और मजदूरों को पारिश्रमिक के रूप में मिलती हैं गालियाँ, मारपीट और अभद्र व्यवहार। देश में भाईचारे का घोर अभाव है। देश के विभिन्न भागों में होने वाले साम्प्रदायिक दंगे इस तथ्य के स्पष्ट प्रमाण हैं। देश के नेता अपने वोटों के लिए साम्प्रदायिक दंगे कराने की साजिश रचते हैं और देश को मार-काट की आग में झोंक देते हैं। अत: उपर्युक्त संक्षिप्त विवेचन के आधार पर हम नेहा के कथन को पूरी तरह सही मानते हैं।
(ग) नाजिमा का कथन है कि संविधान स्वयं असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया है। अनेक बार हमारे नेताओं ने संविधान के मूल स्वरूप को बदलने का प्रयास तक किया है, किन्तु सजग न्यायपालिका के कारण वह ऐसा करने में सफल नहीं किया जाता; जैसे–नागरिकों को काम का अधिकार, सबको शिक्षा का अधिकार, महिला और पुरुष को समान काम के लिए समान वेतन के प्रावधानों के लिए आज भी जनता को संघर्ष करना पड़ रहा है। देश के बहुत बड़े वर्ग को दो वक्त का भोजन और पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। इस वर्ग के पास तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं हैं। इन सारी स्थितियों के लिए संविधान नहीं, हम स्वयं जिम्मेदार हैं। देश के बड़े नेता इस निम्न वर्ग को मात्र अपने वोट का साधन समझते हैं, उसकी सुख-सुविधाओं और भू-प्यास से उनका कोई सरोकार नहीं है। किन्तु नाजिमा के कथन को शत-प्रतिशत सही मान लेना न्यायसंगत नहीं होगा, क्योंकि संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत देश में हो रहे विकास की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा भारत में विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत सभी विकासशील देशों में अग्रणी है। विश्व राजनीति में उसकी आवाज को सुना जाता है। निचले स्तर पर भी पर्याप्त विकास हुआ है, किन्तु विकास का लाभ समाज के कमजोर वर्गों तक नहीं पहुंच पा रहा है। अतः इस दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए।
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