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प्रश्न 1. 'गिफिन विरोधाभास' को संक्षेप में समझाइए ।
उत्तर- जब उपभोग की दो वस्तुओं में एक वस्तु घटिया हो तथा दूसरी वस्तु श्रेष्ठ हो, तब गिफिन का विरोधाभास उत्पन्न होता है। घटिया वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका उपभोग उपभोक्ता द्वारा इसलिए किया जाता है क्योंकि उपभोक्ता अपनी सीमित आय और श्रेष्ठ वस्तु की ऊँची कीमत के कारण कम कीमत वाली वस्तु का उपभोग करता है। ऐसी दशा में घटिया वस्तु की कीमत में जब कमी होती है तब उपभोक्ता कीमत घटने के कारण सृजित अतिरिक्त क्रय-शक्ति से अच्छी वस्तु का उपभोग बढ़ा देता है तथा घटिया वस्तु का उपभोग घटा देता है। इस प्रकार घटिया वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी माँग में कमी होती है।
प्रश्न 2. सामान्य वस्तुओं और घटिया वस्तुओं में क्या अन्तर है ? (is ₹ What the difference between normal goods and inferior goods ? )
उत्तर - सामान्य वस्तुओं तथा घटिया वस्तुओं में अन्तरसामान्य वस्तुएँ अन्तर का आधार घटिया वस्तुएँ
उत्तर- साधन के बढ़ते प्रतिफल के निम्नलिखित कारण हैं(i) साधनों का पूर्ण प्रयोग (Full utilisation of factors) : उत्पादन के कुछ साधन अविभाज्य होते हैं। उन्हें अंशों में नहीं खरीदा जा सकता । उत्पादन की प्रारंभिक अवस्था में इनका पूर्ण प्रयोग नहीं हो पाता। बाद में परिवर्तनशील साधनों की अतिरिक्त इकाइयों के प्रयोग करने से स्थिर साधनों का पूर्ण प्रयोग होने लगता है और कुल उत्पादन में तेजी से वृद्धि होती है
(ii) कार्यकुशलता में वृद्धि : परिवर्तनशील साधनों (जैसे श्रम) की अधिक इकाइयों के प्रयोग से श्रम विभाजन सम्भव हो जाता है। श्रम विभाजन से श्रम की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
प्रश्न 4. सीमांत उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित करें। इसका मान शून्य से अधिक किन्तु एक से कम क्यों होता है ?
उत्तर - आय की मात्रा में वृद्धि होने पर उपभोग की मात्रा या व्यय में भी वृद्धि होती है, लेकिन जिस अनुपात में आय में वृद्धि होती है उसकी तुलना में उपभोग व्यय में वृद्धि नहीं होती । आय में वृद्धि के फलस्वरूप उपभोग में जो वृद्धि का अनुपात होता है उस उपभोग को सीमांत प्रवृत्ति कहते हैं। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति को उपभोग में परिवर्तन को आय में परिवर्तन से भाग देकर ज्ञात किया जाता है।
AC MPC = AY
यहाँ_MPC = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति, AC = उपभोग में वृद्धि, AY = आय में वृद्धि है । उदाहरण के लिए यदि कुल आय में वृद्धि 10 करोड़ रुपये है तथा उपभोग में वृद्धि 7 करोड़ रुपये है, तो MPC: = 1
0.7 होगा | MPC का मूल्य हमेशा धनात्मक तथा इकाई (1) से कम । = - होता है, अर्थात् आय में होनेवाली संपूर्ण वृद्धि उपभोग पर खर्च नहीं की जाती है।
प्रश्न 5. "केन्द्रीय बैंक अंतिम ऋणदाता है।" कथन को स्पष्ट करें ।
उत्तर जब किसी वाणिज्यिक बैंक को कहीं से भी ऋण प्राप्त न हो तब वह केन्द्रीय बैंक से ऋण की माँग करता है और केन्द्रीय बैंक उचित प्रतिभूतियों के आधार पर उसे ऋण दे देता है । इस प्रकार केन्द्रीय बैंक अंतिम ऋणदाता के रूप में देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करता है।
प्रश्न 6. विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति के तीन-तीन स्रोत बताइए ।
उत्तर - एक देश निम्नलिखित कार्यों के लिए विदेशी मुद्रा की माँग करता है
(i) आयात का भुगतान करने के लिए दृश्य एवं अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती है
(ii) विदेशी अल्पकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए ।
(iii) विदेशी दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए एक लेखा वर्ष की अवधि में
एक देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती है उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहते हैं ।
(i) निर्यात में दृश्य एवं अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती हैं ।
(ii) विदेशों द्वारा देश में निवेश ।
(iii) विदेशों से प्राप्त भुगतान ।
प्रश्न 7. उच्चतम मूल्य नीति की उपयुक्त चित्र द्वारा व्याख्या करें ।
उत्तर - उच्चतम मूल्यनीति ( ceiling price policy) कीमत की यह उच्चतम सीमा उस कीमत को बताती है कि जिसे विक्रेता सरकारी हस्तक्षेप होने पर अधिकतम कीमत के रूप में प्राप्त कर सकता है । चित्र में यह कीमत OP के रूप में दर्शाई गई है। यदि बाजार में प्रचलित कीमत OP है और सरकार यह अनुभव करती है कि इस कीमत पर सभी वर्ग के लोग वस्तु का उपभोग नहीं कर पा रहे हैं, तब सरकार OP, कीमत निर्धारित करती है। परिणामस्वरूप ab आंतरिक माँग (Excess Demand) उत्पन्न होती है। सीमित पूर्ति के समाधान के रूप में सरकार राशनिंग का सहारा लेती है और प्रत्येक आय वर्ग के लिए वस्तु की आपूर्ति का एक निश्चित कोटा निर्धारित कर देती है ।
उत्तर- पूर्ण प्रतियोगी बाजार पूर्ण प्रतियोगिता, बाजार की वह स्थिति होती है जिसमें एकसमान वस्तु (homogeneous product) के बहुत अधिक क्रेता एवं विक्रेता होते हैं । एक क्रेता तथा एक विक्रेता बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर पाते और यही कारण है कि पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार में वस्तु की एक ही कीमत प्रचलित रहती है ।
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की विशेषताएँ (Characteristics or Features of Perfect Competition Market) -
(1) क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या (Large Number of Buyers & Sellers) - पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत अधि क होती है जिसके कारण कोई भी विक्रेता अथवा क्रेता बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर पाता । इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में एक क्रेता अथवा एक विक्रेता बाजार में माँग अथवा पूर्ति की दशाओं को प्रभावित नहीं कर सकता ।
(2) वस्तु की समरूप इकाइयाँ (Homogeneous Product) - सभी विक्रेताओं द्वारा बाजार में वस्तु की बेची जाने वाली इकाइयाँ एक समान होती हैं ।
(3) फर्मों के प्रवेश व निष्कासन की स्वतंत्रता (Free Entry & Exit of Firms) - पूर्ण प्रतियोगिता में कोई भी नई फर्म उद्योग में प्रवेश कर सकती है तथा कोई भी पुरानी फर्म उद्योग से बाहर जा सकती है । इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के उद्योग में आने-जाने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
(4) बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान (Perfect Knowledge of the Market) - पूर्ण प्रतियोगी बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान होता है । इस प्रकार कोई भी क्रेता वस्तु की प्रचलित कीमत से अधिक कीमत देकर वस्तु नहीं खरीदेगा। यही कारण है कि बाजार में वस्तु की एक समान कीमत पायी जाती है ।
(5) साधनों की पूर्ण गतिशीलता (Perfect Mobility of Factors) पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पत्ति के साधन बिना किसी व्यवधान के एक उद्योग से दूसरे उद्योग में (अथवा एक फर्म से दूसरी फर्म में) स्थानांतरित किये जा सकते हैं ।
(6) कोई यातायात लागत नहीं (No Transportation Cost) - पूर्ण प्रतियोगिता में यातायात लागत शून्य होती है जिसके कारण बाजार में एक कीमत प्रचलित रहती है
प्रश्न 9. प्रगतिशील कर क्या है ? इसके गुण-दोषों की व्याख्या करें ।
अथवा, भुगतान संतुलन क्या है ? प्रतिकूल भुगतान संतुलन को सुधारने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर- जब करों की दरें आय बढ़ने के साथ बढ़ती जाती हैं तो इन्हें प्रगतिशील कर कहा जाता है। प्रगतिशील कर में कम आय स्तर पर कम दर से तथा अधिक आय पर अधिक दर से कर आरोपित किया जाता है। उदाहरण के लिए भारत में सभी व्यक्ति जिनकी आय एक लाख नब्बे हजार रु० तक है, आयकर से मुक्त हैं। इसके पश्चात् आय बढ़ती जाती है, आय. में वृद्धि के साथ कर भी बढ़ता जाता है।
प्रगतिशील कर के गुण-
(i) प्रगतिशील कर में धनी व्यक्तियों को निर्धन व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक धन देना पड़ता है। इसका कारण यह है कि अधिक आय वालों को अधिक कर देना पड़ता है और कम आय वालों को कम ।
(ii) प्रगतिशील कर से प्राप्त आय का उपयोग देश के आर्थिक विकास में किया जाता है जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है ।
(iii) एक अच्छे कर की विशेषता यह है कि आवश्यकतानुसार आय में कमी या वृद्धि को जा सकती है । यह गुण प्रगतिशील कर में पाया जाता है, क्योंकि इसकी दर सफलतापूर्वक घटाई या बढ़ाई जा सकती है ।
प्रगतिशील कर के दोष -
(i) प्रगतिशील कर के भार को कम करने के लिए करदाता अनेक प्रकार की बेईमानी करता है। करदाता अपनी आय या लाभ कम दिखाता है जिससे उसे उतना कर नहीं देना पड़ता जितना कि उसे ईमानदारी से देना चाहिए ।
(ii) कर निर्धारण अधि कारी द्वारा होता है, इससे करदाता की क्षमता का कम ध्यान रखा जाता है ।
(iii) प्रगतिशील करों का उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि धनी वर्ग को इस प्रकार के करों का भुगतान अपनी जेब से करना पड़ता है जिससे बचत में कमी आती है । बचत में कमी होने से पूँजी की मात्रा भी घट जाती है जिससे भविष्य में उत्पादन की मात्रा का कम होना स्वाभाविक है।
(iv) प्रगतिशील कर में करदाता को बहुत असुविधा होती है क्योंकि करदाताओं को इनका भुगतान करने में कई औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है।
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