Bihar Board social science class 9th Subjective Question Answer in hindi Exercise 3 फ्रांस की क्रांति Part 2 लघु एवं दीर्घ प्रश्न उत्तर सामाजिक विज्ञान कक्षा 9वी अभ्यास 3

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6 से 9तक प्रशन उत्तर 

प्रश्न 6. फ्रांस की क्रांति ने यूरोपीय देशों को किस तरह प्रभावित किया ?
उत्तर-फ्रांस की क्रांति का प्रभाव बहुत गहरा पड़ा । इस क्रांति की गतिविधि हिंसात्मक थी। इसमें दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की भरमार थी लेकिन यह क्रांति विश्व इतिहास की एक युगान्तरकारी घटना थी। इस क्रांति ने यूरोप के देशों को काफी प्रभावित किया ।
इटली पर प्रभाव-इटली इस समय कई भागों में बँटा था। फ्रांस की इस क्रांति के पश्चात् नेपोलियन ने इटली के विभिन्न भागों में अपनी सेना एकत्रित कर युद्ध की तैयारी की। उसने इटली राज्य स्थापित किया। एक साथ मिलकर युद्ध करने से उनमें राष्ट्रीयता की भावना आयी और इटली के भावी एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
जर्मनी पर प्रभाव- जर्मनी भी उस समय 300 छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था जो नेपोलियन के प्रयास से 38 राज्यों में सीमित हो गया। इस क्रांति के स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व की भावना को जर्मनी के लोगों ने समझा और उसे अपनाया। आगे चलकर इसी से जर्मनी के एकीकरण को बल मिला ।
पोलैंड पर प्रभाव- नेपोलियन ने पोलैंड में स्वतंत्रता की लहर फेंकी। पहले यह रूस, प्रशा और आस्ट्रेलिया के बीच बँटा हुआ था। यद्यपि पोलैंड को शीघ्र आजादी नहीं मिली लेकिन उनमें राष्ट्रीयता की भावना का संचार इसी क्रांति ने किया ।
इंगलैंड पर प्रभाव- नेपोलियन का विजय अभियान इंगलैंड पर भी हुआ जबकि इंगलैंड ही आगे चलकर उसके पतन का कारण बना । फिर भी इस क्रांति का इतना अधिक असर इंगलैंड में दिखा कि वहाँ की जनता ने भी सामंतवाद के विरुद्ध आवाज उठानी शुरू कर दी । फलस्वरूप सन 1832 ई० में इंगलैंड में संसदीय सुधार अधिनियम पारित हुआ जिसके द्वारा वहाँ के जमींदारों की शक्ति समाप्त कर दी गई और जनता के लिए अनेक सुधारों का मार्ग प्रशस्त हुआ। आगे चलकर इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के विकास में इस क्रांति का बहुत अधिक योगदान था ।

प्रश्न 7. 'फ्रांस की क्रांति एक युगान्तरकारी घटना थी' इस कथन की पुष्टि करें ।
उत्तर-फ्रांस की राज्यक्रांति का प्रभाव बहुत ही दूरगामी और गहरा पड़ा इस क्रांति की गतिविधि हिंसात्मक थी । इसमें दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की भरमार थी । रक्त की नदियाँ इसी में बही थीं। इसी में मानवता से खिलवाड़ किया गया था। इसी में सड़कें रक्तरंजित हुई थीं। अतः यह क्रांति एक युगान्तरकारी घटना थी । इसका प्रारंभ उपेक्षित साधारण जनता के विस्फोट के रूप में हुआ। यह अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार के विरुद्ध थी । फलतः इस क्रांति ने राजनीतिक निरंकुशता, सामाजिक और आर्थिक विषमताओं का अंत कर एक नई सृष्टि की रचना की । इस क्रांति ने समाजवाद का अन्त किया और मध्यमवर्ग को सम्मानजनक स्थान प्रदान किया। आम जनता में राजनीतिक चेतना का विकास हुआ एवं राष्ट्रीयता की भावना आयी ।

प्रश्न 8. फ्रांस की क्रांति के लिए लुई XVI किस तरह उत्तरदायी था ? 
उत्तर-फ्रांस की राज्यक्रांति के समय फ्रांस का शासक 16वाँ लुई था । वह अयोग्य था और अपनी पत्नी रानी मेरी अंतोयनेत के हाथ का खिलौना था । वह सुरा और सुन्दरी में व्यस्त रहता था। उसका शेष समय तास खेलने में व्यतीत होता था । शासन कार्य करने का उसके पास समय नहीं था । शासन तो उसकी रानी करती थी । वह भी अपने प्रेमियों के इच्छानुसार ही । राजा राजमहल में पड़ा रहता था । अतः देश की बिगड़ती हुई हालत में सुधार नहीं ला सका । वह साहसी भी नहीं था । तत्कालीन परिस्थिति का सामना करने के लिए राजा को बहुत अधिक साहसी होने की जरूरत थी । लेकिन यह गुण राजा में नहीं था जिसका फल बहुत बुरा निकला । वह सरदारों और उच्चाधिकारियों की इच्छा रोकने में सफल नहीं हो सका । उसने नैकर और तुर्गों जैसे योग्य अर्थशास्त्रियों के सुझावों को न मानकर उनको शीघ्र हटा दिया । अगर ना उनके सुझावों को मान लेता तो निश्चय ही फ्रांस की आर्थिक दशा में सुधार आ जाता और क्रांति कुछ समय के लिए टल जाती । परन्तु अपनी अयोग्यता के कारण वह ऐसा नहीं कर सका । राजा की अयोग्यता ने क्रांति में घी का काम किया ।

प्रश्न 9. फ्रांस की क्रांति में जैकोबिन दल की क्या भूमिका थी ? 
उत्तर-अप्रैल, 1792 में नेशनल एसेम्बली ने आस्ट्रिया, प्रशा तथा सेवाय के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । क्रांतिकारी युद्धों से जनता को काफी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी । उस समय सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं मिला था। नेशनल एसेम्बली का चुनाव भी अप्रत्यक्ष रूप से किया जाना था । उपर्युक्त बातें आलोचना का विषय बन गया था । आलोचकों में प्रमुख जैकोबिन दल के सदस्य थे । मैक्समिलियन जैकोबिन दल का नेता था । वह वामपंथी विचारधारा का समर्थक था । अतः खाद्य पदार्थों की महँगाई एवं अभाव से नाराज होकर उसने हिंसक विद्रोह की शुरूआत की और आतंक का राज्य स्थापित किया । यह आतंक का राज्य 1793 में उत्कर्ष पर था । कन्वेशन द्वारा राष्ट्र की एक मात्र भाषा फ्रेंच घोषित किया गया । कानूनों का संकलन कराया गया, उपनिवेशों में गुलाम बनाकर भेजने की प्रथा समाप्त की गयी । प्रथम पुत्र को ही उत्तराधिकारी बनाने की प्रथा का अन्त किया गया। राष्ट्र का एक नया कलेंडर लागू किया गया। इन सभी को रॉब्सपियर ने सर्वोच्च सत्ता की प्रतिष्ठा के रूप में स्थापित किया। परन्तु ये अस्थायी सिद्ध हुए।

प्रश्न 10. नेशनल एसेम्बली और नेशनल कन्वेंशन ने फ्रांस के लिए कौन-कौन से सुधार पारित किए।
उत्तर- नेशनल एसेम्बली और नेशनल कन्वेंशन ने फ्रांस के लिए निम्नलिखित सुधार पारित किए :
(i) राष्ट्रीयता की भावना लाकर राष्ट्रीय सेना का निर्माण-जैकोबिन सरकार ने कानों को अपना युद्ध मंत्री नियुक्त किया। सरकार ने 1793 में पाँच लाख सैनिकों की माँग की। इस माँग की पूर्ति के उद्देश्य से कानों ने एक नवजीवन सिद्धांत का निर्माण किया जिसके अनुसार राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक संकट उत्पन्न होते ही सैनिक बन जाता था। उसी के आदेशानुसार 18 से 26 वर्ष की आयु के नवयुवक अनिवार्य रूप से सैनिक बनाए गए ।
(ii) शिक्षा संबंधी सुधार-नेशनल कन्वेंशन ने सांस्कृतिक समानता लाने के उद्देश्य से शिक्षा के क्षेत्र में अनेक सुधार किए। एक घोषणा द्वारा भाषा की शिक्षा दी जाने लगी। शिक्षा के लिए सम्पूर्ण देश में एक समान नियम बनाए गए। अनेक मेडिकल, इंजीनियरिंग, ऑर्ट स्कूलों स्थापना हुई।
(iii) दास प्रथा का अंत-फ्रांस में इस समय दास प्रथा का प्रचलन था। लोग अफ्रीका से हब्सियों को पकड़ लाते और उनका व्यापार करते थे। नेशनल कन्वेंशन ने इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया और दास व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।
(iv) उत्तराधिकारी नियम तथा संपत्ति पर स्त्रियों का अधिकार अभी तक फ्रांस में संपत्ति पर स्त्रियों का कोई अधिकार नहीं था। फ्रांस के नेशनल कन्वेंशन ने क्रांतिकारी कदम उठाया तथा स्त्रियों को भी पुरुषों के समान सम्पत्ति का अधिकार दे दिया। अब तक किसी संपत्ति के स्वामी की मृत्यु होने पर उस सम्पत्ति का उत्तराधिकारी उसका बड़ा पुत्र होता था। परन्तु इसे समाप्त कर दिया और सभी पुत्रों को समान रूप से अधिकारी बना दिया गया।
(v) नाप-तौल की विधि में नवीन सुधार-नाप-तौल के लिए दशमलव विधि का प्रयोग किया जाने लगा। यह प्रथा इतनी उत्तम सिद्ध हुई कि फ्रांस का अनुकरण करके सम्पूर्ण विश्व ने भी इसे अपनाना प्रारंभ कर दिया।
(vi) धार्मिक तथा सामाजिक सुधार-धर्म के क्षेत्र में भी अनेक परिवर्तन किए गए तथा धर्म को राष्ट्रीयता का अंग बना दिया गया। सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। सामंत प्रथा का अंत करने के लिए जो क्षतिपूर्ति देने की घोषणा की गयी थी उसे समाप्त कर दिया गया। दैनिक वस्तुओं के मूल्य निर्धारित कर दिए गए। श्रमिकों के पारिश्रमिक भी नियत कर विवाह तथा तिलक आदि के नियम सरल कर दिए गए।

प्रश्न 11. 1789 ई० की फ्रांस की क्रान्ति के सामाजिक कारणों की समीक्षा करें ।
उत्तर- फ्रांसीसी राज्य क्रांति का एक प्रमुख कारण फ्रांस की असंतोषजनक सामाजिक व्यवस्था थी। असमानता और विशेषाधिकार के कारण समाज दो वर्गों में विभाजित था। पहला वर्ग सामन्तों, कुलीनों और पादरियों का था । इस वर्ग को अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। दूसरा वर्ग किसानों, मजदूरों, कारीगरों, व्यापारियों और मध्यमवर्गीयों का था। इन लोगों को जीवन की सभी सुविधाओं से वंचित रखा गया था। इस असमानता के कारण दोनों वर्गों के बीच कटुता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। फ्रांसीसी समाज का यह वर्गीकरण बहुत पुराना था। इसका संगठन उस समय हुआ था जब भूमि सम्पत्ति का एकमात्र साधन थी। लेकिन बदलती हुई परिस्थिति में समाज का यह संगठन उपयुक्त नहीं था और लोग इसे बदलने हेतु कृत संकल्प थे। प्रसिद्ध
44 फ्रांसीसी दार्शनिक वाल्टेयर ने कहा भी था, 'भ्रष्ट चर्च को नष्ट कर दो ।" यद्यपि कुलीनों की वास्तविक दशा साधारण लोगों जैसी ही थी । परन्तु अपनी कुलीनता का भ्रम बनाये रखना चाहते थे । वस्तुतः ये बिल्कुल खोखले • किन्तु नाममात्र के कुलीन थे । फिर भी विशेषाधिकार पूर्व जैसे थे । यह पाखण्डपूर्ण बिल्कुल मिथ्या बड़प्पन साधारण लोगों को अखरता था । इस तरह सामन्ती विशेषाधिकार और उत्पीड़न ने लोगों को क्रांतिकारी बनाया । नेपोलियन ने भी कहा था कि "फ्रांसीसी क्रांति का वास्तविक कारण कुलीनों का घमण्ड था । स्वाधीनता तो महज एक बहाना थी ।" इस तरह फ्रांस की सामाजिक असमानता क्रांति का एक प्रमुख कारण थी ।

प्रश्न 12. फ्रांस की क्रांति के आर्थिक कारण बताइए ।
 उत्तर- फ्रांस में राजा, कुलीन और चर्च की शोषण नीति का शिकार आम नागरिक हो रहे थे । फलस्वरूप उनमें वित्तीय विषमता के कारण असंतोष बढ़ता गया और अंत में इसी असंतोष ने क्रांति का रूप युद्ध और राजमहल के अपव्यय के कारण फ्रांस की आर्थिक स्थिति एकदम डाँवाडोल हो गयी थी । फ्रांस की कर-व्यवस्था असमानता और पक्षपात के दूषित सिद्धांत पर आधारित थी । कुलीन और पादरी सर्वथा कर-मुक्त थे । करों का सारा बोझ गरीब किसानों को उठाना पड़ता था । उन्हें अपनी उपज का अधिकांश भूमि कर, नमक कर और धर्म कर के रूप में राज्य और सामन्तों को दे देना पड़ता था । कर वसूली-प्रणाली भी दूषित थी । कर-वसूली की ठेकेदारी प्रथा के कारण गरीबों का बुरी तरह शोषण हो रहा था । दूषित अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप राज्य का व्यय हमेशा उसकी आय से अधि क रहता था । विदेश में युद्ध करने के कारण फ्रांस की सरकार संकट में फँस चुकी थी । व्यापारी सरकार को ऋण देने से इनकार करने लगे तुर्गों ने अनेक योजनाओं द्वारा कुलीनों के विशेषाधिकार समाप्त करने के प्रयास किये परन्तु उसे अपने पद से हटना पड़ा । इस तरह नैकर की योजना भी असफल रही। कर-व्यवस्था के अलावा फ्रांस की वाणिज्य नीति भी दोषपूर्ण थी । राज्य के कठोर नियंत्रण के कारण उद्योग और व्यापार की प्रगति नहीं हो रहा थी । वस्तुओं के उत्पादन पर गिल्ड्स का नियंत्रण था । गिल्डों के विभिन्न नियम थे-शहरों का व्यापार संबंधी नियम अलग था और प्रांतों के आयात कर अलग थे । राज्य की ओर से विदेशी व्यापार को कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा था । इसके अलावा माप-तौल, चुंगी-व्यवस्था और मुद्रा-प्रणाली भी दोषपूर्ण थी । अतः फ्रांस का व्यापारी वर्ग राज्यसत्ता से क्षुब्ध तथा असंतुष्ट था । ऐसी स्थिति में क्रांति का स्फुटन स्वाभाविक था ।

प्रश्न 13. 1789 से पूर्व फ्रांसीसी समाज के विभिन्न गुटों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- 1789 से पूर्व फ्रांसीसी समाज मुख्य रूप से तीन एस्टेटों में विभाजित था । पहली एस्टेट में पादरी तथा दूसरी एस्टेट में कुलीन व तीसरी एस्टेट में मुख्य रूप से, मध्य वर्ग के लोग थे । फ्रांसीसी समाज की पूरी आबादी में लगभग 90 प्रतिशत किसान थे। लेकिन, जमीन के मालिक किसानों की संख्या बहुत कम थी । लगभग 60 प्रतिशत जमीन पर कुलीनों, चर्च और तीसरे एस्टेट्स के अमीरों का अधिकार था । प्रथम दो एस्टेट्स, कुलीन वर्ग एवं पादरी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार जन्मना प्राप्त थे। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार था-राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट । कुलीन वर्ग को कुछ अन्य सामंती विशेषाधिकार भी हासिल थे । वह किसानों से सामंती कर वसूल करता था । किसान अपने स्वामी की सेवा-स्वामी के घर एवं खेतों में काम करना, सैन्य सेवाएँ देना अथवा सड़कों के निर्माण में सहयोग आदि-करने के लिए बाध्य थे ।
चर्च भी किसानों से करों का एक हिस्सा, टाइद (Tithe, धार्मिक कर) के रूप में वसूलता था । ऊपर से तीसरे एस्टेट के तमाम लोगों को सरकार कोहो कर चुकाना हो होता था। इन करों में टाइल (Taille, प्रत्यक्ष कर) और अनेक अप्रत्यक्ष कर शामिल थे। अप्रत्यक्ष कर नमक और तम्बासी रोजाना उपभोग की वस्तुओं पर लगाया जाता था। इस प्रकार राज्य के वित्तीय कामकाज का सारा कोश करों के माध्यम से जनता वहन करती थी।

प्रश्न 14 फ्रांस में 1793 से 1794 के काल को आतंक का युग क्यों
उत्तर- सन् 1793 से 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है। रॉस्पीयर ने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनायी। उसके हिसाब से गणतंत्र के जो भी शत्रु थे-कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य-उन सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और एक क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया। यदि न्यायालय उन्हें 'दोषी' पाता तो गिलोटिन पर चक्राकर उनका सिर कलम कर दिया जाता था। गिलोटिन दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन था जिस पर रखकर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था। इस मशीन का नाम इसके आविष्कारक डॉ० गिलोटिन
रॉबस्पीयर सरकार ने कानून बनाकर मजदूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी। गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई । किसानों को अपना अनाज शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा तय कीमत पर बेचने के लिए बाध्य किया गया । अपेक्षाकृत महँगे सफेद आटे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई । सभी नागरिकों के लिए साबुत गेहूँ से बनी और बराबरी का प्रतीक मानी जाने वाली, 'समता रोटी' खाना अनिवार्य कर दिया गया। चर्चा को बंद कर दिया गया और उनके भवनों को बैरक या दफ्तर बना दिया गया।
रॉबस्पोयर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि करने लगे। अंततः जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया ।

प्रश्न 15. फ्रांस में दास-प्रथा के उन्मूलन पर एक नोट लिखिए । 
उत्तर-फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था  दास-व्यापार 17वीं शताब्दी में शुरू हुआ था । फ्रांसीसी सौदागार नान्ते बन्दरगाह से अफ्रीकी तट पर जहाज ले जाते थे, जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे । दासों को दाग कर एवं हथकड़ियाँ डाल कर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक तीन माह की लंबी समुद्री-यात्रा के लिए जहाजों में ठूंस दिया जाता था। वहाँ उन्हें बागान-मालिकों को बेच दिया जाता था । दास-श्रम के बल पर यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ। बोदें और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते-फूलते दास-व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए ।
अठारहवीं सदी में फ्रांस में दास-प्रथा की ज्यादा निंदा नहीं हुई । नेशनल असेंबली में लंबी बहस हुई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसीसी प्रजा प्रदान किए जाएँ या नहीं। परन्तु दास-व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नेशनल असेंबली में कोई कानून पारित नहीं किया गया। लेकिन अंततः सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया। पर यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा । दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास-प्रथा पुनः शुरू कर दी । बागान-मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गई। फ्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास-प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया 


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