विद्युत धारा
1. SI मात्रक के साथ विद्युत-धारा, विभवांतर और प्रतिरोध को परिभाषित करें और इनमें संबंध स्थापित करें एवं संबंधित नियम की व्याख्या करें।
उत्तर- विद्युत धारा– किसी सतह को प्रति एकांक समय में पार करते आवेश का परिमाण विद्युत-धारा कहलाता है। इसका SI मात्रक ऐम्पियर (A) है जो 1 कूलॉम प्रति सेकंड के तुल्य है।
विभवांतर :- दो बिंदुओं के बीच विभवांतर एकांक आवेश को एक से दूसरे बिंदु तक ले जाने में वैद्युत क्षेत्रबल द्वारा किए गए कार्य के तुल्य होता है। इसका SI मात्रक वोल्ट (V) है जो 1 जूल प्रति कूलॉम के तुल्य होता है।
प्रतिरोध- किसी चालक का प्रतिरोध इसके सिरों के बीच आरोपित विभवांतर एवं प्रवाहित धारा के अनुपात को कहा जाता है। इसका SI मात्रक ओम (2) है जो 1 वोल्ट प्रति ऐम्पियर के तुल्य होता है।
संबंध की स्थापना -किसी चालक के सिरों X एवं Y के बीच विभवांतर मापने के लिए एक वोल्टमीटर Vलेते हैं तथा प्रवाहित विद्युत-धारा की माप के लिए एक ऐमीटर A का उपयोग करते हैं। 1.5 वोल्ट के चार सेलों को चित्रानुसार सजाते हैं।
सबसे पहले एक सेल को परिपथ में लाते हैं (संयोजन-1) एवं XY के आड़े विभवांतर V - I / V तथा धारा I मापते हैं। इनका अनुपात ज्ञात करते हैं। यह क्रिया परिपथ में दो या का मान अचर अधिक सेलों को लाकर दुहराते हैं। हम पाते हैं कि प्रत्येक दशा में I आता है। अर्थात, विभवांतर / विद्युत = धारा
परिभाषा से यह अचर प्रतिरोध R है। अत:, किसी चालक के सिरों का विभवांतर एवं उससे प्रवाहित धारा का अनुपात (प्रतिरोध के तुल्य) अचर होता है।
V/I=R
यही अभीष्ट संबंध है।
संबंधित नियम – 1827 में ओम ने बताया कि किसी धातु के तार में प्रवाहित होनेवाली - धारा (I) उस तार के सिरों के बीच विभवांतर के अनुक्रमानुपाती होती है बशर्ते तार का ताप अचर रहे। इसे ओम का नियम कहा जाता है।
व्याख्या - अचर ताप रहने के कारण प्रतिरोध अचर हो जाता है। परंतु,
प्रतिरोध = विभवांतर/विद्युत-धारा
अतः विभवांतर/ विद्युत = धारा अचर, जो ओम के नियम का कथन है।
सिद्ध करें, R = R1 + R2,
जहाँ R, श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधकों R1 और R2 का समतुल्य प्रतिरोध है।
सिद्ध करें, 1\R = I \ R1 + 1\R2
जहाँ R, पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधकों R1 और R2 का समतुल्य प्रतिरोध है।
उत्तर-(a) श्रेणीक्रम संयोजन में R = R + R, सिद्ध करनाश्रेणीबद्ध प्रतिरोधकों का तुल्य प्रतिरोध-तुल्य प्रतिरोध वह एकल प्रतिरोध है जिससे एक सेल उतनी ही धारा भेजता है जितनी श्रेणीबद्ध प्रतिरोधकों से।
R पर विभवपतन = IR1, R2, पर विभवपतन = IR2,
अब कुल विभवपतन V के तुल्य हैं।
V=V] + V2
= IR] + IR2 = I(Rq+R).
अब यदि तुल्य प्रतिरोध R, हो, तो समान धारा I इससे प्रवाहित होगी। ओम के नियम से,
V=IR
समीकरण (i) एवं (ii) से,
IR = I(R1 + R2) →R = R] +R2 प्रमाणित
(b) पशार्वक संयोजन में 1\R = I \ R1 + 1\R2
चित्र में दो प्रतिरोधक जिनके प्रतिरोध क्रमशः
R, तथा R, हैं पावक्रम में संयोजित हैं। सेल से दी गई कुल धारा I है जो दोनों प्रतिरोधकों में बँट I जाती है। चित्र से,
उत्तर- प्रतिरोध R के प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर V हो, तो उत्पन्न ऊष्मीय शक्ति P होगी।
अतः,
P = V2 / R
V= PR
प्रश्नानुसार R = 42, P = 100Js-1 = 100W, V= ?
अब समीकरण (i) से, > V2 = PR
या_V = √PR = √ (100 W) × (42) = 20 V. =
अतः प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतरं 20V है।
4. विद्युत शक्ति क्या है? निगमन करें H = PRt, जहाँ H किसी प्रतिरोधक R में विद्युत धारा I द्वारा समय में उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा है।
उत्तर - विद्युत शक्ति - जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तब विद्युत धारा द्वारा उत्पन्न ऊष्मा का परिमाण धारा द्वारा चालक के प्रतिरोध के विरुद्ध किए गए कुल कार्य के बराबर होता है।
अतः, किसी विद्युत परिपथ में उपभुक्त अथवा क्षयित विद्युत ऊर्जा की दर को विद्युत शक्ति कहते हैं। - - -
H = 'Rt का निगमन
यदि किसी R प्रतिरोध के प्रतिरोधक से होकर / विद्युत धारा समय तक प्रवाहित होती हो, और यदि प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर V हो, तो संपन्न कार्य
W = VIt.
यह कार्य (SI प्रणाली में) उत्पन्न ऊष्मा के बराबर होता है। अतः उत्पन्न ऊष्मा का परिमाण
H = W = VIt = 1²ªRt. [: V = IR]
5.20 OM प्रतिरोध की कोई विद्युत इस्तरी 5A विद्युत धारा लेती है। 30s में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
उत्तर- प्रतिरोधक में उत्पन्न ऊष्मा का मान जूल के तापन नियम से प्राप्त होता है।
प्रश्नानुसार, 1 = 5A, R= 202, t = 30 s, H = ?
अब निम्नांकित सूत्र में दिए गए मानों को रखने पर, H = 12 Ri
= (5A) 2 (2052) (30s) = 25 x 20 x 30 जूल = 15000 जूल = 1.5 किलोजूल (kJ).
अतः इस्तरी में उत्पन्न ऊष्मा 1.5kJ है।
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