खण्ड - 'ब' (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न ) लघु उत्तरीय प्रश्न
HOME SCIENCE Question Paper 2009
1.चेक कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:- बैंक खाता खोलने पर बैंक द्वारा शर्त- लिखित आदेश-पत्र है जिसे चेक तीन प्रकार के होते हैं
(i) वाहक चेक (Bearer Cheque) - वाहक चेक में प्राप्तकर्ता के आगे 'अथवा वाहक' (or Bearer) शब्द लिखे होते हैं। ऐसे चेक का रुपया बैंक से कोई भी व्यक्ति ले सकता है। अतः ऐसे चेक के खो जाने पर हानि की बहुत सम्भावना रहती है। ऐसा चैक खो जाने पर तुरन्त ही बैंक, को इस बात की सूचना दे देनी चाहिए कि बैंक उस चेक का भुगतान न करे, किन्तु सूचना देने पर भी यदि बैंक भूलवश भुगतान कर दे तो वह इसके लिए उत्तरदायी नहीं होता ।
(ii) आदेशक चैक (Order Cheque) - चेक पर प्राप्तकर्ता के नाम के बाद छपे हुए अथवा वाहक (or Bearer) शब्दों को काटकर आदेशक (Order) शब्द लिख दिया जाए तो ऐसे चेक को * आदेशक चेक कहते हैं। आदेशक चेक का रुपया या तो प्राप्तकर्ता को मिल सकता है या उस व्यक्ति को मिल सकता है जिसके नाम प्राप्तकर्ता ने चेक के पीछे उसका बेचान कर दिया हो । आदेशकं चेक का रुपया बैंक तभी देता है जबकि वह रुपया लेने वाले को पहचानता हो । किसी अनुचित व्यक्ति को रुपया दे बैठने पर बैंक उसके लिए उत्तरदायी होता है। वाहक चेक को आदेशक बनाया जा सकता है, किन्तु चेक को वाहक नहीं बनाया जा सकता है।
(iii) रेखण चेक (Crossed Cheque) - यदि चेक के बाईं ओर दो तिरछी समानान्तर रेखाएँ खींच दी जाएँ तो ऐसे चेक को रेखण चेक कहते हैं। रेखण चेक आदेशक चेक से भी अधि क सुरक्षित होता है। ऐसे चेक का रुपया प्राप्तकर्ता अपने हिसाब में ही जमा करवा सकता है। अतः रेखण चेक के खो जाने पर हानि की अधिक सम्भावना नहीं रहती ।
2.आई० एस० आई० क्या है ? चार खाद्य पदार्थों के नाम लिखें जिन पर आई० एस० आई० चिह्न हो ।
उत्तर:- बी० आई० एस० ( Bureau of Indian Standard ) I.S.I. चिह्न द्वारा पदार्थों की शुद्धता की गारन्टी देता है । भारतीय मानक संस्थान द्वारा निम्न विश्वास दिए जाते हैं उपभोक्ताओं को पदार्थ की गुणवत्ता, सुरक्षा तथा स्थिरता का आश्वासन बहुत से विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता पदार्थों पर I.S.I. मार्क लगाया जाता है । कुछ भी खरीदने से पूर्व आप सामान की गुणवत्ता के आश्वासन के लिए यह मार्क अवश्य देख लें। एयर कंडीशनर, बाल आहार, बिस्कुट, छत के पंखे, L.P.G. पर यह चिह्न अंकित होता है ।
3.आयकर में छूट प्राप्त करने के लिए किन-किन योजनाओं में निवेश करना चाहिए ?
उत्तर:- किसी व्यक्ति को आयकर में छूट प्राप्त करने के लिए निम्न योजनाओं में निवेश करना चाहिएमें
(i) राष्ट्रीय बचत पत्र
(ii) पूर्ण संक्रियात्मक अवस्था
(iii) जीवन बीमा
(iv) सार्वजनिक भविष्य निधि योजना एवं
(v) यूनिट योजना
4, प्राथमिक रंग किसे कहते हैं ?
उत्तर:- प्राथमिक रंग प्रथम श्रेणी के रंग होते हैं। यह रंग मुख्य रंगों में आते हैं। इसके अन्तर्गत लाल, पीला, नीला रंग आते हैं। प्राथमिक रंग से व्यक्ति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। प्राथमिक रंग से वस्तुओं में सुन्दरता का समावेश होता है। रंगों के विभिन्न प्रयोग व्यक्तियों के आकार, प्रकार व संवेग को प्रभावित करते हैं ।
5.गर्भवती स्त्रियों के भोजन में लोहा होना क्यों अनिवार्य है ?
उत्तर:- गर्भकाल में स्त्री को लोहे की आवश्यकता होती है। इसकी कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है । सम्पूर्ण गर्भावस्था में गर्भवती महिला को 700-1000 मि० ग्रा० लोहे को शाषित करना जरूरी है। गर्भावस्था में माता के रक्त में वृद्धि होती है तथा शिशु का रक्त बनता है जिसके लिए गर्भवती को प्रतिदिन अधिक लोहे की आवश्यकता होती है ।
6.भोजन अपमिश्रण से आप क्या समझते हैं
उत्तर:- खाद्य पदार्थ में कोई मिलता-जुलता पदार्थ मिलाने अथवा उसमें से कोई तत्व निकालने या उसमें कोई हानिकारक तत्त्व मिलाने से खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता में परिवर्तन को मिलावट कहा जा सकता है।
7.प्रतिरक्षा को परिभाषित करें ।
उत्तर:- प्रतिरक्षा का अर्थ होता है-"व्यक्ति के रोग तथा रोगों से लड़ने की क्षमता या योग्यता हमारे शरीर को भिन्न-भिन्न रोगाणुओं से लड़ने के लिए भिन्न-भिन्न प्रतिद्रव्यों की आवश्यकता होती है । सूक्ष्म जीवाणु तथा रोगाणु शत्रु समझे जाते हैं। इनमें ऐसे 'एंटीजन- या प्रतिजन होते हैं जो शरीर में 'ऐटीजन' या प्रतिद्रव्य उत्पन्न करने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं ।
8.बजट कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:- एक निश्चित अवधि के पूर्व आय-व्यय के विस्तृत ब्यौरा को बजट कहते हैं। बजट तीन प्रकार का होता है
बचत
(i) बचत का बजट-जब प्रस्तावित व्यय अनुमानित आय से कम तथा निश्चित अवधि में कुछ जाती है तो उसे बचत का बजट कहते हैं । हो
(ii) घाटे का बजट- जब प्रस्तावित व्यय अनुमानित आय से अधिक होता है, तो उसे पूरा करने के लिए ऋण लेना या बजट से खर्च करना पड़ता है तो उसे घाटे का बजट कहते हैं ।
(iii) संतुलित बजट- जब प्रस्तावित व्यय अनुमानित आय समान होती है, तो उसे सन्तुलित बजट कहते हैं । परिवार के लिए यह बजट लाभप्रद होता है ।
9.दाग-धब्बों को कितने श्रेणी में बाँटा गया है ?
उत्तर:- दाग-धब्बों को पाँच श्रेणियों में बाँटा गया है
(i) प्राणिज्य धब्बे - प्राणिज्य पदार्थों के द्वारा लगने वाले धब्बे को प्राणिज्य धब्बे कहते हैं जैसे- अण्डा, दूध, मांस, मछली आदि ।
(ii) वनस्पतिक धब्बे - पेड़-पौधों से प्राप्त पदार्थों द्वारा लगे धब्बे को वानस्पतिक धब्बे कहते हैं, जैसे चाय, कॉफी, सब्जी, फल, फूल आदि ।
(iii) खनिज धब्बे - खनिज पदार्थों द्वारा लगे धब्बे को खनिज धब्बे कहते हैं जैसे-जंग, स्याही । इन धब्बों को दूर करने के लिए हल्के अम्ल का प्रयोग करते हैं, तथा हल्का क्षार लगाकर वस्त्र पर लगे अम्ल के प्रभाव को दूर कर दिया जाता है ।
(iv) चिकनाई के धब्बे - घी, तेल, मक्खन, क्रीम आदि पदार्थों से लगने वाले धब्बे चिकनाई धब्बे होते हैं ।
(v) अन्य धब्बे-पसीना, धुआँ तथा रंग के धब्बे ऐसे होते हैं जिन्हें उपरोक्त किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है
10.समन्वित बाल विकास सेवा (आई० सी० डी० एस०) के उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:- समन्वित बाल विकास सेवा 2 अक्टूबर, सन् 1975 में 33 ब्लॉक में प्रायोजित आधार पर प्रारम्भ की गई थी । देश में लगभग 2761 स्वीकृत आई०सी०डी०एस० परियोजनाएँ हैं जिनमें लाखों माताएँ एवं बच्चे लाभ उठा रहे हैं ।
11. बच्चों को क्रेश में रखने से क्या लाभ हैं ?
उत्तर:- एक क्रेच वह स्थान है जहाँ कामकाजी (नौकरी करने वाले) माता-पिता के बच्चों तथा शिशुओं अथवा रुग्ण माताओं के बच्चों को रखा जाता है। उनका घरेलू वातावरण में पालन-पोषण किया जाता है। उन्हें पैतृक देखभाल तथा प्यार दिया जाता है।
एक अच्छे क्रेच के निम्नलिखित लाभ हैं
(i) एक सुयोग्य प्रौढ़ महिला जो शिशुओं और बच्चों की देखभाल करती है।
(ii) खेलने के लिए पर्याप्त खिलौने और सामग्री (झूले इत्यादि) ।
(iii) दूध, भोजन तथा अन्य द्रव्य (पेय) पदार्थों की उपस्थिति ।
(iv) सोने के लिए आरामदायक बिस्तरे तथा रक्षात्मक वातावरण ।
12. पारिवारिक आय के अतिरिक्त साधन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:- सामान्यतः आजीविका के माध्यम से दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक एवं वार्षिक रूप से आने वाली धन आय कहलाते हैं । एक परिवार में एक से अधिक व्यक्ति कमाने सकते हैं । परिवार सुचारु रूप से चलाने के लिए धन एक प्रमुख साधन है क्योंकि धन आवश्यकताओं की पूर्ति होती है । वाले से ही हो हमारी परिवार आय के अतिरिक्त निम्नखित साधन हैं
(i) अंशकालिक नौकरी द्वारा (Part time job) — अधिकतर भारतीय गृहिणियाँ अपना समय गृह-संचालन में ही व्यय कर देती हैं तथा उचित समय व्यवस्था की आवश्यकता से अनभिज्ञ होती हैं । इसका एक मुख्य कारण यह है कि उन्हें अतिरिक्त समय की आवश्यकता कम ही पड़ती है और वह अवकाश का समय व्यर्थ बैठकर गवां देती हैं । यदि गृहिणी समय की उचित व्यवस्था करके कोई अंशकालिक नौकरी कर ले तो वह परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधार सकती है।
(ii) गृह उद्योगों द्वारा - यदि गृहिणी घर से बाहर जाकर नौकरी करने में असमर्थ हो तो वह घर में ही सरल उद्योगों द्वारा धन अर्जित कर सकती है। घर में कई प्रकार के कार्य किए जा सकते हैं जैसे कपड़े सीना, मौसम में फल तथा सब्जियों का संरक्षण करके बाजार में बेचना, पापड़ बड़ियाँ आदि बनाकर बेचना । गृहिणी अपनी कार्य निपुणता, सुविधा एवं रुचि के अनुकूल कार्य चुनकर अपने अतिरिक्त समय के सदुपयोग के साथ-साथ परिवार की आर्थिक स्थिति सुधार ला सकती है ।
खण्ड- 'स' (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
1. आहार योजना को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें ।
उत्तर:- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
(i) सभी आवश्यक तत्त्वों का होना ।
(ii) परिवार की पौष्टिक आवश्यकताओं का ध्यान रखना ।
(iii) सभी खाद्य वर्गों का इस्तेमाल करना ।
(iv) भोजन यथासंभव कम दामों में तैयार हो (Economise on the cost of food)- गृहिणी को अपनी आय को ध्यान में रखना चाहिए । योजना ऐसी न हो कि माह भर की आय दस दिन में खर्च कर दी जाए । गृहिणी को उपलब्ध आमदनी से भोजन तत्त्व अधिकतम मात्रा में उपलब्ध करने का प्रयत्न करना चाहिए । आहार में शरीर के लिए समस्त आवश्यक भोज्य तत्व विद्यमान हों ।
इसके लिए गृहिणी को निम्न बातों का ज्ञान होना चाहिए
(क) बाजार में विभिन्न खाद्य पदार्थों का मूल्य ।
(ख) बढ़िया भोजन सस्ते दामों पर मिलने का उपयुक्त स्थान एवं समय ।
(ग) विभिन्न भोज्य पदार्थों की सफाई एवं सुरक्षा सम्बन्धी बातें जिससे भोजन के पौष्टिक तत्व नष्ट न हों ।
(घ) विटामिन भोज्य पदार्थों के गुण जिनसे महँगी वस्तुओं के स्थान पर समान गुणयुक्त सस्ती भोज्य वस्तुएँ आहार में सम्मिलित की जा सकें ।
(ङ) सस्ती भोज्य वस्तुओं को विभिन्न विधियों से तैयार करना जिससे वे स्वादिष्ट एवं आकर्षक बन सकें ।
कम दामों में भोजन करने का यह अर्थ कदापि नहीं कि परिवार के लिए अपर्याप्त या अपोषक सस्ते आहार का प्रबन्ध कर दिया जाए। कम दाम में भी अधिकतम पोषण के गुण प्राप्त करना ही उचित है
2. जन्म से तीन वर्ष तक के बच्चों में होने वाले सामाजिक विकास का वर्णन करें
उत्तर:- सामाजिक विकास (Social Development)–“सामाजिक विकास का अर्थ है जिस समाज में बच्चा रहता है उस समाज के अनुसार अपने व्यवाहर को ढालने की बच्चे की क्षमता । " सामाजिक विकास से ही समाजीकरण शुरू होता है। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें बच्चा खाना, बोलना और खेलना सीखता है । इसका अर्थ अपने समूह के साथ अच्छा व्यवहार करना भी 10 से 3 माह - नवजात शिशु का सामाजिक विकास शून्य के बराबर होता है। जब तक उनका पेट भरा रहे और वे साफ रहें तो वे सन्तुष्ट रहते हैं। धीरे-धीरे वे अपने आस-पास के लोगों में दिलचस्पी लेने लगते हैं परन्तु उनके कोई विशेष इच्छा पात्र नहीं होते। तीन महीने के होने पर वे ध्वनि पहचानने लगते हैं और वे मुस्कुराकर उसे प्रगट करते हैं ।
माह - शिशु इस आयु में अधिक सामाजिक हो जाता है । वे अपने इर्दगिर्द के लोगों 4 से 6 को ध्यान से देखने लगते हैं। और वे 'गलगला' कर व 'कू-कू' करके अपने को व्यक्त करते हैं। वे माँ-बाप और भाई-बहनों को पहचानने लगते हैं परन्तु अनजाने लोगों को पसंद नहीं करते । 7 से 9 माह - इस आयु में माँ तथा बच्चे का सम्बन्ध घनिष्ठ हो जाता है। वे प्यार और फटकार में अन्तर समझने लगते हैं 10 से 18 माह- परिवारजनों के साथ इस आयु के बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं अनजान लोगों को पसन्द नहीं करते। वे असामाजिक होते हैं तथा अपने खिलौने किसी को नहीं देते। वे अपनी माता की कंघी तथा बटुए तक को हाथ में पकड़ कर बैठे रहते हैं जिससे कि कोई और उसे न ले सके। बच्चों को अपने माता-पिता के जूते और लिपस्टिक, बिन्दी आदि लगाते देखना बहुत रुचिकर लगता है। क्या आपने किसी बच्चे को ऐसा करते हुए पकड़ा है ? बच्चे एकाकी ही खेलना पसन्द करते हैं। दूसरों के साथ कोई सम्पर्क स्थापित नहीं करते ।
2 वर्ष का बच्चा - भागना, उल्टा चलना और बिना गिरे बड़ी चीजें उठाने लगता है । 2/½ वर्ष का बच्चा - पैरों के पंजों पर अपने शरीर को सम्भालने लगता है और आसानी से कूदने लगता है ।
3 वर्ष का बच्चा - एक पैर पर खड़ा होकर शरीर को सम्भालने लगता है । आवश्यकताओं में भोजन के बाद वस्त्र का ही स्थान आता है। प्रत्येक जाति और धर्म के लोगों को हर समय किसी-न-किसी रूप में वस्त्र की आवश्यकता
3.हमारे जीवन में वस्त्र के महत्व को समझाइए । Or, कपड़ों के चयन को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें
उत्तर:- हमारे दैनिक जीवन की मूलभूत होती है । वस्त्र एवं परिधान मनुष्यों के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर, उनकी अभिरुचि, स्वभाव एवं संस्कृति के प्रतीक होते हैं। प्रत्येक कार्य एवं परिधान के लिए किस प्रकार होंगे, उसकी रेशे, बुनावटें, रंग एवं डिजाइन किस प्रकार की हो, का वस्त्र उपयोगी होगें, इसकी जानकारी के लिए भी वस्त्र विज्ञान का ज्ञान आवश्यक है । विभिन्न रेशों की पहचान, उसकी परिसज्जा, परीक्षण, उसकी भौतिक एवं रासायनिक विशेषताएँ, रेशे के उपयुक्त धोने की सामग्री, आदि का ज्ञान होने से वस्त्र की आयु तथा रंग-रूप बढ़ जाता है । वस्त्र का व्यक्ति से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, क्योंकि सभ्य समाज में मर्यादित रूप में रहने के लिए वस्त्र आवश्यक है । वस्त्र जीवन को सभी वस्तुओं से अधिक प्रभावित करते हैं । इसके अतिरिक्त यह हवा, पानी, सर्दी, गर्मी, छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़े तथा धूल से रक्षा करते मौसम एवं समय के अनुकूल रंग, आकृति के हैं । और सुन्दर्, उपयोग आकर्षक, से व्यक्ति का स्वरूप निखर जाता है। अपने कार्य एवं पेशे से सम्बद्ध संकटों से अनुरूप उचित वस्त्रों के चयन बचाव के लिए भी वस्त्र धारण किये जाते हैं, जैसे- पानी में कार्य करने वाले पानीप्रूफ तथा अग्नि में कार्य करने वाले अग्निप्रूफ कपड़े पहनकर शरीर की रक्षा करते हैं। अपने को आकर्षक बनाने, अपनी सामाजिक स्थिति एवं सम्पदा को प्रदर्शित करने के लिए भी वस्त्र का प्रयोग किया जाता है। अभिनिध रण के लिए, जैसे-पादरी, संन्यासी, फायरमैन, पुलिसमैन, स्कूल ड्रेस, आदेशपाल आदि वस्त्रों का प्रयोग परिधान के रूप में होता है । चिकित्सा में वस्त्रों का उपयोग पट्टियों एवं गॉज के रूप में किया जाता है ।
वस्त्र जीवन को सभी वस्तुओं से अधिक प्रभावित करते हैं। इसके उचित चयन और उपयोग से व्यक्ति का स्वरूप बदल जाता है । शारीरिक अवगुणों को दुबाकर व्यक्तित्व को सुन्दर बनाने तथा बाह्य-सज्जा में वस्त्रों का योगदान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। वस्त्रों का मानव जीवन से अटूट सम्बन्ध है। अतः उसका विवेकपूर्ण चयन, उचित प्रयोग, सही देख-रेख तथा विधिवत् सुरक्षा एवं संचयन करने की कला से परिचित होना चाहिए । वस्त्र विज्ञान एवं परिधान में वस्त्र के इन्हीं पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है। अतः वस्त्र विज्ञान का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है । वस्त्र विज्ञान का ज्ञान गृहिणी के लिए तो सबसे अधिक आवश्यक है। घर के वस्त्रों की खरीददारी प्रायः गृहिणी को ही करनी पड़ती है। वस्त्र विज्ञान के समुचित ज्ञान से ही वस्त्रों के चयन सम्बन्धी निर्णय में गृहिणी को सहायता मिलती है। खरीदते समय ही वस्त्र का प्रयोजन, टिकाऊपन, मजबूती, कार्यक्षमता आदि के विषय में गृहिणी को निर्णय लेना पड़ता है। वस्त्रों की देख-रेख, धुलाई की विधियों, साबुन या अन्य शोधक पदार्थों का उनपर प्रभाव से वस्त्र की परख करनी पड़ती है, जिसके लिए वस्त्र विज्ञान ही गृहिणी को सहायक होती है ।
कपड़ों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
अथवा
(i) कपड़े की किस्म - सबसे पहले परिधान में प्रयोग किए गए कपड़े की किस्म देखनी चाहिए। मुख्य परिधान में विभिन्न कार्यों के लिए, जैसे- गोट, पाइपिंग, नमूने, अस्तर आदि के लिए जो वस्त्र प्रयोग किए गए हों, उनकी रचना, काज, रंग और कार्यक्षमता को भी देख लेना उतना ही जरूरी है जितना कि मुख्य परिधान के कपड़े को देखना जरूरी है । वे बराबरी की रचना एवं चयन मजबूत और टिकाऊ तथा मेल खाते हुए होने चाहिए । वे गारंटी सहित हों साथ ही पसीने से अप्रभावित रहने वाले और शिकन से मुक्त होने चाहिए। निट किए रेडीमेड गारमेन्ट की, निटिंग विधि को देख लेना जरूरी है।
(ii) रंग- परिधान में प्रयुक्त कपड़े का रंग देखना भी जरूरी है। प्रायः नमूना बनाने म में कई-एक रंगों के 'पीस' लगाये जाते हैं। जिसका रंग पक्का होना जरूरी है। साथ ही रंग, धारण करने वाले को 'सूट' करने वाला होना चाहिए । परिधान
(iii) नमूने-कपड़े कई नमूने के होते हैं। छापे, धारियाँ, रोएँ, फन्दे आदि से कपड़ों पर नमूने बनाए जाते हैं । अतः तैयार परिधान में देख लेना चाहिए कि छापे सभी एक सीध में रहें । शीर्ष और • तल वाले नमूने के हर पीस में शीर्ष ऊपर एवं तल नीचे रहे, इस हिसाब से काटा और सिला गया होना चाहिए । धारियाँ सभी उचित कोण पर आपस में मिलाकर सिली जाती है। तो परिधान सुन्दर लगता है। कढ़ाई या छपाई से बने नमूने का मध्य का स्थान समान दूरी पर होना जरूरी है ।
(iv) कपड़े की कटाई - परिधान के विभिन्न पीस की कटाई ढंग से होने पर ही फिटिंग ठीक • आती है । कपड़े की सीधी रेखा ग्रेन लाइन कहलाती है । कपड़े की तिरछी रेखा ओरेबी कहलाती है । आस्तीन में दोनों तरफ से उचित ग्रेन-लाइन पर कटाई होना जरूरी है। इसी तरह से ओरेबी में भी ठीक प्वाईंट पर बना ओरेबी सही एवं वास्तविक कहलाता है। परिधान में कई स्थानों पर ओरेबी, गोट, पट्टी, पाइपिंग, अस्तर आदि की जरूरत पड़ती है। इन्हें सही ओरेबी में काटने पर परिधान की फिटिंग अच्छी आती है । कपड़े के खड़े रुख में से कपड़े की लम्बाई और आड़े रुख में से कपड़े की चौड़ाई रखनी जरूरी है जिससे परिधान का फल और लटक-शैली आकर्षक आए । इसे ध्यान में रखकर काटा हुआ परिधान पहननेवाले को सुन्दर रूप प्रदान करता है ।
(v) सिलाई-सिलाई के ढंग के औचित्य को परख लेना चाहिए । मशीन की सिलाई के टाँके समीप होना चाहिए । दोहरी सिलाई अच्छी और मजबूत रहती है। सिलाई के स्थान पर टेप से संबल . दे देने से परिधान की मजबूती बढ़ जाती है तथा उसका जीवन लम्बा हो जाता है। परिधान की 'साइड-सीम' की मजबूती को देखना भी जरूरी है। प्रत्येक सिलाई- स्थान पर पर्याप्त कपड़ा छोड़ना चाहिए । किन्हीं रेडीमेड कपड़ों में अस्तर रहता है । अस्तर की सिलाई भी देखनी जरूरी हैं । अस्तर को लगाने का ढंग ऐसा होना चाहिए कि कपड़ा आसानी से पहना-उतारा जा सके। चिकने का कपड़े का अस्तर अच्छा रहता है। अधिक घर्षण वाले स्थानों की सिलाई पर टेप लगा होना चाहिए
4. गर्भावस्था में मुख्यतः कौन-कौन से पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है ? वर्णन करें।
उत्तर:- गर्भावस्था में विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ निम्नलिखित होती हैं
ऊर्जा - गर्भावस्था में कैलोरी अन्तर्ग्रहण विशेष महत्व का होता है, क्योंकि द्वितीय और तृतीय त्रैमासिकी में आधारीय चयापचय की दर में विशिष्ट वृद्धि हो जाती है । शारीरिक भार में वृद्धि एवं सामान्य क्रियाशीलता के लिए शक्ति सम्बन्धी आवश्यकता बढ़ जाती है । ICMR द्वारा गर्भावस्था में दैनिक कैलोरी की आवश्यकता 300 अतिरिक्त मात्रा में प्रतिपादित किया गया है। अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करने के लिए भोजन में कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का समावेश होना चाहिए ।
प्रोटीन- गर्भावस्था में प्रोटीन की आवश्यक मात्रा में अधिकता से वृद्धि होती है जो विशेषकर गर्भावस्था के दूसरे आधे भाग में होती है। भ्रूण द्वारा प्रोटीन के अधिकतर भाग की आवश्यकता जन्म से पूर्व तीन महीनों में होती है। प्रोटीन द्वारा शरीर के कोषाणु बनते हैं। गर्भस्थ शिशु और मातृत्व ऊत्तकों में लगभग 910 ग्राम प्रोटीन एकत्र हो जाता है। गर्भावस्था के अन्तिम 6 महीनों में ऊतक प्रोटीन की मात्रा 5 ग्राम प्रतिदिन बढ़ती जाती है। इसलिए सामान्य दैनिक आहारीय प्रोटीन की आवश्यकता में 10 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता बढ़ जाती है । इसलिए गर्भवती को आहार में दूध, पनीर, दूध से बने पदार्थ, मांस, मछली, अंडा, दाल, सूखे मेवे आदि का सेवन करना चाहिए ।
कैल्शियम- जन्म के समय भ्रूण में लगभग 30 ग्राम कैल्शियम होता है जिसका अधिकतर भाग अन्तिम महीनों में शिशु में निक्षेपित हो जाता है। गर्भ में कैल्शियम संचयन की दर तीसरे महीने 50 मि० ग्राम प्रतिदिन, सातवें महीने 120 मि० ग्राम प्रतिदिन और अन्तिम महीने में 450 मि० ग्राम प्रतिदिन होती है।
विटामिन (A) – गर्भावस्था के दूसरे तथा तीसरे महीने में विटामिन A की दैनिक मात्रा 6000 IU होनी चाहिए। इसकी आहार में कमी से शिशु की आँखें तथा फेफेड़े प्रभावित होते हैं । विटामिन A की पूर्ति के लिए दूध, मक्खन, हरी-पीली सब्जियाँ, कलेजी, गाजर, पपीता आदि का सेवन करना चाहिए ।
विटामिन - B——नवजात शिशु के ऊत्तकों में थायमिन, राइबोफ्लेविन, निकाटिनिक अम्ल, फोलिक अम्ल, एस्कार्विक अम्ल, विटामिन B12 की थोड़ी मात्राएँ पायी जाती हैं। ICMR द्वारा 2 मि० ग्रा० प्रतिदिन अतिरिक्त थायमिन निर्धारित किया गया है, जिसके लिए गर्भवती महिला को सम्पूर्ण अनाज के अलावे ताजे फल, मांस, मछली, दूध, अंकुरे चने, मेवे आदि का सेवन करना चाहिए । दूसरे और तीसरे महीने में राइबोफ्लेविन की मात्रा 3 मि० ग्रा० प्रतिदिन अतिरिक्त होनी चाहिए, जो कि मक्खन सहित दूध, चूर्ण, अण्डे, कलेजी, हरी सब्जियों, पनीर, यकृत, मूँग, उरद, मसूर, चना आदि से प्राप्त होते हैं । अतिरिक्त निकोटिनिक अम्ल प्रतिदिन 21 मि० ग्रा० निर्धारित किया गया है, जो कि अण्डा, सम्पूर्ण अनाज, कच्ची मूंगफली, मांस आदि से प्राप्त होते हैं । फोलिक अम्ल की मात्रा (50-200) मि० ग्रा० तथा विटामिन B12 मात्रा 5 मि० ग्रा० निर्धारित की गयी है जिसकी आपूर्ति क्रमशः खमीर, पालक, यकृत हरी सब्जियों आदि तथा दूध, कलेजी, मांस, अण्डे आदि के सेवन से होती है । एस्कार्विक अम्ल की मात्रा 50 मि०ग्रा० प्रतिदिन देना चाहिए । विटामिन - D— विटामिन-D से भ्रूण अस्थियाँ दृढ़ होती हैं। प्रसव पूर्व दूसरे एवं तीसरे महीनों में जिसका निर्धारण 400IU किया गया है । इस प्रकार गर्भवती महिलाएँ जो अतिरिक्त कैलोरी के लिए अनाहार ग्रहण करती हैं। उससे ये विटामिन अतिरिक्त रूप में प्राप्त हो जाते हैं ।
5. जल किस प्रकार दूषित होता है ? शुद्ध जल कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर:- जल के विभिन्न साधन हैं जैसे- झीलें, तालाब, नदियाँ, कुएँ तथा वर्षा का पानी मानव तथा जानवरों द्वारा दूषित हो जाता है। पानी को दूषित करने में व्यर्थ का कूड़ा-कचड़ा, मरे को पानी में डाल देना, पानी के स्रोतों के निकट मल-मूत्र त्याग करना, तालाबों में जानवरों को नहलाना कल-कारखानों द्वारा जल दूषित होता है इन क्रियाओं द्वारा सूक्ष्मजीव पानी को दूषित कर देते हैं तथा यह पीने योग्य नहीं रहता है। शुद्ध जल निम्नलिखित कारणों द्वारा प्राप्त किया जा सकता हैजल को शुद्ध करने के उपाय - जल हम चाहे किसी भी स्रोत द्वारा प्राप्त करें उसमें कुछ न कुछ अशुद्धियाँ अवश्य पाई जाती हैं। अतः जल को पीने से पहले कुछ आसान घरेलू विधियों द्वारा शुद्ध एवं सुरक्षित किया जा सकता हैं ये विधियाँ निम्नलिखित हैं
(i) उबालना (Boiling)
(ii) छानना ( Filter)
(iii) फिटकरी का प्रयोग (Use of Alum)
(iv) क्लोरीन (Chlorine)
(i) उबालना-पानी को । शुद्ध एवं पीने के लिए सुरक्षित करने का सबसे आसान एवं विश्वसनीय साधन उबालना है । उबालने के लिए पानी को किसी साफ बर्तन में लेकर सात से दस मिनट तक उबालने से उसमें उपस्थित लगभग सभी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं । ठण्डा होने पर इसे छानकर किसी साफ बर्तन या घड़े में संग्रह करना चाहिए । बर्तन या घड़े में से पानी निकालने के लिए किसी लम्बी डंडी वाले साफ बर्तन का प्रयोग करना चाहिए जिससे पानी निकालते समय उसमें गन्दे हाथ न लगें । उबालने की क्रिया द्वारा जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। जिससे उसका स्वाद बकबका हो जाता है परन्तु उबला होता है तथा अस्थाई कठोरता दूर हो जाती है ।
(ii) छानना-जल को साफ करने की यांत्रिक विधि छानना । छानने के लिए कई विधियाँ अपनाई जा सकती हैं
( क ) घड़ों द्वारा छानना-घड़ों द्वारा छानने की विधि सबसे पुरानी है और प्रायः गाँवों में इस विधि द्वारा कुओं, तालाबों आदि का जल छान कर आसानी से स्वच्छ किया जाता है । एक लकड़ी या लोहे के स्टैण्ड पर दो घड़ों में एक छोटा छेद होता है। सबसे ऊपर के घड़े में पिसा हुआ कोयला और उसके नीचे दूसरे घड़े में नीचे छोटे कंकड़ और ऊपर रेत होती है । नीचे का घड़ा साफ छना हुआ पानी संग्रह करने के लिए रखा जाता है । घड़ों के छेदों में थोड़ी सी रुई या मुलमल का कपड़ा लगाना चाहिए । सबसे ऊपर के घड़े में छानने के लिए पानी को डाला जाता है और धीरे-धीरे शुद्ध हो जाता है परन्तु यदि कोयला गन्दा हो तो पानी भी अशुद्ध हो जाता है । इस विधि में प्रयोग में एक बात और ध्यान रखनी चाहिए कि समय-समय पर घड़ों का कोयला, रेत एवं कंकड़ों को बदलते रहना चाहिए । गाँवों में पानी को साफ करने का यह सबसे सस्ता एवं उपयुक्त साधन है क्योंकि प्रायः सभी चीजें वहाँ आसानी से उपलब्ध होती है ।से होती है । एस्कार्विक अम्ल की मात्रा 50 मि०ग्रा० प्रतिदिन देना चाहिए । विटामिन - D— विटामिन - D से भ्रूण अस्थियाँ दृढ़ होती हैं। प्रसव पूर्व दूसरे एवं तीसरे महीनों में जिसका निर्धारण 400 IU किया गया है ।
इस प्रकार गर्भवती महिलाएँ जो अतिरिक्त कैलोरी के लिए अनाहार ग्रहण करती हैं । उससे ये विटामिन अतिरिक्त रूप में प्राप्त हो जाते हैं ।
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