परिवहन
1. परिसंचरण तंत्र - उच्च श्रेणी के जंतुओं में रक्त, हृदय एवं रक्त वाहिनियों से मिलकर बना तंत्र परिसंचरण तंत्र कहलाता है।
2. रक्त – रक्त उच्च श्रेणी के जंतुओं में परिवहन तंत्र का मुख्य अवयव है, जो लाल रंग के एक गाढ़े क्षारीय तरल पदार्थ के रूप में हृदय एवं रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है। इसलिए, इसे तरल संयोजी ऊतक कहते हैं।
3. प्लाज्मा– रक्त का तरल भाग (RBC तथा WBC रहित) प्लाज्मा कहलाता है।. 4. सीरम – फाइब्रिनोजिनरहित प्लाज्मा को सीरम कहते हैं।
5. लिंफ या लसीका या ऊतक द्रव – ऊतक कोशिकाओं के बीच अवस्थित WBC सहित एवं RBC रहित रक्त-प्लाज्मा, लिंफ या लसीका या ऊतक द्रव कहलाता है।
6. धड़कन – सिस्टोल और डायस्टोल मिलकर एक धड़कन कहलाता 7. महाधमनी या महाधमनी चाप- -बाएँ निलय के अगले भाग के दाएँ कोने से निकली मुख्य रुधिरवाहिनी जो फेफड़ों को छोड़कर शरीर के अन्य भागों में शुद्ध रक्त प्रवाहित करती है, महाधमनी कहलाती है।
8. श्वेत रक्त कोशिकाएँ — ये अनियमित आकार की न्यूक्लियस युक्त रक्त कोशिकाएँ होती हैं जिसमें हीमोग्लोबिन नामक वर्णक अनुपस्थित होता है। 9. रक्तचाप – महाधमनी एवं उनकी मुख्य शाखाओं में रक्त प्रवाह का दबाव रक्तचाप कहलाता है।
10. सिस्टोल— हृदय- वेश्मों का संकुचन सिस्टोल कहलाता है।
11. डायस्टोल– हृदय- वेश्मों का शिथिलन डायस्टोल कहलाता है।
12. हाइपरटेंशन – सामान्य से अधिक रक्तचाप हाइपरटेंशन कहलाता है। 13. स्फिग्मोमैनोमीटर- - रक्तचाप को मापनेवाला एक विशेष उपकरण स्फिग्मोमैनोमीटर कहलाता है।
14. हृदयाघात – हाइपरटेंशन की अवस्था में आंतरिक रक्तस्राव हृदयाघात कहलाता है। 15. फाइब्रिनोजेन, प्रोथ्रोम्बिन तथा हिपैरिन – ये प्रमुख प्लाज्मा प्रोटीन हैं जो रक्त का थक्का बनाने में सहायक होते हैं।
16. परिवहन तंत्र – जीव-शरीर के भीतर पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचानेवाले सुदृढ़ तंत्र को परिवहन तंत्र कहते हैं।
17. जाइलम – पौधों में पाया जानेवाला स्थायी जटिल ऊतक, जो वृंदा से प्राप्त जल एवं खनिज लवणों का संवहन करता है, जाइलम कहलाता है। 18. फ्लोएम– पौधों में पाया जानेवाला संवहन ऊतक, जो पत्तियों द्वारा संश्लेषित
खाद्य-पदार्थों का संवहन करता है, फ्लोएम कहलाता है।
19. संवहन ऊतक- -पौधों में जल तथा खाद्य पदार्थों का परिवहन जिस विशिष्ट उसको संवहन ऊतक कहा जाता है।
ऊतक से होता है
20. वाष्पोत्सर्जन-पौधों के वायवीय भाग से जल के वाष्प के रूप में निष्कासन की क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है।
21. रसारोहण – जड़ों के मूलरोम से अवशोषित जल तथा खनिज लवणों के पत्तियों तक पहुँचने की क्रिया रसारोहण कहलाती है।
22. स्थानांतरण-पौधों के एक भाग से दूसरे भाग में खाद्य-पदार्थों के जलीय घोल के आने-जाने की क्रिया स्थानांतरण कहलाती है।
23. चालनी नलिकाएँ—ये नलिकाएँ पौधों के फ्लोएम की निर्माणकारी घटक होती हैं जो हरे भागों में निर्मित भोज्य पदार्थों को दूसरे भागों में वितरित करती हैं।
. 24. विसरण– अणुओं का अपने सांद्र क्षेत्र से तनु क्षेत्र की ओर गमन करना विसरण कहलाता है।
25. परासरण–विलायक अणु का तनु घोल से एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक किए गए सांद्र घोल की ओर गमन करना परासरण कहलाता है।
26. रुधिरवाहिनियाँ- -धमनी, केशिका तथा शिरा को रुधिरवाहिनियाँ कहते हैं।
27. द्विदली कपाट या मिट्रल कपाट-बाएँ अलिंद-निलय छिद्र पर लगा कपाट मिट्रल कपाट कहलाता है।
28. द्विगुण परिसंचरण- शरीर में रक्त परिवहन के एक चक्र को पूरा करने में रक्त हृदय से होकर दो बार गुजरना द्विगुण परिसंचरण कहलाता है।
29. हृद्-चक्र- - हृदय में रक्त का भरना तथा फिर उसका बाहर निकलना हृद्-चक्र कहलाता है।
30. S-A नोड या साइनुऑरिकुलर नोड- -यह एक विशेष प्रकार का तंत्रिका है जिसके द्वारा हृदय की धड़कन को लयबद्ध रखा जाता है। इसे पेसमेकर भी कहते हैं।
31. धमनी – रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जानेवाली रुधिरवाहिकाएँ धमनी कहलाती हैं।
32. शिरा – विभिन्न अंगों से रुधिर एकत्र करके हृदय में वापस लानेवाली रुधिरवाहिकाएँ शिरा कहलाती हैं।
33. केशिकाएँ — धमनियाँ, शरीर के विभिन्न भागों में बँटकर धमनिकाएँ बनाती हैं, जो अंगों के अंदर विभक्त होकर अत्यंत महीन रक्त नलिकाएँ बनाती हैं, जिन्हें केशिकाएँ कहते हैं।
34. पेरिकार्डियम- हृदय को बाहर से घेरनेवाली दोहरी झिल्ली, जिसके बीच में पेरिकार्डियल द्रव भरा रहता है, को पेरिकार्डियम कहते हैं।
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