इतिहास History:- 2009
प्रशन:- 1.आयगार व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ? उत्तर :- विजयनगर राज्य में प्रचलित स्थानीय प्रशासन में परिवर्तन कर आयागार व्यवस्था आरंभ की। प्रत्येक ग्राम को स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में गठित कर प्रशासन 12 व्यक्तियों के समूह को दिया गया। यह समूह आयगार कहलाता था। ये व्यक्ति राजकीय अधिकारी थे इनका पद आनुवंशिक था। वेतन के रूप में लगान और कर मुक्त भूमि दी जाती थी । आयगार ग्राम प्रशासन की देखभाल करते एवं शांति व्यवस्था बनाए रखते थे।
अथवा
प्रशन:- जा के सिर मोर मुकुट मेरो पति न सोई ॥"
उत्तर :- मेड़ता के शासक रत्न सिंह राठौर की पुत्री मीरा का जन्म 1398 ई० में हुआ था । इनका विवाह राणासांगा के पुत्र के साथ हुआ था । मीरा कृष्ण भक्ति में लीन रहती थीं। उन्होंने कृष्ण भक्ति के कई अनमोल पदों का सृजन किया जैसे कि"मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो जा के सिर मोर मुकुट मेरो पति न सोई ॥"
प्रशन:- 2.अकबर को 'राष्ट्रीय शासक' क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :- कुलक्ष्णी मान मीरा को मारने के प्रयास भी हुए परंतु भक्ति में डुबी मीरा कृष्ण प्रेम से तनिक भी डगमग नहीं हुई ।
अकबर इतिहास में महान् की उपाधि से विभूषित हैं और इसकी महानता का मुख्य कारण है- इसका विराट् व्यक्तित्व । साम्राज्य की सुदृढ़ता, साम्राज्य में शांति स्थापना तथा मानवीय भावनाओं से उत्प्रेरित अकबर ने न सिर्फ गैर मुसलमानों को राहत दिया, राजपूतों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया बल्कि एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रदान किया । धार्मिक सामंजस्य के प्रतीक के रूप में उसका दीन-ए-इलाही प्रशंसनीय है ।
प्रशन:- 3.ब्रिटिश चित्रकारों ने 1857 के विद्रोह को किस रूप में देखा ?
उत्तर :- ब्रिटिश पत्र-पत्रिकाओं, गया - हिन्दुस्तानी सिपाहियों की अखबारों, कार्टूनों में 1857 के विद्रोह के दो बिन्दुओं पर बल दिया बर्बरता और ब्रिटिश सत्ता की अजेयता का प्रदर्शन । टॉमस जोन्स वार्कर के 1859 के रिलीफ ऑफ लखनऊ इन मेमोरियम, न्याय जैसे चित्रों के माध्यम से ब्रिटिश प्रतिशोध की भावना और उनकी अजेयता के भाव ही प्रदर्शित होते हैं ।
प्रशन:- 4.भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या हैं ?
उत्तर :- भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमें यह बताती है कि वास्तव में संविधान का क्या उद्देश्य है । यह घोषणा करता है कि संविधान का स्रोत भारत की जनता है । यह सिद्धांतों तथा आदर्शों पर बल देता है:
(क) न्याय - सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ।
(ख) स्वतंत्रता - विचार, अभिव्यक्ति विश्वास तथा पूजा-अर्चना की (ग) समानता-प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता
(घ) भ्रातृत्व-व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करना तथा आपसी बन्धुत्व बढ़ाना ।
अथवा,
प्रशन:- भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू
उत्तर :- भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हो गया था परन्तु उसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इसका एक कारण था कि पं० जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस के दिसम्बर 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग का प्रस्ताव पास कराया था और 26 जनवरी 1930 का दिन 'प्रथम स्वतंत्रता दिवस' के रूप में आजादी से पूर्व ही मनाया गया । इसके बाद कांग्रेस ने हर वर्ष 26 जनवरी का दिन इसी रूप में मनाया था। इसी पवित्र दिवस की याद ताजा रखने के लिए संविधान सभा ने 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू करने का निर्णय किया था ।
प्रशन:-
5. इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :- अभिलेखों से तात्पर्य है पाषाण, धातु या मिट्टी के बर्तनों आदि पर खुदे हुये लेखाभिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों द्वारा उसके धम्म प्रचार-प्रसार के उपाय, प्रशासन, मानवीय पहलूओं आदि के विषय में सहज जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इतिहास लेखन में अभिलेख की महत्ता इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि मात्र अभिलेखों के ही आधार पर भण्डारकर महोदय ने अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयत्न किया है।
प्रशन:- 6.हड़प्पा सभ्यता के विस्तार की विवेचना करें ।
उत्तर :- हड़प्पा सभ्यता प्राचीन सभी सभ्यताओं में विशालतम थी। यह उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी तक तथा पश्चिम में बलूचिस्तान मकरान तट से लेकर पूर्व में अलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक फैली हुई थी। कुल मिलाकर यह सभ्यता पूर्व से पश्चिम तक 1600 कि०मी० तथा उत्तर से दक्षिण लगभग 1200 कि०मी० तक विस्तृत थी ।
अथवा,
प्रशन:- हड़प्पावासियों द्वारा व्यवहृत सिंचाई के साधनों का उल्लेख करें ।
उत्तर :- हड़प्पा वासियों द्वारा मुख्यतः नहरें, कुएँ और जल संग्रह करने वाले स्थानों को सिंचाई के रूप में प्रयोग में लाया जाता था ।
(क) अफगानिस्तान में सौतुगई नामक स्थल से हड़प्पाई नहरों के चिह्न प्राप्त हुए हैं।
(ख) हड़प्पा के लोगों द्वारा सिंचाई के लिए कुओं का भी इस्तेमाल किया जाता था ।
(ग) गुजरात के धोलावीरा नामक स्थान से तालाब मिला है। इसे कृषि की सिंचाई के लिए, देने के लिए तथा जल संग्रह के लिए प्रयोग किया जाता था ।
प्रशन:- 7. मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का संक्षिप्त विवरण दें । .
उत्तर :- मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी हेतु हमारे पास साहित्यिक एवं पुरातात्विक दोनों स्रोत हैं। साहित्यिक स्रोतों में कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मेगास्थनीज की इण्डिका विशाखदत्त की मुद्राराक्षस महत्त्वपूर्ण है तो पुरातात्विक स्रोतों में अशोक के शिलालेख, स्तम्भलेख, कुम्हरार के अवशेष महत्त्वपूर्ण एवं विश्वसनीय जानकारी प्रदान करते हैं ।
अथवा,
प्रशन:- गाँधार कला की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर :- महायान बौद्ध धर्म के उदय के साथ गांधार कला का भी उदय हुआ। इनका विकास गांधार क्षेत्र ( अविभाजित भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र) में हुआ इसलिए इसे गांधार कला कहा गया। इस पर यूनानी कला शैली का प्रभाव है। इस कला में पहली बार बुद्ध और बोधिसत्व की मानवाकार मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनीं। मूर्तियों में बालों के अलंकरण पर विशेष ध्यान दिया गया। ये मूर्तियाँ सजीव प्रतीत होती हैं ।
प्रशन:- 8. विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए । ?
उत्तर :- विजयनगर स्थापत्य शैली में चोल, चालुक्य, पल्लव तथा होयसल शैली का शिक्षण मिलता है । विट्ठलस्वामी मंदिर वीरूपाक्ष मंदिर इस शैली के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। इनमें ग्रेनाइट पत्थरों साथ-साथ शिल्पकला में सेलखड़ी पत्थरों का उपयोग किया गया है । स्तम्भों को जानवरों तथा पौराणिक हिन्दू कथाओं से सजाया गया है । मण्डप चबूतरे पर बने हैं तथा मंदिरों में भव्य गोपुरम् (प्रवेश द्वार) भी है ।
प्रशन:- 9.भारत में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना के क्या कारण थे ?
उत्तर :- यूरोपीय देशों ने निम्नलिखित कारणों से भारत में उपनिवेशों की स्थापना की
(i) कच्चे माल की प्राप्ति ।
(ii) निर्मित माल की खपत ।
(iii) इसाई धर्म का प्रचार ।
(iv) समृद्धि की लालसा ।
कुल मिलाकर यूरोपियन अपने उद्योगों के लिये आवश्यक कच्चे माल एवं इन कच्चे मालों से तैयार सामानों के बाजार की तालाश में ही भारत की ओर आये और इसके माध्यम से उनका उद्देश्य था - अपनी समृद्धि ।
अथवा,
प्रशन:- 'पाँचवीं रिपोर्ट' पर टिप्पणी लिखें ।
उत्तर :- भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन और गतिविधियों से संबद्ध यह पांचवीं रिपोर्ट थी जिसे 1813 में ब्रिटिश संसद में पेश किया गया । इसे एक प्रवर समिति ने तैयार किया था । इनमें मुख्यतः जमींदारों, रैयतों की अर्जियां, कलक्टर की रिपोर्ट बंगाल - मद्रास के राजस्व और न्यायिक और न्यायिक अधिकारियों पर टिप्पणियाँ थीं। रिपोर्ट पर ब्रिटिश संसद में लम्बी बहस हुई। पाँचवीं रिपोर्ट भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रिया-कलापों के सम्बन्ध में तैयार की गई थी । यह रिपोर्ट 1,002 पृष्ठों में उल्लिखित थी । इस रिपोर्ट में जमींदारों और रैयतों की अर्जियाँ, विभिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व न्यायिक, सांख्यिकीय तालिकाएँ आदि पर टिप्पणियाँ शामिल की गई । ब्रिटेन के कुछ ऐसे समूह भी थे जो भारत और चीन के साथ व्यापार पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एकाधिकार का विरोध करते थे । कम्पनी के कुशासन और अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचना पर ब्रिटेन में बहस छिड़ना स्वाभाविक था । ब्रिटेन के समाचार-पत्र कम्पनी की भ्रष्ट नीतियों का खुलासा कर रहे थे । इस प्रकार कम्पनी को बाध्य किया गया कि वह भारत के प्रशासन से सम्बन्धित रिपोर्ट नियमित रूप से भेजे । वही पाँचवीं रिपोर्ट एक ऐसी रिपोर्ट है जो प्रवर समिति द्वारा तैयार रिपोर्ट है ।
प्रशन:- 10.स्थायी बंदोबस्त से कंपनी को क्या लाभ हुए ?
उत्तर :- 1793 ई० में लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा बिहार, बंगाल, उड़ीसा में भूराजस्व की स्थायी बन्दोबस्त
व्यवस्था लागू की गई। इसमें जमींदारों को भूमि का साथी मानते हुए उन्हें नियत तिथि पर निश्चित राजस्व सरकार के पास जमा करना पड़ता था । राजस्व दर सरकार बढ़ा नहीं सकती थी । कम्पनी को आशा थी कि इससे उसकी आय निश्चित हो जायेगी और बार-बार बंदोबस्ती की व्यवस्था से भी उसे छुटकारा मिल जायेगा । परन्तु कर की मात्रा अधिक होने तथा जमींदारों द्वारा कृषि सम्बन्धी के परिणाम सुखद नहीं रहे ।
अथवा,
प्रशन:- संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया ?
उत्तर :- 1855-56 ई० में संथाल परगना में संथालों ने सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार, जमींदारों तथा महाजनों खिलाफ विद्रोह कर दिया। इन्होंने अपनी जमीन वापस करने तथा स्वतंत्र जीवन जीने की माँग रखी । यद्यपि विद्रोह दबा दिया गया परंतु सरकार ने इस क्षेत्र में विशेष भूमि कानूनों का निर्माण कर इन्हें तुष्ट करने का प्रयास किया गया ।
खण्ड- स ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
प्रशन:- 1.बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है ?
उत्तर :- बर्नियर के अनुसार मुगल काल में अनेक बड़े और समृद्ध नगर थे । आबादी का 15 प्रतिशत भाग नगरों में रहता था । यूरोपीय शहरों की तुलना में मुगलकालीन नगरों की आबादी अधिक घनी थी । दिल्ली और आगरा नगर राजधानी नगर के रूप में विख्यात थे। नगरों में भव्य राजसी इमारतें, अमीरों के मकान और बड़े बाजार थे। नगर दस्तकारी शिला उत्पादों के केन्द्र थे। नगर में राजकीय कारखाना थे जहाँ विभिन्न प्रकार के सामान बनाए जाते थे। नगर में कलाकार, चिकित्सक, अध्यापक, वकील, वास्तुकार, संगीतकार, सुलेखक रहते थे । जिन्हें राजकीय और अमीरों का संरक्षण प्राप्त था । नगरों का एक प्रभावशाली वर्ग व्यापारी वर्ग था। पश्चिमी भारत में बड़े व्यापारी महाजन कहलाते थे । इनका प्रधान सेठ कहलाता था। बर्नियर नगरों की उत्पादन एवं व्यापार में भूमिका को स्वीकार करते हुए भी इनके वास्तविक स्वरूप को स्वीकार नहीं करता है । वह मुगलकालीन नगरों को 'शिविर नगर' कहता है जो सत्य से परे है ।
अथवा,
प्रशन:- अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिए ।
उत्तर :- 1573 ई० में भारत में मुगल सम्राट् अकबर ने मंगोलों से प्रेरणा लेकर दशमलव पद्धति के आधार पर मनसबदारी प्रथा को चलाया । प्रत्येक मनसबदार को दो पद 'जात' और 'सवार' दिये जाते थे। एक मनसबदार के पास जितने सैनिक रखने होते थे, वह 'जात' का सूचक था । 'सवार' से तात्पर्य मनसबदारों को रखने वाले घुड़सवारों की संख्या से था। जहाँगीर ने खुर्रम (शाहजहाँ) को 10000 और 5000 का मनसब दिया । अर्थात् शाहजहाँ के पास 10000 सैनिक तथा पाँच हजार घुड़सवार थे। सबसे छोटा मनसब 1 का और बड़ा 60000 तक का था । बड़े मनसब राजकुमारों तथा राजपरिवार के सदस्यों को ही दिये जाते थे । जहाँगीर के काल में मनसबदारी व्यवस्था में दु-अश्वा ( सवार पद के दुगने घोड़े), सि-आस्वा (सवार पद के तिगने घोड़े) प्रणाली लागू हुई । हिन्दू, मुस्लिम दोनों मनसबदार हो सकते थे और इनकी नियुक्ति, पदोन्नति, पदच्युति सम्राट् द्वारा होती थी।
प्रशन:- 2.मानचित्र में 1857 के विद्रोह के निम्न केंद्रों को इंगित करें । (i) दिल्ली (ii) लखनऊ (iii) आरा (iv) कानपुर (v) झांसी
उत्तर :-
(i) दिल्ली - यमुना तट पर स्थित दिल्ली एक ऐतिहासिक नगरी थी । 1857 में यह विद्रोह का केन्द्र बनी । मुगल सम्राट् बहादुरशाह जफर को विद्रोहियों ने अपना नेता बनाया । कुतुबमिनार, लालकिला यहाँ के प्रमुख स्थल हैं ।
(ii) लखनऊ- वर्तमान में उत्तरप्रदेश राज्य की राजधानी है। 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध बेगम हजरतमहल के नेतृत्व में यहाँ विद्रोह हुआ ।
(iii) आरा - बिहार की राजधानी पटना के समीप बसा एक नगर है । 1857 में यह स्थान जगदीशपुर के वीर कुँअर सिंह के अंग्रेजों के विरुद्ध हुए आन्दोलन के लिये प्रसिद्ध । (iv) कानपुर - उत्तरप्रदेश का यह स्थान चमड़ा, कपड़ा उद्योग के लिये प्रसिद्ध है । 1857 के विद्रोह में यहाँ नाना साहेब नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष हुआ था ।
(v) झांसी- उत्तरप्रदेश का यह स्थान 1857 के आंदोलन का एक प्रमुख केन्द्र था । रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी गई । से की जा सकती है
प्रशन:- 4.हड़प्पा सभ्यता के पतन के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर :- हड़प्पा सभ्यता के पतन मुख्य कारणों की चर्चा
(i) बाढ़ - इस मत के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर नदियों के ही किनारे थे । अतः बाढ़ द्वारा इनका पतन हुआ होगा । खुदाई में मिली बालू की मोटी परतें इस मत की पुष्टि करती है ।
(ii) अग्निकांड - खुदाई में जली हुई मोटे स्तरों की प्राप्ति से कुछ विद्वान अग्निकांड से इस
(iii)वेदों में दस्यओं, दुर्गों के विनाश सकता ।
(iv) लगातार गेंहूँ उत्पादन से भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी से भी इस सभ्यता के पतन के विचार को बल मिलता है । इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन, नदियों द्वारा मार्ग बदलने, जलप्लावन के सिद्धान्त भी इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं ।
अथवा
प्रशन:- राजतंत्र और वर्ण में संबंध स्थापित करें ।
उत्तर :- प्राचीन भारत में सैद्धान्तिक रूप से राजतंत्र और वर्ण में गहरा संबंध था । अर्थशास्त्र और धर्मसूत्रों में इस बात पर बल दिया गया है कि राजा को क्षत्रिय वर्ण का होना चाहिए । शास्त्रों में वर्णित यह व्यवस्था सदैव कारगर नहीं होती थी । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ गैर-क्षत्रियों को राज्य करते हुए दिखलाया गया है। उदाहरण के लिए नंदवंशी शूद्र थे, मौर्यों को शूद्र, क्षत्रिय अथवा निम्नकुलोत्पन्न माना गया है । शुंग सातवाहन, ब्राह्मण थे । भारत आने वाले मध्य एशियाई राजाओं को यवन या मलेच्छ माना गया है । अनेक विद्वान गुप्त शासकों को वैश्य मानते हैं । इस प्रकार सैद्धान्तिक रूप से क्षत्रिय को ही आदर्श राजा के रूप में मान्यता थी । परन्तु व्यावहारिक रूप से किसी भी वर्ग का व्यक्ति शक्ति संसाधन सम्पन्न होकर राजा बन जा सकता था । V 5. स्वतंत्र भारत के लिए संविधान निर्माण का कार्य जब संविधान सभा ने शुरू किया तो भाषा की समस्या एक विवादास्पद समस्या के रूप में उभरी । स्वाधीनता के पश्चात् भारतवर्ष की राजभाषा और राष्ट्रभाषा क्या होगी, इसपर सदस्य गण एकमत नहीं थे । एक ओर महात्मा गाँधी के कुछ अनुयायी थे जो हिन्दी और उर्दू मिश्रित भाषा हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे, तो दूसरी ओर अभिजात्य वर्ग के लोग अंग्रेजी को ही राजभाषा के रूप में कायम रखना चाहते थे । तीसरा वर्ग उन लोगों का था जो देश की अधिकांश जनता की भावनाओं की कद्र करते हुए देवनागरी में लिखित संस्कृत निष्ठ हिन्दी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन देखना चाहते थे । हिन्दी के मुद्दे को बड़े ही आक्रामक ढंग से संविधान सभा में एक काँग्रेसी सदस्य आर०वी० धुलेकर ने पेश किया । उन्होंने कहा कि जो हिन्दी नहीं जानते हैं उन्हें संविधान सभा का सदस्य बने रहने का कोई हक नहीं है । लेकिन हिन्दी के मार्ग की एक और बाधा थी । दक्षिण भारत के लोगों को लगता था कि स्वतंत्र भारत में हिन्दी के राष्ट्रभाषा बन जाने के बाद उनकी अपनी भाषाओं जैसे-तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम आदि भाषाओं का विकास खतरे में पड़ जायेगा । भारत में कई भाषाओं को बोलने वाले लोग हैं और भाषाएँ अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृतियों का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इन भाषाओं के समर्थकों में हिन्दी के वर्चस्व का भय था ।
- इस परिस्थिति में संविधान सभा की भाषा समिति ने एक ऐसा फार्मूला प्रस्तुत किया जो सभी पक्षों को स्वीकार्य हो । इसके अनुसार नागरी लिपि में हिन्दी देश की राजभाषा स्वीकार की गयी । किन्तु लिपि में हिन्दी की आगामी 15 वर्षों तक अंग्रेजी ही राजभाषा बनी रहेगी और हिन्दी धीरे-धीरे इसका स्थान लेगी। हर प्रान्त की अपनी एक क्षेत्रीय भाषा को अपने प्रान्त की राजभाषा घोषित करने का अधिकार होगा । हिन्दी के लिए देश की राष्ट्रभाषा के स्थान पर देश की राजभाषा शब्द का प्रयोग किया गया ।
अथवा
प्रशन:- आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ० बी० आर० अम्बेदकर की देनों का मूल्यांकन कीजिए ।
उत्तर :- आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ० बी० आर० अम्बेडकर का योगदान काफी महत्वपूर्ण है । बचपन से ही तीव्र बुद्धि एवं भविष्य के भारत के स्वर्णिम स्वप्न सजाने वाले अम्बेडकर ने समाज की व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लगातार प्रयास किया, फलतः 1930 ई० तक डॉ० अम्बेडकर की प्रसिद्धि राष्ट्रीय स्तर तक फैल गई और वह अछूतों, कमजोर और दलितों के नेता बन गए । (अ) उन्होंने प्रथम गोलमेज कॉन्फ्रेंस में दलितों की दशा का सही चित्रण किया। उन्होंने उनके अलग मताधिकार की माँग भी की।
(ब) 1932 ई० में ब्रिटिश प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने 16 अगस्त 1932 को जब साम्प्रदायिक घोषणा की जिसके अनुसार दलितों को हिन्दुओं से अलग मानकर उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने को कहा गया और दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान किया गया । गांधीजी ने इस साम्प्रदायिक घोषणा का विरोध आमरण अनशन करके किया । तो अम्बेडकर साहब ने गाँधी जैसे लोकप्रिय नेता के जीवन को खतरे में पड़ते देख पूना समझौता किया । इस समझौता के फलस्वरूप गाँधीजी को अपना अनशन समाप्त करना पड़ा तथा दलितों के हितों में कई प्रस्ताव स्वीकार करने पड़े ।
(स) डॉ० अम्बेडकर ने जुलाई 1924 में 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा' मुम्बई में बनाई, जिसका उद्देश्य अस्पृश्यों का सामाजिक और आर्थिक उत्थान करना था। उन्होंने अछूतों के लिए मंदिरों में प्रवेश और कुओं से पानी भरने की व्यवस्था करवाई ।
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