राजनीतिक विज्ञान लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वयस्क मताधिकार क्या है?
या
सार्वभौमिक मताधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : वयस्क या सार्वभौमिक मताधिकार वयस्क मताधिकार से तात्पर्य है कि मतदान का अधिकर एक निश्चित आयु के नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होना चाहिए। वयस्क मताधिकार की आयु का निर्धारण प्रत्येक देश में वहाँ के नागरिक के वयस्क होने की आयु पर निर्भर करता है। भारत में वयस्क होने की आयु 18 वर्ष है। अतः भारत में मताधिकार की आयु भी 18 वर्ष है। वयस्क मताधिकार से तात्पर्य है कि दिवालिए, पागल व अन्य किसी प्रकार की अयोग्यता वाले नागरिकों को छोड़कर अन्य सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। मताधिकार में सम्पत्ति, लिंग अथवा शिक्षा जैसा कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। मॉण्टेस्क्यू, रूसो, टॉमस पेन इत्यादि विचारक वयस्क मताधिकार के समर्थक हैं। वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में वयस्क मताधिकार की व्यवस्था है।
प्रश्न 2. महिला.(स्त्री) मताधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : स्त्री-मताधिकार स्त्रियों के लिए मताधिकार प्राप्त करने की माँग प्रजातन्त्र के विकास तथा विस्तार के साथ ही प्रारम्भ हुई। यदि मताधिकार प्रत्येक व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है, तो स्त्रियों को भी यह अधिकार प्राप्त होना चाहिए। 19वीं शताब्दी में बेन्थम, डेविड हेयर, सिजविक, ऐस्मीन तथा जे०एस० मिल ने स्त्री मताधिकार का समर्थन किया। इंग्लैण्ड में 1918 ई० में सार्वभौमिक मताधिकार अधिनियम पारित करके 30 वर्ष की आयु वाली स्त्रियों को मताधिकार प्रदान किया गया। 10 वर्ष बाद यह आयु-सीमा घटाकर 21 वर्ष कर दी गई। सन् 1920 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पुरुषों के समान स्त्रियों को भी समान अधिकार प्रदान किया गया। भारतीय संविधान में प्रारम्भ से ही स्त्रियों को पुरुषों के समान मताधिकार दिया गया है।
प्रश्न 3. मताधिकार का महत्त्व बताते हुए दो तर्क दीजिए।
उत्तर : मताधिकार का महत्त्व बताते हुए दो तर्क निम्नवत् हैं –
1. नितान्त औचित्यपूर्ण – राज्य के कानूनों और कार्यों का प्रभाव समाज के केवल कुछ ही व्यक्तियों पर नहीं, वरन् सब व्यक्तियों पर पड़ता है; अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपना मत देने और शासन की नीति का निश्चय करने का अधिकार होना चाहिए। जॉन स्टुअर्ट मिल ने इसी आधार पर वयस्क मताधिकार को नितान्त औचित्यपूर्ण बताया है।
2. लोकसत्ता की वास्तविक अभिव्यक्ति – लोकसत्ता बीसवीं सदी का सबसे महत्त्वपूर्ण विचार है और आधुनिक प्रजातन्त्रवादियों का कथन है कि अन्तिम सत्ता जनता में ही निहित है। डॉ० गार्नर के शब्दों में, “ऐसी सत्ता की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति सार्वजनिक मताधिकार में ही हो सकती है।”
प्रश्न 4. चुनाव से आप क्या समझते हैं? चुनाव की आवश्यकताएँ क्या हैं?
उत्तर :ज़नसामान्य द्वारा निश्चित अवधि पर अपने प्रतिनिधियों को चुनने की प्रक्रिया को चुनाव कहते हैं। एक लोकतान्त्रिक देश में कोई भी निर्णय लेने में सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते। अतः लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। इसलिए चुनाव की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 5. भारत में चुनाव लड़ने की क्या योग्यताएँ हैं।
उत्तर :भारत में विभिन्न प्रतिनिधि सभाओं के चुनाव लड़ने के लिए भी योग्यताएँ निश्चित हैं जो निम्नलिखित हैं –
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। राज्यसभा तथा राज्य विधानपरिषद् के लिए यह आयु 30 वर्ष निश्चित है जबकि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए 35 वर्ष है।
3. वह पागल तथा दिवालिया न हो।
4. वह किसी न्यायालय द्वारा किसी गम्भीर अपराध के कारण चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित न किया गया हो।
5. वह संसद द्वारा निर्धारित अन्य योग्यताएँ रखता हो।
प्रश्न 6.भारत में निर्वाचन कराने के लिए सर्वोच्च अधिकार किसके पास हैं? स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचन लोकतन्त्र के लिए क्यों आवश्यक है? इसे सुनिश्चित करने के किन्हीं तीन उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :भारत में निर्वाचन कराने सम्बन्धी सर्वोच्च अधिकार निर्वाचन आयोग के पास है। इस आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो आयुक्त होते हैं। आयोग के कार्यों में सहायता देने के लिए राष्ट्रपति प्रादेशिक आयुक्तों को नियुक्त करता है। देश में निष्पक्ष निर्वाचन कराना निर्वाचन आयोग का दायित्व है।
स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचन ही लोकतन्त्र को सुरक्षित रख सकते हैं। इसके अभाव में लोकतन्त्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। लेकिन देश की वर्तमान परिस्थितियों में स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचन कराना निर्वाचन आयोग के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है।स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचन कराने के लिए निम्नलिखित तीन उपाय प्रभावकारी हो सकते हैं –
1. मतदाताओं के लिए परिचय-पत्र रखना अनिवार्य कर दिया जाए जिससे गलत मतदान पर रोक लग सके।
2. निर्वाचन को आपराधिक तत्त्वों के प्रभाव से बिल्कुल पृथक् रखा जाए, जिससे चुनाव प्रक्रिया शान्तिपूर्वक और बिना किसी पक्षपात के सम्पन्न हो सके।
3. निर्वाचन आयोग द्वारा प्रत्येक निर्वाचन में पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जाती है जो चुनाव से सम्बन्धित सभी प्रकार की जानकारियों की रिपोर्ट निर्वाचन आयोग को देते हैं।
प्रश्न 7.राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न आवंटित किए जाने का क्या महत्त्व है? इन चिह्नों का आवंटन कौन करता है?
उत्तर :किसी भी देश की जनता, पूर्णतया साक्षर न होने पर मतपत्र पर अंकित प्रत्याशियों के नाम नहीं पढ़ सकती है; अत: चुनाव चिह्नों के माध्यम से वही अपनी रुचि के प्रत्याशी को मतदान देती है। इसका भेद यहीं से स्पष्ट हो जाता है कि स्नातकीय निर्वाचन क्षेत्र (विधानपरिषद्) में मतदाता पढ़े-लिखे होते हैं; अत: वहाँ चुनाव चिह्नों की व्यवस्था नहीं होती। निर्वाचन के समय प्रत्येक मतदाता के लिए एक चुनाव चिह्न की आवश्यकता होती है। निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करता है। चुनाव चिह्न से राजनीतिक दल की पहचान होती है तथा मतदाता चुनाव चिह्न के आधार पर ही उस राजनीतिक दल के उम्मीदवार को अपना मत प्रदान करते हैं। राजनीतिक दल इस प्रकार के चुनाव चिह्नों को लेना पसन्द करते हैं, जो मतदाताओं को मनोवैज्ञानिक तथा मानसिक रूप से प्रभावित कर सकें। चुनाव चिह्नों को आवंटित करने अथवा उनके बारे में विवादों को निपटाने की शक्ति निर्वाचन आयोग, को प्राप्त है। निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान चुनाव चिह्न इतने प्रचलित हो जाते हैं कि मतदाता इनको देखकर ही सम्बन्धित दल अथवा उससे सम्बन्धित प्रत्याशियों को पहचान लेते हैं।
प्रश्न 8.निष्पक्ष निर्वाचन कराने के लिए संविधान में उल्लिखित किन्हीं दो प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :निष्पक्ष निर्वाचन कराने के लिए संविधान में निम्नलिखित दो प्रावधान किए गए हैं –
1. स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था – संविधान द्वारा सम्पूर्ण भारतवर्ष में निष्पक्ष निर्वाचन कराने के लिए निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई है। निर्वाचन आयोग के सदस्यों को स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष रूप से कार्य कराने के लिए इनकी सेवा-शर्तों को निश्चित किया गया है तथा उनको उपदस्थ करने के लिए एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया को अपनाना आवश्यक बनाया गया है।
2. निर्वाचन बूथों पर पर्याप्त सुरक्षा-व्यवस्था – मतदाता स्वतन्त्र रूप से अपने मत का प्रयोग कर सकें, इसके लिए निर्वाचन बूथों पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। इस दृष्टि से पुलिस की समुचित व्यवस्था की जाती है। मतदान के समय मतदाताओं की अंगुलियों पर निशान बनाया जाता है। शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव प्रारम्भ होने से पूर्व ही धारा 144 लगा दी जाती है। असामाजिक अथवा अपराधी प्रकृति के व्यक्तियों पर प्रशासन कड़ी नजर रखता है।
प्रश्न 9.देश में चुनावों में सीटों का आरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर :भारतीय समाज दीर्घकाल से सामाजिक व आर्थिक असमानताओं और विषमताओं का शिकार है। समाज के कई वर्ग-विशेष रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोग और महिलाएँ सामाजिक, आर्थिक वराजनीतिक रूप से उपेक्षित रहे हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् संविधान के बनाने वालों ने इन वर्गों के राजनीतिक विकास के उद्देश्य से अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए संसद व राज्यों की विधानसभाओं में निश्चित सीटों का आरक्षण किया ताकि राजनीतिक संस्थाओं और निर्णय प्रणाली में इनकी भागीदारी को निश्चित किया जा सके अन्यथा यह कठिन कार्य था। सभी वर्गों को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने के लिए पिछड़े वर्गों व महिलाओं के लिए आरक्षण आवश्यक है।
प्रश्न 10.चुनाव के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार किसे है?
उत्तर :संविधान के अनुसार निर्वाचन सम्बन्धी कानून बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त है। संसद विधानमण्डलों के निर्वाचन के लिए मतदाताओं की सूचियाँ तैयार करने, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन तथा अन्य समस्त समस्याओं से सम्बन्धित कानून बना सकती है। इस अधिकार के अन्तर्गत निर्वाचन की व्याख्या के लिए संसद ने दो मुख्य अधिनियम बनाए हैं –
(1) जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950
(2) जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951। प्रथम अधिनियम द्वारा निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन करने की विधि, संसद के विभिन्न राज्यों के स्थानों की संख्या तथा प्रत्येक राज्य के विधानमण्डल में सदस्यों की संख्या निश्चित की गई है। दूसरे अधिनियम द्वारा निर्वाचनों का संचालन तथा प्रबन्ध करने की प्रशासनिक व्यवस्था, मतदान, उप-निर्वाचन आदि विषयों का समुचित प्रबन्ध किया गया है। इन अधिनियमों में समय-समय पर परिवर्तन किए जा चुके हैं।
प्रश्न 11.चुनाव सुधार हेतु प्रमुख सुझाव क्या हैं?
उत्तर :चुनाव सुधार हेतु प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं –
1. देश की चुनाव व्यवस्था को सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली के स्थान पर किसी प्रकार की समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को लागू करना चाहिए। इससे राजनीतिक दलों को उसी अनुपात में सीटें मिलेंगी जिस अनुपात में उन्हें वोट मिलेंगे।
2. संसद और विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटों पर महिलाओं को चुनने के लिए विशेष प्रावधान बनाए जाएँ।
3. चुनावी राजनीति में धन में प्रभाव को नियन्त्रित करने के लिए और अधिक कठोर प्रावधान होने चाहिए।
4. जिस उम्मीदवार के विरुद्ध फौजदारी का मुकदमा हो उसे चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए, भले ही उसने इसके विरुद्ध न्यायालय में अपील कर रखी हो।
5. चुनाव प्रचार में जाति और धर्म के आधार पर की जाने वाली किसी भी अपील को पूरी तरह से प्रतिबन्धित कर देना चाहिए।
6. राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली को नियन्त्रित करने के लिए तथा उनकी कार्यविधि को और अधिक पारदर्शी तथा लोकतान्त्रिक बनाने के लिए एक कानून होना चाहिए।
प्रश्न 12.निर्वाचन आयोग के संगठन का वर्णन कीजिए।
या
“निर्वाचन आयोग एक स्वतन्त्र संवैधानिक निकाय है।” इस कथन को समझाइए।
उत्तर :संविधान-निर्माताओं ने संविधान की धारा (अनु०) 324(2) के अन्तर्गत प्रावधान किया है कि समय की माँग के अनुरूप निर्वाचन आयोग एक-सदस्यीय अथवा बहुसदस्यीय निकाय हो सकता है। भारत में केन्द्र तथा राज्यों के लिए एक ही निर्वाचन आयोग है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त कार्यकाल – संविधान के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी प्रथम अद्यतन हो, होता है।
पद की स्थिति – मुख्य निर्वाचन आयुक्त एक सांविधानिक पद है। यह पद उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा विशेष बहुमत से और साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ही हटाया जा सकता है।
अन्य आयुक्तों की स्थिति – अन्य आयुक्तों को राष्ट्रपति मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही हटा सकता है।
निर्वाचन की सेवा-शर्ते – निर्वाचन आयोग की सेवा की शर्ते और पदावधि वह होगी जो संसद विधि द्वारा मान्य होगी।
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