उत्तर- लेखकक विचारानुसार मैथिली हमरा लोकनिक मातृभाषा अछि। ई एकटा. जीवन्त भाषा अछि जे सतत वर्धिष्णु अछि। मातृभाषा मैथिली मे शिक्षा प्रदान करब सरकारक पुनीत कर्त्तव्य अछि। त्रिभाषा सिद्धान्त मे सेहो कहलं गेल जे प्रत्येक राज्य अपना-अपना मातृभाषा मे अपन-अपन खास सरकारी काज करौ। लेखकक विचार छनि जे निम्नवर्ग सँ किछु दूर ऊपर धरि. शिक्षाक़ माध्यम विद्यार्थी वर्गक मातृभाषा हो। एहि दृष्टिएँ मैथिल विद्यार्थी मातृभाषा मैथिलीक माध्यमे शिक्षा ग्रहण करथि, से लेखकक विचार छनि। त्रिभाषा सिद्धान्त सँ उत्तम कोनो समाधान नहि भए सकैछ।
2. त्रिभाषा सिद्धान्तक अर्थ स्पष्ट करू।
उत्तर-त्रिभाषा सिद्धान्तक अर्थ अछि मातृभाषा, राष्ट्रभाषा आ विश्व भाषाक अनिवार्यता एवं एहि तीनूक सामंजस्य वा क्षेत्र निर्णय। प्रत्येक राज्य अपना-अपना मातृभाषा में अपन-अपन खास सरकारी काज वा शिक्षाक विकास करौ। परञ्च समस्त राष्ट्रक काज वा भिन्न-भिन्न राज्यक पारस्परिक काज एक राष्ट्रभाषा हिन्दीक द्वारा हो। तदर्थ शिक्षा-पद्धति मे अंग्रेजीक स्थान हिन्दी के देल जाए। एकर अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय काजक हेतु अर्थात् संसारक भिन्न-भिन्न राष्ट्र सँ अबरजात वा संबंध -सरोकार रखबाक लेल अंग्रेजी वा आने कोनो व्यापक भाषा नवीन वा प्राचीन सेहो विद्यार्थी के अपना-अपना रुचि तथा आवश्यकताक अनुसार पढ़बाक सुविधा हो। त्रिभाषा सिद्धान्त इहो स्पष्ट कएने अछि जे निम्नवर्ग सँ किछु दूर ऊपर धरि शिक्षाक माध्यम विद्यार्थी वर्गक मातृभाषा हो यदि एहि मे किछु साहित्य पौल जाए आ साहित्यसर्जनाक शक्तियो वर्तमान रहैक।
3. पर्यावरणसँ की बुझैत छी, लिखू।
उत्तर- मनुष्य होहवा पशु, गाछ-वृक्ष होवा घास पात, सभ मे जीवन होइत छैक, जीवनी शक्ति होइत छैक। एहि जीवनी शक्तिक सुरक्षा हेतु एक प्रकारक वातावरणक आवश्यकता होइत छैक ओकरे पर्यावरण कहल जाइत छैक। वसात, पानि, वनस्पति धरा आदि प्रकृतिक ई सभ वस्तु प्रत्येक जीव लेल जरूरी अछि। ई सभ पर्यावरणक . अंग थिक। एहि सभक स्वच्छता प्रत्येक प्राणीक अस्तित्व रक्षाक अनिवार्य आधार थिक। पर्यावरणक कारण लोक स्वास्थ्य खराब भए रहल अछि तँ प्रत्येक मानवक हेतु पर्यावरणक रक्षा करब पुनीत कर्त्तव्य भए गेल अछि।
4. फूलक चरित्र-चित्रण संक्षेपमे करू।
उत्तर- फूल चन्द्रमुखीक पुत्र छल। ओकर पिताक मृत्यु बाल्यकालहि मे भए गेल छलैक। ओकर माय ओकरा कोनो घरानी कए ओकील बनाए देलक। फूलो के अपन माय छोड़ि आओर केओ नहि छैक। तँ ओ चाहैत अछि जे अपन सभ सुखी मायके दय दैक। मुदा एहि बीच ओकरा पेशाब मे खुन आबय लगैत छैक। अनेक जाँच पड़तालक बादो ओ मरि जाइत अछि। एहि सँ बुझाइत अछि जे फूल सद्विचारी एवं मातृभक्त छल। अपन मायक कोनो कष्ट देखय नहि चाहैत छल। अपने आधो पेट खाकए माय के खुश राखय चाहैत छल।
5. भारत छोड़ो आंदोलनक वर्णन करू।
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्धक संग भारतीय स्वतंत्रता संग्रामक गति मे तीव्रता आबि गेल। 1942 ई० मे 'अंग्रेज, भारत छोड़' क नारा देल गेल। एहि मे अनेको निर्दोष जनता मारल गेल। अन्ततः अंग्रेज के भारत छोड़ए पड़लैक। 15 अगस्त, 1947 ई० के भारतवर्ष अंग्रेजक गुलामी सँ मुक्त भेल।
6. गरम दल आ नरम दलक की तात्पर्य अछि?
उत्तर—बंगाल विभाजनक बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मे दू विचारधाराक संघर्ष शुरू भेल। किछु लोक नरमपंथी छलाह तँ किछु गरमपंथी। गरमपंथी लोकनि व्यापक जनान्दोलनक पक्षधार छलाह। राजनीतिक स्वतंत्रताक प्राप्ति हुनक लक्ष्य छलनि आ एहि लेल बहिष्कार आंदोलन के ओ सभ असहयोग आंदोलन मे परिणत करए चाहैत छलाह। किन्तु, नरमपंथी एहि पक्ष मे नहि छलाह। अन्य अनेक बिन्दु पर सेहो मतभेद छल। यैह कारण छल जे 1907 मे सूरत अधिवेशन में कांग्रेसक विभाजन भय गेल। रामप्रसाद विस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, शिव वर्मा, जयदेव कपूर, भगत सिंह, सुखदेव, वटुकेश्वर दत्त, चन्द्रशेखर आजाद प्रभृत स्वतंत्रता सेनानी लोकनि क्रांतिकारी कार्यकलाप मे विश्वास रखैत छलाह। गाँधीजीक नेतृत्ववला कांग्रेस नरम दल कहाओल।
7. भरदुतियाक अवसर पर बहिनक उद्विग्नता।
उत्तर- भरदुतिया मे बहीन अपन घर आँगन नीपि, अँओ अरिपन दय भैया नोत लेबय लेल व्यग्र रहैत अछि। रस्ता-पेराकोनो साइकिलक घंटी सुनि सड़क दिशि ताकय लगैत अछि। भाउज सँ उपलम्भ सुनैत साँझ तक भाइक बार तकैत रहि जाइत अछि। भायक भोजनक लेल भटवर, तिलकोर आदि तरने रहैत अछि घूरि-घूरि सड़क दिश दौड़ल जाइत अछि। एहि प्रकार ओकर भरि दिन प्रतिक्षे मे बीत जाइत छैक।
8. भरदुतिया पावनि भाइ-बहिनक स्नेहक पावनि थिक स्पष्ट करू।
उत्तर- भरदुतिया पावनि मे बहिनक भाइक प्रति स्नेह आ भाइक बहिनक प्रति अपनापनक पावनि छी। भाइ बहिनक हेतु गाम सँ किछु ने किछु सनेश आनै छथि। बहिन दुभि धान, पान, मखान आ अक्षत् सँ हुनका नोति दीर्घायु होएबाक भगवान सँ प्रार्थना करैत छथि। दुनूक एक दोसरक अनन्य प्रेमक प्रतीक थिक भरदुतिया पर्व।
9. एड्सक बचावक उपाय बताउ।
उत्तर- एड्स सँ बचक लेल अनचिन्हार व्यक्तिक संग दैहिक सम्पर्क नहि रखबाक चाही। संबंध स्थापित करबा सँ पूर्व ई निश्चित कए ली जे उक्त व्याक्त एच० आइ० वी० सँ ग्रसित नहि हो। दोसर रक्त चढबाबए काल देखबाक चाही जे रक्त देनिहार व्यक्ति एच० आइ० वी० सँ पीडित नहि हो । तेसर दोसराक देल सिराच से सूइ नहि लेबाक चाही। तें सभ सँ उत्तम उपाय अछि जे चरित्रवान बनी।
10.बच्चाक महत्ता पर प्रकाश दि
उत्तर- उदयचन्द्र झा 'विनोद' बच्चा शीर्षक कविता मे बच्चा महत्व देखाओल गेल अछि। बच्चा बुढ़ापाक लेल सहायक होइछ। ओ जगतक हेतु आवश्यक होइत अछि। संघर्षशील जीवन नारा होइछ बच्चा। बच्चा जीवनक मिठास नहि कोतबालक हाथक गँडासो अछि। जीवनक ज्ञानक संबंध सरोकारक प्रेरणा होइत अछि बच्चा। लोकक जीवनक मानमर्यादाथिक बच्चा। एतवय नहि बच्चा के भगवान सेहो कहल जाइत छैक।
11. विद्यापति कोन-कोन तरहक गीत लिखलनि? लिखू।
उत्तर-विद्यापतिक मुख्य पद शृंगारिक अछि दोसर भक्ति परक सेहो अनेक पदक रचना कएलनि। भक्ति परक गीत मे नचारी, महेशवाणी, विष्णुक पद, दुर्गाक पद, कालीक पद आदि अनेक देवी देवताक गुणगाण कएलनि। एकर अतिरिक्त व्यवहार परक गीतक सेहो रचना कएलनि अछि। एहि मे सोहर, समदाओन;
बटगबनी; आदि गीतक रचना कएलनि।
12. विद्यापति कोना लोकप्रिय भेलाह?
उत्तर-विद्यापति लोकप्रियता हुनका द्वारा रचित गीत में निहित छल। ओ अपन गीत मे सामाजिक चेतना के जंगौलनि, परस्पर प्रेम के बढ़ौलनि। हुनक गीत जागरणक प्रतीक छल। भाषा आ संस्कृतिक प्रति आदरभाव रखबाक गुरु-मंत्र हुनक रचना सँ , भेटैत अछि। एहि तरहे विद्यापति लोकप्रिय भेलाह।
13. विद्यापतिक भक्ति गीतक वर्णन करू।
उत्तर- विद्यापतिक भक्ति गीत नचारी कहबैत अछि। शिव विषयक एहि प्रकारक गीत के शिवभक्त डमरू बजाए प्रायः नाचि-नाचि गबैत छथि। एहि मे भक्तक उद्धार एवं दीनताक चित्रण रहैत अछि। यथा-कखन हरब दु:ख मोर हे भोलानाथ, सिव हो उतरब पार कओन विधि आदि।
14. विद्यापतिक रचना सँ परिचित कराउ।
उत्तर- विद्यापति तीन भाषा मे रचना कएल–संस्कृत, अवहट्ठ आ मैथिली। संस्कृत मे हुनक प्रमुख कति निम्नवत् अछि–पुरुषपरीक्षा, विभागसार, लिखनावली आदि। अवहट्ठ मे लिखल हुनक दू गोट चम्पू काव्य अछि-कीर्तिलता आ कीर्तिपताका। मैथिली मे विद्यापति विशाल गीराशिक रचना कएल। हुनक लिखल गीत शृंगारिक, भक्ति आ व्यवहार विषयक छनि।
15. नदी आ पोखरिक महत्त्वक वर्णन करू।
उत्तर- पर्यावरणक दोसर महत्त्वपूर्ण अंग थिक जल। जलक मुख्य स्रोत अछि—नदी आ पोखरि। प्रारंभ मे पोखरि आ नदीक पानि शुद्ध ओ स्वच्छ रहैत छल। ते पोखरि आ नदी में स्नान करब पवित्र काज मानल जाइत छल। जलक महत्त्व के ध्यान मे राखि कए हमरा लोकनिक पुरखा पोखरि एवं इनार खुनबैत छलाह। पोखरि-इनार खुनाएब प्रतिष्ठाक कार्य बूझल जाइत छल। मिथिला मे कतेक राजा तेहन-तेहन पोखरि खुनौने छथि, जाहि कारणे हुनका सभक नाम आइ धरि लोक लैत अछि। मिथिलांचल नदी-मातृक देश अछि। ते एहिठाम जलाशयक प्रचुरता अछि। एकर उपयोग गामक लोक करैछ। किंतु आइ-काल्हि गामघर मे पोखरि-इनारक पानि के व्यवहार मे आनब लोक छोड़ने जा रहल अछि। तकर मुख्य कारण एहि सभ जलाशयक दूषित होएब थिक। नदीक जल मे सेहो अनेक प्रकारक गंदगी मिलत अछि आ ओकरा दूषित कए दैछ। कल-कारखानाक गदौस बहिकए नदी मे खसैछ आ ओकर पानि के विषाक्त कए दैछ। गंगा सन पवित्र ओं विशाल नदीक पानि सेहो प्रदूषित भए गेल अछि। जल जीव-जंतु आ वनस्पति लेल अत्यंत आवश्यक तत्त्व अछि। ते नदी, पोखरि एवं अन्य जलागारक स्वच्छता पर ध्यान देब अनिवार्य थिका
16. चन्दा झा युग प्रवर्तक कवि छथिा कोना?
उत्तर- संस्कृतक मर्मज्ञ विद्वान मातृभाषा मैथिलीक परम अनुरागी कवीश्वर चन्दा झा मैथिली साहित्य मे एक नवीन युगक श्रीगणेश कएलनि। ओ नवीनता कोनो एक प्रकारक नहि छल अपितु ओहि मे विविधता छलैक। चन्दा झाक पहिल नवीनता युगानुकूल रचना मे लक्षित होइछ। तत्कालीन मैथिली साहित्य युग आ समाज सँ असम्पृक्त छल। 1960 ई० मे राजदरभंगाक कार्य-संचालन 'कोर्ट ऑफ वार्डस' क हाथ मे जा चुकल छल, विद्या ओ कलाक प्रसार-प्रसार अवरुद्ध होमए लागल छल, विद्या मे ह्रास भेला सँ समाज मे मिथ्याडम्बर आ अंधविश्वासक बाढ़ि आबि गेल, कतेको ब्राह्मण लोकनि अध्यापन एवं स्वाध्याय मनन छोड़ि, उदरतृप्तिक पाछाँ अमर्यादित जीवन व्यतीत करए लागल छलाह आओर कतेको श्रीसम्पन्न व्यक्ति लोकनि अपन दायित्व बिसरि निकृष्ट भोगलिप्सा मे रत छलाह। मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक पतनोन्मुख दशा देखि चन्दा झा साकांक्ष भेलाह, परिस्थितिक सूक्ष्म अध्ययन कएल आ एकटा सत्कविक जे कर्त्तव्य होएबाक चाही तकर सम्यक् निर्वाह कएल। चन्दा झाक दोसर नवीनता मिथिलाक प्राचीन इतिहास एवं कीर्ति सभक अन्वेषण करबा मे निहित अछि। ओ मिथिलाक प्राचीन इतिहास, पुरान मंदिर, तीर्थ, जलाशय, डीह-डाबरक संगहि प्राचीन कवि आ हुनक कृतित्वक अवेषणाक शुभारंभ कएलनि। विद्यापति एवं गोविन्ददासक हेराएल काव्यक पुनरुद्धार हिनके द्वारा भेल। 'पुरुषपरीक्षा' क मैथिली अनुवादक परिशिष्ट भाग मे ई बहुत रास मैथिली भाषाक कविक नामोल्लेख कए हुनका लोकनिक अस्तित्वक रक्षा कएने छथि। हुनक तेसर नवीनता 'मिथिला-भाषा रामायण' मे अछि। चन्दा झाक चारीम नवीनता मैथिली साहित्य मे गद्य रचनाक प्रवाह के पुनर्जीवित करबा मे अछि। हनक पाँचम नवीनता भाषान्तर साहित्यक मैथिली अनुवाद मे अछि। कवीश्वर गीतिकाव्य मे सेहो नवीनता अनलनि। हुनका सँ पूर्व गीतिकाव्य आत्मनिष्ठ छल, वस्तुनिष्ठ नहि। कवीश्वरक नचारी, महेशवाणी वा जानकी वन्दना संबंधी जे गीत अछि ताहि मे कवि अपना संग-संग अपन देश, अपन समाज, अपन भाषाक कल्याणक प्रसंग उल्लेख कएने छथि। उपर्युक्त निवेचन सँ स्पष्ट अछि जे कवीश्वर चन्दा झा मैथिली साहित्यक युग-प्रवर्तक थिकाह।
17. माँगन खबासक जीवनी संक्षेप मे लिखू।
उत्तर- माँगन खबासक जन्म सहरसा जिलाक पचगछिया गामक धानुक जातिक घर मे सन् 1908 ई० मे भेल छल। हिनक माए पचगछियाक रायबहादुर लक्ष्मीनारायण सिंहक परिवार मे खबासिन छलीह। खबासिनक बेटा भेने माँगन खबासक नाम सँ प्रसिद्ध भेलाह। गाम मे ओ सामान्य शिक्षा पौलनि। माँगन देखबा मे बड़ सुन्दर छलाह ओ सामान्य शिक्षा पौलनि। माँगन देखबा मे बड़ सुन्दर छलाह ओ हुनक कण्ठ मे बांसुरीक माधुर्य छल। नेनहि मे कोनो कलाक पारखी एहि सुदर्शन बालक के नाचए सिखाकए, नटुआ बना देलक। रायबहादुर के जखन आंगन मे माँगनक रूप ओ गुणक परिचय भेलनि तखन माँगन ओहि राजपरिवार में रहए लगलाह। रायबहादुर स्वयं नीक गायक आ पखावजी छलथि। अतः हिनका सँ पुत्रवत् स्थान पाबि राय बहादुर सँ गायन-वादनक प्रशिक्षण पाबए लगलाह। माँगन बड़ परिश्रमी एवं लगनशील छलाह। ओ अपना मने बेसी भजन गाबथि। मुदा फरमाइशी गीत सेहो नीक जकाँ गाबथि। दरबारी शिष्टता सँ बन्हाओल चरित्रवान, मितभाषी ओ अनुशासित छलाह। देशक अनेक भाग मे आयोजित संगीत सम्मेलन सभ मे भाग लैत रहथि। संपूर्ण भारत मे हिनक लोकप्रियता चरमोत्कर्ष पर छल। - माँगल खबासक मृत्यु मात्र पैंतीस वर्षक आयु मे 1943 ई० मे भए गेलनि। एहन बुझाइछ जेना कोनो अभिश गंधर्व अपन काज पूरा कए गंधर्व लोक घुरि गेलाह। मुदा ओ जतबे दिन जीलनि समस्त भारतक संगीत जगत मे मिथिलाक कीर्तिध्वज बनल रहलाह।
18. माँगन खबासक संगीत-साधनाक वर्णन करू।
उत्तर- माँगन खबासक आधुनिक शिक्षाक अभावो मे संगीतक शिक्षा मे पारंगत भए गेलाह। ओ नीक जकाँ ध्रुपद, धमार, दादरा, खयाल, ठुमरी, विद्यापति गान एवं लोकगीत गाबथि जाहि सँ श्रोता मंत्रमुग्ध भए जाथि। स्वर साधल ओ भास सम्हारल होइत छलनि। माँगन खबासक ई ठुमरी बेस लोकप्रिय छल 'बाजूवन्द खुलि-खुलि जाय।' विद्यापति गान मे प्रसिद्ध छल-'सुतल छलहुँ भिनसरबा रे, गरबा मोतिहार।' आर लोकगीत गायन मे—'हमरा के लागलि नजरिया हो पिया, सास ननद मोरा जनमी वएरिया मोसे भरावे गगरीया हो पिया ...।'. संगीत कलाक कोनो आयोजन-प्रदर्शन हो, हिनक गायन , वाद्यवादन, भाव-भंगिमा आदि सँ श्रोता मंत्रमुग्ध भए जाइत छलाह। ओ अपना युगक अप्रतिम कलाकार छलाह। हिनका अपना युगक प्रख्यात संगीतज्ञ सभ सँ निकटता भेलनि। एहि मे शीर्षस्थ छथि—पं० ओंकार नाथ ठाकुर, करीम खाँ, उस्ताद फैयाज खाँ, नारायण राव, व्यास, पटवर्धन, ब्रह्मानंद गोस्वामी, बड़े अली गुलाम खाँ आदि। एक बेर कोलकाता संगीत सम्मेलन मे देशक प्रसिद्ध गबैयाक सूची मे पं० ठाकुर माँगन खबासक नाम नहि देखलनि। ओ मंच सँ उतरि माँगन सँ भेट कए गएबाक आग्रह कएलथिन। माँगन बजलाह—'पण्डितजी, हम तँ सुनए आएल छी, गाबए नहि।' पण्डित हिनक नाम सूची मे जोड़ि तीन बजे राति धरि जागिकए हुनक गायन सुनलनि। सम्मेलन मे माँगनक 'परज वसंत' के सुनि श्रोता लोकनि मंत्रमुग्ध भए गेलाह। भोरे बाजा-गाजाक संग पम्पलेट बाँटि कोलकाता मे माँगन खबासक तीन दिनक स्पेशल प्रोग्राम राखल गेल। एहि सँ हिनक संगीत साधना स्पष्ट होइछ।
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