सातवें चरण के लिए बिहार सरकार को दिव्यांग जनों की क्या फरियाद है उसी के संबंध में एक प्रमाण पत्र लिखा जा रहा है उम्मीद करता हूं की दिव्यांग जनों की फरियाद बिहार सरकार तक पहुंचेगी

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सातवें चरण के लिए बिहार सरकार को दिव्यांग जनों की क्या फरियाद है उसी के संबंध में एक प्रमाण पत्र लिखा जा रहा है उम्मीद करता हूं की दिव्यांग जनों की फरियाद बिहार सरकार तक पहुंचेगी 

सेवा में,

         माननीय मुख्यमंत्री महोदय 

             बिहार सरकार पटना

विषय - दिव्यांग जनों की विचारधारा के संबंध में

महाशय,

विगत के वर्षों में बिहार राज्य के दिव्यांगों की स्थिति बद से बदतर हो गई है। निःशक्त व्यक्ति समान अवसर एवं अधिकार अधिनियम 1995 से लेकर दिव्यांगता अधिकार अधिनियम 2016 तक और उसके बाद भी 2021 तक पूरी व्यवस्था फेल। वैसे तो एक भी उदाहरण नहीं है जो राज्य के दिव्यांगों की सामाजिक आर्थिक स्थिति की सकारात्मक पहलू को दर्शा सके। किंतु आंकड़े, तथ्य और साक्ष्य कभी झूठ नहीं बोलते। क्या बिहार राज्य के किसी भी दिव्यांग व्यक्ति अथवा राज्य और केन्द्र सरकार के जिम्मेदार अधिकारी और राजनेता ने जिम्मेदारी पूर्वक बिहार राज्य निःशक्कतता आयुक्त द्वारा जारी वार्षिक प्रतिवेदन का जिम्मेवारी पूर्वक अवलोकन किया है। यदि किया है तो क्या प्रतिवेदन में वर्णित तथ्यों की समीक्षा भी की है। क्या केवल छपे हुए दस्तावेजों से धरातल की स्थितियों की सत्यता से मेल कराने की कोई युक्ति भी आई अथवा आंख मूंदकर उसे पुरानी फाईलों के हवाले कर दिया गया। बेशक ये पंक्तियां पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। किंतु सच तो है कि सैकड़ों उदाहरण, आंकड़े, तथ्य, साक्ष्य,अखबार, विभिन्न रिपोर्ट, आयुक्त कार्यालय के कार्यकलाप चीख-चीख कर बिहार के आधे करोड़ दिव्यांगों के दिव्यांगता की लगातार हो रही हत्या की कहानी कह रही है। यदि ऐसा नहीं है तो क्यों आयुक्त को बार बार खुद को दिव्यांगों की मसीहा कहने की विवशता होती रही है। हां विकास हुए हैं केवल स्थानीय अखबारों में, चुने हुए चैनलों पर, सरकारी फाईलों में, केन्द्र को भेजी जाने वाली रिपोर्टों में। चूंकि तकरीबन शासन-प्रशासन के आला पदों पर बैठे शत प्रतिशत अधिकारी और प्रतिनिधि गैर दिव्यांग होते हैं। ऐसे में दिव्यांगों के मुद्दों की संवेदनशीलता से अधिक फाईलों की टिप्पणियों के साथ ही फाईल बंद कर दी जाती रही है। वैसे भी किसी ने गलत नहीं कहा है कि बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा। अब कुछ सवाल उनसे जो पुनः दिव्यांगों की बचे खुचे प्राणों की अर्थी उठाने को आतुर तत्कालीन राज्य आयुक्त दिव्यांगजन डाo शिवाजी कुमार को पुनः उसी पद पर सुशोभित करने को आतुर हैं। क्या राज्य में दिव्यांगता की बेरहमी समय हत्या करने की मंशा है उनकी? आईने की तरह बिल्कुल साफ है कि राज्य आयुक्त दिव्यांगजन, बिहार डाo शिवाजी कुमार का कार्यकाल गिनती के चंद चाटुकारों और गैर दिव्यांग लूट खसोट गिरोह के बल ही आजतक चलता रहा है। पुनर्नियुक्ति के पूर्व चंद सवाल उनसे जिनका तर्क उन्हें पुनः आयुक्त के रुप में राज्याभिषेक कराने की है। 

1. आज दस वर्षों के बाद भी 2011 की जनगणना से प्राप्त दिव्यांगों के आंकड़े, उनकी आर्थिक सामाजिक स्थिति की रिपोर्ट कार्ड कहां है? 

2.आयुक्त ने विगत कार्यकाल में दिव्यांगों की राजनीतिक भागीदारी के लिए कितने प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजे हैं? 

3. पांच के बदले 4% आरक्षण की गोलमोल घोषणा से कितने दिव्यांगों का गला घोंटा गया? 

4. दिव्यांगों को प्रताड़ित करने के कितने मामले में दिव्यांगों द्वारा मामले दर्ज कराए गए, कितनो पर कार्रवाई हुई और कितने आज भी फाईलों में धूल फांक रही है? 

5. कितने उदासीन अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया? 

6. आयुक्त के सैकड़ो आदेशों का अनुपालन हुआ अथवा नहीं। यदि नहीं तो अनुपालन की जिम्मेदारी किसकी थी? 

7. आज तक 38 जिलों में कितनी शिकायत पत्र अपर जिला निःशक्कतता आयुक्त के नाम से दिव्यांगों द्वारा जिलाधिकारी को दिए गए? 

8.सख्त आदेश के बावजूद अनिवार्य खाद्य सुरक्षा कानून का लाभ भी दिव्यांगजन को क्यों नहीं मिला? 

9. कितने दिव्यांगों को निजी संस्थानों में नियोजित की गई, कितनों को उद्यम हेतु ऋण दिलाने की पहल की गई? सवालों की सूची लंबी है, जवाब शायद किसी के पास नहीं है। किंतु यह कहना कि अभी तक आयुक्त कार्यालय एक अक्षम, असफल, दिव्यांग विरोधी मानसिकता और दिव्यांगजनों की ही शोषण, दमन और भ्रष्टाचार की एक दुकान बन कर रह गई है, तो गलत नहीं होगा। दिव्यांगों की बेबसी और.लाचारी को हजारों बार बेच बेच कर खाने वाले अधिकारी की कार्य शैली से पूरे राज्य के दिव्यांग त्रस्त हो गए हैं। लेकिन बस, अब और नहीं। राज्य के माननीय मुख्यमंत्री किसी अन्य सक्षम व्यक्ति को आयुक्त पद पर लाएं अथवा हम लाखों दिव्यांगों को इच्छा मृत्यु की अनुमति दें। चूंकि सहनशीलता की भी एक सीमा होती है। तत्कालीन आयुक्त की कर्तव्यहीनता और घुटन भरी व्यवस्था की पुनरावृत्ति राज्य में भयंकर विद्रोह को जन्म देगा।

महोदय, तकनीकी जानकारी, सार्वजनिक दस्तावेजों, कार्यों का अनुश्रवण और समीक्षा के साथ साथ आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर ही किसी आलाअधिकारी के कार्यकाल के साथ उनके गुणदोषों का निर्णय होता है। लाभ हानि और व्यक्तिगत संपर्कों के आधार पर नहीं।

                            अतः समय रहते मुख्यमंत्री संज्ञान लें।

                                           आपका विश्वासी

                                            Ruby Singh 


प्रतिलिपि-1.श्रीमान,मुख्य सचिव बिहार सरकार पटना को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्रवाई हेतु प्रेषित।

2.श्रीमान सचिव महोदय,समाज कल्याण विभाग बिहार सरकार पटना को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्रवाई हेतु प्रेषित।



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