उत्तर- राष्ट्रवाद किसी भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों के बीच एक भावना है जो उनमें परस्पर प्रेम और एकता को स्थापित करता है । यही भावना आधुनिक विश्व में राजनीतिक पुर्नजागरण का परिणाम है ।
2. क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर-1861 ई० तक रूस में अधिकांश किसान बँधुआ मजदूर थे । 1861 ई० में कृषि-दासता समाप्त होने पर भी उनकी स्थिति में विशेष सुधार नहीं आया । कर्ज और लगान के बोझ से वे खेतिहर मजदूर बन गए।
3. दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-दांडी यात्रा का उद्देश्य दांडी समुद्र तट पर पहुँचकर समुद्र के पानी से नमक बनाकर, नमक कानून का उल्लंघन कर, सरकार को बताना था क नमक पर कर बढ़ाना अनुचित फैसला है । साथ ही, यह सरकार के खिला सविनय अवज्ञा आन्दोलन के शुरूआत का संकेत भी था ।
4. गुटेनबर्ग ने मुद्रण यंत्र का विकास कैसे किया ?
उत्तर-गुटेनबर्ग ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को संगठित एवं एकत्रित किया तथा टाइपों के लिए पंच, मेट्रिक्स, मोल्ड आदि बनाने का योजनाबद्ध तरीके से कार्य आरंभ किया। मुद्रण टाइप बनाने हेतु उसने शीशा, टिन और बिस्मथ धातुओं से उचित मिश्रधातु बनाने का तरीका ढूँढ़ा । शीशे का प्रयोग सस्ता और स्याही के स्थानान्तरण की क्षमता के कारण किया गया। रांगा तथा टिन का उपयोग उसकी कठोरता एवं गलाने के गुणों के कारण किया गया ।
5.भूमंडलीकरण को परिभाषित करें।
उत्तर-जीवन के सभी क्षेत्रों का एक अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप जिसने दुनिया के सभी भागों को आपस में जोड़ दिया है, भूमंडलीकरण कहा जाता है । 'इसके फलस्वरूप सम्पूर्ण विश्व एक छोटे से गाँव के रूप में परिवर्तित हो गया ।
6. ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस की स्थापना क्यों हुई
उत्तर-1917 ई० की रूसी क्रांति का प्रभाव मजदूर वर्ग पर भी पड़ा । 31 अक्टूबर, 1920 ई० को कांग्रेस पार्टी ने ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की । सी. आर. दास ने सुझाव दिया कि कांग्रेस द्वारा किसानों एवं श्रमिकों को राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल किया जाए और उनकी माँगों का समर्थन किया जाए।
7. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ? किस प्रकार औद्योगीकरण ने उपनिवेशवाद को जन्म दिया ?
उत्तर-मशीनों के आविष्कार तथा फैक्ट्री की स्थापना से उत्पादन में काफी वृद्धि हुई । उत्पादित वस्तुओं की खपत के लिए नए बाजारों की आवश्यकता थी। इससे उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला। उपनिवेशवाद में तकनीकी रूप से कमजोर देश पर आर्थिक नियंत्रण स्थापित किया जाता है। इसी क्रम में भारत ब्रिटेन के एक विशाल उपनिवेश के रूप में उभरा। संसाधन की प्रचुरता ने उन्हें भारत की तरफ व्यापार करने के लिए आकर्षित किया। भारत ब्रिटेन के लिए एक वृहत् बाजार के रूप में उभरा। अठारहवीं शताब्दी तक भारतीय उद्योग विश्व में सबसे अधिक विकसित थे। भारत विश्व का सबसे बड़ा कार्यशाला था जो बहुत ही सुंदर और उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करता था । 1850 ई० के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपने उद्योगों को विकसित करने के लिए अनेक ऐसे कदम उठाये जिनकी वजह से इस अवधि में एक के बाद एक देशी उद्योग खत्म होने लगे। ब्रिटिश सरकार द्वारा अपनायी गयी मुक्त व्यापार की नीति की वजह से भारत में निर्मित वस्तुओं पर ब्रिटेन में बिक्री के लिए भारी कर लगा दिया गया। भारत से कच्चा माल निर्यात किया जाने लगा। भारतीय वस्तुओं के निर्यात पर सीमा शुल्क और परिवहन कर लगाया जाने लगा। धीरे-धीरे ब्रिटिश पूँजी से भारत में कारखानों की स्थापना की लगी। सूती वस्त्रों का आयात भी किया जाने लगा। भारत के कुटीर उद्योग मृतप्राय हो गए। एक तरफ जहाँ मशीनों के आविष्कार ने उद्योग एवं उत्पादन में वृद्धि कर औद्योगीकरण की प्रक्रिया की शुरूआत की थी वहीं भारत में उद्योगों के लिए निरुद्योगीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई। औद्योगीकरण की इस प्रक्रिया ने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया।
8.रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- रूसी क्रांति के निम्नलिखित कारण थे
(1) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन-क्रांति से पूर्व रूस में जारशाही शासन व्यवस्था कायम थी जो निरंकुश एवं अकुशल थी। जार निकोलस-II एक स्वेच्छाचारी शासक था । आमलोगों की स्थिति चिंताजनक थी जिसके कारण रूस में क्रांति का श्रीगणेश हुआ।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति-रूस में मजदूरों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी । उन्हें अधिक काम करना पड़ता था किंतु उनकी मजदूरी काफी कम थी । मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं थे।
(iii) कृषकों की दयनीय स्थिति-रूस की बहुसंख्यक जनसंख्या कृषक थी जिनकी स्थिति अत्यन्त ही दयनीय थी । कृषकों के पास पूँजी का अभाव था तथा करों के बोझ से वे दबे हुए थे। किसानों के पास क्रांति के सिवा कोई चारा नहीं था ।
(iv) औद्योगीकरण की समस्या-रूसी औद्योगीकरण पश्चिमी पूँजीवादी औद्योगीकरण से भिन्न था। यहाँ कुछ ही क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उद्योगों का केन्द्रण था। यहाँ राष्ट्रीय पूँजी का अभाव था । अतः उद्योगों के विकास के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ गयी थी । विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे। अत: चारों ओर असंतोष व्याप्त था ।
(v) रूसीकरण की नीति-जार निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गई रूसीकरण की नीति से रूस में अल्पसंख्यक समूह परेशान थे। जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। इससे अल्पसंख्यकों में असंतोष की भावना फैली ।
(vi) विदेशी घटनाओं का प्रभाव-रूस की क्रांति में विदेशी घटनाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी । सर्वप्रथम क्रीमिया के युद्ध में रूस की पराजय ने उस देश में सुधार का युग आरंभ किया। तत्पश्चात् 1904-5 ई० के रूस-जापान युद्ध ने रूस में पहली क्रांति को जन्म दिया और अन्ततः प्रथम विश्व युद्ध ने बोल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया ।
(vii) रूस में मार्क्सवाद तथा बुद्धिजीवियों का योगदान-रूस में क्रांति के पूर्व एक वैचारिक क्रांति भी देखी जा सकती थी। लियो टॉलस्टाय (वार एण्ड पीस), दोस्तोवस्की, तुर्गनेव जैसे चिंतक इस नए विचार को प्रोत्साहन दे रहे थे। रूस के औद्योगिक मजदूरों पर कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारों का पूर्ण प्रभाव था। मार्क्सवाद एक नशा की तरह रूस में छा गया और अन्ततः 1917 ई० की बोल्शेविक क्रांति हुई ।
(viii) तात्कालिक कारण प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय-प्रथम में विश्व युद्ध 1914 ई० से 1918 ई० तक चला। इस युद्ध में रूस मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल हुआ था। रूसी सेना के पास न तो आधुनिक हथियार थे न ही पर्याप्त मात्रा में रसद । जार ने सेना का कमान अपने हाथों में ले लिया था जिससे दरबार में उसकी अनुपस्थिति में जरीना और पादरी (रासपुटिन) को षड्यंत्र करने का मौका मिल गया, जिसके कारण राजतंत्र की प्रतिष्ठा और भी गिर गई । उपर्युक्त कारणों के परिप्रेक्ष्य में रूस में 1917 ई० की बोल्शेविक क्रांति हुई।
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