आदरणीय उपस्थित गुरु जी एवं साथियों तथा अतिथि गण आज मैं भारत देश के दो महान योद्धा के बारे में कुछ कहने जा रहा हूं जो
एक ही दिवस पर दो विभूतियों ने भारत माता
को गौरवान्वित किया। गाँधी जी एवं लाल बहादूर
शास्त्री जैसी अदभुत प्रतिभाओ का 2 अक्टूबर
को अवतरण हम सभी के लिये हर्ष का विषय है।
सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजों से भारत को
स्वतंत्र करा करके हम सभी को स्वतंत्र भारत का
अनमोल उपहार देने वाले महापुरूष गाँधी जी को
राष्ट्र ने राष्ट्रपिता के रूप में समानित किया। वहीं
जय जवान, जय किसान का नारा देकर भारत के
दो आधार स्तंभ को महान कहने वाले महापुरूष
लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वतंत्र भारत के दूसरे
प्रधान मंत्री के रूप में राष्ट्र को विश्वपटल पर
उच्चकोटी की पहचान दिलाई।
आज इस लेख में मैं आपके साथ राष्ट्र पिता
महात्मा गाँधी से सम्बंधित कुछ रोचक बातें साझा
करने का प्रयास करूंगी।
भारत ही नही वरन पूरे विश्व पटल पर महात्मा
गाँधी सिर्फ़ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और
अहिंसा का प्रतीक है। महात्मा गाँधी के पूर्व भी
शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी,
परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह, शान्ति व
अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंग्रेजों को भारत
छोड़ने पर मजबूर किया, उसका कोई दूसरा
उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता।
तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था
कि -"हज़ार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात
पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से
बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था।"
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गाँधी ज्यन्ती
को 'विश्व अहिंसा दिवस' के रूप में मनाये जाने
की घोषणा की।
मित्रों आज हम गाँधी जी की उस उप्लब्धी का
जिक्र करने का प्रयास कर रहे हैं जो हम सभी के
लिये गर्व का विषय है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा के बूते पर
आजादी दिलाने में भले ही भारत के हीरो हैं
लेकिन डाक टिकटों के मामले में वह विश्व के
104 देशों में सबसे बड़े हीरो हैं। विश्व में अकेले
गांधी ही ऐसे लोकप्रिय नेता हैं जिन पर इतने
अधिक डाक टिकट जारी होना एक रिकार्ड है।
डाक टिकटों की दुनिया में गांधी जी सबसे ज़्यादा
दिखने वाले भारतीय हैं तथा भारत में सर्वाधिक
बार डाक-टिकटों पर स्थान पाने वालों में गाँधी
जी प्रथम हैं। यहाँ तक कि आज़ाद भारत में वे
प्रथम व्यक्ति थे, जिन पर डाक टिकट जारी हुआ।
किन्तू एक दिलचस्प बात यह थी कि जिंदगी
भर 'स्वदेशी' को तवज्जो देने वाले गांधी जी को
सम्मानित करने के लिए जारी किए गए पहले
डाक टिकटों की छपाई स्विट्जरलैंड में हुई थी।
इसके बाद से लेकर आज तक किसी भी भारतीय
डाक टिकट की छपाई विदेश में नहीं हुई।
गाँधी जी की शक्सियत का ही असर था कि,
भारत को गुलामी के शिकंजे में कसने वाले ब्रिटेन
ने जब पहली दफ़ा किसी महापुरुष पर डाक
टिकट निकाला तो वह महात्मा गांधी ही थे। इससे
पहले ब्रिटेन में डाक टिकट पर केवल राजा या
रानी के ही चित्र छापे जाते थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर सर्वाधिक डाक टिकट
उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1969 में जारी हुए थे।
उस वर्ष विश्व के 35 देशों ने उन पर 70 से अधिक
डाक टिकट जारी किए थे।
मित्रों, गाँधी जी ने सत्य को अपने जीवन में
बचपन से ही अपनाया था। सत्य को परिलाक्षित
करती उनकी एक बचपन की घटना याद आती है
जब टीचर के कहने के बावजूद भी उन्होने नकल
नही की। किस्सा यूँ है कि, एक बार- राजकोट के
अल्फ्रेड हाई स्कूल में तत्कालीन शिक्षा विभाग
के इंसपेक्टर "जाइल्स" मुआयना करने आए थे।
उन्होने नवीं कक्षा के विद्यार्थियों को अंग्रेजी के
पाँच शब्द लिखने को दिये, जिसमें से एक शब्द
था “केटल" मोहनदास इसे ठीक से नही लिख
सके तो मास्टर साहब ने ईशारा किया कि आगे
वाले लङके की नकल कर लो किन्तु मोहनदास
ने ऐसा नही किया। परिणाम ये हुआ कि सिर्फ
उनके ही लेख में गलती निकली सभी के पाँचो
शब्द सही थे। जब मास्टर साहब ने पूछा कि तुमने
नकल क्यों नही की तो मोहनदास ने ढणता से
उत्तर दिया कि “ऐसा करना धोखा देने और चोरी
करने जैसा है जो मैं हर्गिज नही कर सकता"। ये
घटना इस बात का प्रमाण है कि गाँधी जी बचपन
से ही सत्य के अनुयायी थे। राजा हरिश्चन्द्र और
श्रवण कुमार का असर उन पर बचपन से ही था।
ऐसे सत्य और अहिंसा के पूजारी को निम्न
पंक्तियों से नमन करते हैं-
“दे दी हमें आजादी खड्ग बिना ढाल, साबरमती
के संत तूने कर दिया कमाल"
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