1. हड़प्पा सभ्यता के विस्तार की विवेचना करें
उत्तर - (क) हड़प्पा संस्कृति के केन्द्र एवं विस्तार (Chief centres and extention of the Harappan Culture) : अनेक भागों से मिलने वाले अवशेषों से यह ज्ञात होता है कि हड़प्पा सभ्यता, पंजाब, राजस्थान, काठियाबाड़ ही नहीं बल्कि इससे परे के पूर्वी भागों में फैली हुई थी । प्रो० गोल्डन चाइल्ड के शब्दों में- “इस सभ्यता का क्षेत्रफल समकालीन मिस्र अथवा सुमेर सभ्यता के क्षेत्रफल से भी कहीं अधिक विस्तृत था । "
इस संस्कृति से सम्बन्धित कोई 550 से भी अधिक स्थानों पर खुदाई हो चुकी है। परन्तु केवल निम्नलिखित छः स्थलों को ही नगर माना गया है ।
(i) मोहनजोदड़ो (Mohan-Jodaro) : इस सभ्यता का एक मुख्य केन्द्र था मोहनजोदड़ो नगर, जो सिन्धु प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है । मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है- 'मृतकों का टीला'। इस नगर का यह नाम इसलिये पड़ा क्योंकि इसकी 7 तहों से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह नगर सात बार बना और सात बार उजड़ा। सन् 1922 में श्री आर० डी० बनर्जी ने इसकी खोज की । उनका ऐसा अनुमान है कि यह नगर एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था और एक अन्तर्राष्ट्रीय नगर था । सम्भवतः यह दक्षिणी प्रदेश की राजधानी थी ।
(ii) हड़प्पा (Harappa) : यह पश्चिमी पंजाब के मिण्टगुमरी (वर्तमान नाम साहीवाल) जिले में लाहौर से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। यह नगर बहुत विशाल था, यह मोहनजोदडों से भी बड़ा था। इसकी खोज भी लगभग उसी समय (जिस समय मोहनजोदड़ो की हुई थी) श्री आर० बी० दयाराम ने की थी । उनका विचार था कि यह नगर उत्तरी प्रदेश अथवा भाग की राजधानी थी । हड़प्पा में समानान्तर चतुर्भुज के आकार की एक गढ़ी (छोटा किला) बनी हुई थी । इस नगर के चारों ओर एक दीवार बनी हुई थी जो शायद शत्रुओं से रक्षा के लिए बनाई गई थी ।
(iii) चान्हूदड़ो (Chandhudaro) :- यह नगर भी मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की भाँति अब पाकिस्तान में है। यह सिन्ध प्रान्त में मोहनजोदड़ो से लगभग 130 किलोमीटर दक्षिण में है।
(iv) कालीबंगा (Kalibangan) : यह स्थान भारत के राजस्थान राज्य में है। यहाँ पर हड़प्पा संस्कृति के दो अवशेष-सीधी व चौड़ी सड़क और वैज्ञानिक ढंग से बनाई गई नालियाँ एवं कच्ची ईंटों के चबूतरे हैं।
(v) बनवाली (Banwali): यह स्थान हरियाणा प्रांत के हिसार जिले में स्थित है। इसके अवशेष बहुत कुछ कालीबंगा के अवशेषों से मिलते हैं। यहाँ भी हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पाकालीन संस्कृतियों के दर्शन होते हैं ।
(vi) लोथल (Lothal) : लोथल समुद्र के निकट स्थित हैं, अतः यह अनुमान लगाया जाता है कि यह नगर समुद्री व्यापार का एक बड़ा केन्द्र रहा होगा। लोथल में जो वस्तुएँ प्राप्त हुईं हैं उनसे पता चलता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता काफी दूर-दूर तक फैली हुई थी ।
(vii) अन्य स्थल (Other sites) : उपरोक्त स्थलों के अतिरिक्त सिन्धु घाटी की सभ्यता के अवशेष राखी गाढ़ी (हरियाणा), शाही टम्प (बिलोचिस्तान) आदि स्थानों से भी प्राप्त हुए थे।
प्रश्न 2. मगध साम्राज्य के उत्थान के क्या कारण थे ?
उत्तर - मगध साम्राज्य का गौरवशाली इतिहास रहा है। इस साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा की गई थी। उन्होंने नंद वंश के शासक को युद्ध में परास्त कर सिंहासन प्राप्त किया तथा विशाल मगध राज्य की स्थापना की। मगध साम्राज्य के उत्थान के लिए उनकी शासन व्यवस्था का विशेष योगदान था। उनके उत्तराधिकारी अर्थात् उनके पुत्र बिन्दुसार तथा बिन्दुसार के पुत्र सम्राट् अशोक ने न केवल इस परंपरा को कायम रखा, बल्कि साम्राज्य के उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत् रहे ! अत: इसका श्रेय उनलोगों की सुव्यवस्थित शासन संचालन तथा कुशल प्रबंधन को दिया जा सकता है ।
मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुखर साहित्यिक एवं पुरातात्विक श्रोतों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि होती । कौटिल्य का अर्थशास्त्र मेगास्थनीज की इण्डिका, विशाखदत्त की मुद्राराक्षस जैसे ग्रंथ मगध साम्राज्य की शासन व्यवस्था पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। उपरोक्त ग्रन्थों के विवरण के माध्यम से तत्कालीन मगध साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास का पता चलता है। पुरातात्विक स्रोतों में अशोक के शिलालेख, स्तम्भलेख, ताम्रपत्र, कुम्हरार ( पाटलिपुत्र) के अवशेष मगध साम्राज्य के उत्थान के महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। चीनी यात्रियों ह्वेनसांग तथा फाहियान ने भी तत्कालीन मौर्य साम्राज्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। -
चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान सम्राट् ही नहीं एक अपूर्व योद्धा भी था। उसने मगध साम्राज्य जो मौर्य साम्राज्य के नाम से भी जाना जाता था उसकी सीमाओं का विस्तार उत्तर-पश्चिम में ईरान की सीमा से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक एवं पूर्व में मगध से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक किया । वह एक महान विजेता, साम्राज्य निर्माता एवं कुशल प्रशासक था । चन्द्रगुप्त के देहांत के बाद उसके परवर्ती बिन्दुसार तथा सम्राट अशोक ने भी उस परंपरा को बनाए रखा। सम्राट् अशोक ने कलिंग विजय में व्यापकं नरसंहार से द्रवित होकर बौद्ध धर्म को स्वीकार किया तथा धर्म प्रचार में अपनी शक्ति लगा दी । जन-कल्याण एवं सुन्दर शासन व्यवस्था द्वारा उसने अपनी प्रजा के हित में अनेक कार्य किए ।
अतः मगध साम्राज्य के उत्थान का 'कारण शासकों द्वारा सुशासन तथा कुशल प्रबंधन रहा है जनहित, न्यायप्रियता तथा साम्राज्य के विकासोन्मुख कार्यों द्वारा ही मगध साम्राज्य उन्नति के शिखर पर पहुँच सका। -
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