Class 12th Home Science Question Answer Bihar Board 2023 होम साइंस कक्षा बारहवीं के सब्जेक्टिव महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर Previous Question Paper 2010 में पूछे गए प्रश्न उत्तर

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1. आय क्या है ? पारिवारिक आय के तीन घटकों के नाम बताइए ।
सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहते हैं। प्रत्येक परिवार की आर्थिक व्यवस्था के दो केन्द्र होते हैं। आया तथा व्यय धन की व्यवस्थापन करते समय परिवार की आय-व्यय में संतुलन का प्रयास किया जाता है ताकि परिवार को अधिकतम सुख और समृद्धि प्राप्त हो । ग्रॉस एवं क्रैण्डल के अनुसार पारिवारिक आय मुद्रा वस्तुओं सेवाओं तथा संतोष का वह प्रवाह है जिसे परिवार के अधिकार से उनकी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करने एवं दायित्वों के निर्वाह के लिए प्रयोग किया जाता है। पारिवारिक आय में वेतन मजदूरी, ग्रेच्यूटी, पेंशन, ब्याज व लाभांश किराया, भविष्य निधि आदि सभी को सम्मिलित किया जाता है । पारिवारिक आय के तीन घटना निम्नलिखित हैं
(i) वेतन- नौकरी करने के बाद जो मुद्रा प्रति मास प्राप्त होती है उसे वेतन कहते हैं । 
(ii) मजदूरी - मजदूरों को कार्य करने के बाद जो पारिश्रमिक दैनिक, साप्ताहिक अथवा मासिक प्राप्त होता है उसे मजदूरी कहते हैं ।
(iii) ब्याज व लाभांश - पूँजी के विनियोग से प्राप्त होने वाला ब्याज तथा व्यावसायिक संस्था के शेयर अथवा डिवेन्चर से प्राप्त होने वाला लाभांश भी मौद्रिक आय है । 

2.  वृद्धि तथा विकास को परिभाषित करें ।
वृद्धि से तात्पर्य मात्रात्मक वृद्धि से है। विकास की उपेक्षा वृद्धि एक संकुचित शब्द है। गर्भ धारण के पश्चात् ही गर्भस्थ शिशु में वृद्धि होने लगती है। वृद्धि बालक के शरीर और आकार, लम्बाई और भार में ही नहीं होती है बल्कि उसके आन्तरिक अंगों तथा मस्तिक में भी होती है 
विकास का तात्पर्य मात्रात्मक वृद्धि के साथ उसके गुणात्मक परिवर्तन से है । एक नवजात शिशु उठना-बैठना तथा चलना नहीं जानता है परंतु जैसे-जैसे उसका विकास होने लगता है, वह यह सभी क्रियाएँ करना सीख लेता है । बालक में विकास सम्बन्धी सभी प्रगतिशील परिवर्तन एक-दूसरे से सम्बन्धित तथा क्रमबद्ध होते हैं ।

3. रोध क्षमता क्या है ? प्राकृतिक तथा उपार्जित क्षमताओं के बारे में लिखें ।
 रोधक्षमता का अर्थ होता है - "व्यक्ति की रोग तथा रोगों से लड़ने की क्षमता या योग्यता ।".
अतः रोधक्षमता का अर्थ है शरीर को रोगों से बचाने की क्षमता । प्राकृतिक रोधक्षमता शरीर में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले रोग विरोधी तत्वों के कारण होता है। शरीर में रोग प्रतिरोधी तत्व निम्नलिखित तत्व कार्य करते हैं । 
(i) रोगाणु का शरीर में प्रवेश रोकते हैं
(ii) यदि रोगाणु शरीर से प्रविष्ट हों जाये तो उनसे संघर्ष करते हैं ।
(iii) रोगाणुओं को नष्ट कर देते हैं जिससे वह रोग का बाह्य लक्षणों को प्रकट न कर सकें । शरीर में प्राकृतिक रोग प्रतिरोधी क्षमता तभी बनी रह सकती है जब शरीर में उपस्थित श्वेत रक्त कण शक्तिशाली हों । उपर्जित रोग क्षमता- यह दो प्रकार से होती है संक्रामक रोग से ग्रसित होकर संक्रामक क्षमता उत्पन्न होती है । इस प्रकार अर्जित की गई रोग प्रतिरोधक क्षमता को उपार्जित रोग प्रतिरोध क क्षमता कहते हैं । टीकाकरण द्वारा विभिन्न संक्रामक रोगों को प्रतिरक्षक दवाइयाँ शरीर में टीके के माध्यम से प्रवृष्टि करायी जाती है। उन दवाईयों को रक्षण अवधि को दीर्घकाल तक बनाये रखने के लिये बुस्टर खुराक भी दी जाती है ।

4.विकलांगता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
 विकलांगता वह है जो किसी क्षति अथवा अक्षमता से किसी व्यक्ति की होने वाला वह नुकसान जो उसे उसकी आयु, लिंग, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों से सन्दर्भित सामान्य भूमिका को निभाने से रोकता हों ।

5. समेकित बाल विकास सेवा योजना क्या है ? इसके उद्देश्य तथा लक्ष्य समूह के बारे में लिखें। 
समेकित बाल विकास योजना 2 अक्टूबर, सन् 1975 में 33 ब्लाक में प्रयोजित आधार पर प्रारम्भ की गई थी । यह योजना भारत सरकार के सौजन्य से मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा चलाई जा रही है। वर्तमान समय में देश में लगभग 2761 स्वीकृत आई० सी० डी० एस० परियोजनाएँ है जिनसे लाखों माताएँ एवं बच्चे लाभ उठा रहे हैं । समेकित बाल विकास योजना के प्रमुख उद्देश्य एवं लक्ष्य समूह है
(i) 0-6 वर्ष तक की आयु के बच्चों के स्वास्थ्य तथा आहार की स्थिति में सुधार ।
(ii) बच्चों के मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा शारीरिक विकास की नींव रखना । 
(iii) कुपोषण, मृत्यु, अस्वस्थता तथा विद्यालय छोड़ने की दर में कमी लाना । समेकित बाल विकास योजना के लक्ष्य समूह(i) 0-6 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चे । 
(iv) स्तनपान कराने वाली माताएँ । 
(v) गर्भवती स्त्रियाँ । 
(vi) 15-40 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाएँ ।

6. पूर्व-स्कूलगामी बच्चों के लिए आहार आयोजन करें ।
पूर्वस्कूलगामी करने के लिए आहार आयोजन महत्त्वपूर्ण होते हैं
1 से 6 वर्ष की आयु वर्ग का बच्चा बच्चे का आहार संतुलित होना है और उसकी पौष्टिक आवश्यकताएँ चाहिए
स्कूलगामी कहा जाता है । क्योंकि इस अवस्था में बालक को भूख कम लगती अधिक होती हैं । दूध से बने पदार्थ पनीर, खीर, आइसक्रीम, कस्टर्ड इत्यादि बच्चों को देने चाहिए क्योंकि दूध में बच्चों की रूची कम हो जाती है ।
इस अवस्था में शैशवकाल की अपेक्षा वृद्धि दर कम होती है । इस अवस्था में बच्चा 2.0 से 2.5 किलो भार प्रति वर्ष प्राप्त करता है बच्चे का भार निरन्तर बढ़ता है। यह बच्चे के सम्पूर्ण स्वास्थ्य तथा पोषण स्तर का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण है । इस आयु में यदि बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है तो उसकी वृद्धि तथा विकास धीमी गति से होता है । और इन्हें चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है । इस आयु वर्ग के बच्चों को आधार ऐसा होना चाहिए जो उनकी क्रियाशीलता के अनुरूप ऊर्जा प्रदान करें । '

7.  खाद्य पदार्थों के मानक प्रमाण चिह्न के नाम उदाहरण सहित लिखें ।
खाद्य पदार्थों के मानक प्रमाण चिह्न
(i) ISI मार्क - बी० आई० एस० ( Bureau of Indian Standard) ISI चिह्न द्वारा पदार्थों की शुद्धता का गारंटी देता है। भारतीय मानक संस्थान द्वारा निम्न आश्वासन दिये जाते हैं। माल का अत्यधिक उत्पादन व उपयोग की गुणवत्ता सुरक्षा तथा स्थिरता का आश्वासन विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता पदार्थों पर ISI मार्क लगाया जाता है। जैसे-एयर कंडीशनर, बाल आहार, बिस्कुट एल० पी० जी० (LPG), एल्यूमीनियम के बरतन, डिटरजेंट पाउडर। 
(ii) एगमार्क - एगमार्क से कृषि उत्पादन की गुणवत्ता तथा शुद्धता आँकी जाती है । “एगमार्क" एग्रीकल्चर मार्केटिंग का छोटा रूप है । उत्पादन की गुणवत्ता को उसके आकार, किस्म, उत्पादन, भार, रंग, नमी, वसा की मात्रा तथा दूसरे रासायनिक और भौतिक लक्षणों द्वारा आँका जाता है । कुछ एगमार्क वाले उत्पादन हैंचावल, सरसों का तेल, गेहूँ, शुद्ध घी, दालें, मक्खन, चने का आटा, मसाले, आम, काँगड़ा घटी की चाय, सिंटस्म फ्रूट, कालीमिर्च पाउडर इत्यादि । 

8. मिलावट से आप क्या समझते हैं ? 
मिलावट की परिभाषा (Food Adulteration) “मिलावट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा खाद्य पदार्थों की प्रकृति, गुणवता तथा पौष्टिकता में बदलाव आ जाता है। यह बदलाव खाद्य पदार्थों में किसी अन्य मिलती-जुलती चीज मिलने या उसमें से कोई तत्व निकालने के कारण आता है । उदाहरण के लिए दूध से क्रीम निकालना या उसमें पानी मिला देना मिलावट कहलाता है । यह मिलावट खाद्य पदार्थ उपजाते समय, फसल काटे समय तैयार करने समय, एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाते समय तथा वितरण करते समय की या हो जाती है । खेसारी दाल की उपस्थिति मिलावट के कारण हैं। खेसारी दाल का आहार अरहर की दाल की अपेक्षा कुछ तिकोना तथा रंग मटमैला होता है। खेसारी दाल में कई विषैले तत्व होते हैं परन्तु इनमें से एक मुख्य विषैला तत्व है अमीनो अम्ल बीटा एन० ओक्साइल अमीनो एलनिन अर्थात् BOAA (Beta N Oxylamino Alanine) |
खाद्य पदार्थों में मिलावट से सुरक्षा रोजमर्रा के आहार में मिलावट तेजी से बढ़ रही है । खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ने के कारण व्यापारी अपना मुनाफा के लिए इस तरह के कुचक्र चलाते हैं । आप निम्नलिखित उपायों से अपने आपकी मिलावट से बचा सकती है । 
(i) विश्वसनीय दुकानों से ही समान खरीदें । ऐसी दुकानें जहाँ बिक्री होती हैं व उनकी विश्वसनीयता पर भरोसा है, तो समान अच्छा मिलेगा ।
(ii) विश्वसनीय व उच्च स्तर की सामग्री खरीदें क्योंकि उसकी गुणवत्ता अधिक होती है। सही मार्का वाली सामग्री से पूरी कीमत वसूल हो जाती है । जैसे-I.S.I. F.P.O. AGMARK etc. 

 9. बचत के लाभ तथा साधनों के नाम लिखें ।
परिवार के जीवन स्तर के बचत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । एक परिवार के लिए बचत के निम्नलिखित लाभ हैं :
(i) बचत परिवार को आर्थिक रूप से अधिक आत्मविश्सनीय बनाती है तथा उसे भविष्य का सामना करने योग्य बनाती है ।
(ii) बचत आय तथा व्यय के मध्य एक संतुलन लाने में सहायता करती है । 
(iii) बचत पारिवारिक जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों पर धन की असमानताओं में सहायता करती है ।
(iv) बचत धन खर्च के लिए हमें रीतिबद्ध विकसित करने में सहायता करती है । 
(v) धन बचाना अधिक धन प्राप्त करने में सहायक है। जब वंचित धन का विनियोग किया जाता है तो भविष्य में उससे अधिक आय प्राप्त होती है ।

10. वस्त्रों का चयन एवं खरीददारी किन तत्त्वों से प्रभावित होती है ?
 वस्त्रों का चयन एवं खरीददारी निम्नलिखित तत्वों प्रभावित 
1. व्यक्तित्व - कपड़ों का चुनाव करते समय व्यक्तित्व को ध्यान में रखना आवश्यक है । अधिकारी, र्लक, होटल कर्मचारी के लिए अपने व्यवसाय को ध्यान में रखना आवश्यक है। लम्बा, पतला, मोटा, संजीदा व्यक्ति आदि को ध्यान में रखकर ही खरीददारी करना चाहिए । ..
 2. जलवायु - बाजार में कपड़े का चयन करते समय जलवायु का स्थान रखना की अत्यन्त होती है आवश्यक है । गर्मियों के लिए सूती वस्त्र तथा सर्दियों के लिए ऊनी वस्त्र उपयुक्त रहते हैं ।
3. अवसर - अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग पोशाक अच्छे लगते हैं । 
4. आयु- वस्त्र पहनने वाले की आयु भी वस्त्रों के चुनाव को प्रभावित करती है 

11. ऊनी परिधानों का संरक्षण आप किस प्रकार करेंगी ?
 ऊनी परिधानों को शुष्क धुलाई कर उसे पुनः इस्त्री कर प्रयोग करना चाहिए । • आवश्यकतानुसार रीठा का प्रयोग कर ऊनी परिधानों को धोया जाता है। इसके संचयन प्रयोग आने के बाद किटाणुनाशक बक्से में रखकर करना चाहिए ।

12. गृह विज्ञान पढ़ने से क्या-क्या लाभ हैं
 गृह विज्ञान वह विज्ञान है जो प्रत्येक व्यक्ति के दैनिक जीवन से संबंधित है। इस विषय के अन्तर्गत विज्ञान, गृह कला, स्वास्थ्य विज्ञान आदि समस्त विषय पढ़ाये जाते हैं । गृह विज्ञान विषय में आहार व पोषण, स्वास्थ्य सफाई तथा शिशु कल्याण का वैज्ञानिक ज्ञान दिया जाता है। 
खण्ड - 'स' (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) 

13.  धुलाई की विभिन्न विधियों के बारे में लिखें ।
 धुलाई क्रिया एक वैज्ञानिक कला है और अन्य कलाओं के समान ही इसके भी कुछ सिद्धान्त हैं । सिद्धांतों का अनुसरण नियम पूर्वक करना तथा आवश्यकतानुसार इनमें कुछ-कुछ परिवर्तन करना, धोने की क्रिया धोने वाले की विवेक- बुद्धि पर निर्भर करती है। वैसे इस प्रक्रिया में धैर्य अभ्यास दोनों का ही अत्यधिक महत्त्व है । अभ्यास के सभी सिद्धान्तों के अन्तर्निहिक गुण दोष स्वतः सामने आ जाते हैं और धुलाई करने वाला स्वतः ही समझ जाता है कि कौन सिद्धान्त किस प्रकार और कब पालन योग्य है और उसके दोषों को किस प्रकार दूर करना सम्भव है ? घरेलू प्रयोग में तथा सभी पारिवारिक सदस्यों के परिधानों में तरह-तरह के वस्त्र प्रयोग में आते हैं। सूती, ऊनी, रेशमी, लिनन, रेयन और रसायनिक वस्त्र तथा मिश्रण से बने वस्त्र भी रहते हैं । वस्त्रों के चयन सम्बन्धी किस्में भी एक-दूसरे से अलग रहती है । अतः धुलाई सिद्धान्तों का अवलोकन अनिवार्य है । उनका अनुसरण आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए । अनुचित विधि के प्रयोग से वस्त्र के कोमल रेशों की घोर क्षति पहुँचाती है । उचित विधि के प्रयोग से वस्त्रों का प्रयोग - सौन्दर्य स्थायी और अक्षुणता रहता है और वह टिकाऊ होता है, साथ ही कार्य क्षमता बढ़ती है। सम्मिलित रूप का ही नाम है
(i) वस्त्रों को धूल कणों और चिकनाईपूर्ण गन्दगी से मुक्त करना तथा 
(ii) धुले वस्त्रों पर ऐसा परिष्करण देना जिससे उनका नवीन वस्त्र के समान सुघड़ और सुन्दर स्वरूप आ सके । गन्दगी को दूर करने का तरीका तथा वस्त्रों को स्वच्छ करने की विधि मुख्यतः वस्त्र के स्वभाव तथा धूल और गन्दगी की किस्म पर निर्भर करती है । 
धुलाई क्रिया दो प्रक्रियाओं के निम्नलिखित गन्दगी जो वस्त्रों में होती है वह दो प्रकार की होती है, यथा 
(a) रेशों पर ठहरे हुए अलग धूल कण तथा 
(b) चिकनाई के साथ लगे धूल-कण । कपड़े धोने की विधियाँ कपड़े धोने की विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) रगड़कर - रगड़कर प्रयोग करके केवल उन्हें वस्त्रों को स्वच्छ किया जा सकता है जो मजबूत और मोटे होते हैं । रगड़ क्रिया को विधिपूर्वक करने के कई तरीके हैं । वस्त्र के अनुरूप तरीके का प्रयोग करना चाहिए ।
(a) रगड़ने का क्रिया हाथों से घिसकर-रगड़ने का काम हाथों से भी किया जा सकता । हाथों से उन्हीं कपड़ों को रगड़ा जा सकता है जो हाथों से आ सके अर्थात् छोटे कपड़े । रगड़ने की क्रिया मार्जक ब्रश द्वारा
(b)- कुछ बड़े वस्त्रों को, जो कुछ मोटे और मजबूत भी होते हैं, ब्रश से मार्जन के द्वारा गन्दगी से मुक्त किया जाता है 
(c) रगड़ने की क्रिया घिसने और सार्जन द्वारा- मजबूत रचना के कपड़ों पर ही इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है ।
(ii) हल्का दबाव डालकर हल्का दबाव डालकर धोने की क्रिया उन वस्त्रों के लिए अच्छी रहती है । जिनके घिसाई और रगड़ाई से क्षतिग्रस्त हो जाने की शंका रहती है। हल्के, कोमल तथा सूक्ष्म रचना के वस्त्रों को इस विधि से धोया जाता है ।
 (iii) सक्शन विधि का प्रयोग - सक्शन ( चूषण) विधि का प्रयोग भारी कपड़ों को धोने के लिए किया जाता है । बड़े कपड़ों को हाथों से गूंथकर (फींचकर) तथा निपीडन करके धोना कठिन होता है । जो वस्त्र रगड़कर धोने से खराब हो सकते हैं, जिन्हें गूंथने में हाथ थक जा सकते हैं और वस्त्र भी साफ नहीं होता है, उन्हें सक्शन विधि की सहायता से स्वच्छ किया जाता है।
(iv) मशीन से धुलाई करना- वस्त्रों को मशीन से धोया जाता है । धुलाई मशीन कई प्रकार की मिलती है । कार्य-प्रणाली के आधार पर ये तीन टाइप की होती है-सिलेण्डर टाइप, वेक्यूम कप टाइप और टेजीटेटर टाइप । मशीन की धुलाई सभी सार्थक होती हैं जब अधिक वस्त्रों को धोना पड़ता है और समय कम रहता है ।

14. धब्बे छुड़ाने की प्रमुख विधियाँ क्या हैं ? 
 दाग-धब्बे मिटाने की प्रमुख विधियाँ (Main Methods of Stain Removal) दाग हटाने के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करते हैं
 1. डुबोकर- इस विधि से दाग छुड़ाने के लिए दाग वाले वस्त्र को अभिकर्मक में डुबोया जाता इसे रगड़कर हटाया जाता है और फिर धो दिया जाता है ।
2. स्पंज- इस विधि में कपड़े के जिस स्थान से दाग हटाना हो उसे ब्लॉटिंग पेपर रखें तत्पश्चात् स्पंज के साथ अभिकर्मक लगाएं तथा उसे रगड़कर स्वच्छ कर लें ।

15. वस्त्र सभी विशिष्टता ला सकता है ।" अपने विचार व्यक्त करें ।
वस्त्र सभी विशिष्टता ला सकते हैं- वस्त्रों का चुनाव प्रचलित फैशन के अनुसार ही करना चाहिए । समय के साथ-साथ फैशन परिवर्तित होता रहता है। फैशन बदलने से परिधान सम्बन्धी आस्थाएँ तथा रुचियाँ भी बदल जाती हैं। परिधान सम्बन्धी मूल्यों में भी परिवर्तन आ जाता है । यह स्पष्ट है कि केवल परिधान सम्बन्धी परिवर्तन से ही व्यक्ति की जीवन शैली नहीं बदल जाती है बल्कि इन परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए व्यक्ति को धन, स्वतन्त्रता तथा ऐसा पर्यावरण चाहिए जिसमें वह परिवर्तन को देख सकें । परिधान सम्बन्धी परिवर्तन को अपनाने के लिए व्यक्ति को अपने देश की भौगोलिक स्थिति, शिष्टाचार परम्पराओं की भी जानकारी होनी चाहिए । फैशन का सही चुनाव व्यक्ति की जहाँ आकर्षक बनाता है वही गलत चुनाव उसका व्यक्तित्व बिगाड़ता है ।

16.बाल्यावस्था के सामान्य रोगों से आप क्या समझते हैं ?
 किसी प्राणी को अपना वातावरण की चुनौतियों के अनुकूल प्रतिकार में असफलता के अनुभव को रोग कहते हैं । बालक में वैसे भी प्रतिकारता कम होती है। थोड़ी-सी असावधानी से वह रोग ग्रस्त हो जाता है । बाल्यावस्था में होने वाले रोग निम्नलिखित हैं :
(i) डिफ्थीरिया (Diptheria) जन्म से 5 वर्ष की आयु तक के बाल को यह रोग हो सकता है । इससे बचाव के लिए तीन खुराक छः सप्ताह से प्रारम्भ करके 4 से 6 सप्ताह के अन्तराल पर दी जाती है ।
(ii) क्षय रोग (Tuberculosis) - जन्म से लेकर सभी आयु के बालक को यह रोग होता है । इससे बचाव के लिए जन्म के समय या दो सप्ताह के भीतर बीसीजी का टीका लगाते हैं । 
(iii) टेटनस ( Tetanus) बच्चों को टेटनस में बचाव के लिये डी० पी० टी० का टीका लगाते 1
(iv) काली खासी (Whooping cough)- जन्म के कुछ सप्ताह बाद से यह रोग हो जाता है इसमें बचाव के लिये डी० टी० पी० का टीका बच्चों को लगाया जाता है । T
(v) खसरा (Measles) कुछ माह से लेकर 8 वर्ष तक की आयु तक यह रोग हो सकता है इससे बचाव के लिये एम० एम० आर० का टीका लगाते हैं । ।
(vii) पीलिया रोग (Hepatities) – यह एक गम्भीर रोग होता है । इससे बचाव के लिए Hepatities B Vaccine बालक को देते हैं। पहली खुराक जन्म के समय, दूसरी 1-2 माह बाद तक तीसरी पहली खुराक 6-8 माह बाद भी देते हैं । इसके अलावा हैजा, पोलिया इत्यादि बहुत सारे रोग होते हैं जिससे बचाव के लिये प्रतिकारिता की जाती है ताकि बच्चे स्वस्थ रहें ।

17. भाषा विकास को परिभाषित कीजिए । छोटे बच्चों में भाषा का विकास किस प्रकार होता है ?
भाषा सम्प्रेषण का लोकप्रिय माध्यम है। भाषा के माध्यम से बालक अपने विचारों इच्छाओं को दूसरे पर व्यक्त कर सकता है और दूसरे के विचारों, इच्छाओं तथा भावनाओं को समझ सकता है । हरलॉक के अनुसार भाषा में सम्प्रेषण के वे साधन आते हैं, जिसमें विचारों तथा भावों की प्रतीकात्मक बना दिया जाता है जिससे कि विचारों और भावों को दूसरे से अर्थपूर्ण ढंग से कहा जा सके । बच्चे में भाषा का विकास : बच्चे बोलना शनैः शनै सीखते हैं । पाँच वर्ष की शब्दावली से लगभग 2000 शब्द बोलते हैं । अर्थपूर्ण शब्दों और वाक्यों से दूसरे में संबंध स्थापित करते हैं ।
(i) 0-3 माह - नवजात शिशु केवल रोने की ध्वनि निकाल सकता है; रोकर ही वह अपनी माता को अपनी भूख व गीला होने के आभास कराता है । तीन माह तक कूजना सीख जाती है। जिसे क, ऊ, ऊ, उ की ध्वनि निकाल सकता है ।
(ii) 4-6 माह - इस आयु में बच्चे अ आ की ध्वनि निकाल सकते हैं। फिर वे पा, मा, टा, वा, ना आदि ध्वनि निकाल सकते हैं । " माता, टाटा, बाबा, 
(iii) 7-9 माह- इस आयु में बच्चे दोहरी आवाज निकाल सकते हैं। जैसे पापा आदि इसे बैवलिंग या शिशुवार्ता कहते हैं ।
(iv) 10-12 माह- बच्चे सहज वाक्य बोलने लगते हैं। वे तब बानीबॉल या बाबी बोल सकते हैं। 
(v) 1-2 वर्ष - अब बच्चे तीन या चार शब्दों के वाक्य बोलने लगते हैं । 
(vi) 3-5 वर्ष - बच्चों की आदत हो जाती है कि वे नये सीखे शब्दों को बार-बार बोलते हैं । वे आवाज की नकल करते हैं ।


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