1. पर्यावरण-मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते हैं ?
उत्तर – - पर्यावरण की सुरक्षा ही पर्यावरण-मित्र बनना है। इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का सीमित एवं विवेकपूर्ण उपयोग करने, अनुपयोगी वस्तुओं को गलाकर उपयोगी वस्तुएँ बनाने एवं वस्तुओं का पुनः उपयोग और वस्तुओं के पुनर्चालन की आदत डालनी चाहिए। वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना और ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों का उपयोग करना भी पर्यावरण-मित्र बनना ही है।
2. क्या प्राकृतिक संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन-सी शक्तियाँ कार्य कर सकती हैं?
उत्तर हाँ, प्राकृतिक संसाधनों का वितरण सभी वर्गों में समान रूप से होना चाहिए। - प्राकृतिक संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध शक्तिशाली और अमीर लोग तथा उद्योगपति कार्य कर सकते हैं।
3. प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखना क्यों जरूरी है?
उत्तर -निम्नांकित कारणों से प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। –
अतः, (i) संसाधनों के निर्ममतापूर्वक दोहन से पर्यावरण को काफी क्षति पहुँचती है। संसाधनों के संपोषण के साथ पर्यावरण का संरक्षण आवश्यक है। प्रदूषकों का एकत्रित होना, पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुँचा सकता है।
(ii)सीमित संसाधनों का वितरण सभी वर्ग के लोगों में समान रूप से करना तथा उनकी उपलब्धता भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
4. वन एवं वन्य जीव हमारे लिए किस प्रकार से लाभदायक हैं?
अथवा,
वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
उत्तर – वन एवं वन्य जीव पर्यावरण को सुरक्षित एवं संतुलित रखने में सहायक होते हैं। वन पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ हमारी मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे— आवास निर्माण सामग्री, रबर आदि की आपूर्ति करते हैं। जल-चक्र का पूर्ण होना, वायुमंडल में CO, एवं O, का संतुलन वनों पर ही निर्भर है। इसमें वन्य जीव सुरक्षित रहते हैं जो पर्यावरण को संतुलित रखने में योगदान करते हैं। वन मिट्टी अपरदन को नियंत्रित करते हैं। अतः, वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण आवश्यक है।
5. वन एवं वन्य जीवों के दावेदार कौन-कौन हैं? उनमें किसे वन प्रबंधन का अधिकार मिलना चाहिए?
उत्तर – वन एवं वन्य जीवों के निम्नांकित चार दावेदार होते हैं।
(i) वनों में या उनके आसपास रहनेवाले लोग, जो अपनी आवश्यकताओं के लिए वनों पर निर्भर हैं
(ii)सरकार, जिसका वन पर स्वामित्व और नियंत्रण है
(iii) उद्योगपति, जो वन उत्पादों का उपयोग करते हैं
(iv) पर्यावरण-मित्र
वनों के बेहतर प्रबंधन के लिए सरकार का न्यूनतम नियंत्रण, स्थानीय लोगों की सहमति और सक्रिय भागीदारी एवं पर्यावरण-मित्रों का सहयोग अपेक्षित है।
6. अपशिष्ट प्रबंधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – पर्यावरण प्रदूषण की समस्या विशाल रूप धारण कर चुकी है। पर्यावरण की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमारे पास अनेकों उपाय हैं जिनके द्वारा हम इस समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं। जनता में जागरूकता पैदा कर हम इस कार्य को कुछ सहज बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त घरेलू कूड़े-कचरों, कृषि-अपशिष्टों, औद्योगिक कचरों आदि का निष्पादन सही ढंग से करके भी इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों के निपटान करने के तरीकों को अपशिष्ट प्रबंधन कहते हैं।
7. अपशिष्ट प्रबंधन की नई धारणाएँ क्या हैं? विवेचना करें।
उत्तर – कम उपयोग, पुनर्चालन, पुनरुपयोग (reduce, recycle and reuse—three R's) अपशिष्ट प्रबंधन की नई धारणाएँ हैं।
कम उपयोग का अर्थ है उपलब्ध साधनों का यथोचित उपयोग। जैसे टपकनेवाले जल-नल का मरम्मत करके जल बचा सकते हैं।
पुनर्चालन का अर्थ है प्रयुक्त वस्तुओं, जैसे काँच के टूटे गिलास, प्लास्टिक की बोतलें आदि से पुनः नई वस्तुएँ बनाना। इसमें कुछ ऊर्जा का तो अपव्यय होता है, किंतु संसाधनों की बचत हो जाती है।
पुनरुपयोग एक बेहतर तरीका है, क्योंकि इसमें ऊर्जा एवं संसाधन दोनों की बचत ' होती है। अतः, पुराने लिफाफे को उलटकर पुनः इस्तेमाल कर सकते हैं।
8. वर्षा जल के संचयन की परंपरागत पद्धतियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर – वर्षा जल के संचयन की परंपरागत पद्धतियाँ इस प्रकार हैं-
(i) छोटे-छोटे गड्ढे खोदना,
(ii) मिट्टी के छोटे-छोटे बाँध बनाना,
(iii) बालू तथा संगमरमर से जलाशय बनाना तथा
(iv) मकान के छत पर जल-संचयन तंत्र लगाना।
9. जल-संचयन के लिए क्या-क्या उपाय किए जाने चाहिए ?
उत्तर – प्राचीन काल से मानव मिट्टी के छोटे-छोटे बाँध बनाकर, तालाब, पोखर आदि बनाकर, नहरें बनाकर, बालू तथा संगमरमर से जलाशय बनाकर तथा मकान के छत पर वर्षा जल का संचयन तंत्र लगाकर जल का संचयन करता आ रहा है। इन प्राचीन पद्धतियों को आज भी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। इनके अलावे विशाल बाँध बनाने एवं दूर तक जानेवाली नहरों की खुदाई की परियोजनाओं को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है ताकि जल पूरे वर्ष उपलब्ध रह सके।
10. जल-संचयन क्या है?
उत्तर – जल-भंडारण की प्रक्रिया जल-संचयन कहलाती है। यह स्थानीय स्तर पर सतही या वर्षा-जल को विशेष आकार के मिट्टी के गड्ढे में, मकान के छत पर लगे बर्षा-जल के संचयन तंत्र में तथा प्राकृतिक जलमार्ग पर चेक-डैम बनाकर एकत्रित करने की विधि है। यह विधि प्राचीन काल से भारत के विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से प्रचलित है; जैसे- राजस्थान में खादिन, बिहार में आहर, केरल में सुरंगम आदि।
11. वन्य जीवों के संरक्षण के विभिन्न उपायों का उल्लेख करें।
उत्तर – वन्य जीवों के संरक्षण के लिए निम्नांकित उपाय करने चाहिए।
(i) पशु-पक्षियों की सुरक्षा के लिए वन विहार, राष्ट्रीय उद्यान एवं अन्य प्राकृतिक क्षेत्रों की स्थापना तथा इन क्षेत्रों में उनके आवास के अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराना
(ii) लुप्त होती जा रही प्रजातियों (जैसे—गिर के शेर) की संख्या बढ़ाने के लिए परियोजना बनाना
(iii) जानवरों के शिकार पर लगे प्रतिबंध का कड़ाई से पालन करना
12. गंगा को प्रदूषित करनेवाले मुख्य कारक क्या हैं?
उत्तर – गंगा को प्रदूषित करनेवाले मुख्य कारक निम्नांकित हैं।
(i) गंगा के किनारे स्थित अनेक नगरों द्वारा उत्सर्जित कचरा (वर्ज्य पदार्थ) एवं मल-जल का इसमें प्रवाहित किया जाना
(ii) मानव के क्रियाकलाप; जैसे-कपड़ा धोना, मलमूत्र बहाना, पशुओं को स्नान कराना, लाशें बहाना, अस्थि-विसर्जन करना आदि
(iii) औद्योगिक कचरा को प्रवाहित करना
13. नदी के जल के प्रदूषण का मानदंड किसे बनाया गया है ?
उत्तर – सामान्यतः मल के कोलिफॉर्म सूक्ष्मजीवों की संख्या को नदी के जल के प्रदूषण का मानदंड बनाया गया है। पीने के जल में प्रति 100mL कोलिफॉर्म की संख्या शून्य तथा नहाने एवं सिंचाई के जल में 200 से कम होनी चाहिए। गंगा नदी के जल में कई जगहों पर इसकी मात्रा 500 से अधिक देखी गई है।
14. गंगा नदी पर बने ऊँचे टिहरी बाँध से कौन-कौन-सी पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं ?
उत्तर – टिहरी बाँध के निर्माण के फलस्वरूप विस्थापित हजारों पर्वतीय लोगों के मैदानी क्षेत्रों में बसने से उनकी जीवन-शैली में आए परिवर्तन के परिणामस्वरूप उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनको जल, लकड़ी, फल आदि अपेक्षाकृत महँगे मिलने लगे। साथ ही भूकंपीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित होने के कारण बाँध के टूटने का डर बना रहता है। बाँध के टूटने पर जल आसपास के क्षेत्रों में फैलकर भारी तबाही मचा सकता है।
15. ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के लिए आवश्यक है।
उत्तर - -प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के लिए कम उपयोग, पुनर्चालन, पुनरुपयोग, वृक्षारोपण एवं जल-संचयन आवश्यक हैं।
16. ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो प्राकृतिक संसाधन पर दबाव बढ़ाने के लिए उत्तरदायी है।
उत्तर-प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ाने के लिए मोटरगाड़ियों और वैद्युत उपकरणों का अत्यधिक प्रयोग, वनों की अविवेकपूर्ण कटाई, नदियों में मल-जल, उत्सर्जित पदार्थ, मृत व्यक्तियों के शव आदि प्रवाहित करना तथा उनके किनारे शौच करना, बड़े बाँधों का निर्माण और कीटनाशकों का उपयोग अत्यधिक उत्तरदायी हैं।
17. वाहनों के लिए उत्सर्जन-संबंधी मानदंड क्या हैं?
उत्तर – वाहन वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में एक है। इस कारण 1989 में केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम को संशोधित कर वाहन मालिकों के लिए धुएँ के उत्सर्जन-संबंधी नियम अधिसूचित किए गए। 1992 में पहली बार वाहन निर्माताओं के लिए उत्सर्जन-संबंधी मानदंड यूरो-I (Euro-I) लागू किया गया। इन मानदंडों को 2005 संशोधित पुनः कर यूरो-IV लागू किया गया। इन उत्सर्जन-संबंधी मानदंडों को समय-समय पर बदलकर सख्त कर दिया जाता है।
18. बाँध से हमें क्या लाभ होता है? बताएँ।
(i) यह सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराता है। सिंचाई के लिए बाँध के जल को नहर द्वारा दूर-दूर तक ले जाया जाता है। उदाहरणार्थ, इंदिरा गाँधी नहर ने राजस्थान के बड़े क्षेत्र को हरित किया है।
(ii) बाँधों (dam) के निर्माण का उद्देश्य बिजली का उत्पादन भी है। इसके लिए नदियों पर डैम बनाए जाते हैं तथा डैम की पेंदी में जलविद्युत-शक्ति संयंत्र लगाए जाते हैं। डैम के ऊपरी भाग से जल को संयंत्र पर गिराया जाता है जिसके फलस्वरूप बिजली उत्पन्न होती है।
19. ऊर्जा संकट के समाधान के उपायों का उल्लेख करें। ऊर्जा संकट के समाधान के उपाय निम्नांकित हैं।
उत्तर -
बाँध से हमें निम्नांकित लाभ हैं।
(i) ऊर्जा के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से करके ऊर्जा संकट को एक सीमा तक दूर किया जा सकता है।
(ii) चूँकि ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत सीमित हैं, अतः ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों, जैसे— सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस आदि को विकसित कर ऊर्जा संकट से निपटा जा सकता है।
(iii) परमाणु ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता विकसित करके भी ऊर्जा संकट से काफी हद तक निपटा जा सकता है।
20. कोयला एवं पेट्रोलियम का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्यों?
उत्तर-कोयला एवं पेट्रोलियम जीवाश्म ईंधन हैं। इनके निर्माण में लाखों वर्ष लगते
हैं। पृथ्वी के अंदर इनकी मात्रा भी सीमित है। यदि ये एक बार समाप्त हो गए, तो निकट भविष्य में इनकी पूर्ति संभव नहीं होगी। अतः, इनके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इनकी खपत विवेकपूर्ण ढंग से करनी चाहिए ताकि आनेवाले अधिक-से-अधिक समय तक हम इनका उपयोग कर सकें।
21. जीवाश्म इंधनों के उपयोग से क्या-क्या क्षति हो सकती है ?
उत्तर -कोयला, पेट्रोलियम आदि जीवाश्म इंधन हैं। कोयला तथा पेट्रोलियम में कार्बन के अलावा हाइड्रोजन, नाइट्रोजन तथा सल्फर विद्यमान होते हैं जिनके जलने से CO, CO2, H,O, NO, NO2, SO, आदि गैसें उत्पन्न होती हैं। इनमें अधिकांश गैसें विषैली होती हैं जो पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं। इनमें कुछ गैसें वर्षा के जल में घुलकर अम्ल-वर्षा के रूप में गिरती हैं जिससे हमारे ऐतिहासिक धरोहर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड पौधाघर गैस है जो वायुमंडल के ताप में वृद्धि करने में सहयोग करती है।
22. जल-संग्रहण आवश्यक है, क्यों ?
उत्तर- -जल को जीवन-सार (essence of life) कहते हैं, क्योंकि इसके बिना जीवन प्रयोजन, जैसे—दैनिक संभव नहीं है। इसका उपयोग हम प्रतिदिन अनेक प्रयोजन, जैसे- - दैनिक कार्यों, शारीरिक क्रियाओं, सिंचाई, बिजली उत्पादन तथा तकनीकी विकास आदि में करते हैं। औद्योगिक क्रांति एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण जल की माँग में काफी वृद्धि हुई है, परंतु उसकी उपलब्धता में कमी आई है। भूमिगत जल के भंडारों में कमी आई है तथा भूमिगत जलस्तर गिरता जा रहा है। फलतः शहरों में जलापूर्ति की समस्या गंभीर होती जा रही है। अतः, वर्षा-जल का संग्रहण आवश्यक है ताकि भूमिगत जलस्तर बरकरार रहे।
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