सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली
1. शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूप में मुख्य अंतर क्या-क्या हैं? उदाहरणों से स्पष्ट करें।
उत्तर – किसी भी लोकतांत्रिक शासन को सत्ता के विभाजन के आधार पर दो भागों -
में बाँटा जाता है— संघात्मक शासन एवं एकात्मक शासन। दोनों प्रकार के शासनों में मुख्य अंतर निम्नांकित हैं।
(i) एकात्मक शासन में शक्तियों का विभाजन नहीं होता, सभी शक्तियाँ केंद्र के पास रहती हैं। इसके विपरीत, संघात्मक शासन में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है।
(ii) संघात्मक शासन में एक लिखित संविधान अवश्य होता है। परंतु, एकात्मक शासन के लिए यह आवश्यक नहीं है।
(iii) संघात्मक शासन में बहुधा दोहरी पहचान और निष्ठा होती है जबकि एकात्मक शासन में एकल। अमेरिका, भारत, बेल्जियम और स्विट्जरलैंड संघात्मक शासन के उदाहरण हैं, जबकि ब्रिटेन, फ्रांस और श्रीलंका एकात्मक शासन के उदाहरण हैं।
2. संघ राज्य किसे कहते हैं? का अर्थ-बताएँ।
अथवा, संघ राज्य
उत्तर- जब किसी देश में शासन संचालन के लिए दोहरे स्तर पर सरकार का गठन किया जाता है, तब वह संघ राज्य कहलाता है। संघ राज्य में सर्वोच्च स्तर पर केंद्र की सरकार होती है। राज्य संघ के अंग होते हैं जिनके शासन के संचालन के लिए राज्यों की सरकारें होती हैं। लिखित संविधान के द्वारा दोनों स्तर की सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है। दोनों के कार्यक्षेत्र परिभाषित कर दिए जाते हैं। -
3. सत्ता में साझेदारी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर -सत्ता में साझेदारी का अर्थ है – सरकारी क्रियाकलापों में जनता की भागीदारी तथा सरकार के निर्णयों एवं नीति-निर्माण में भाग लेना। इस प्रक्रिया को जनता द्वारा प्रभावित किया जाना चाहिए, ताकि नीतियाँ जनता की इच्छा के अनुरूप हों, नीतियों के क्रियान्वयन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो एवं शासन जनोन्मुखी, उत्तरदायी तथा जनइच्छा से संचालित हो। इस तरह, सत्ता में जनता की भागीदारी के ये मुख्य पहलू हैं।
(i) सरकार के विभिन्न अंगों के तीन अंग होते हैं—
(क). विधायिका,
(ख) को किसी एक अंग में केंद्रित विभाजन अथवा सीमांकन कर दिया जाता है तब उसे शक्तियों का पृथक्करण, कहा है। ऐसा करने से किसी एक अंग के द्वारा शक्ति के दुरुपयोग की संभावना विभाजन - सामान्यतः, सरकार के कार्यपालिका और
(ग) न्यायपालिका। जब नहीं करके सरकार के तीनों अंगों के बीच स्पष्ट सत्ता जाता कम होती है।
(ii) विभिन्न स्तरों पर गठित सरकारों के बीच सत्ता का विभाजन - सुविधा हेतु शासन व्यवस्था को तीन स्तरों पर विभाजित कर दिया जाता है— राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार, प्रांतीय स्तर पर राज्य सरकार तथा निम्नतम स्तर पर स्थानीय सरकार । भारतीय संविधान द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता का स्पष्ट विभाजन कर दिया गया है। इसी उद्देश्य से तीन सूचियाँ बनाई गई हैं—
(क) सूची,
(ख) राज्य ग्राम पंचायत, संघ सूची और
(ग) समवर्ती सूची। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर • पंचायत समिति, जिला परिषद, नगर पंचायत, नगर परिषद एवं नगर निगमों की व्यवस्था की गई है।
(iii) विभिन्न समुदायों के बीच सत्ता का विभाजनमें अनेक जाति, धर्म, किया हो सके। ऐसा भाषा के - प्रायः प्रत्येक लोकतांत्रिक देश लोग रहते हैं। ऐसे देशों में सत्ता का बँटवारा इस प्रकार जाता है कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय दोनों की सत्ता में साझेदारी इसलिए किया जाता है ताकि विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच एकता कायम रह सके।
(iv) गैर-सरकारी संस्थाओं में सत्ता का विभाजन – प्रायः प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में गैर-सरकारी संस्थाएँ भी सत्ता में साझेदारी के लिए प्रयत्नशील रहती हैं। विभिन्न हित-समूह, दबाव-समूह, संघ, संगठन इत्यादि इसके उदाहरण हैं। ये सत्ता में साझेदारी के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं।
4. नगर परिषद के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर - नगर परिषद के 11 अनिवार्य
(i) नगर की सफाई, (ii) रोशनी का प्रबंध, (iii) पीने के पानी की एवं मरम्मत, (v) नालियों की सफाई, (vi) महामारी से बचाव एवं टीका लगवाने का प्रबंध, (viii) प्राथमिक अस्पताल खोलना, (ix) आग से सुरक्षा, (x) श्मशान घाट का प्रबंध और (xi) जन्ममृत्यु का निबंधन
5. त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? बिहार में इसका क्या स्वरूप है ?
उत्तर - सत्ता के विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को ही मूर्तरूप देने के लिए भारत में पंचायती राज' की स्थापना की गई है। भारत में 'पंचायती राज' की स्थापना के उद्देश्य से ही भारत सरकार ने बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक कमिटी की नियुक्ति की थी। इस कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए ।
(i) सरकार को अपने कुछ कार्यों और उत्तरदायित्वों से मुक्त हो जाना चाहिए ‘और उन्हें एक ऐसी संस्था को सौंप देना चाहिए, जिसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत विकास के सभी कार्यों की पूरी जिम्मेदारी रहे। सरकार सिर्फ इन संस्थाओं का पथप्रदर्शन और निरीक्षण करती रहे। सरकार को चाहिए कि वह अपने कार्यक्षेत्र को उच्च कोटि की योजनाओं तक ही सीमित रखे ।
(ii) लोकतंत्र की आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए राज्यों की उच्चतर इकाइयों (जैसे— प्रखंड एवं जिला) से ग्राम पंचायतों का अटूट संबंध हो । अतएव, प्रखंड और जिले में भी पंचायती राज व्यवस्था को अपनाना आवश्यक है।
(iii) प्रखंड स्तर पर एक निर्वाचित स्वायत्त शासन की संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम पंचायत समिति रखा जाए। इस पंचायत समिति का संगठन ग्राम पंचायतों द्वारा हो ।
(iv) जिला स्तर पर एक निर्वाचित स्वायत्त शासन की संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम जिला परिषद रखा जाए। इस जिला परिषद का संगठन पंचायत समितियों द्वारा हो ।
बिहार में भी त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना हो चुकी है। इसके लिए
बिहार में 2006 में पंचायत राज अधिनियम पारित हुआ। वर्तमान में इस अधिनियम के अनुसार ही बिहार में ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन किया गया है।
6. पंचायती राज प्रणाली क्या है? ग्राम पंचायत को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए आपके क्या सुझाव हो सकते हैं?
उत्तर – भारतीय संविधान द्वारा एक लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य एक निःस्वार्थ माता की तरह जनता की भलाई करना है। इस उद्देश्य से सरकार समाजवादी समाज की व्यवस्था कायम करके जनता के जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास कर रही है। अतः, राज्य के कार्यों में अत्यधिक वृद्धि हो गई है। सरकार विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत अनेक विकास कार्य चला रही है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में इसी कारण योजनाओं का सृजन प्रशासन के उच्चतम पदाधिकारियों द्वारा किया जाता है, परंतु उसे कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी जनता या उसके प्रतिनिधियों के ऊपर सौंपी जाती है। इस प्रकार, केंद्रीय सरकार द्वारा योजनाओं का निर्माण होता है। परंतु, उन्हें स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं द्वारा कार्यान्वित कराने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार, विकेंद्रीकरण का सिद्धांत अपनाया जाता है। इसी को प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण कहा जाता है। इसे मूर्तरूप देने के लिए ही भारत में पंचायती राज प्रणाली शुरू की गई है। इस उद्देश्य से संविधान में 73वाँ संशोधन किया गया। इस संशोधन में कहा गया है कि ग्राम स्तर, मध्य स्तर (प्रखंड) तथा जिला स्तर पर पंचायतों का गठन किया जाएगा। प्रायः सभी राज्यों में इसका गठन हो चुका है।
ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतों का गठन किया गया है। पंचायती राज की यह सबसे तलीय संस्था है जिसे अधिक उपयोगी बनाकर ही पंचायती राज को सफल बनाया जा सकता है। इसे ‘लोकतंत्र की पाठशाला' मानकर जनता में लोकतांत्रिक जागरूकता लाई जा सकती है। जनता को शासन के संचालन का प्रशिक्षण यहीं प्राप्त हो सकता है और सरकारी कार्यों में उसकी दिलचस्पी बढ़ सकती है। अतः, ग्राम पंचायतों को और अधिक अधिकार देकर इसे अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। जनता को भी ग्राम पंचायत के सदस्यों और मुखिया को चुनते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता है जिससे सही प्रतिनिधि ही ग्राम पंचायतों में निर्वाचित होकर आ सकें।
7. ग्राम पंचायत के कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर – बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के अंतर्गत ग्राम पंचायतों के कार्यों एवं शक्तियों की एक लंबी सूची दी गई है। ग्राम पंचायत के प्रमुख कार्य एवं शक्तियाँ निम्नलिखित हैं।
(i) पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना एवं बजट तैयार करना, सामुदायिक कार्यों में सहयोग करना, प्राकृतिक संकट में सहायता करना एवं आवश्यक आँकड़े रखना
(ii) कृषि, बागवानी, बंजर भूमि एवं चरागाह का विकास करना
(iii) पशुपालन के अंतर्गत पशु-नस्ल सुधार, पशुधन की वृद्धि, मत्स्यपालन, सूअरपालन, कुक्कुटपालन का प्रबंध
(iv) वनविकास, वृक्षारोपण, चारा विकास
(v) सार्वजनिक सेवा एवं सुविधा के अंतर्गत गृह निर्माण, पेयजल की व्यवस्था, सड़क, नाली, पुलिया का निर्माण और सुरक्षा, सार्वजनिक स्थलों का विकास, शौचालयों, बाजार मेले आदि का प्रबंध, ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना इनके अतिरिक्त
(i) प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था एवं शिक्षा के प्रति जागरूकता,
(ii) लोकस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण,
(iii) सामाजिक कल्याण, महिला एवं बाल कल्याण, वृद्धावस्था पेंशन आदि कई कार्य ग्राम पंचायतों को दिए गए हैं।
8. भारतीय संघीय व्यवस्था में एकात्मक व्यवस्था के लक्षणों को स्पष्ट करें।
उत्तर- - भारतीय संघीय व्यवस्था में एकात्मक व्यवस्था के निम्नलिखित लक्षण मौजूद हैं।
(i) यहाँ शक्तिशाली केंद्रीय सरकार की स्थापना की गई है।
(ii) संविधान में शासन के सभी विषयों को तीन सूचियों में विभक्त किया गया गया है।
है—संघ सूची (इसमें 97 विषय हैं, जो संघ सरकार के अंतर्गत हैं), राज्य सूची (इसमें 66 विषय हैं, जो राज्य सरकार के अंतर्गत हैं) और समवर्ती सूची (इसमें 47 विषय हैं, जिनपर संघ सरकार की प्राथमिकता और प्रधानता स्वीकार की गई है)। अवशिष्ट अधिकार भी संघ सरकार को ही दिया
(iii) यहाँ दोहरी नागरिकता नहीं है, बल्कि एक ही नागरिकता है।
(iv) सभी राज्यों के लिए एक ही संविधान है और राज्य इस संविधान में संशोधन या परिवर्तन नहीं कर सकते हैं।
(v) संपूर्ण देश के लिए एक प्रकार की न्यायिक व्यवस्था है।
(vi) संकटकाल में संविधान एकात्मक हो जाता है। जोशी ने ठीक ही कहा है, • "भारतीय संविधान की रचना साधारण काल में संघात्मक रूप में तथा संकटकाल में एकात्मक रूप में काम करने के लिए की गई है।
(vii) संघ सरकार शक्तिशाली बनाई गई है। वह राज्य की सरकारों पर पर्याप्त नियंत्रण रखती है। राज्यों के सीमा परिवर्तन और उनके नामों में हेर-फेर करने का अधिकार भी संसद को ही दिया गया है।
इससे स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, लेकिन इसमें एकात्मक व्यवस्था के भी अनेक महत्त्वपूर्ण लक्षण मौजूद हैं।
9. संघीय व्यवस्था राष्ट्रीय एकता के संवर्द्धन में सहायक है। कैसे ?
उत्तर – भारत में संघीय शासन व्यवस्था की स्थापना की गई है। ऐसा इसलिए किया • गया है ताकि राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता का संवर्द्धन किया जा सके। संविधान की रचना करते समय हमारे राष्ट्रीय नेता देश की एकता के प्रति चिंतित थे। आजादी के समय हमारी ऐतिहासिक और भौगोलिक परिस्थितियों ने हमें संघीय व्यवस्था अपनाने के लिए बाध्य किया। यदि आजादी के प्रारंभ में ही हमारी संघीय व्यवस्था की नींव कमजोर होती, तो राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ सकती थी। उस समय देश-विभाजन के कारण जातीयता, धार्मिक एवं सांप्रदायिक उन्माद एवं क्षेत्रीय भावना चरम पर थी । अतः, ऐसी विकट परिस्थिति में मजबूत संघीय व्यवस्था की स्थापना कर ही देश में सांप्रदायिक सद्भाव कायम रखा जा सकता था ताकि देश की एकता एवं अखंडता अक्षुण्ण रहे।
देश में राष्ट्रीय एकता बनी रहे, इसीलिए केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया। विकास की दिशा में सभी राज्यों के साथ समान प्रगति के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय एकता के आधार को मजबूत किया गया। अतः, स्पष्ट है कि भारत की संघीय व्यवस्था राष्ट्रीय एकता के संवर्द्धन में सहायक है।
10. ग्राम पंचायत के प्रमुख अंगों का वर्णन करें।
उत्तर – ग्राम पंचायत, पंचायती राज की सबसे निचली इकाई है। इसके निम्नलिखित प्रमुख अंग हैं।
(i) ग्राम सभा - - गाँव के सभी वयस्क नागरिक ग्राम सभा के सदस्य होते हैं। ग्राम सभा की बैठक समय-समय पर होती रहती है। परंतु, तीन महीने में एक बार बैठक अवश्य होनी चाहिए। यह विकास कार्यक्रम एवं बजट पर विचार करती है।
(ii) मुखिया – ग्राम पंचायत का प्रधान मुखिया होता है। यह प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है। ग्राम पंचायत की तरह इसका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। यह ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत की बैठक बुलाता है तथा उसकी अध्यक्षता करता है ।
(iii) उप मुखिया – ग्राम पंचायत के सभी चुने हुए सदस्य अपनी प्रथम बैठक में अपने में से एक उपमुखिया का चुनाव करते हैं। यह मुखिया की अनुपस्थिति में मुखिया के स्थान पर काम करता है।
(iv) पंचायत सचिव – यह सरकार द्वारा नियुक्त सरकारी कर्मचारी होता है। यह पंचायत कार्यालय के सचिव के रूप में काम करता है।
(v) ग्राम रक्षादल – एक दलपति के नेतृत्त्व में गाँव के युवकों की यह टीम गाँव में शांति सुरक्षा बनाए रखने का काम करती है ।
11. नगर निगम के मुख्य कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर – नगर निगम के निम्नांकित मुख्य कार्य हैं।
(i) नगर निगम क्षेत्र में पेशाबखानों, शौचालयों, नालियों आदि का निर्माण एवं उनकी देखभाल, (ii) सफाई का प्रबंध, (iii) पीने के पानी का प्रबंध, (iv) पुलों, गलियों, उद्यानों का निर्माण एवं सफाई, (v) चिकित्सालयों का प्रबंध एवं छुआछूत वाली बीमारियों की रोकथाम, (vi) प्राथमिक विद्यालयों, पुस्तकालयों, अजायबघरों की स्थापना एवं व्यवस्था, (vii) कल्याण-केंद्रों, मातृ-केंद्रों, शिशु-केंद्रों, वृद्धाश्रमों की स्थापना एवं प्रबंध, (viii) खतरनाक व्यापार की रोकथाम, (ix) दुग्धशाला की स्थापना, (x) आग बुझाना, (xi) मनोरंजन का प्रबंध, (xii) जन्म-मृत्यु निबंधन, (xiii) जनगणना, (xiv) बाजारों का निर्माण, (xv) नगर बससेवा का प्रबंध, (xvi) कब्रगाहों एवं श्मशानों की देखभाल, (xvii) गृह उद्योगों एवं सरकारी भंडारों की स्थापना करना
12. भाषा नीति क्या है ?
उत्तर – भारत विविधताओं वाला देश है। यहाँ धार्मिक, जातीय एवं क्षेत्रीय विविधताएँ तो हैं ही, भाषाई विविधताएँ भी विद्यमान हैं। यहाँ 22 भाषाएँ प्रमुखता से बोली जाती हैं जिन्हें भारत सरकार के द्वारा कार्यालयी भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। 114 भाषाएँ मान्यता प्राप्त करने की कतार में हैं।
विभिन्न भाषा-भाषी अपनी भाषाओं से जुड़े हैं। इन भाषाओं को वे अपनी पहचान का प्रतीक मानते हैं। यह सच है कि यहाँ हिंदी भाषा-भाषियों की संख्या सबसे अधिक 41.2 प्रतिशत है। परंतु, भारत के 28 में से 18 राज्य गैर-हिंदी भाषी राज्य हैं। हिंदी को ‘राजभाषा’ माना गया है। परंतु, इसे राष्ट्रभाषा के रूप में आजतक मान्यता नहीं मिली है। हिंदी के साथ-साथ अन्य 21 भाषाओं को भी मान्यता दी गई है। राज्य
नोट्स प्राप्त करने के लिए हमारे व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़े
https://chat.whatsapp.com/Ea9eICzjzyf0SV8qXS7rt0
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें