PSYCHOLOGY class 12th long and short questions answer Bihar board 2023 MODEL PAPER 1 बिहार बोर्ड कक्षा 12वीं के मनोवैज्ञानिक लघु एवं दीर्घ प्रश्न उत्तर प्रत्येक परीक्षा में पूछे गए प्रश्न जो इस बार भी इसी तरह के प्रश्न पूछे जाएंगे सबसे अलग सबसे अनोखा प्रश्न पत्र के साथ अपने नोटबुक पर कॉपी कर लो

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1. अंतःसमूह तथा बाह्य समूह क्या है ? -
उत्तर - अंतः समूह तथा बाह्य समूह (In group and out group) - समान अभिरुचि तथा समान उद्देश्य के लोग जो समूह बनाते हैं, उसे अंत: समूह 'हम' समूह कहा जाता है | इसके सदस्यगण आपस में मिलकर शांतिपूर्वक रहते हैं तथा समूह आदर्शों का पालन करते हैं। ऐसे समूह में सहयोग की भावना अधिक पायी जाती है । लेकिन, बाह्य-समूह इसके ठीक विपरीत होता है। इसमें सदस्यों के बीच अभियोजन का अभाव होता है। इसमें जाति, भाषा तथा अभिरुचि का बन्धन नहीं होता है। भारत के लोगों के व्यवहार को देखकर दक्षिण भारत के लोग आश्चर्य करते हैं। इनकी भाषा, लिपि, खान-पान सभी विचित्र मालूम पड़ते हैं। 

2.आज्ञापालन क्या है ?
उत्तर - आज्ञापालन सामाजिक प्रभाव का एक रूप है जहाँ एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से सीधे आदेश के जवाब में कार्य करते हैं, जो आमतौर पर एक प्राधिकरण व्यक्ति होता है। यह माना जाता है कि इस तरह के आदेश के बिना व्यक्ति ने इस तरह से कार्य नहीं किया होगा ।

3. परामर्श के स्वरूप का वर्णन करें ।
उत्तर - परामर्श लाभार्थियों की सहायता देने के लिए परामर्शदाता के साथ संबंध है जिसमें उसके विचारों, अनुभवों और क्रियाकलापों के प्रति अनुक्रिया करता है। जिससे लाभार्थी दिये गए सहायता से अपने को समाज में अनुकूलन स्थापित करता है । परामर्शदाता इच्छुक लाभार्थी को इस प्रकार से सहायता करता है कि उसमें परिस्थितियों का मुकाबला करने का कौशल, निर्णय लेने की क्षमता, संबंध स्थापित करने की योग्यता के लिए सक्षम बनाता है।

4. स्वास्थ्य क्या है
उत्तर - स्वास्थ्य का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। कहा गया है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क रहता है। स्वस्थ व्यक्ति उसे माना जाता है जिसे कोई बीमारी नहीं हो उसे किसी चिकित्सा की आवश्यकता नहीं हो । वास्तव में स्वास्थ्य की यह परिभाषा एकांगी है । इसमें मानसिक स्वास्थ्य पर बल दिया जाता है। आधुनिक युग में स्वीकार किया जाता है कि स्वास्थ्य चिकित्सकीय समस्या से ही केवल सम्बन्धित नहीं है, बल्कि उत्तम स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छे सामाजिक तथा मानसिक स्वास्थ्य को भी माना जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहा है, "स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक स्वास्तिबोध की अवस्था को कहा जाता है न कि केवल बीमार या मानसिक दुर्बलता के अभाव को।" इस परिभाषा में स्वास्थ्य को व्यापक अर्थों में लिया गया है जिसमें चार अवयवों शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य को समाहित किया गया है।

 5. समूह को परिभाषित करें ।
उत्तर - जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक स्थान पर एकत्रित होते हैं तो उसे समूह कहा जाता है। परन्तु, समूह के लिए दो आवश्यक शर्ते हैं - दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक स्थान पर एकत्रित होना तथा उनके बीच कार्यात्मक सम्बन्ध का होना । लिण्डग्रेन ने लिखा है, "दो या दो से अधिक व्यक्तियों के किसी कार्यात्मक संबंध में व्यस्त होने पर समूह का निर्माण होता है। ' शेरिफ ने समूह की परिभाषा देते हुए कहा है, "समूह एक सामाजिक इकाई है, जिसमें कुछ व्यक्ति होते हैं जो एक-दूसरे के प्रति वफादार अपेक्षाकृत निश्चित पद एवं भूमिका से जुड़े रहते और जिसके अपने आदर्श या मूल्य होते हैं, जो कम-से-कम समूह के प्रति परिणाम के मामले में सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं । " 

6. सामान्य कौशल क्या है ? 
उत्तर - ये कौशल मूलत: सामान्य स्वरूप के हैं और इनकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिक को होती है चाहे उनकी विशेषता का क्षेत्र कोई भी हो । ये कौशल सभी व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक के लिए आवश्यक है चाहे वे नैदानिक एवं स्वास्थ्य मनोविज्ञान के क्षेत्र के हों, औद्योगिक/संगठनात्मक, सामाजिक या पर्यावरणी मनोविज्ञान से संबंधित हों या सलाहकार के रूप में कार्यरत हों। इन कौशलों में वैयक्तिक तथा बौद्धिक कौशल दोनों शामिल होते हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि किसी भी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण उन विद्यार्थियों को नहीं दिया जाना चाहिए जिनमें इन कौशलों का अभाव हो । एक बार इन कौशलों का प्रशिक्षण प्राप्त कर लेने के बाद ही किसी विशिष्ट प्रशिक्षण देकर उन कौशलों का अग्रिम विकास किया जा सकता है। 

7. रोगी केंद्रित चिकित्सा क्या है ? 
उत्तर - रोगी केंद्रित चिकित्सा के लिए रोगी को प्रत्येक थेरेपी सत्र के दौरान सक्रिय रूप से बागडोर संभालने की आवश्यकता होती है जबकि चिकित्सक मुख्य रूप से गाइड या समर्थन के स्रोत के रूप में कार्य करता है । 12. क्लासिकी अनुकूलन क्या है ? उत्तर क्लासिकी अनुकूलल (जिसे पावलोवियन या प्रतिवादी कॉडशनिंग के रूप में भी जाना जाता है) एक रूसी वैज्ञानिक द्वारा खोजा गया था। सरल शब्दों में, किसी व्यक्ति में एक नई सीखी गई प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए दो उत्तेजनाएँ एकसाथ जुड़ी हुई होती हैं । 

8. प्रतिरोध या जानवर की अवस्था क्या है ?
 उत्तर - प्रतिरोध की अवस्था स्वतंत्र साहचर्य की अवस्था के बाद उत्पन्न होती है । रोगी जब अपने मन में आने वाले किसी भी तरह के विचारों को बोलकर विश्लेषक को सुनाता है तो इसी प्रक्रिया में एक ऐसी अवस्था आ जाती है जहाँ वह अपने मन के विचारों को व्यक्त नहीं करना चाहता है और वह या तो अचानक चुप हो जाता है या कुछ बनावटी. बात जान बुझकर करने लगता है। इस अवस्था को प्रतिरोध की अवस्था कहा जाता है । प्रतिरोध की अवस्था तब उत्पन्न होती है जब रोगी के मन में शर्मनाक एवं चिन्ता उत्पन्न करने वाली बात आती है जिसे वह विश्लेषक को नहीं बतलाना चाहता । 

9. विद्युत आघात चिकित्सा क्या है ?
उत्तर- विद्युत आक्षेपी चिकित्सा का उपयोग जटिल मानसिक रोगियों के लिए किया जाता हैं । यह जैव आयुर्विज्ञान चिकित्सा का से बिजली के हल्के आघात रोगी के मस्तिष्क में दिये जाते हैं जिससे आक्षेप उत्पन्न हो एक रूप है। इसमें इलेक्ट्रोड के माध्यम सके । इसका उपयोग तभी किया जाना चाहिए जब अन्य चिकित्सा पद्धति से रोगी को लाभ पहुँचने की आशा नहीं रहती है। यह एक अच्छा उपचार नहीं है ।

10.सकारात्मक स्वास्थ्य क्या है ?
उत्तर - स्वास्थ्य का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। कहा गया है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क रहता है। स्वस्थ व्यक्ति उसे माना जाता है जिसे कोई बीमारी नहीं हो उसे किसी चिकित्सा की आवश्यकता नहीं हो । वास्तव में स्वास्थ्य की यह परिभाषा एकांगी है । इसमें मानसिक स्वास्थ्य पर बल दिया जाता है। आधुनिक युग में स्वीकार किया जाता है कि स्वास्थ्य चिकित्सकीय समस्या से ही केवल सम्बन्धित नहीं है, बल्कि उत्तम स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छे सामाजिक तथा मानसिक स्वास्थ्य को भी माना जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहा है, “स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक स्वास्तिबोध की अवस्था को कहा जाता है न कि केवल बीमार या मानसिक दुर्बलता के अभाव को।" इस परिभाषा में स्वास्थ्य को व्यापक अर्थों में लिया गया है जिसमें चार अवयवों शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य को समाहित किया गया है।
स्वास्थ्य का संबंध हमारे आहार से है। यह न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि मानसिक रूप स्वस्थ रखने में सहायक होता है। स्वास्थ भोजन रोगरोधक क्षमता को बढ़ाता है जबकि खराब भोजन रोगों को जन्म देता है। एक व्यक्ति को कितना पोषक तत्त्व चाहिए, यह अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग होता है ।
वैसे व्यक्ति जो उत्तम भोजन लेते हैं, वे अपना वजन सामान्य बनाए रखते हैं जबकि जो लोग ज्यादा मात्रा में चर्बी का उपयोग करते हैं वे अधिक वजन वाले हो जाते हैं। दूसरी ओर वैसे व्यक्ति जो गरीबी के कारण स्वस्थ भोजन नहीं करते वे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। खासकर महिलाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय है । यहाँ महिला एवं पुरुष में भेद किया जाता है जिससे महिलाएँ अधिक कुपोषण की शिकार होती हैं । इसपर ध्यान देने की आवश्यकता है।

11. समाजोपयोगी व्यवहार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - समाजोपकारी व्यवहार से तात्पर्य वैसे व्यवहार से है जिससे समाज का उपकार होता है। इस बात की चर्चा अधिकांश धर्मों में की गयी है कि दूसरे की भलाई से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं होता है । इस प्रकार के व्यवहार को समाजोन्मुख व्यवहार भी कहा जाता है। समाजोपकारी व्यवहार तथा परहितवाद में समानता होती है जिसका अर्थ है बिना किसी आत्महित के भाव के दूसरे के कल्याण के बारे में कुछ करना । अपनी चीजों को दूसरों के साथ बाँटना, दूसरों के साथ सहयोग करना, विपत्तियों में सहयोग करना, सहानुभूति का प्रदर्शन करना आदि ।
समाजोपकारी व्यवहार की कुछ विशेषताएँ होती हैं जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं
(i) इसमें दूसरे लोगों को लाभ पहुँचाने या उनका भला करने का लक्ष्य होना चाहिए ।
(ii) दूसरे की भलाई के बदले किसी चीज की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। 
(iii) यह व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से किया जाना चाहिए न कि किसी दबाव के कारण ।
(iv) समाजोपकारी व्यवहार में सहायता करने वाले व्यक्ति के लिए कुछ कठिनाइयाँ निहित होती हैं या उसे कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। 

12. भीड़ को परिभाषित करें । 
उत्तर - भीड़ का प्रभाव व्यक्ति पर व्यापक रूप से पड़ता है। यहाँ भीड़ से तात्पर्य सीमित स्थान में अत्यधिक लोगों का जमा हो जाना है। कुछ लोग जनसंख्या घनत्व एवंभीड़ को एक ही अर्थ में लेते हैं क्योंकि दोनों में व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है। परन्तु जनसंख्या घनत्व भीड़ नहीं भी हो सकती है, जबकि भीड़ जनसंख्या घनत्व हो सकती है। भीड़ व्यक्तियों में एक-दूसरे से सटे हुए का बोध होता है, जबकि जनसंख्या घनत्व प्रतिवर्ग फुट में लोगों के वास्तविक संख्या को दर्शाता है। रेलगाड़ी में कभी-कभी अत्यधिक भीड़ होता है जहाँ पचास व्यक्तियों की जगह में एक सौ से भी अधिक व्यक्ति होते हैं। वहाँ स्थान की कमी होती है जिससे शरीर से शरीर टकराता है। जबकि जनसंख्या घनत्व में ऐसा नहीं भी हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी संगीत कार्यक्रम को देखने समय जनसंख्या घनत्व तो होता है परन्तु भीड़ नहीं होता है । 

13. अभिक्षमता परीक्षण के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें । 
 उत्तर–अभिक्षमता परीक्षण मनोविज्ञान का एक प्रमुख परीक्षण है जिसके माध्यम से व्यक्ति के किसी कौशल या प्रवीणता ग्रहण करने की क्षमता का मापन किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ऐसी क्षमताएँ होती हैं, जो विशिष्ट होती हैं, उस क्षेत्र में यदि उसे आगे बढ़ने का अवसर दिया जाए तो वह बहुत अधिक ऊँचाई हासिल कर सकता है उसी विशिष्ट क्षमता को मापने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने कुछ परीक्षणों का निर्माण किया है । इस दिशा में काफी पहले से ही मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयास जारी है। इन्हीं परीक्षणों को अभिक्षमता परीक्षण के नाम से जाना जाता है। इसके अन्तर्गत कई प्रकार की विशिष्ट क्षमताएँ, जैसे- यांत्रिक क्षमता, गणितीय क्षमता, लिपिक क्षमता, संगीत क्षमता आदि का मापन किया जाता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अभिक्षमता के स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। फ्रीमैन ने कहा है, "अभिक्षमता परीक्षण से तात्पर्य उस परीक्षण से है, जिसके माध्यम से किसी विशिष्ट क्षेत्र में विशिष्ट कार्य को पूरा करने की व्यक्ति में अन्तर्निहित क्षमता का मापन किया जाता है। "
अभिक्षमता परीक्षण के प्रकार - विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा अभिक्षमता परीक्षण के क्षेत्र में बहुत अधिक शोध किए गए हैं और परीक्षणों का निर्माण किया गया है । इन परीक्षणों को मोटे तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- एककारक अभिक्षमता परीक्षण तथा बहुकारक अभिक्षमता परीक्षण ।
एककारक अभिक्षमता परीक्षण - एककारक परीक्षण (Unifactor aptitude test) के अन्तर्गत वैसे परीक्षण आते हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति के किसी प्रकार की अभिक्षमता का मापन होता है। इस प्रकार के परीक्षण की खास विशेषता यह है कि इसके माध्यम से व्यक्ति में निहित एक ही क्षमता का सही ढंग से और सूक्ष्म मापन करता है, जिसमें विश्वसनीयता और वैधता की मात्रा अधिक होती है । अभिक्षमता मापन की दिशा में जिस परीक्षण का निर्माण किया गया है, उनमें मुख्य निम्नलिखित हैं
(i) Schince Research Associates or Mechanical aptitude test (ii) Mennesota Mechanical Assembly test (iii) Test Seashore Measures or Musical talent (iv) The Drake Musical aptitude test (v) The Detroit aptitude test (vi) General Clerical aptitude test (vii) Scientific aptitude test for college student
इस प्रकार एककारक अभिक्षमता परीक्षण के माध्यम से यांत्रिक अभिक्षमता, संगीत अभिक्षमता, लिपिक अभिक्षमता, वैज्ञानिक अभिक्षमता आदि का मापन होता है । इस दिशा में बिहार में भी कुछ महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं, जिसमें ए० के० पी० सिन्हा तथा एल० एन० के० सिन्हा द्वारा निर्मित वैज्ञानिक अभिक्षमता परीक्षण संस्थान है, जो कॉलेज के विद्यार्थियों को मापने के लिए संस्थापित किया गया है, काफी लोकप्रिय हुआ।
बहुकारक अभिक्षमता परीक्षण - बहुकारक अभिक्षमता परीक्षण के अन्तर्गत ऐसे परीक्षण आते हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति में निहित अनेक प्रकार की क्षमताओं का मापन एक ही जाँच के माध्यम से करते हैं। ज्यादातर अभिक्षमता परीक्षण बहुकारक के अन्तर्गत आते हैं, ऐसी परीक्षणों के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रमुख हैं
(i) Flangan Aptitude classification test (ii) Scientific aptitude test Battery (iii) Teaching aptitude test Battery (iv) General aptitude test Battery (v) Differential aptitude test
उपर्युक्त परीक्षणों में क्पमितमदजपंस 'चजपजनकम जमेज सर्वाधिक प्रचलित अभिक्षमता है, जिसका निर्माण सबसे पहले 1947 ई० में अमेरिका के चेलबीवसवहपबंस ब्वतचवतंजपवद ने किया था ।
इस परीक्षण का उपयोग वर्ग 8 से 12 के छात्रों के लिए किया जाता है। इसका संशोधन 1952 एवं 1963 ई० में किया गया। इस परीक्षण द्वारा 8 प्रकार की क्षमताओं का भापन किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं

शब्दों में निहित संप्रत्ययों को समझने की क्षमता का मापन किया जाता है। 
(i) शाब्दिक चिंतन परीक्षण (Verbal Reasoning test)- इसके माध्यम से रचनात्मकता का भी मापन होता है ।

(ii) संख्यात्मक जाँच के माध्यम से विद्यार्थियों में निहित संख्यात्मक संख्या संख्याओं के आपसी संबंधों अभिक्षमता परीक्षण (Numerical ability को समझने, संख्याओं की गणना एवं उसके बारे में चिंतन की क्षमता का मापन होता है। 
(iii) अमूर्त चिंतन परीक्षण (Abstract Reasoning test)- इस जाँच के माध्यम से व्यक्ति में निहित अमूर्त चिंतन की क्षमता को मापा जाता है, जो कि एक विशिष्ट योग्यता है ।
(iv) दैशिक संबंध परीक्षण (Space Relation test)-दैशिक संबंध परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति की उस क्षमता की माप होती है, जिसके द्वारा वह यह बता सकता है कि किसी दिए हुए Diagram से किस प्रकार का चित्र बनेगा या कोई एक ही वस्तु को विभिन्न दिशाओं में घुमाया जाए तो किस प्रकार दिखाई देगा । इस क्षमता की आवश्यकता क्तमे कमेपहदपदह एवं क्मबवतंजपवद आदि में विशेष रूप से होती है ।
(v) यांत्रिक चिंतन परीक्षण (Mechanical Reasoning test) - यांत्रिक चिंतन परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति की यांत्रिक क्षमताओं का पता चलता है, जिसकी आवश्यकता उद्योगों में सर्वाधिक है । इस प्रकार की क्षमता वाले लोग सफल इंजीनियर एवं कुशल उद्योगपति हो सकते हैं ।
(vi) लिपिक गति और परिशुद्धता परीक्षण (Clerical speed and accuracy test)-यह एक ऐसी जाँच है जिसके माध्यम से व्यक्ति किसी शब्द या चित्र का प्रत्यक्षीकरण करने के पश्चात् होनेवाली सही अनुक्रिया का मापन करता है, जिसकी आवश्यकता लिपिक कार्य या Stenography आदि में सर्वाधिक होती है ।
(vii) हिज्जे या वर्तनी परीक्षण (Spelling test)-भाषा उपयोग परीक्षण के दो उप-परीक्षण है जिसमें हिज्जे परीक्षण पहला उपभाग है जिसके माध्यम से व्यक्ति में निहित शब्दों का सही-सही हिज्जे करने की क्षमता की माप की जाती है ।
(viii) भाषा- वाक्य परीक्षण (Language Sentence test) - इस परीक्षण के माध्यम से भाषा का सही-सही उपयोग तथा वाक्यों का सही वैयाकरणिक अनुप्रयोग आदि की क्षमता का मापन किया जाता है ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि DAT के माध्यम से 8 विभिन्न प्रकार की अभिक्षमताओं का मापन किया जाता है, जिसके क्रियान्वयन में कुल मिलाकर 3 घंटे 6 मिनट का समय लगता है । इसका उपयोग सामूहिक एवं वैयक्तिक परीक्षण के रूप में किया जा सकत

14. साक्षात्कार की प्रक्रिया के प्रमुख चरण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर - साक्षात्कार चाहे किसी रूप का हो उसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना अनिवार्य है। इसमें दो या अधिक व्यक्तियों के बीच एक उद्देश्यपूर्ण वार्तालाप होता है जिसमें प्रश्न - उत्तर प्रारूप का अनुसरण किया जाता है। साक्षात्कार अन्य प्रकार के वार्तालापों की तुलना में अधिक औपचारिक होता है क्योंकि इसका एक पूर्वनिर्धारित उद्देश्य होता है तथा उसकी संरचना केन्द्रित होती है । परामर्शी साक्षात्कार के उद्देश्य स्थापित हो जाने पर साक्षात्कार का एक प्रारूप तैयार करता है। इसका आधारभूत प्रारूप तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है- प्रारंभ अवस्था, मुख्य अवस्था तथा समापन अवस्था ।
(i) प्रारंभ अवस्था - साक्षात्कार के लिए सबसे पहले दो सम्प्रेषकों के बीच सौहार्द स्थापित करना होता है। इसका उद्देश्य यह होता है कि साक्षात्कार देनेवाला आराम की स्थिति में आ जाय । सामान्यतः साक्षात्कारकर्त्ता बातचीत का प्रारंभ करता है और प्रारंभिक समय में ज्यादा ज्यादा बात करता है । इससे उसके दो उद्देश्य पूरे होते हैं- साक्षात्कार का उद्देश्य स्थापित होता है तथा साक्षात्कार देनेवाले की स्थिति एवं प्रश्न पूछने वाले के प्रति सहज होने का समय मिल जाता है।
(ii) मुख्य अवस्था मुख्य अवस्था ही साक्षात्कार का केन्द्र है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्त्ता सूचना और आँकड़ा प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रश्न पूछता है जिसके लिए साक्षात्कार का आयोजन किया जाता है। इसके लिए साक्षात्कारकर्त्ता प्रश्नों की एक सूची तैयार करता है। साक्षात्कारकर्त्ता उन क्षेत्रों या श्रेणियों को निर्धारित कर प्रश्न पूछता है। संग्रह किया है
(iii) समापन अवस्था समापन अवस्था में साक्षात्कारकर्त्ता ने जो उसके सारांश से अवगत करा देना चाहिए। साक्षात्कार का अंत आगे लिए जाने वाले कदमों पर चर्चा के साथ होना चाहिए। जब साक्षात्कार समाप्त हो रहा है तब साक्षात्कारकर्त्ता को साक्षात्कार देने वाले को भी प्रश्न पूछने का अवसर देना चाहिए । 

15 . सामान्य -असामान्य व्यक्ति के व्यवहारों में अंतर स्पष्ट करें 

23. उत्तर - सामान्य से तात्पर्य व्यक्ति के वैसे व्यवहार से होता है जो चेतन द्वारा संचालित होते हैं, जिसकी चेतना व्यक्ति को रहती है। इसके ठीक विपरीत असामान्यव्यवहार व्यक्ति के वैसे व्यवहार को कहेंगे जिसपर अचेतन का प्रभाव रहता है, अर्थात् इस व्यवहार की चेतना व्यक्ति को नहीं रहती। Abnormal दो शब्दों के मेल से बना है Ab + Normal अर्थात् away from normal सामान्य से दूर। मतलब यह कि सभी अच्छे लोग जो समाज को व्यवहार करते हैं उनसे अलग नए ढंग से व्यवहार को असामान्य व्यवहार कहेंगे। प्रत्येक समाज के नियम कानून एवं नीति अलग-अलग होते हैं, उसके विपरीत जो व्यक्ति व्यवहार करता है, उसे असामान्य कहते हैं। इस संबंध में किस्कर (Kisker) ने कहा है, "मनुष्य के वैसे व्यवहार और अनुभूतियों जो साधारणत: अनोखी, असाधारण या अलग होती है, उसे असामान्य कहा जाता है। " ("Human behaviour and experiences which are strange, unusual or defferent ordinarily are considered abnormal.) किस्कर की परिभाषा से असामान्य व्यक्तियों को समझने में कुछ मदद मिलती है, लेकिन समाज कल्याण के दृष्टिकोण से देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि असामान्य व्यवहार वह है, जो समाज कल्याण के लिए हानिकारक हो तथा स्वयं अपने लिए भी हानिकारक हो ।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि सामान्य तथा असामान्य में बहुत अन्तर है। सामान्य तथा असामान्य में गुण एवं मात्रा दोनों प्रकार का अन्तर देखा जाता है, परन्तु इन दोनों के बीच सीमा रेखा खींचना मुश्किल है। सामान्य व्यवहार की कुछ कसौटियाँ हैं। इन्हीं कसौटियाँ के आधार पर हम दोनों के बीच अन्तर को स्पष्ट कर सकते हैं । इन दोनों में निम्नलिखित मुख्य अन्तर है
1. अनुरूपता (Appropriate) - व्यक्ति सामान्यतः परिस्थितियों को समझते हुए उसके अनुकूल व्यवहार करता है। जैसे- यदि परिस्थितियाँ सुखद वह हँसता है और दुखद परिस्थितियों में रोता है। यह सामान्य व्यक्तियों का लक्षण है। लेकिन इसके विपरीत असामान्य व्यक्ति परिस्थितियों को समझ नहीं सकते हैं और उसके विपरीत व्यवहार करते हैं । जैसेदुखद परिस्थितियों में हँसना और सुखद परिस्थितियों में रोना आदि । इन व्यवहारों को देखकर हम निःसंकोच रूप से कह सकते हैं कि वह व्यक्ति असामान्य है ।
2. व्यवहारों का नियमित होना (Regular behaviour) - सामान्यतः व्यक्ति का व्यवहार नियमित होता है। जीवन की जटिलताओं में सामान्य व्यक्तियों का व्यवहार मूलत: एक जैसा रहता है। उसमें अधिक अन्तर देखा जाता, लेकिन असामान्य व्यक्तियों इस बात की कमी देखी जाती है। ऐसा व्यक्ति बहुत जल्द ही संवेगात्मक हो जाता है । वह कब कौन सा व्यवहार करेगा इसका निश्चित नहीं रहता । में
3. सामाजिक कल्याण (Social Welfare) - सामान्य व्यक्ति समाज की प्रगति के लिए सतत् प्रयत्नशील रहता है। उसका जीवन समाज के लिए उदाहरण स्वरूप होता है । समाज पर जब कोई संकट पड़ता है, तो वह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता, उससे बचने का उपाय करता है। अन्य लोग भी उसके व्यवहार का अनुकरण करते हैं, परन्तु असामान्य व्यक्ति समाज कल्याण की बात नहीं सोचता, उसमें इन गुणों का अभाव देखा जाता है। समाज पर विपत्ति के समय असामान्य व्यक्ति न उससे प्रभावित होते हैं और न ही उसे दूर करने का प्रयास करता है। ऐसे व्यक्ति स्वयं समाज पर बोझ बने रहते हैं । कुछ असामान्य व्यक्ति समाज में बुराई फैलाने का भी काम करते हैं ।
4. अपने-आपके के लिए हितकर (To be helpful for the individual him self) - सामान्य व्यक्तियों का व्यवहार समाज के लिए हितकर होने के साथ-साथ अपने-आपके लिए भी हितकारी होता है। वह जो भी व्यवहार करता है, उसमें हित छिपा होता है । दूसरी ओर, असामान्य व्यक्तियों का व्यवहार स्वयं के लिए अहितकारी होने के. साथ-साथ समाज के लिए भी अहितकर होता है। सामान्य व्यक्तियों का व्यवहार संतुलित होता है जबकि असामान्य व्यक्तियों का व्यहार असंतुलित होता है। कभी-कभी तो उसका जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। जो व्यक्ति मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त होते हैं, वे अपनी रक्षा करने में भी समर्थ नहीं होते ।

5. जीविकोपार्जन (Livehood) -सामान्य लोग सही ढंग से जीवन जीने के लिए कुछ काम करते हैं और उससे वे अपना जीविकोपार्जन करते हैं। उन्हें उचित और अनुचित का ज्ञान रहता है, अतः वे सही कार्य को करके अपना जीविकोपार्जन करते हैं । वे अपने पैरों पर खुद खड़े हो सकते हैं तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकते हैं, लेकिन असामान्य व्यक्ति सही ढंग से जीविकोपार्जन नहीं कर सकते । वे अपना पेशा नहीं चुन सकते, अपने परिवार तो क्या, अपना भी पेट नहीं भर सकते। वे दूसरों पर बोझ बनकर रहते हैं । असामान्य व्यक्तियों को उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं रहता।
6. समायोजन (Adjustment) - सामान्य लोगों में मिलजुल कर रहने की प्रवृत्ति देखी जाती है। वे अपने प्रभाव में लोगों को आसानी से ले लेते हैं तथा परिस्थिति के अनुरूप दूसरों के प्रभाव में चले भी जाते हैं और उसी के अनुरूप व्यवहार करते हैं, लेकिन असामान्य व्यक्तियों में मिलजुल कर रहने की क्षमता नहीं होती। वे दूसरों को अपना मित्र नहीं बना पाते। लोगों को प्रभावित करने की क्षमता भी नहीं होती और न वे लोगों के प्रभाव में आते हैं। ऐसे व्यक्ति बात-बात में लोगों से झगड़ा कर लेते हैं, जिससे समाज में उनका अभियोजन नहीं हो पाता ।
7. सही निर्णय (Right Decision) -सामान्य लोगों में सही और गलत का ज्ञान होता है, अतः, वे निर्णय लेते समय सतर्क रहते हैं और सही निर्णय लेते हैं, जिससे उन्हें सही काम का उचित परिणाम प्राप्त होता है। वे नैतिकता के अनुरूप कार्य करते । उन्हें समाज के रीति-रिवाजों परम्पराओं, प्रथाओं, नियमों आदि का ज्ञान रहता है, इसलि वे सोच-समझकर निर्णय लेते हैं, वे गलत कार्यों से बचने का प्रयास करते हैं, बल्ि उसका परिणाम वे जानते हैं। परन्तु असामान्य व्यक्तियों में सही और गलत कार्यों क जानकारी नहीं रहती है। इसलिए वे बिना सोचे-समझे काम करते हैं, जिनका परिणाम बु होता है । उनमें निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता है। उन्हें समाज के नियमों क परवाह नहीं रहती, अतः वे निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते ।

8. पश्चात्ताप का अनुभव (Feeling of Remorse) - सामान्य व्यक्तियों द्वा सोच समझकर व्यवहार करने के बावजूद कुछ गलतियाँ होती हैं। उन गलतियों के लि उन्हें पश्चात्ताप होता है और उससे वे सबक लेते हैं ताकि फिर वे गलतियाँ न करें। लेकि असामान्य लोगों से जो गलतियाँ होती हैं, वे उसे गलत मानने से इनकार करते हैं, उनक नजरों में उनके द्वारा किए गए सभी कार्य सही होते हैं, अतः वे गलतियों के लि पश्चात्ताप नहीं करते, अतः वे बार-बार एक ही गलती को दुहराते चले जाते हैं जिस उनका जीवन गलतियों से भरा होता है

9. विधान के अनुरूप (In accordance with law) - प्रत्येक समाज या देश का अपना नियम और कानून होता है, जिसका पालन करना सभी सदस्यों का कर्त्तव्य है सामान्य लोग उन नियमों और कानूनों के अनुरूप व्यवहार करते हैं तथा नियम-कानून क रक्षा करने का भरसक प्रयास करते हैं, लेकिन असामान्य व्यक्ति को नियम और कानून क परवाह नहीं होती । वे अपने नियम के अनुसार चलते हैं। वे कानून को अपने हाथ लेकर अराजकता फैलाते हैं, जिससे समाज या देश को क्षति होती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि सामान्य और असामान्य के बीच बहुत अन्तर है, फि भी इन दोनों के बीच सीमारेखा खींचना आसान नहीं है । 

16. तनाव के प्रकारों का अध्ययन करें ।
उत्तर – तनाव मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं
( 1 ) एंटीसिपेट्री स्ट्रेस (Anticipatory Stress ) – जब आप भविष्य में हो वाली गतिविधियों को लेकर बहुत ज्यादा सोचने लग जाते हैं, तो आपको एंटीसिपेट्री स्ट्रेस हो सकता है । इस प्रकार के तनाव में आपको अक्सर भविष्य में घटने वाली स्थिति क गलत होने का डर व खतरा महसूस होता रहता है। उदाहरण के लिए आपको आने वा एग्जाम में फेल होने का डर सताने लगे ।

(2) एनकाउंटर स्ट्रेस (Encounter Stress ) – जब आप किसी निश्चि व्यक्ति या किसी ग्रुप के सामने जाने से चिंतित होने लगे और उनके सामने जाने से हं तनाव होने लगे, तो वह इसी प्रकार का तनाव माना जाएगा। इस तरह के स्ट्रेस में आ निश्चित व्यक्ति या ग्रुप के द्वारा अपने बारे में कोई राय कायम कर लेने के डर से जूझ रहते हैं ।
( 3 ) टाइम स्ट्रेस ( Time Stress ) – जब आपको समय को लेकर तनाव रहने लगे, तो समझ जाइए कि आपको टाइम स्ट्रेस हो रहा है। इस तरह के तनाव में इंसान को समय की कमी महसूस होती रहती है । उसे लगता है कि वह समय पर कोई काम पूरा नहीं कर पाएगा । इस प्रकार का तनाव ऑफिस जाने वाले लोग, पढ़ने वाले बच्चे या डेडलाइन पर काम करने वाले लोगों को होता है ।
( 4 ) सिचुएश्नल स्ट्रेस (Situational Stress) — सिचुएश्नल स्ट्रेन तब होता है जब आप किसी परिस्थिति के कारण तनाव में रहते हैं यह स्थिति जीवन में अक्सर कभी कभी आ सकती है, लेकिन कुछ लोगों को ऐसी सिचुएशन से भी तनाव हो सकता है, जिनका सामना उन्हें बार बार करना पड़ता है। उदाहरण के लिए बच्चे एक्जाम के आस-पास बहुत ज्यादा तनावग्रस्त होने लगते हों या फिर आपकी नौकरी चले जाने के कारण अत्यधिक तनाव हो रहा हो ।

17. व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम की विवेचना करें । 
 उत्तर - व्यक्तित्व के मानवतावादी दृष्टिकोण से तात्पर्य उस मनोविज्ञान से है जिसमें कि मानव के स्वभाव या मानव के अस्तित्व को मनोविज्ञान की विषय-वस्तु के रूप में माना गया है । मानव से संबंधित कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिसकी खोज आवश्यक है । जैसे-जीवन का क्या अभिप्राय है तथा मनुष्य क्यों जन्म लेता है, क्यों जीवित रहता है आदि का उत्तर की खोज मानवतावादी मनोविज्ञान में किया जाता है । मानवतावादी दृष्टिकोण वह दृष्टिकोण है जो मानवीय मूल्यों का अध्ययन करता है तथा नैतिक पक्ष को उन्नत बनाने का प्रयास करता है। मानवतावादी मनोविज्ञान के विकास में मैस्लों का बहुत अधिक योगदान है। इन्होंने व्यक्ति की आवश्यकताओं को पाँच वर्गों में विभाजित किया है। पहले वर्ग में वैसी आवश्यकताओं को रखा है, जिनकी संतुष्टि जीवन रक्षा के लिए आवश्यक है । इसके अन्तर्गत भूख, प्यास, यौन आदि प्रेरणा को रखा जा सकता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद दूसरी आवश्यकता उत्पन्न होती है जिसके अन्तर्गत सुरक्षा की आवश्यकता सबसे महत्वपूर्ण है । इन आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद तीसरी आवश्यकता का जन्म होता है । इसमें प्रेम सहानुभूति स्नेह आदि का विकास होता है। इस वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद चौथी आवश्यकता आती है जिसके अन्तर्गत इज्जत, प्रतिष्ठा आदि का स्थान आता है तथा पाँचवीं श्रेणी की आवश्यकता होती है जिसे स्ववास्तविकीकरण (Self actualization) कहते हैं । इसका तात्पर्य यह हुआ कि जब व्यक्ति के सभी के आवश्यकताओं की संतुष्टि हो जाती है तो वह अपना सामर्थ्य सिद्ध करने का प्रयास करता है। इस प्रकार व्यक्ति का अन्तिम उद्देश्य मानव कल्याण को आधार मानकर मानवतावादी मनोविज्ञान का विकास हुआ जिसने मनोविज्ञान को अपूर्व योगदान करके इसके विकास का मार्ग प्रशस्त किया । -



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