डुमरियागंज।
मोहर्रम की दसवीं को कर्बला के मैदान में हुई जंग की याद में मनाए जाने वाले गम और शोक के त्योहार को परंपरागत तरीके से मनाए जाने की तैयारियां अकीदतमंदों ने पूरी कर ली है।
कोरोना प्रोटोकॉल के पालन के तहत शिया समुदाय सहित अन्य लोग अपने घरों पर ताजिया रखकर और नौहा मातम कर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करेंगे।
अरबी कैलेंडर के 61 हिजरी यानी 1400 वर्षों पहले कर्बला के तपते रेगिस्तान में लड़ी गई जंग में इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अपने परिजनों व साथियों सहित यजीद के लश्कर से डटकर मुकाबला करते हुए हक, सच्चाई, मानवता की रक्षा के लिए शहीद हो गए।
हजरत इमाम हुसैन और उनके परिजनों, साथियों ने अपनी जान देकर यजीद के मंसूबे को नाकाम करते हुए हक, सच्चाई और मानवता तथा इस्लाम की रक्षा की।
अरबी कैलेंडर के 61 हिजरी यानी 1400 वर्षों पहले कर्बला के तपते रेगिस्तान में लड़ी गई जंग में इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अपने परिजनों व साथियों सहित यजीद के लश्कर से डटकर मुकाबला करते हुए हक, सच्चाई, मानवता की रक्षा के लिए शहीद हो गए।
हजरत इमाम हुसैन और उनके परिजनों, साथियों ने यजीद की लाखों की फौज से मोर्चा लेते हुए उनसे पूरी बहादुरी से जंग की। उनकी बहादुरी से एकबारगी तो यजीद के फौजियों के दिल भी दहल गए।
सबसे आखिर में यजीदी लश्कर से लड़ते हुए हजरत इमाम हुसैन ने नमाज अदा करते समय सजदे में अपना सिर कटा दिया।
हजरत इमाम हुसैन और उनके परिजनों, साथियों ने अपनी जान देकर यजीद के मंसूबे को नाकाम करते हुए हक, सच्चाई और मानवता तथा इस्लाम की रक्षा की।
इमाम हुसैन और कर्बला के 72 शहीदों की शहादत की याद में आज मोहर्रम की दसवीं के मौके पर हर तरफ से या हुसैन की सदाएं बुलंद होगी।
शासन की ओर से जारी कोरोना प्रोटोकॉल के चलते ताजियों का जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी गई है। लोग अपने घरों और इमामबाड़ा में ताजिया रखकर नौहा मातम कर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए उन्हें श्रद्धासुमन पेश किया जाएगा
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