इतिहास
परियोजना कार्य-1
1. अपने शहर में पाँच तरह के इमारतों को चुनिए। प्रत्येक के विषय में जानकारी प्राप्त
कीजिए उन्हें बनाने का निर्णय क्यों लिया गया? उसके लिए संसाधनों की व्यवस्था
कैसे की गई उनके निर्माण का उत्तरदायित्व किसे सौंपा गया? इन इमारतों के स्थापत्य
संबंधी आयामों का वर्णन कीजिए और औपनिवेशिक स्थापत्य से इनकी समानताओं
या भिन्नताओं को चिह्नित कीजिए।
उत्तर-
परियोजना का नाम
: ऐतिहासिक इमारतों की जानकारी
परियोजना के उद्देश्य : इतिहास के प्रति जागरुकता
परियोजना का महत्व : इमारत एक धरोहर है। विशेषकर उनकी प्राचीनता जानने की
विशेष उत्सुकता का अनुभव होता है। जानने की जिज्ञासा बढ़ती है।
परियोजना का कार्यान्वयन : मैं पटना नगर में रहता हूँ। इस शहर में कितने ही प्राचीन और
मध्ययुगीन धरोहर इमारते हैं जिनमें पाँच निम्नलिखित है-
1. पटना का गोलघर-() गोलघर का निर्माण 1786 ई० में किया गया। (ii) यह अनाज
रखने के लिए गोदाम बनाया गया था, जो आज भी है। (iii) इसका निर्माण अंग्रेजों ने करवाया।
2. राजभवन, 3. सचिवालय, 4. विधानमंडल, 5. उच्च न्यायालय।
उपर्युक्त चारों का निर्माण अंग्रेजों ने 1912 ई. में बिहार को अलग कर स्वतंत्र राज्य बनवाया,
तब उसे शासन की आवश्यकता हुई और 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में इन भवनों का निर्माण हुआ।
सभी इमारतें अंग्रेजी वास्तुकला पर आधारित है।
उच्च न्यायालय की स्थापना 1916 ई. में हुई।
परियोजना कार्य-2
2. यूरोप से बाहर के देशों में राष्ट्रवादी प्रतीकों के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें।
एक या दो देशों के विषय में ऐसी तसवीरें, पोस्टर्स और संगीत इकट्ठा करें जो
राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। वे यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रतीकों से भिन्न कैसे हैं?
परियोजना का नाम : यूरोप से बाहर के देशों में राष्ट्रवादी प्रतीकों की जानकारी।
परियोजना के उद्देश्य : राष्ट्रवाद के संबंध में जानकारियाँ प्राप्त करना।
परियोजना का महत्व : इन जानकारियों को प्राप्त करने से इतिहास के प्रति अभिरूचि पैदा
होगी।
परियोजना का कार्यान्वयन : एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवाद के विकास की कहानी 19वीं
शताब्दी में शुरू हुई। कुछ प्रमुख राष्ट्रों का उल्लेख प्रायोजक कार्य के अनुसार नीचे प्रस्तुत है-
भारत : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कुछेक वर्षों में ही बड़ी संख्या में एशियाई देश स्वतंत्र हो
गए। पहले स्वतंत्रता पाने वालों में एक था-भारत। मगर भारत विभाजित हो गया और भारत के साथ
एक और स्वतंत्र राज्य पाकिस्तान नाम से अस्तित्व में आया। 1971 में पाकिस्तान के भी दो टुकड़े
हो गए, जब उसका पूर्वी हिस्सा उससे अलग होकर स्वतंत्र राज्य बना जिसे बंगला देश कहा जाता
है। एशिया और अफ्रीका के स्वाधीनता आंदोलनों के इतिहास में भारत की स्वाधीनता का बहुत
अधिक महत्त्व है। भारत द्वारा अपने पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अपनाई गई
नीतियों के कारण दूसरे देशों के स्वाधीनता आंदोलन मजबुत हुए और उनके स्वतंत्रता आंदोलनों की
सफलता की गति बढ़ गई।इंडोनेशिया : इंडोनेशिया में राष्ट्रवादी आंदोलन के आरंभ का उल्लेख हो चुका है। जापान
की हार के बाद सुकर्णी ने जो इंडोनेशिया के स्वाधीनता आंदोलन के संस्थापकों में से थे.
इडोनेशिया के स्वाधीनता की घोषणा कर दी मगर डचों के शासन की पुनर्स्थापना में सहयोग देने
के लिए जल्द ही ब्रिटिश सेनाएँ वहाँ भेज दी गईं। सुकर्णी के नेतृत्व में बनी स्वतंत्र इंडोनेशियाई
सरकार ने औपनिवेशिक शासन की पुनर्स्थापना के इन प्रयासों का विरोध किया। इंडोनेशिया में डच
शासन फिर से लाने के लिए जो युद्ध आरंभ किया गया था, उसे समाप्त करने की माँग अनेक
देशों में उठाई गई। एशियाई देशों में तो उनकी बहुत ही कड़ी प्रतिक्रिया हुई। भारतीय स्वाधीनता
आंदोलन के नेताओं ने माँग की कि जिन भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सेना के अंग के रूप में
इंडोनेशिया भेजा गया था, उन्हें वापस बुला लिया जाए। स्वतंत्र होने के बाद भारत ने इंडोनेशिया
की स्वतंत्रता के समर्थन में एशियाई देशों का एक सम्मेलन बुलाया। यह सम्मेलन नई दिल्ली में
1949 में हुआ और इसने इंडोनेशिया की पूर्ण स्वतंत्रता की माँग की। इंडोनेशिया जनता के संघर्ष
और विश्व-जनमत तथा एशियाई देशों के बढ़ते दबाव के आगे झुककर हालैंड को इंडोनेशियाई
नेताओं को रिहा करना पड़ा। 2 नवंबर, 1949 को हालैंड ने इंडोनेशिया की स्वतंत्रता को मान्यता
दे दी।
यूरोप से भिन्नता : परियोजना कार्य में जिन दो देशों का उल्लेख किया गया है, वे दोनों
यूरोप से बाहर एशियाई देश हैं। इन दोनों देशों को उपनिवेशवादी शक्तियों ने अनेक वर्षों तक जी
भरकर शोषण किया। इन देशों में राष्ट्रभक्तों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, लेखकों, दार्शनिकों आदि के
विभिन्न तरीके अपनाकर विभिन्न मंचों से राष्ट्रीयता की भावना जगाई और अपने देशों की आजादी
के लिए उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद के विरुद्ध राष्ट्रभक्ति और अन्तर्राष्ट्रीयवाद की भावनाओं के
साथ-साथ मानवता, लोकतंत्र को बढ़ावा दिया। ये देश और एशिया और अफ्रीका के अन्य देश
लंबे संघर्षों के उपरान्त स्वतंत्र हुए।
परियोजना कार्य-3
3. कीनिया के उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का अध्ययन करें। भारत के राष्ट्रीय
आंदोलन की तुलना कीनिया के स्वतंत्र संघर्ष से करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम कीनिया का स्वतंत्रता संघर्ष।
परियोजना के उद्देश्य अफ्रीकी देश की आजादी के संघर्ष के लिए चर्चा।
परियोजना का महत्व : किसी भी देश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानना।
परियोजना का कार्यान्वयन :
कीनिया के स्वतंत्रता संघर्ष : जोमो कीन्याता, जो नैरोबी म्यूनिसिपल काउंसिल में पूर्व जल
मीटर निरीक्षक थे, पूर्वी अफ्रीकी संघ के प्रथम प्रॉपगेन्डा सचिव बन गए। बाद में वे किकुयु केन्द्रीय
संघ के महासचिव बन गए। 1929 में कार्टर लैंड कमीशन की स्थापना, भूमि संबंधित मामलों में
निर्णय लाने के लिए की गयी थी। कौन्यात्ता संघ के समर्थन में एक बार फिर साक्ष्य प्रस्तुत किया।
इस कमीशन के निष्कर्षों ने अफ्रीकी और यूरोपीय लोगों के बीच के दरार को बढ़ाया। किन्तु उसने
श्वेत लोगों के स्वामित्व वाले भूखंडों और अफ्रीकी भूखंडों या रिजों के बीच स्थायी अवरोधक
चिह्नित किया। पाँच वर्षों के बाद इन सीमाओं को कानून का रूप दे दिया गया। परिणामस्वरूप,
अफ्रीकी लोगों की अधिक भागीदारी की माँग कर रही राजनीतिक दलों की संख्या में आश्चर्यजनक
वृद्धि हुई। औपनिवेशिक सरकार 1940 में सभी अफ्रीकी राजनीतिक संघों पर प्रतिबंध लगाकर इस
लामबंदी प्रयास को तेजी से शांत करा दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध अफ्रीकी लोगों के असंतोष में वृद्धि की क्योंकि कीनिया के लोग अपने
औपनिवेशिक स्वामियों के आस-पास ही लड़ रहे थे। पाँच वर्षों के संघर्ष में अफ्रीकी लोग कई
नए प्रभाव सामने लाए। उन्होंने यह जागरूकता भी फैलाई कि श्वेत लोग अजेय नहीं है। नए नए
दृष्टिकोण के साथ अफ्रीकी लोग कीनिया में अपने घर आए। वे मानते थे कि पुनः यथा-स्थिति
होना अब असंभव था। जैसे-जैसे असंतोष बढ़ा, स्वतंत्रता की लहर सम्पूर्ण अफ्रीका में फैल गई।
परियोजना कार्य-4
4. उन्नीसवीं सदी के दौरान दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण हीरा खनन के बारे में और
जानकारियाँ इकट्ठी करें। सोना और हीरा कंपनियों पर किसका नियंत्रण था? खनिक
कौन लोग थे और उनका जीवन कैसा था?
उत्तर-
परियोजना का नाम
दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण हीरा का खनन के बारे में।
परियोजना के उद्देश्य : दक्षिण अफ्रीका के इस खनिज के कारण यूरोप वाले अफ्रीका
पहुँचे। इसी जानकारी प्राप्त करना।
परियोजना का महत्व : किसी भी देश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानना।
परियोजना का कार्यान्वयन : (i) उन्नीसवीं सदी के दौरान दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण
जोहांसबर्ग (Johannesburg) तथा हीरा किमबर्ले (Kimberly) में खोजा गया। शीघ्र ही यूरोप
के लोग मौत की आशंका व रास्ते की कठिनाइयों के बावजूद उस इलाके की ओर दौड़ पड़े। इसे
इस तथ्य से सत्यापित किया जा सकता है कि सन् 1886 से 1914 (प्रथम विश्व युद्ध के पहले
साल) के बीच दक्षिण अफ्रीका विश्व के कुल स्वर्ण उत्पादन का 27 प्रतिशत स्वर्ण उत्पादित करता
था। (ii) सेसिल रोड्स (Cecil Rhodes) पहला यूरोपीय था जिसने स्वर्ण तथा हीरे के खादानों
को खरीद कर डी बीयर्स की स्थापना की तथा इस क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित किया। आज डी
बीयर्स विश्व की सबसे बड़ी हीरा उत्पादक कंपनी है। (iii) खादानें यूरोपीय तथा अमरीकियों द्वारा
नियंत्रित की जाती थीं क्योंकि बड़ी संख्या में श्वेत आप्रवासी भारी मुनाफे की अभिलाषा में दक्षिण
अफ्रीका आप्रवासित हो गए थे। उन्होंने अपने मुनाफे में वृद्धि के लिए कई नई तकनीकों को भी
विकसित किया। (iv) खादानों में कार्य करने वाले श्रमिक मुख्यतः अफ्रीका के निवासी थे तथा
उनमें से ज्यादातर अफ्रीका के विभिन्न भागों से द. अफ्रीका में आप्रवासित हुए थे। (v) खादान
श्रमिक दुखद जीवन व्यतीत करते थे। उदाहरणत-(क) उन्हें गोरे श्रमिकों की अपेक्षा दस गुणा
कम वेतन मिलता था। (ख) रंगभेद : दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण तथा हीरों की खोज के कारण
सन् 1889 से ही रंगभेद की शुरूआत हो गई। (ग) सन् 1889 में यूरोप के औद्योगिक राष्ट्रों द्वारा
'चैम्बर ऑफ माइन्स (chamber of mines) की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य अफ्रीकियों के वेतन
को घटाना था जिससे उनका मुनाफा बढ़ सके। इससे अफ्रीका के अश्वेत लोगों पर कुल संबंधी
(racial) आक्रमण बढ़े क्योंकि वे असंतुष्ट थे तथा दयनीय जीवन व्यतीत कर रहे थे।
परियोजना कार्य-5
5. राष्ट्रवाद के कारण यूरोप के मानचित्र में आए बदलाव का अध्ययन करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम : राष्ट्रवाद और यूरोपीय मानचित्र में बदलाव ।
परियोजना का उद्देश्य : राष्ट्रवादी स्थिति के कारण यूरोपीय मानचित्र में हुए परिवर्तनों को
समझाना।
परियोजना कार्य-6
6. भूमंडलीकरण ने किस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में U.S.A. का प्रभुत्व बढ़ाया। कुछ
उदाहरणों से इसे स्पष्ट करते हुए अपने सहपाठियों से शिक्षक की उपस्थिति में
परिचर्चा करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम : भूमंडलीकृत विश्व में संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभुत्व ।
परियोजना का उद्देश्य : अमेरिका के वर्चस्व की जानकारी प्रदान कराना ।
परियोजना कार्यान्वयनः
भूमंडलीकरण का आरंभ-'भूमंडलीकरण' नामक शब्द का प्रथम बार इस्तेमाल अमेरिका
के जॉन विलियम्सन ने 1990 में किया । भूमंडलीकरण के प्रभाव को कायम करने के लिए 1995
में विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष बनाया गया और विश्व व्यापार संस्थान का गठन किया
गया।
।
संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभुत्व-1991 के बाद विश्व बाजार के अन्तर्गत ही एक नवीन
आर्थिक प्रवृत्ति का उत्कर्ष हुआ, जो निजीकरण और आर्थिक उदारीकरण से प्रत्यक्षतः जुड़ा
संयुक्त राज्य अमेरिका सम्पूर्ण विश्व के अर्थतंत्र का केन्द्र-बिन्दु है। उसकी मुद्रा डॉलर पूरे विश्व
की मानक मुद्रा बन गई है। उसकी कंपनियों को पूरी दुनिया में कार्य करने की अनुमति मिल गई
है। वर्तमान समय में विश्व का एक ध्रुवीय शक्ति के रूप में अमेरिका मौजूद है और वह आर्थिक
नीतियों को अपने हिसाब से चला रहा है। अमेरिकी नीतियों ने नवीन आर्थिक साम्राज्यवाद को
जन्म दिया, जिसका असर आज सम्पूर्ण विश्व में महसूस किया जा रहा
है
। कम्प्यूटर, सूचना
प्रौद्योगिकी, संचार-साधनों के निर्माण पर अमेरिकी तकनीक हावी है। अत: इस क्षेत्र की वस्तुओं
के उपयोग पर खर्च होनेवाली राशि अमेरिकी खाते में जा रही है
परियोजना कार्य-7
7. शिक्षक के साथ राष्ट्रवाद के विकास की परिचर्चा कर पूरे विश्व में इसके प्रचार को
समझाएँ।
उत्तर-
परियोजना का नाम
: राष्ट्रवाद का विकास ।
परियोजना का उद्देश्य : छात्रों में राष्ट्रवादी भावना विकसित करना ।
राष्ट्रवाद पर परिचर्चा :
राष्ट्रवाद क्या है ? : राष्ट्र के प्रति भक्ति एवं प्रेम राष्ट्रवाद कहलाता है । अर्थात् किसी देश
में रहने वाले लोगों की वह भावना जो उन्हें राष्ट्र हित और राष्टीय भक्ति के लिए प्रेरित करती
है। इस भावना के कारण लोग संकीर्ण धार्मिक, प्रजातीय या जातिगत भावनाओं से ऊपर उठकर
वक्त पड़ने पर राष्ट्र हित में उसकी रक्षा करने के लिए तन-मन-धन अर्पित करने के लिए तत्पर
रहते हैं।
यूरोप में राष्ट्रवाद का बीजारोपण : राष्ट्रवाद की भावना का बीजारोपण यूरोप में
पुनर्जागरणकाल से ही हो चुका था। सबसे पहले राष्ट्रवादी विचारधारा फ्रांस में 1789 ई० पनपा ।
इसी राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण फ्रांस में क्रांति हुई।
राष्ट्रवाद का वैश्विक प्रसार : यूरोपीय राष्ट्रवाद की अनुगुंज पूरे विश्व में सुनाई पड़ने
लगी। यह पूरे विश्व को जागरूक बनाया, जिसके कारण अफ्रीकी एवं एशियाई उपनिवेशों में
विदेशी सत्ता के खिलाफ मुक्ति के लिए राष्ट्रीयता की लहर उपजी ।
भारत में भी यूरोपीय राष्ट्रवादी संदेश पहुँचना शुरू हो गया था। मैसूर का शासक टीपू
सुल्तान स्वयं 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित था। उसने श्रीरंगपट्टम में स्वतंत्रता का प्रतीक
'वृक्ष' भी लगवाया था।
पोलैंड में राष्ट्रवादी भावना के कारण ही रूसी शासक के खिलाफ 1830 ई० में क्रांति शुरू
हुई । बोहेमिया की चेक जाति में राष्ट्रवादी भावना आते ही आस्ट्रियाई शासन के खिलाफ विद्रोह
हुआ। हंगरी में ई० की क्रांति आस्ट्रियाई शासक के खिलाफ था। यहाँ की जनता ने वर्गविहीन
समाज की स्थापना के लिए क्रांति की । यूनान में तुर्की शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन
प्रारंभ हुआ।
परियोजना कार्य-8
8. छपाई-तकनीक को समझने के लिए अपने शिक्षक के साथ नजदीकी प्रेस का भ्रमण
करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम : छपाई प्रेस के बारे में जानकारी प्राप्त करना ।
परियोजना का उद्देश्य : छपाई मशीनों की कार्य-प्रणाली और संरचना को समझाना ।
परियोजना कार्यान्वयन : मुद्रण-क्रांति केवल प्रेस मशीन के द्वारा ही संभव हुआ । मुद्रण
के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुंच गई।
मुद्रण-कला के आविष्कारकर्ता जर्मन निवासी गुटेनवर्ग थे। ये 1440 में हैण्डप्रेस लगाये ।
इनके बाद 1475 ई० में इंग्लैंड के विलियम कैक्सटन महोदय ने इंग्लैंड के वेस्ट मिन्स्टर में प्रेस
लगाए।
18वीं सदी के अंत में धातु-प्रेस काम करने लगा, जो तीव्र वेग से छापता था । वर्तमान समय
में ऑफसेट प्रिटिंग मशीन के द्वारा हजारों पुस्तकें कुछ घंटों में छापी जा सकती हैं।
भूगोल
परियोजना कार्य-1
1. विद्यालय में विषय शिक्षक से मिलकर एक संगोष्ठी का आयोजन करें, जिसमें उपयोग
में आनेवाले संसाधनों के संरक्षण के उपाय पर चर्चा हो।
उत्तर-विद्यालय में सामाजिक शिक्षा (भूगोल) के शिक्षक द्वारा हमलोगों ने एक संगोष्ठी का
आयोजन 18 अगस्त, 2011 को विद्यालय प्रांगण में ही किया उसपर निम्नलिखित विचार किए
परियोजना कार्य का नाम : उपयोग में आनेवाले संसाधनों पर चर्चा।
चर्चा की जानेवाली संसाधन : जल संसाधन
जल संसाधन का महत्त्व : जल संसाधन बहुत की महत्त्वपूर्ण है। जल ही जीवन है। जल
संसाधनों का उपयोग निम्नलिखित रूप से करते हैं-1. घरेलू जल आपूर्ति के रूप में। जैसे-पीने,
नहाने, भोजन पकाने के लिए। 2. फसलों के सिंचाई के लिए। 3. जल विद्युत उत्पादन के लिए।
4. जल परिवहन के रूप में। 5. औद्योगिक जल आपूर्ति। 6. मछली पालन में।
जल संस्थान की आवश्यकता :जल ही जीवन है। हम जल के बिना जीवन की कल्पना
नहीं कर सकते हैं। हमारे जीवन में लगभग 76% भाग पानी है। जल से शरीर के रक्त का प्रवाह
तरलता से होता है। परिस्थितिकी के निर्माण में जल आधारभूत कारक है। वनस्पतियों से
जीवन-वस्तु पोषक तत्त्वों की प्राप्ति जल के माध्यम से होती है। यह जलमंडल का महत्त्वपूर्ण घटक
भी है।
संरक्षण का अर्थ : संरक्षण का अर्थ होता है-बचाना। पर इसका वास्तविक अर्थ
है-पर्यावरण प्रबंध का केन्द्रीय विषय प्राकृतिक एवं पास्थितिकी पर्यापरण पर मानव कार्यकलाप
का दबाव घटाना तथा न्यूनतम करना है। यह पर्यावरण में निहित संसाधनों का अत्यधिक उपयोग,
आन्तरिक प्रयोग तथा दुरुपयोग न करने का प्रयास है।
जल संसाधन का संरक्षण : पृथ्वी का लगभग 3/4 भाग जल से भरा है। हमारी पृथ्वी पर
जल दो रूपों में हैं-(i) लवणीय तथा (ii) अलवणीय।
हम अपने जीवन के लिए अलवणीय जल पर निर्भर करते हैं। पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल
का 97% लवणीय जल है। अन्य जल 2% क्षेत्र ध्रुवीय क्षेत्र में बर्फ के रूप में जमा है तथा शेष
1% भूमिगत जलसंशयों के रूप में उपस्थित है। मनुष्य की सभी आवश्यकताओं के लिए जल पूर्ति
का प्रमुख स्रोत झीलों तथा नदियों का पृष्ठीय जल है जो अत्यन्त प्रदूषित है। पृथ्वी पर प्रत्येक
1000 गैलन जल में से केवल 3 गैलेन पीने योग्य पानी है। आज विश्व में प्रति व्यक्ति का जल
का उपयोग 110 क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष है।
जल संरक्षण के उपाय
जल संरक्षण :जल जीवन का आधार है। इसकी गुणवत्ता को बनाए रखना मानव का प्रथम
कर्तव्य है। जल संरक्षण के दो पक्ष हैं-1. जल का नियंत्रण । 2. जल प्रदूषण से रक्षा ।
1. जल का नियंत्रण :जल नियन्त्रण में वर्षा जल को तालाबों, जलाशयों और भूमिगत कर
सुरक्षित रखना और प्रवाह को नियंत्रित करना है। इसके लिए निम्न कार्य करने होंगे-(i) तटबंध
और बाँध बनाकर नदी जल को रोकना । (ii) वनस्पति आवरण का विकास । (iii) आधुनिक
सिंचाई पद्धति का प्रयोग जैसे-स्प्रिंकलर एवं ड्रिप सिंचाई पद्धति ।
2. जल प्रदूषण से रक्षा :जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जल प्रदूषण को रोकना
आवश्यक है जैसे-(i) नदियों, झीलों आदि में नगरों और कारखानों के अपशिष्टों का बहाव रोकना ।
(ii) गंदे जल को संयंत्रों से साफ कर नदी में गिराने के कार्यक्रम । (iii) दैनिक कार्यों में
आवश्यकता से अधिक पानी का प्रयोग न करें।
परियोजना कार्य-2
2. अपने प्रखंड में उपलब्ध संसाधन का सर्वेक्षण कर उसके विकास पर आधारित एक
प्रतिवेदन प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
परियोजना कार्य का नाम : संभाव्य संसाधनों का सर्वेक्षण एवं उसका उपयोग।
संभाव्य संसाधनों के प्रकार : प्रखण्ड स्तर पर उपलब्ध संसाधनों में कृषि योग्य भूमि,
नदी, जल, पशुओं का गोबर, धान का भूसा आदि।
संसाधनों का उपयोग : ऊर्जा के रूप में प्रयुक्त।
सर्वेक्षण के चरण : प्रथम चरण-प्रखण्ड के सभी गाँवों की सूची बनाना फिर गाँव-गाँव
घूम कर उत्पादन का पता लगाना दूसरे चरण में यह देखना है कि उन गाँवों से कितना संसाधन
प्राप्त हो सकेगा। गोबर से गोबर गैस, धान का भूसा से जलावन की प्राप्ति आदि तीसरे चरण में
नदी जल भूमि के विषय में ग्रामीणों को जानकारी देना चाहिए चौथे चरण में प्रतिवेदन (Report)
तैयार कर विद्यालय स्तर पर जमा कर देना चाहिए।
संसाधनों के विकास पर एक प्रतिवेदन (Report)
पटना, 20th July 2011
मैं अपने प्रखंड (फतुहा) में उपलब्ध संसाधनों का सर्वेक्षण 15th July'11 को अपने कुछ
साथियों के साथ किया। उन संसाधनों में मुख्यतः है जल संसाधन और भूमि । इस क्षेत्र में एक
महत्वपूर्ण नदी बहती है वह है-पुनपुन नदी। उसके किनारे बसे गाँवों में कृषि के लायक पर्याप्त
उपजाऊ भूमि है, पर हर साल या तो बाढ़ अथवा सुखार से कृषि नष्ट हो जाती है, इस प्रतिवेदन
के द्वारा मैं चाहूँगा कि इस क्षेत्र में जल संसाधन को कृषि के लायक उपयोगी बनाया जाय और
यह कार्य नदी से नहर निकाल कर किया जा सकता है
अभय
वर्ग-x
कालिका हाई स्कूल
अलावलपुर मियरिया, पटना
परियोजना कार्य-3
3. अपने आस-पास के क्षेत्रों में उपलब्ध मृदा संसाधनों के उपयोग एवं संरक्षण हेतु
परियोजना तैयार करें।
1
मृदा का अर्थ
उत्तर-
परियोजना कार्य का नाम : मृदा-संसाधनों का उपयोग एवं संरक्षण ।
: भू-पृष्ठ का ठोस भाग मृदा कहलाता है। इसे भूमि या
धरातल भी कहा जाता है।
उपलब्ध मृदा-संसाधन के प्रकार :
जलोढ़ मृदा : उप प्रकार - दुमट मिट्टी और क्ले मृदा ।
मृदा संसाधन का महत्त्व : मृदा हमारा प्रमुख संसाधन है। सभी पौधे तथा जानवर अपना
भोजन मृदा से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करते हैं मनुष्य भी अपने भोजन, आवास, वस्त्र
के लिये मृदा पर निर्भर करता है। सभी कृषि संसाधनों में मृदा सबसे महत्वपूर्ण है । अच्छी प्रकार
की मृदा से कई कृषि उत्पाद लिये जाते हैं। मृदा भारत की आर्थिक सम्पदा
है
में भारत आत्मनिर्भर हो गया है तथा खाद्य पदार्थों के निर्यात की स्थिति में आ गया है।
मृदा-संसाधन का उपयोग : सामान्यतः मृदा-संसाधनों का उपयोग केवल कृषि के रूप में
किया जाता है। हमारे आसपास की मृदा का उपयोग कृषि के रूप में उसकी उच्चावचीय स्थिति
। मृदा के उपयोग
के अनुसार की जाती है।
ऊँची भूमिवाली मृदा : सामान्यतः ऐसे क्षेत्रों में आवास का वसाव होता है। इसके अलावे
डीह क्षेत्र में कम अवधिवाले फसलों की बुआई की जाती है। जैसे-सब्जी की खेती, आलू की
खेती, सरसों की खेती और गरमा फसल का उत्पादन लिया जाता है।
मध्यम भूमि की मृदा : इस क्षेत्र में क्ले मृदा की प्रधानता है। उसमें तीन-तीन फसलों का
चक्रीय उत्पादन किया जाता है। धान का उत्पादन सबसे अधिक क्षेत्रों पर किया जाता है। धान
के बाद उसी खेत में गेहूँ, दलहन या तेलहन फैसलों का उत्पादन किया जाता है। उसके बाद गरमा
फसलें केवल उन खेतों में उपजायी जाती हैं, जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं।
निम्न भूमिवाली मृदा : गाँव के आस-पास या दूर रहने वाले क्षेत्रों में नीची भूमि की मृदा
पायी जाती है। प्रायः इस क्षेत्र में एक ही फसल का उत्पादन किया जाता है। बरसात में यह जल
से डूबा रहता है। अतः केवल रबी की खेती इस पर की जाती है।
चारागाह का उपयोग : कुछ भूमि का उपयोग चारागाह के रूप में किया जाता है। यह
स्थायी चारागाह है।
बाग-बगीचे के रूप में उपयोग : मृदा का उपयोग बाग-बगीचे के रूप में करते हैं । इनमें
फलदार और फर्नीचर वाले वृक्ष लगाये जाते हैं।
वृक्षारोपण : ग्रामीण क्षेत्रों में मोटे एवं चौड़े मेड़ों पर वृक्ष लगा देते हैं । इन वृक्षों से उन्हें
जलवान वाली लकड़ी या फर्नीचर के लायक लकड़ी प्राप्त होती है।
सड़क-निर्माण में : मृदा का उपयोग सड़क-निर्माण में अधिकाधिक रूप में किया जाता है।
रेल लाइन-निर्माण में : हमारे क्षेत्र में रेलमार्ग का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें बहुतायत
मात्रा में मृदा का उपयोग किया जा रहा है।
मृदा की समस्याएँ : (i) गहन कृषि कार्य किये जाने से मृदा में निम्नीकरण हो रहा है।
(ii) लगातार रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मृदा की उपजाऊपन की मात्रा घटती जा रही है।
(iii) अत्यधिक सिंचाई के कारण मृदा में लवणता की मात्रा बढ़ रही है।
मृदा संरक्षण के उपाय : मृदा संरक्षण के अंतर्गत मृदा-अपरदन को कम करना, वृक्षारोपण
करना, मृदाओं का तर्कसंगत उपयोग तथा वे सारे उपाय करना, जिनसे मृदा का संपोषण होता है-
1. वृक्षारोपण-वृक्षों की जड़ें मृदा को बाँधे रखती हैं, जिससे पवन या जल के द्वारा
होनेवाले होनेवाले अपरदन को रोका जा सकता है तथा जल को ऊपर से खींचकर मृदा में नमी
और जलस्तर को बनाये रखता है।
2. वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध–वृक्षों की अनियंत्रित कटाई पर प्रतिबंध लगाकर
मृदा-संरक्षण किया जा सकता है।
3. समोच्च जुताई करके बाढ़ वाले इलाके में ढाल की दिशा के समरूप नहीं, बल्कि
समोच्च रेखा के अनुरूप जुताई होने से मृदा अपरदन नहीं होता है।
4. फसल-चक्रण अपनाकर-मृदा-संरक्षण का सबसे कारगर उपाय है—फसल-चक्रण
पद्धति को अपनाना । गेहूँ, कपास, मक्का और आलू के लगातार उत्पादन से मृदा की उपजाऊपन
में कमी आती है, अतः दलहन की खेती करके पोषक तत्त्वों की पुनर्घाप्ति होती है।
5. रासायनिक उर्वरक में कमी लगातार रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से मृदा की
गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसे दूर करने के लिए कम्पोस्ट और गोबर का प्रयोग या जैविक खाद
का प्रयोग किया जाना चाहिए।
6. बाढ़ पर नियंत्रण नदियों के किनारे वृक्षारोपण करके तथा नदी के तटबंधों को मजबूत
करके बाढ़ पर नियंत्रण किया जा सकता है, जिससे मृदा का संरक्षण किया जा सकता है।
7. लवणीयता एवं क्षारीयता की समस्या को दूर करना ज्यादा सिंचाई की जाने से
मृदा के ऊपरी भाग में लवणता का जमाव हो जाता है। जब आर्द्र क्षेत्रों में वर्षा कम और
वाष्पीकरण ज्यादा होता है, तो क्षार वाष्पीकृत होकर नीचे से ऊपर आ जाता है। इसे गोबर और
कम्पोस्ट द्वारा दूर किया जा सकता है।
8. सतत् कृषि (Sustainable Agriculture) सतत् कृषि की तकनीक अपनाकर
मृदा-संरक्षण किया जा सकता है।
परियोजना कार्य-4
4. ग्राम प्रतिनिधि, विद्यालय प्रधान से मिलकर संसाधन संरक्षण एवं प्रबंधन पर एक
संगोष्ठी का आयोजन करें।
उत्तर-
परियोजना कार्य का नाम: : संसाधन-संरक्षण एवं प्रबंधन पर संगोष्ठी।
परियोजना का उद्देश्य संसाधन संरक्षण एवं प्रबंधन पर विचार-विमर्श।
संगोष्ठी के सदस्य
: विद्यालय के प्रधानाध्यापक ग्राम मुखिया, छात्रगण एवं
अन्य ग्रामीण।
संभाषण
: प्रधानाध्यापक
संसाधन संरक्षण एवं प्रबंधन पर संगोष्ठी
5th अगस्त 20....
बड़गाँ, भोजपुर
कई दिनों से हम वर्ग X के कुछ छात्र इस प्रयास में लगे रहे कि संसाधन संरक्षण एवं प्रबंध
न पर एक संगोष्ठी की जाय ताकि हम लोग ग्रामीणों को इनके विषय में उपयोगी बातें बता सकें।
वह दिन आ ही गया। इस अवसर पर ग्राम के मुखिया श्री राम कुमार सिंह एवं प्रध
नाध्यापक डा० कृष्णा कुमार सिंह तथा कतिपय ग्रामीणों की उपस्थिति में संगोष्ठी लगाई गई
जिसमें ग्राम में तथा आस-पास के क्षेत्रों में उपलब्ध संसाधनों पर विचार हुआ-ग्रामीण क्षेत्रों में जल,
भूमि प्रमुख हैं।
पारिस्थितिकी संरक्षण की दिशा में जल, भूमि एवं वायु का संरक्षण :
1. जल एवं जलाशय का संरक्षण :जनसंख्या वृद्धि के साथ हमारे जल संसाधन जहाँ
दिनोदिन कम होते जा रहे हैं वहीं वर्षा से प्राप्त जल का भी समुचित संरक्षण एवं सदुपयोग नहीं
हो पाता।
पारिस्थितिकी के लिए जल संरक्षण के सिद्धान्त :जल संरक्षण के तीन महत्त्वपूर्ण
सिद्धान्त हैं-(i) जल की उपलब्धता बनाए रखना । (ii) जल को प्रदूषित होने से बचाना । (iii)
संदूषित जल को स्वच्छ करके उनका पुनर्चक्रण ।
पारिस्थितिकी तंत्र में जल संरक्षण के तरीके:जल का संरक्षण निम्न प्रकार से किया जा
सकता है-1. झीलों एवं तालाबों की सफाई द्वारा जल संसाधनों का समुचित संरक्षण कर सकते हैं।
2. ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से तालाब उनके जल भरण क्षेत्र के अतिक्रमण हो जाने के कारण सूखते
जा रहे हैं। जलकुंभी नामक पौधे के अवांछित विस्तार से भी हमारे जलाशयों के उथले होने का
खतरा बना हुआ है। झीलों में नीचे जमने वाले गाद एवं प्रदूषक पदार्थों की सफाई आवश्यक है।
3. हमारे देश में इस समय लगभग 10% क्षेत्रफल पर बाँध फैले हुए हैं। बाँधों में एकत्र जल से
भूमिगत जल का स्तर संतोषजनक बना रहता है। 4. पठारी तथा पहाड़ी क्षेत्र की भूमि पर जलागम
(Water Shed) क्षेत्रों का निर्माण कर जल संरक्षण किया जा सकता है।
2. पारिस्थितिकी तंत्र एवं भूमि संरक्षण
भूमि संसाधनों के संरक्षण हेतु निम्न दो रास्ते अपनाए जाने आवश्यक हैं-(i) भूमि
क्षरण को रोकने के उपाय (ii) असंतुलित खनन पर नियंत्रण
(i) भूमि क्षरण को रोकने के उपाय इसके अंतर्गत दो विधियाँ हैं-
(अ) जैवीय विधियाँ-भूमि क्षरण रोकने की जैवीय विधियाँ निम्नलिखित हैं-(क)
पट्टीदार खेती (Crop Rotation) (ख) खादों का प्रयोग (Use of Manures) (ग) वनस्पति
आवरण (Vegetative cover)
(ब) यांत्रिक विधियाँ- भूमि क्षरण रोकने के लिए प्रचलित यांत्रिक विधियाँ निम्नलिखित
हैं-(क) समोच्च कृषि विधि (Contour Method), (ख) वेदिका निर्माण या सीढ़ीदार कृषि
विधि (Terraced Method), (ग) नलिका नियंत्रण विधि (Gulley Control Method)
(ii) असंतुलित खनन पर नियंत्रण-खनिज सम्पदा संरक्षण के कुछ उपाय निम्न हैं-
(क) रेगिस्तानों, हिमशिखरों, समुद्र तल इत्यादि में दबे हुए खनिज निक्षेपों की समुचित खोज
तथा विस्तृत सर्वेक्षण किया जाना चाहिए।
(ख) उपलब्ध खजिन स्रोतों का उपयोग विवेकपूर्ण रीति से किया जाना चाहिए।
(ग) कोयला, पेट्रोल तथा खनिज ईंधनों के प्रतिस्थापी ईंधनों की खोज गंभीरतापूर्वक की
जानी चाहिए। यथासंभव विद्युत सौर ऊर्जा एवं परमाणवीय शक्ति के उपयोग को प्रोत्साहित किया
जाना चाहिए।
(घ) खनिज से निर्मित पुराने उत्पादों को व्यर्थ न फेंककर उनका बार-बार उपयोग तथा
पुनः चक्रीकरण विधियों द्वारा खनिजों की पुनः प्राप्ति धातु के संदर्भ में अत्यधिक सहायक हो
सकती है।
प्रधानाध्यापक महोदय का संभाषण : विद्यालय के मेधावी छात्रों ने जिस संगोष्ठी का
आयोजन किया है, वह सराहनीय है और इस पर जो विचार प्रकट किये हैं तड़ाही उचित भाग है,
प्रकृति संरक्षण का।
मुखिया जी के विचार : बच्चों एवं प्रधान जी ने हमलोगों को जो बातें बताई उस पर हम
ग्रामीणों को उचित ध्यान करना चाहिए।
चर्चा के बाद सभी सहर्ष घर गए हम है छात्रगण उच्च विद्यालय बड़गाँव भोजपुर।
परियोजना कार्य-5
5. अपने विद्यालय के आस-पास बहने वाली नदियों के जल-उपयोग पर एक परियोजना
तैयार करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम
स्थानीय बहनेवाली नदियों के जल उपयोग में कार्य
योजना।
परियोजना का उद्देश्य उपलब्ध जल-संसाधनों का नियोजित उपयोग एवं संपोषित
विकास।
जल-संसाधन का महत्त्व :
1. यह विश्वास किया जाता है कि सर्वप्रथम जीवन जल में ही आरंभ हुआ
2. जल जीवन की प्रथम व अनिवार्य आवश्यकता है
3. जल के उपयोग की माँग बढ़ती ही जा रही है क्योंकि इसकी आवश्यकता पीने और
घरेलू कार्यों के लिए होती है ।
4. यह भिन्न औद्योगिक कार्यों के लिये उपयोग में आता है। कृषि में इनकी माँग जा बढ़ रही है आधुनिक जीवन के साथ बढ़ता हुआ नगरीकरण दिन-प्रतिदिन अधिक पानी की माँग
सिंचाई के लिए उपयोग : वर्षा ऋतु में नदियों में पक्का बाँध बनाकर उनसे छोटी-छोटी
नलिकाएँ निकालकर पाइप के द्वारा जल को खेतों में पहुँचाया जा सकता है। ऐसा करने से
ऊँची-नीची भूमि पर स्थित खेतों की सिंचाई आसानी से होगी। जलप्रवाह के अधिकतम उपयोग
के लिए कई दिशाओं में नदी-जल को वितरणिकाओं के माध्यम से ले जाकर उपयोगी बनाना
जरूरी है।
जलाशय के रूप में : यदि ग्राम में गैर-कृषि योग्य भूमि ज्यादा है, तो उसपर खुदाई करके
जलाशय का निर्माण किया जाय । इन जलाशयों में वर्षा ऋतु में बहनेवाले अतिरिक्त नदी-जल को
सचित किया जा सकता है। वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद उस जलाशय के जल का उपयोग
कृषि-कार्य में किया जा सकता है।
चेक डैम एवं विद्युत्-निर्माण : यदि जलप्रवाह की मात्रा और गति अधिक रहते हैं, तो
छोटे-छोटे चेक डैम बनाकर जल-भंडारण कर उससे छोटी इकाई के रूप में जलविद्युत् उत्पादन
किया जाय । उत्पादित जलविद्युत् को आस-पास के गाँवों में सस्ते दामों पर बेचा जा सकता है,
जिससे वहाँ कृषि-व्यवस्था में सुधार और विद्युत पर आधारित छोटे-मोटे व्यवसाय पनप सकते हैं
मत्स्यपालन : स्थानीय नदी के जल को झील, तालाब, आहर, पोखर आदि में एकत्रित करके
उसमें मान्यता मत्स्यपालन व्यवसाय अपनाया जा सकता है। इससे सिंचाई के लिए जल भी जमा
रहेगा और मत्स्यपालन का कार्य भी होगा। इससे स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि होगी।
पशुओं को धोने और पीने में : पशुओं को धोने के लिए नदी-जल का प्रयोग आसानी से
होगा। इस जल को पशुओं के पीने में किया जाता है।
लघु उद्योग में : यदि छोटे-मोटे कारखाना; जैसे-कूट फैक्ट्री, कोल्ड स्टोरेज और चावल
मील, दाल मील आदि चलाने में जल का उपयोग किया जा सकता
परियोजना कार्य-6
6. बिहार के प्रमुख नदी एवं नहर को बिहार के मानचित्र पर दर्शाएँ।
उत्तर-सिंचाई के लिए उपयोग : वर्षा ऋतु में नदियों में पक्का बाँध बनाकर उनसे छोटी-छोटी
नलिकाएँ निकालकर पाइप के द्वारा जल को खेतों में पहुँचाया जा सकता है। ऐसा करने से
ऊँची-नीची भूमि पर स्थित खेतों की सिंचाई आसानी से होगी। जलप्रवाह के अधिकतम उपयोग
के लिए कई दिशाओं में नदी-जल को वितरणिकाओं के माध्यम से ले जाकर उपयोगी बनाना
जरूरी है।
जलाशय के रूप में : यदि ग्राम में गैर-कृषि योग्य भूमि ज्यादा है, तो उसपर खुदाई करके
जलाशय का निर्माण किया जाय । इन जलाशयों में वर्षा ऋतु में बहनेवाले अतिरिक्त नदी-जल को
सचित किया जा सकता है। वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद उस जलाशय के जल का उपयोग
कृषि-कार्य में किया जा सकता है।
चेक डैम एवं विद्युत्-निर्माण : यदि जलप्रवाह की मात्रा और गति अधिक रहते हैं, तो
छोटे-छोटे चेक डैम बनाकर जल-भंडारण कर उससे छोटी इकाई के रूप में जलविद्युत् उत्पादन
किया जाय । उत्पादित जलविद्युत् को आस-पास के गाँवों में सस्ते दामों पर बेचा जा सकता है,
जिससे वहाँ कृषि-व्यवस्था में सुधार और विद्युत पर आधारित छोटे-मोटे व्यवसाय पनप सकते हैं
मत्स्यपालन : स्थानीय नदी के जल को झील, तालाब, आहर, पोखर आदि में एकत्रित करके
उसमें मान्यता मत्स्यपालन व्यवसाय अपनाया जा सकता है। इससे सिंचाई के लिए जल भी जमा
रहेगा और मत्स्यपालन का कार्य भी होगा। इससे स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि होगी।
पशुओं को धोने और पीने में : पशुओं को धोने के लिए नदी-जल का प्रयोग आसानी से
होगा। इस जल को पशुओं के पीने में किया जाता है।
लघु उद्योग में : यदि छोटे-मोटे कारखाना; जैसे-कूट फैक्ट्री, कोल्ड स्टोरेज और चावल
मील, दाल मील आदि चलाने में जल का उपयोग किया जा सकता
परियोजना कार्य-6
6. बिहार के प्रमुख नदी एवं नहर को बिहार के मानचित्र पर दर्शाएँ।
उत्तर-
नागरिकशास्त्र
परियोजना कार्य-1
1. एनिते बेल्जियम के उत्तरी इलाके के एक डच माध्यम के स्कूल में पढ़ती है । फ्रेंच
बोलने वाले उसके अनेक स्कूली साथी चाहते हैं कि पढ़ाई फ्रेंच में ही हो । सेल्वी
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के एक स्कूल में पढ़ती है। वह और उसके स्कूल के
बहुत से दोस्त तमिल-भाषी हैं और वे पढ़ाई का माध्यम तमिल ही रखना चाहते हैं ।
कौन-सी सरकार एनिते और सेल्वी के माता-पिता की इच्छा पूरी कर सकती है ?
किसे सफलता मिलने की संभावना अधिक है और क्यों ?
उत्तर-
परियोजना का नाम : भाषायी ज्ञान।
परियोजना का उद्देश्य : द्विभाषायी छात्रों में आपसी मेल उजागर करना।
परियोजना का कार्यान्वयन :
(i) बेल्जियम में त्रिस्तरीय सरकार है जिसमें से एक है सामुदायिक सरकार जो शिक्षा संबंधी
विषयों की देख-रेख करती है। अतः अनेते के माता-पिता को संबंधित सामुदायिक
सरकार से संपर्क करना चाहिए।
(ii) दूसरी तरफ, श्रीलंका में, संवैधानिक प्रावधानों के तरह केंद्रीय सरकार ही शिक्षा के
माध्यम से संबंधित विषयों की देख-रेख करती है। अतः, सेल्वी के माता-पिता को
श्रीलंका के केंद्रीय सरकार से संपर्क करना चाहिए।
अनेते के माता-पिता को सफलता मिलने की संभावना अधिक है, क्योंकि, बेल्जियम
में, सामुदायिक सरकार का चुनाव एक ही भाषाई समुदाय डच, फ्रेंच या जर्मन द्वारा
किया जाता है । इस सरकार को सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं भाषाई समस्याओं के समाध
न की शक्ति प्राप्त है। दूसरी ओर, श्रीलंका में शिक्षा केंद्रीय सरकार की जिम्मेदारी है
और सामान्य जनता के लिए केंद्रीय सरकार से सम्पर्क कर उससे संबंधित समस्याओं
का समाधान करना प्रायः असंभव होता है।
परियोजना कार्य-2
2. नीचे दिए गए उद्धरण को गौर से पढ़ें और इसमें सत्ता की साझेदारी के जो युक्तिपरक
कारण बताए गए हैं उसमें से किसी एक का चुनाव करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम
: सत्ता की साझेदारी।
परियोजना का महत्त्व : सत्ता की साझेदारी से अवगत करना।
परियोजना का कार्यान्वयन : बच्चों में लोकतंत्र में सत्ता और साझेदारी से अवगत कराना
जिससे उनमें राजनीतिक भावना का सच्चे रूप की जानकारी होगी।
"महात्मा गाँधी के सपनों को साकार करने और अपने संविधान निर्माताओं की उम्मीदों को
पूरा करने के लिए हमें पंचायतों को अधिकार देने की जरूरत है। पंचायती राज ही वास्तविक
लोकतंत्र की स्थापना करता है। यह सत्ता उन लोगों के हाथों में सौंपता है जिनके हाथों में इसे होना
चाहिए । भ्रष्टाचार कम करने और प्रशासनिक कुशलता को बढ़ाने का पंचायतों को अधिकार देना
भी एक उपाय है । जब विकास की योजनाओं को बनाने और लागू करने में लोगों की भागीदारी
होगी तो इन योजनाओं पर उनका नियंत्रण बढ़ेगा। इससे भ्रष्ट बिचौलियों को खत्म किया जा
सकेगा। इस प्रकार पंचायती राज लोकतंत्र की नींव को मजबूत करेगा।"
इस उद्धरण में उल्लिखित सत्ता में साझेदारी कारणों में से एक है-
"पंचायतों को शक्ति देना भ्रष्टाचार को कम करने तथा प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने का भी एक
तरीका है।"
परियोजना कार्य-4
भारत की अनुसूचित भाषाओं की सूची तैयार करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम भारत की अनुसूचित भाषाओं की सूची तैयार करना।
परियोजना का उद्देश्य : भारत की विभिन्न भाषाओं की जानकारी।
परियोजना कार्यान्वयनः भारत की अनुसूचित भाषाएँ
परियोजना कार्य-5
5. भारतवर्ष में लोकतंत्र कैसे सफल हो सकता है ?
उत्तर-
परियोजना का नाम : भारत में लोकतंत्र को सफल बनाना ।
परियोजना का उद्देश्य : आनेवाले समय में लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाना ।
परियोजना कार्यान्वयन: लोकतांत्रिक शासन की सफलता वहाँ के शिक्षित नागरिकों के
ऊपर निर्भर करता है। शिक्षित नागरिकों के द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आसानी से समझा जाता
है। शिक्षित नागरिक जागरूक होते हैं।
लोकतांत्रिक बहुमत पर आधारित शासन है, लेकिन लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर
है कि अल्पमत की आकांक्षाओं को पूरा किया जाय । सरकार के द्वारा नागरिकों को ऐसा अवसर
अवश्य प्रदान करें, ताकि वे किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बन पाएँ । लोकतांत्रिक
संस्थाओं के अन्दर आंतरिक लोकतंत्र होना चाहिए। सार्वजनिक समस्याओं और मुद्दों पर
बहस-मुबाहिसों में कमी नहीं होनी चाहिए।
हमारे देश में राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतांत्रिक स्वस्थ परंपरा का सर्वथा अभाव
दिखता है।
राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों का आचरण भी शुद्ध, परोपकारी एवं राष्ट्रीयता से परिपूर्ण
होना चाहिए। जब सत्ताधारी लोगों के चरित्र एवं व्यवहार गैर-लोकतांत्रिक दिखेंगे, तो लोकतंत्र के
प्रति हमारे विश्वास में कमी होगी। सार्वजनिक कार्य में व्याप्त भ्रष्टाचार में कमी लाकर भी
लोकतंत्र को सफल बनाया जा सकता है।
परियोजना कार्य-6
6. आइए, अब सिर्फ भारत के बारे में विचार करें। समकालीन भारत के लोकतंत्र के सामने मौजूद चुनौतियों पर गौर करें । इनमें से उन पाँच की सूची बनाइए जिन पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिए। यह सूची प्राथमिकता को भी बताने वाली होनी चाहिए यानी आप जिस चुनौती को सबसे महत्वपूर्ण और भारी मानते हैं उसे सबसेऊपर रखें। शेष को इसी क्रम से बाद में। ऐसी चुनौती का एक उदाहरण दें और
बतायें कि आपकी प्राथमिकता में उसे कोई खास जगह क्यों दी गई है।
उत्तर- परियोजना का नाम : भारत के लोकतंत्र की चुनौतियों। परियोजना का उद्देश्य : चुनौतियों की पूर्ण जानकारी।
परियोजना का महत्त्व : छात्रों में लोकतंत्र की जानकारी के साथ-साथ उसके परिप्रेक्ष में
लोकतांत्रिक जागरूकता जगाना।
परियोजना कार्य-7
7. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति का जानकारी प्राप्त
करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम : विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व।
परियोजना का उद्देश्य : विधायिकाओं की स्थिति की जानकारी।
परियोजना कार्यान्वयनः भारत की विधायिकाओं (संसद एवं प्रांतीय विधानमंडलों) में
महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है, लोकसभा में महिला सांसदों की गिनती 10%
से भी कम है। प्रान्तीय विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व और भी कम है जो 5% से कभी भी
नहीं बढ़ा। इस मामले में भारत का नम्बर विश्व स्तर के बहुत से देशों से कम है। हमें यह जानकार
हैरानी होती है कि महिला प्रतिनित्वि के मामले में भारत बहुत-से अफ्रीकी-अमेरिकी देशों से बहुत
पीछे है।
परन्तु अब मसले को सुधारने की ओर महिला संगठनों और सरकार द्वारा ध्यान दिया जा रहा
है। कई नारीवादी आन्दोलन और महिला संगठन इस निष्कर्ष तक पहुँचे हैं कि जब तक महिलाओं
की सत्ता में भागीदारी उचित नहीं होती उनकी समस्याओं का निपटारा नहीं हो सकता। ग्रामीण क्षेत्रों
में पंचायती राज के अंतर्गत और शहरी में नगरपालिकाओं में एक-तिहाई पर महिलाओं के लिये
आरक्षित पद दिये गये हैं। अब महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा प्रयत्न जारी है कि लोक सभा
और राज्य विधानसभाओं को भी एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर देनी चाहिए।
संसद के सामने ऐसा एक बिल निर्णय लिये पड़ा भी हुआ है।
परियोजना कार्य-8
8. जानकारी प्राप्त कीजिए कि आपके शहर में स्थानीय प्रशासन कौन-सी सेवाएं प्रदान
करता है? क्या जलापूर्ति, आवास, यातायात और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता आदि सेवाएँ
भी उन्हीं के द्वारा प्रदान की जाती है? इन सेवाओं के लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे
की जाती है? नीतियाँ किस प्रकार की होती हैं?
उत्तर-
परियोजना का नाम : स्थानीय प्रशासन द्वारा प्राप्त सेवाएँ।
परियोजना के उद्देश्य : स्थानीय प्रशासन सार्वजनिक सेवाएँ किस प्रकार प्रदत्त करती है।
परियोजना का महत्व : इससे हमें यह जानकारी प्राप्त होगी कि स्थानीय प्रशासन हमारे
लिए क्या करता है।
परियोजना का कार्यान्वयन : शहरों में स्थानीय प्रशासन निम्नलिखित सेवाएँ अपने अनिवार्य
कार्य द्वारा प्रदान करता है-
नगर परिषद के अनिवार्य कार्य निम्नलिखित हैं-
1. नगर की सफाई करना
2. सड़कों एवं गलियों में रोशनी का प्रबंध करना
3. पीने के पानी की व्यवस्था करना
4. सड़क बनाना तथा उसकी मरम्मत करना
5. नालियों की सफाई करना
6. प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध करना, जैसे स्कूल खोलना और उसे चलाना
7. टीके लगाने तथा महामारी से बचाव का उपाय करना
8. मनुष्यों एवं पशुओं के लिए अस्पताल खोलना
9. आग से सुरक्षा करना
10. श्मशान घाट का प्रबंध करना
11. जन्म एवं मृत्यु का निबंधन करना एवं उनका लेखा-जोखा रखना।
नगर परिषद के ऐच्छिक कार्य निम्नलिखित हैं-
1. नई सड़क बनाना
2. गलियों एवं नालियाँ बनाना
3. शहर के गंदे इलाके को बसने योग्य बनाना
4.
गरीबों के लिए घर बनाना
5. बिजली का प्रबंध करना
6. प्रदर्शनी लगाना
7. पार्क, बगीचा एवं अजायबघर बनाना
8. पुस्तकालय एवं वाचनालय आदि का प्रबंध करना आदि।
नगर निगम के प्रमुख कार्य-नगर निगम नागरिकों की स्थानीय आवश्यकता एवं सुख-सुविधा
के लिए अनेक कार्य करता है। नगर निगम के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. नगर क्षेत्र की नालियों, पेशाब खाना, शौचालय आदि निर्माण करना एवं उसकी देखभाल
करना।
2. कूड़ा कर्कट तथा गंदगी की सफाई करना।
3. पीने के पानी का प्रबंध करना।
4. गलियों, फूलों एवं उद्यानों की सफाई एवं निर्माण करना।
5. मनुष्यों तथा पशुओं के लिए चिकित्सा केन्द्र की स्थापना करना एवं छुआ-छूत जैसी
बीमारी पर रोक लगाने का प्रयास करना।
6. प्रारंभिक स्तरीय सरकारी विद्यालयों, पुस्तकालयों, अजायबघर की स्थापना तथा व्यवस्था
करना।
7. विभिन्न कल्याण केन्द्रों जैसे मातृ केन्द्र, शिशु केन्द्र, वृद्धाश्रम की स्थापना एवं देखभाल
करना।
8. खतरनाक व्यापारों की रोकथाम, खतरनाक जानवरों तथा पागल कुत्तों को मारने का
प्रबंध करना।
9. दुग्ध-शाला की स्थापना एवं प्रबंध करना।
10. आग बुझाने का प्रबंध करना।
11. मनोरंजन गृह का प्रबंध करना।
12. नये बाजारों का निर्माण करना।
13. नगर बस आदि चलवाना।
14. श्मशानों तथा कब्रिस्तानों की देखभाल करना।
15. गृह उद्योगों तथा सहकारी भंडारों की स्थापना करना।
अर्थशास्त्र
परियोजना कार्य-1
अपने गाँव या शहर के आर्थिक विकास के संदर्भ में एक परियोजना प्रस्तुत
करें।
उत्तर-
परियोजना का नाम : गाँव के आर्थिक विकास के संदर्भ में।
परियोजना का उद्देश्य : छात्रों में गाँव के विकास के प्रति रुचि।
परियोजना का कार्यान्वयन : मैं अलावलपुर गाँव का निवासी हूँ। यह गाँव पुनपुन नदी के
तट पर स्थित है। इस गाँव में छोटे किसान बहुत हैं। जिनकी आवश्यकता कृषि से पूर्ति नहीं होती।
मैंने गरीब किसानों के लिए एक परियोजना तैयार की हैं जो इस प्रकार है-
1. उन गरीबों के लिए दूध देने वाले मवेशी की खरीदगी की व्यवस्था-गाय, भैंस, आदि
ताकि उनका दूध बेचकर अपनी आर्थिक अवस्था ठीक कर सके।
2. कुछ किसानों के लिए मुर्गी पालन व्यवस्था यह एक बहुत ही सुन्दर व्यवस्था है
आमदनी बढ़ाने का।
परियोजना कार्य-2
2. छात्र आप अपने परिवार की कुल मासिक आय एवं उस पर आश्रितों पर होनेवाले
खर्चों की एक सारणी बनाएँ।
उत्तर-
परियोजना का नाम
: अपने परिवार की मासिक आय एवं उनपर आश्रित।
परियोजना का उद्देश्य : घर का बजट बनाने की कला का आना।
परियोजना का कार्यान्वयन : घर का मुखिया-मेरे पिताजी श्री निवास राम उम्र-55 वर्ष।
परियोजना कार्य-3
3. नीचे दी गई तालिका शहरी क्षेत्रों के विभिन्न लोगों के व्यवस्था दिखाती है। इन लोगों
को किन उद्देश्यों के लिए ऋण की जरूरत हो सकती है? खाली स्तंभों को भरें।
उत्तर-
परियोजना का नाम : शहरी लोगों के विभिन्न व्यवसाय।
परियोजना का उद्देश्य : शहरी आय श्रोतों की जानकारी।
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