लाल बहादुर शास्त्री पर भाषण

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य
 भूमिका, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन
मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत के संसदीय
सचिव, पंत मंत्रिमंडल में पुलिस और परिवहन
मंत्री, केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेलवे और परिवहन
मंत्री, केन्द्रीय मंत्रिमंडल में परिवहन और
संचार, वाणिज्य और उद्योग,1964 में भारत
के प्रधान मंत्री बनेलाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्र
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। शारीरिक कद में
छोटे होने के बावजूद भी वह महान साहस
और इच्छाशक्ति के व्यक्ति थे। पाकिस्तान के
साथ 1965 केयुद्ध के दौरान उन्होंने
सफलतापूर्वक देश का नेतृत्व किया।
युद्ध
के
दौरान देश को एकजुट करने के लिए उन्होंने
"जय जवान जय किसान का नारा दिया।
आजादी से पहले उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में
भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने बड़ी
सादगी और ईमानदारी के साथ अपना जीवन
जिया और सभी देशवासियों के लिए एक
प्रेरणा के श्रोत बने।
प्रारंभिक जीवन :लाल बहादुर शास्त्री
का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के
मुग़लसराय में हुआ था। उनके पिता शारदा
प्रसाद और माँ रामदुलारी देवी थीं। लाल
बहादुर का उपनाम श्रीवास्तव था पर उन्होंने
इसे बदल दिया क्योंकि वह अपनी जाति को
अंकित करना नहीं चाहते थे। लाल बहादुर के
पिता एक स्कूल में अध्यापक थे और बाद में
वह इलाहबाद के आयकर विभाग में क्लर्क
बन गए। गरीब होने के वाबजूद भी शारदा
प्रशाद अपनी ईमानदारी और शराफत के लिए
जाने जाते थे। लाल बहादुर केवल एक वर्ष के
थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया।
तत्पश्चात रामदुलारी देवी ने लाल बहादुर और
अपनी दो पुत्रियों का पालन पोषण अपने
पिता के घर पर किया।जब लाल बहादुर छः
वर्ष के थे तब एक दिलचस्प घटना घटी। एक
दिन विद्यालय से घर लौटते समय लाल बहादुर
और उनके दोस्त एक आम के बगीचे में गए
जो उनके घर के रास्ते में ही पड़ता था। उनके
दोस्त आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ गए
जबकि लाल बहादुर निचे ही खड़े रहे। इसी
बीच माली आ गया और उसने लालबहादुर को
पकड़कर डांटा और पीटना शुरू कर दिया।
बालक लाल बहादुर ने माली से निवेदन किया
कि वह एक अनाथ है इसलिए उन्हें छोड़ दें।
बालक पर दया दिखाते हुए माली ने कहा
"चूँकि तुम एक अनाथ हो इसलिए यह सबसे
जरुरी है कि तुम बेहतर आचरण सीखो” इन
शब्दों ने उन पर एक गहरी छाप छोड़ी और
उन्होंने भविष्य में बेहतर व्यवहार करने की
कसम खाई।लाल बहादुर अपने दादा के घर
पर 10 साल की उम्र तक रुके। तब तक
उन्होंने कक्षा छः की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली
थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह
वाराणसी गए।
राजनैतिक जीवन :1921 में जब
महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ
असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब लाल
बहादुर शास्त्री मात्र 17 साल के थे। जब
महात्मा गांधी ने युवाओं को सरकारी स्कूलों
और कॉलेजों, दफ्तरों और दरबारों से बाहर
आकर आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर
करने का आह्वान किया तब उन्होंने अपना
स्कूल छोड़ दिया। हांलाकि उनकी माताजी
और रिश्तेदारों ने ऐसा न करने का सुझाव
दिया पर वो अपने फैसले पर अटल रहे। लाल
बहादुर को असहयोग आंदोलन के दौरान
गिरफ्तार भी किया गया पर कम उम्र के कारण
उन्हें छोड़ दिया गया।जेल से छूटने के पश्चात
लाल बहादुर ने काशी विद्यापीठ में चार साल
तक दर्शनशास्त्र की पढाई की। वर्ष 1926 में
लाल बहादुर ने “शास्त्री” की उपाधि प्राप्त कर
ली। काशी विद्यापीठ छोड़ने के पश्चात वो “द
सर्वेन्ट्स ऑफ़ द पीपल सोसाइटी” से जुड़ गए
जिसकी शुरुआत 1921 में लाला लाजपत
राय द्वारा की गयी थी। इस सोसाइटी का
प्रमुख उद्देश्य उन युवाओं को प्रशिक्षित करना
था जो अपना जीवन देश की सेवा में समर्पित
करने के लिए तैयार थे। 1927 में लाल बहादुर
शास्त्री का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ।
विवाह संस्कार काफी साधारण तरीके से
हुआ।1930 में गांधी जी ने सविनय अवज्ञा
आंदोलन का आह्वान किया और लाल बहादुर
भी इस आंदोलन से जुड़े और लोगों को
सरकार को भू-राजस्व और करों का भुगतान
न करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें गिरफ्तार
कर लिया गया और ढाई साल के लिए जेल
भेज दिया गया। जेल में वो पश्चिमी देशों के
दार्शनिकों, क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों
के कार्यों से परिचित हुए। वह बहुत ही आत्म
सम्मानी व्यक्ति थे। एक बार जब वह जेल में थे
उनकी एक बेटी गंभीर रूप से बीमार हो गयी।
अधिकारीयों ने उन्हें कुछ समय के लिए इस
शर्त पर रिहा करने की सहमति जताई कि वह
यह लिख कर दें कि वह इस दौरान किसी भी
स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लेंगे। लाल
बहादुर जेल से कुछ समय के लिए रिहा होने
के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के


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