उत्तर - वृक्काणु की संरचना कुछ इस प्रकार है
प्रत्येक वृक्काणु (नेफ्रॉन) एक लम्बी कुण्डलित नली के समान संरचना है, जिसका एक सिरा प्याले के समान होता है जिसे बोमन सम्पुट कहते हैं तथा दूसरा सिरा वृक्क की
मूत्र एकत्रित करने वाली नलिका से जुड़ा होता है। बोमन संपुट में रक्त कोशिकाओं का गुच्छा पाया जाता है जिसे ग्लोमेरुलस कहते हैं ।
वृक्काणु की क्रियाविधि
(1) छानना / निस्यंदन (Filtration ) — रीनल धमनी (एफरेन्ट धमनी) चौड़ी होती है तथा केशिका गुच्छ में यह संकरी होती जाती है, चौड़ाई में अन्तर होने के कारण दाब
उत्पन्न होता है जिसके कारण जल में घुली अशुद्धियां नली से बाहर निकाल दी जाती हैं। यह अशुद्धियां बोमेन सम्पुट में एकत्रित हो जाती हैं। इसे केशिका गुच्छ निस्यंद कहते हैं।
यह निस्यंद सम्पुट के नीचे नलिकाओं में भेज दिया जाता है।
(2) पुनः अवशोषण (Reabsorption ) — केशिका गुच्छ निस्यंद आरोही व अवरोही भुजा में बहते समय, अधिकांश जल ग्लूकोज, अमीनो अम्ल केशिकाओं के द्वारा चयनित
रूप से अवशोषित हो जाता है। यह केशिकाएं नलिकाओं को चारों ओर से घेरती हैं।
(3) मूत्र निर्माण (Urine formation ) – आरोही तथा अवरोही भुजा में जो अशुद्धियां तथा जल पुनः अवशोषित नहीं हो पाता है वह संग्रहणी नलिका भेज दिया जाता है। इस
निस्यंद में अधिकांश नाइट्रोजन युक्त व्यर्थ पदार्थ उपस्थित होते हैं, जिसमें यूरिया मुख्य है । इस निस्यंद को मूत्र कहते हैं। यह मूत्र मूत्रमार्ग के द्वारा मूत्राशय में एकत्रित हो
जाता है।
वृक्काणु के कार्य — यह वृक्क की क्रियात्मक इकाई है। यह अशुद्ध रक्त को छानने का कार्य करता है तथा मूत्र के रूप में वर्ज्य पदार्थों को उत्सर्जित करता है।
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