अभ्यास 3 फ्रांस की क्रांति
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. फ्रांस की क्रांति के बौद्धिक कारणों का उल्लेख करें ।
उत्तर-फ्रांसीसी क्रांति एक मध्यवर्गीय क्रांति थी जिसमें शिक्षित वर्ग के लोगों ने तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दोषों का पर्दाफाश और जनमानस में आक्रोश पैदा किया । फ्रांसीसी बुद्धिजीवियों ने फ्रांस में बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात किया । इनमें मांटेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो प्रमुख थे । मांटेस्क्यू ने शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत का पोषण किया तो वाल्टेयर ने चर्च, समाज और राजतंत्र के दोषों का पर्दाफाश किया । दिदरो के वृहत ज्ञान कोष के लेखों ने फ्रांस में क्रांतिकारी विचारों का प्रचार किया । क्वेजनो एवं तुगो ने आर्थिक नियंत्रण की आलोचना करते हुए मुक्त व्यापार का समर्थन किया ।
प्रश्न 2. अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांस की क्रांति पर क्या ?
उत्तर-जब अमेरिका में इंगलैंड के विरुद्ध स्वातंत्र्य संग्राम छिड़ा तब । ही अपने पुराने शत्रु को मुसीबत में फँसा पाकर फ्रांस बहुत खुश हुआ । कुछ वर्ष पहले इंगलैंड ने फ्रांस से कनाडा छीना था। इससे फ्रांस और भी खार खाए बैठा था । फ्रांस को अपनी पुरानी दुश्मनी का बदला लेने का अच्छा मौका मिला । उसने अमेरिकी उपनिवेशों की भरपूर मदद की । फ्रांस से सेना भी भेजी गई। लेकिन अमेरिका स्वातंत्र्य संग्राम में भाग लेने जो लोग गए थे वे जब फ्रांस लौटे तब उनके मस्तिष्क में क्रांतिकारी भावनाएँ भरी हुई थीं। वे देख चुके थे कि किस तरह अमेरिका के मध्यवर्ग ने वहाँ जनतंत्रात्मक सरकार कायम की । फ्रांस की राजनीतिक और आर्थिक अवस्था अमेरिका से भी खराब थी । वे जब फ्रांस लौटे तब बोबों वंश के शासन के बहुत बड़े शत्रु बन बैठे ।
प्रश्न 3. 'मानव एवं नागरिकों के अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-फ्रांस की नेशनल एसेम्बली ने 27 अगस्त, 1789 को मानव और नागरिकों के अधिकार को स्वीकार किया। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने और अपनी इच्छानुसार धर्मपालन करने के अधिकार को मान्यता मिली । व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ प्रेस एवं भाषण की स्वतंत्रता भी मानी गयी । अब राज्य के किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था तथा मुआवजा दिए बिना उसके जमीन पर कब्जा नहीं कर सकता था ।
प्रश्न 4. फ्रांस की क्रांति का इंगलैंड पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-नेपोलियन का विजय अभियान इंगलैंड पर भी हुआ जबकि इंगलैंड ही आगे चलकर उसके पतन का कारण बना । फिर भी इस क्रांति का इतना अधिक असर इंगलैंड में दिखा कि वहाँ की जनता ने भी सामन्तवाद के विरुद्ध आवाज उठानी शुरू कर दी । फलस्वरूप 1832 ई० में इंगलैंड में 'संसदीय सुधार अधिनियम' पारित हुआ जिसके द्वारा वहाँ के जमींदारों की शक्ति समाप्त कर दी गई और जनता के लिए अनेक सुधारों का मार्ग प्रशस्त हुआ । भविष्य में इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के विकास में इस क्रांति का बहुत अधिक योगदान था ।
प्रश्न 5. फ्रांस की क्रांति ने इटली को प्रभावित किया, कैसे ?
उत्तर-फ्रांसीसी क्रांति के समय इटली कई भागों में बँटा हुआ था । इस क्रांति के बाद इटली के विभिन्न भागों में नेपोलियन ने अपनी सेना एकत्रित कर लड़ाई की तैयारी की और 'इटली राज्य' स्थापित किया । एक साथ मिलकर युद्ध करने से उनमें राष्ट्रीयता की भावना आयी और इटली के भावी एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
प्रश्न 6. फ्रांस की क्रांति से जर्मनी कैसे प्रभावित हुआ ?
उत्तर-फ्रांस की क्रांति के समय जर्मनी 300 छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था, जो नेपोलियन के प्रयास से 38 राज्यों में सीमित हो गया । इस क्रांति के स्वतंत्रता, समानता एवं बन्धुत्व की भावना को जर्मनी के लोगों ने अपनाया और आगे चलकर इससे जर्मनी के एकीकरण को बल मिला ।
प्रश्न 7. फ्रांस की क्रांति का आर्थिक प्रभाव क्या पड़ा ?
उत्तर- फ्रांस में हुई क्रांति से वहाँ सामंती प्रथा का अन्त हो गया तथा कुलीनों का विशेषाधिकार समाप्त हो गया । फलतः किसान अधिक लाभान्वित हुए क्योंकि उनको अब दशांस और सामंती करों से मुक्ति मिल गई । कृषकों के घर में घी के दिये जलने लगे । स्वतंत्र कृषि को प्रोत्साहन मिला । सर्वत्र समानता का सिद्धांत लागू हो गया । जन्म और कुलीनता के आधार पर अब नियुक्ति नहीं होती थी । किसान और मजदूर खुशहाल हो गये । कानून में । एकरूपता आ गयी ।
प्रश्न 8. 14 जुलाई 1789 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में कैसा माहौल था ?
उत्तर- चौदह जुलाई 1789 की सुबह, पेरिस नगर में आतंक का माहौल था । सम्राट ने सेना को शहर में घुसने का आदेश दे दिया था । अफवाह थी कि वह सेना को नागरिकों पर गोलियाँ चलाने का आदेश देने वाला है। लगभग 7,000 मर्द तथा औरतें टॉउन हॉल के सामने एकत्र हुए और उन्होंने एक जन-सेना का गठन करने का निर्णय किया । हथियारों की खोज में वे बहुत-से सरकारी भवनों में जबरन प्रवेश कर गए ।
प्रश्न 9. बास्तील का पतन किस बात का प्रतीक माना जाता है ?
उत्तर-14 जुलाई, 1789 को बास्तील का पतन फ्रांसीसी क्रांति का प्रतीक माना जाता है । इस दिन सैंकड़ों लोगों का समूह पेरिस के पूर्वी भाग की ओर चाला पड़ा तथा यहाँ जास्तीत के कितने को तोड़ डाला। उन्हें आशा की कि इस किले से उन्हें काफी हथियार प्राप्त होंगे। किले के कमाण्डर की मर दिया गया, कैदियों को छुड़ा दिया गया। सम्राट की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक होने के कारण बास्ती काकी का केंद्र था। इसलिए दिनम को डाह दिया गया और उसके बाजार में उन लोगों को बेच दिए गए जो इस ध्वंस को बतौर स्मृति चिह्न संजोना चाहते थे ।
प्रश्न 10. राष्ट्रीय अली ने प्रशिया व आस्ट्रिया यह आक्रमणक्यों
उत्तर-यद्यपि फ्रांसीसी सम्राट ने 1791 के संविधान पर हस्ताक्षर कर दिये थे, फिर भी वह अपनी शक्तियों को बनाए रखने के लिए पड़ोसी राज्यों से साँठगाँठ कर अपनी स्थिति सुधारना चाहता था 1 प्रशिया व आस्ट्रिया के शासकों के साथ गुप्त साँध करके ई सोलहवाँ आपने लोगों को नाराज कर बैठा । इसका परिणाम यह हुआ कि राष्ट्रीय ने प्रशिया व आस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया। लोगों ने हजारों की संख्या में आक्रमण में भाग लिया तथा अपनी देशभक्ति का प्रमाण दिया, स्वयंसेवियों ने विराट द्वारा रचित गीत गाकर पैरिस में मार्च किया।
प्रश्न 11. लॉक, रूसो व माण्टेस्क्यू ने किस प्रकार फ्रांस के क्रांतिकारियों को प्रभावित किया ?
उत्तर-लॉक ने राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया था। रूसी ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए जनता और उनके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा | माण्टेस्क्यू ने 'द स्पिरिट ऑफ द लॉज' नामक रचना में सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही। जब संयुक्त राज्य अमेरिका में 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन से खुद को आजाद घोषित कर दिया तो वहाँ इसी मॉडल की सरकार बनी । फ्रांस के लोगों ने इन दार्शनिकों के विचारों से प्रेरणा ली थी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. फ्रांस की क्रांति के क्या कारण थे ?
उत्तर-फ्रांस की राज्यक्रांति के निम्नलिखित कारण थे :
राजनीतिक कारण: राजनीतिक कारण के निम्नलिखित बिन्दु थेनिरंकुश राजतंत्र-फ्रांस में एकतंत्रीय, स्वेच्छाचारी और निरंकुश शासन था । राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था। उसका पद वंशानुगत था और वह दैवी अधिकारों के सिद्धांतों के अनुसार शासन करता था। वह अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था । उसकी इच्छाएँ ही कानून थीं । उन कानूनों का उल्लंघन दैवी आदेश की अवमानना जैसा पाप माना जाता था। उसकी स्वेच्छाचारिता पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं था।
राजदरबार विलास एवं भ्रष्टाचार का केन्द्र-राज्य की संपूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था । भोग-विलास और आमोद-प्रमोद ही उसके जीवन का लक्ष्य था । राजा स्वयं बड़ी शान-शौकत से वर्साय के राजमहल में रहता था, जो पेरिस से बारह मील दूर था और जिसके निर्माण में कई करोड़ रुपये खर्च हुए थे । यूरोप में वर्साय का राजप्रासाद अपने वैभव और शान-शौकत के लिए प्रसिद्ध था । एक और फ्रांस की जनता भूखों मर रही थी और दूसरी ओर राज्य की समस्त आय राजा और राजदरबारियों के भोग-विलास में खर्च की जाती थी ।
राजनीतिक अव्यवस्था (Political disorder)-फ्रांस की राजनीति तथा समाज में बहुत तरह की गड़बड़ी घर कर गई थी। फ्रांस की सरकार निरंकुश होने के अलावा अव्यवस्थित भी थी । फ्रांस बहुत-से भागों में बँटा हुआ Golden न प्रांतों को चलता यह होता था कि किसी को भी राजकोष की सच्ची अवस्था पता नहीं था और रुपया जितना शीघ्र आता उतना ही शीघ्र खर्च हो जाता था । फ्रांस की क्रांति में वहाँ के दार्शनिकों का विशेष का ओर करें ।
प्रश्न 2. की क्रांति के निम्नलिखित परिणाम प्रमुख थे
उत्तर-
(i) सामंतवाद का अन्त - इस क्रांति का पहला परिणाम यह निकला कि इसके भयंकर चपेट में सर्वप्रथम सामंती प्रथा आयी, जिससे फ्रांस में सामंतवाद के अवशेषों का अंत हो गया और कुलीनों के विशेषाधिकार को भी समाप्त दिया गया ।
(ii) मध्यम वर्ग का सम्मान बढ़ा- इस क्रांति के परिणामस्वरूप मध्यमवर्ग जो पहले बहुत ही उपेक्षित था अब उसका सम्मान तथा इज्जत-प्रतिष्ठा बढ़ गयी । इससे अब मध्यम वर्ग ही समाज का मुखिया बन गया । कर
(iii) प्रजातंत्र का उदय-इस क्रांति ने राजतंत्र के सिद्धान्तों को चकनाचूर कर दिया । अब यह सिद्धांत सर्वमान्य हो गया कि शक्ति और सत्ता का मुख्य स्रोत सर्वसाधारण वर्ग के लोग हैं और उन्हीं के सहयोग से शासन का सुदृढ़ महल बनाया जा सकता है । इस तरह से फ्रांस में शासन की विषमता का अन्त हुआ और एकरूपता की स्थापना हुई ।
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता - इस क्रांति का प्रभाव धर्म पर भी स्पष्ट रूप से पड़ा । फ्रांस की जनता को धार्मिक स्वतंत्रता की प्राप्ति हो गई । धार्मिक जगत बुद्धिवाद का उदय हुआ जिससे सभी जगह सहिष्णुता का प्रयोग होने में भी लगा । धर्म पर से राजा की पाबंदी समाप्त हो गई ।
(v) राष्ट्रीयता की भावना-इस क्रांति ने लोगों की राष्ट्रीयता की भावना को भी खूब झकझोरा । फलतः लोगों में राष्ट्रीय भावना प्रबल हो गई । सभी विषमताओं और विभिन्नताओं के नष्ट हो जाने से फ्रांस में एक नई एकता कायम हुई जिससे एक नए युग का श्रीगणेश हुआ ।
(vi) लोकप्रिय संप्रभुता का उदय-इस क्रांति ने फ्रांस के राजनीतिक जगत में भी क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया । राजा के दैवी अधिकार के सिद्धांत का अन्त कर लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांतों को लागू किया गया । अब संप्रभुता जनता के हाथ में आ गयी ।
(vii) नागरिक स्वतंत्रता की स्थापना-इस क्रांति ने सम्पूर्ण फ्रांस में नागरिक स्वतंत्रता को स्थापित कर दिया । अब फ्रांस में न कोई शासक वर्ग था और न कोई शासित वर्ग ही । सभी वर्ग एक समान हो गए और उन्नति का आधार योग्यता, प्रतिभा तथा कुशलता को ही रखा गया ।
(viii) व्यक्ति का महत्त्व बढ़ा-क्रांति के पहले फ्रांस में व्यक्ति का कुछ भी महत्त्व नहीं था । यहाँ तक कि उसके जीवन का कोई मूल्य नहीं था ! इस क्रांति के परिणामस्वरूप व्यक्ति का महत्त्व बढ़ गया । अब आम जनता भी सिर उठाकर चल सकती थी ।
(ix) शिक्षा का सरकारीकरण-क्रांति के पूर्व शिक्षा की व्यवस्था चर्च के हाथ में थी, जिससे शिक्षा में प्रगति नहीं होती थी। इसमें भी सामंतों और चर्चों का बोलवाला था, जिससे शिक्षा जगत में बहुत-सी बुराइयाँ घर कर गई थीं । लेकिन क्रांति के बाद शिक्षा में महान परिवर्तन आया । अब शिक्षा का प्रबंध सरकार स्वयं करने लगी ।
(x) वाणिज्य-व्यापार में उन्नति-सामंतवाद की समाप्ति से सभी लोग नियंत्रण से मुक्त हो गए । व्यापार और व्यवसायों पर से सभी प्रकार के प्रतिबंध
समाप्त हो गए । कुलीनों की मनमानी से लोग बच गए । विशेषाधिकार से उत्पन्न कठिनाइयों से त्राण मिला ।
प्रश्न 3. फ्रांस की क्रांति एक मध्यमवर्गीय क्रांति थी, कैसे ?
उत्तर- फ्रांस की क्रांति पूर्णरूपेण निश्चयात्मक थी अर्थात् क्रांति की गति और दिशा लगभग वही थी जो लगभग सभी क्रांतियों की होती है। फिर भी किसी क्रांति के स्वरूप को निश्चित करने के पहले यह देखना आवश्यक होता है कि उस क्रांति के मूल कारण क्या थे, उस क्रांति में समाज के किस वर्ग के लोगों ने मुख्य रूप से भाग लिया और उस क्रांति से किस वर्ग के लोगों को सर्वाधिक लाभ हुआ । इतिहासकारों ने 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति को मध्यमवर्गीय क्रांति कहा है क्योंकि इस क्रांति ने एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की जगह दूसरे विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग का शासन स्थापित कर दिया । फ्रांस में मध्यम वर्ग के पास पूँजी की कमी नहीं थी । ये यदा-कदा सरकार को भी कर्ज दिया करते थे लेकिन सत्ता में इनकी कोई सहभागिता नहीं होती थी । यद्यपि फ्रांस की क्रांति के अनेक कारण थे परन्तु मध्यम वर्ग के असंतोष और इसी वर्ग के द्वारा जनचेतना को जागृत करना क्रांति को अवश्यंभावी बना दिया । जितने भी दार्शनिक थे जिन्होंने बौद्धिक चेतना जगाई, मध्यम वर्ग के थे । क्रांति के अधिकांश नेता भी मध्यम वर्ग के थे जिन्होंने क्रांति का संचालन किया । सच तो यह है कि मजदूर और किसानों ने मिलकर क्रांति को सफल बनाया । लेकिन उसके बाद भी सत्ता उनके हाथ में नहीं आयी । 4 अगस्त 1789 को जब नेशनल एसेम्बली द्वारा सामंतवाद की समाप्ति हुई तो उसके द्वारा अपनायी गई आर्थिक नीतियों ने स्पष्ट कर दिया कि क्रांति पर मध्यम वर्ग हावी हो गया है । इस क्रांति से मध्यम वर्ग को ही लाभ हुआ, साधारण जनता को तो मताधिकार भी नहीं दिया गया । नेशनल एसेम्बली ने एक कानून बनाकर मिलों में काम करने वाले मजदूरों के संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया । क्रांति का नारा 'स्वतंत्रता', 'समानता' एवं बन्धुत्व का प्रयोग पादरियों तथा सामन्तों के विशेषाधिकार को समाप्त करने एवं मध्यम वर्ग के लोगों के लिए विशेष सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए था । सन् 1789 से 1815 तक शासन पर मध्यम वर्ग का ही अधिकार रहा । इस तरह हम कह सकते हैं कि फ्रांस की क्रांति एक मध्यमवर्गीय क्रांति थी ।
प्रश्न 4. फ्रांस की क्रांति में वहाँ के दार्शनिकों का क्या योगदान था ?
उत्तर-तत्कालीन फ्रांस की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक, अस्तव्यस्तता की स्थिति से दार्शनिकों ने जनता को प्रेरणा दी और अन्ततः जनता क्रांति की ओर उत्सुक हुई। इनमें मांटेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो विशेष रूपेण उल्लेखनीय हैं । इन दार्शनिकों के विचारों का क्रांति में जो महत्त्वपूर्ण देन हुआ, वह इस प्रकार है
(i) मांटेस्क्यू-मांटेस्क्यू फ्रांस का महान् विचारक और दार्शनिक था । इसने अपने विचारों को राजनीतिक सिद्धांत की पुस्तक The Spirit of the Laws में प्रतिपादित किया । यह राजतंत्र विरोधी और जनतंत्र का प्रबल समर्थक था । उसने चर्च और एकतंत्र की निरंकुशता की तीखी आलोचना की । दैविक अधिकार सिद्धांत को वह मानसिक कल्पना मानता था । उसने लोगों को प्रत्येक वस्तु को तर्क की कसौटी पर जाँचने के लिए कहा। उसने शक्ति के पृथक्करण सिद्धान्त का समर्थन किया जिसके अनुसार कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका अपने अधिकारों को स्वतंत्र रूप से कार्यान्वित करते हैं। उनका कहना था कि व्यक्ति की स्वतंत्रता तभी अक्षुण्ण रह सकती है जब शक्ति का केन्द्रीकरण किसी एक व्यक्ति के हाथ में न हो। इस प्रकार मांटेस्क्यू ने फ्रांस में तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में प्रगतिशील विचारों को जन्म दिया और वहाँ के लोगों को बहुत ही प्रभावित किया ।
(ii) वाल्टेयर-वाल्टेयर इस युग का दूसरा प्रसिद्ध दार्शनिक हुआ चर्च की रूढ़िवादिता और शोषण की नीति का कट्टर विरोधी था । उसने अपने लेखों द्वारा चर्च और राज्य की बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। फलतः लोगों में सर्वथा नवीन दृष्टिकोण का विकास हुआ और वे एक. आदर्श शासन की कल्पना करने लगे । वाल्टेयर का कहना था कि चर्च के प्रभाव के अन्त से ही न्याय का शासन स्थापित किया जा सकता है । वह ऐसे शासन का समर्थक था जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण हो और शक्ति जनता के हाथों में हो। इस तरह उसने अपने लेखों द्वारा जनता में जागृति लायी जिसके परिणामस्वरूप फ्रांस की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था के दोषों को जानकर जनता कुशासन के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तैयार हुई और फ्रांस की क्रांति का बीजारोपण हुआ ।
(iii) रूसो-रूसो फ्रांस का सबसे बड़ा क्रांतिकारी विचारक हुआ। वह निरंकुश सत्ता का कट्टर विरोधी था । वह शक्ति का स्रोत जनता को मानता था । उनका कहना था कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि नहीं है। बल्कि जनता ने अपनी सम्पत्ति और जानमाल की सुरक्षा हेतु राजा को कुछ अधिकार दिए राजा प्रजा का सेवक है, न कि स्वामी । यदि राजा समझौता का उल्लंघन कर स्वेच्छारी बन जाता है तो जनता को अधिकार है कि वह राजा को हटा दे । इस प्रकार रूसो ने जनता की सार्वभौमिकता को स्वीकार किया और राज्य, राजा एवं शासन के ऊपर जनशक्ति को महान बतलाया । QUESTION No . 5 Coming Soon
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