POLTICAL SCIENCE
1.नक्सलवाद क्या है ?
पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जलिंग के नक्सलवाड़ी पुलिस थाने के इलाके में 1967 में एक किसान विद्रोह उठ खड़ा हुआ। उस विद्रोह की अगुआई मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीयकोडर के लोग कर रहे थे। नक्सलवादी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आंदोलन भारत के कई राज्यों में फैल गया। इस आंदोलन को नक्सलवादी आंदोलन के रूप में जाना जाता है। नक्सलवादी आंदोलन ने धनी भूस्वामियों से बलपूर्वक जमीन छीनकर गरीब और भूमिहीन लोगों को दी । उस आंदोलन के समर्थक अपने राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हिंसक साधनों के इस्तेमाल के पक्ष में दलील देते थे।
अथवा,
असम आन्दोलन के मुख्य मुद्दे क्या थे ?
असम आंदोलन अवैध अप्रवासी बंगाल और अन्य लोगों के दबदबे तथा में लाखों अप्रवासियों के नाम दर्ज कर लेने के खिलाफ था। आंदोलन की माँग थी कि 1951 के बाढ़ जितने भी लोग असम में आकर बसे उन्हें असम से बाहर भेजा जाए। असमी जनता अपनी गरीबी का मुख्य कारण बाहरी लोगों को मानता था जो वहाँ के संसाधनों का विदोहन कर रहे थे । उन्हें यह भी भय सता रहा था कि असमी जनता अल्पसंख्यक बनकर रह जाऐगी।
2. 1969 में कांग्रेस में विभाजन के क्या कारण थे ?
1969 में कांग्रेस के विभाजन के पीछे इंदिरा वनाम सिंडिकेट के बीच वर्चस्व की लड़ाई थी । सिंडिकेट कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था । सिंडिकेट ने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । सिंडिकेट के नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाह पर अमल करेंगी। किंतु इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर खुद का मुकाम बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने सिंडिकेट को हाशिए पर ला खड़ा किया । सिंडिकेट के नेताओं में के कामराज, एस. निजलिंगप्पा आदि प्रमुख थे । राष्ट्रपति पद पर चुनाव को लेकर दोनों गुटों में भयंकर मतभेद हो गया और अन्ततः इंदिरा गाँधी द्वारा समर्थित वी. वी गिरि राष्ट्रपति पद पर विजित हुए। इसी मतभेद को लेकर कांग्रेस पार्टी का 1969 में विभाजन हो गया । सिंडिकेट के नेता कांग्रेस विभाजन के बाद कांग्रेस 'ओ' में रहे : इंदिरा गाँधी की कांग्रेस (आर) ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रही ।
अथवा,
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के मुख्य प्रावधान क्या थे ?
1970 के दशक में अकालियों के एक तबके ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठाई । 1973 में आनन्दपुर साहिब में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित हुआ । उसमें क्षेत्रीय स्वायत्तता की बात उठायी गयी थी । प्रस्ताव की माँगों में केन्द्र-राज्य संबंध को पुनर्परिभाषित करने की बात भी शामिल थी । इस प्रस्ताव में सिख कौम की आकांक्षाओं पर जोर देते हुए सिखों के वर्चस्व का एलान किया गया । यह प्रस्ताव संघवाद को मजबूत करने की अपील करता है । लेकिन उसे एक अलग सिख राष्ट्र की माँग के रूप में भी पढ़ा जा सकता है ।
3. सामाजिक न्याय क्या है ?
सामाजिक न्याय से तात्पर्य समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता स्थापित करने से हैं । उसके तहत समाज में उपेक्षित व पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई । सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के लिए मंडल कमीशन ने शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण की सिफारिश की । धर्म या जाति के आधार पर लोगों के साथ कोई भेदभाव न हो, सभी की मान सम्मान समाज में सुरक्षित हैं । "
अथवा,
क्षेत्रीय दलों से आप क्या समझते हैं ?
त्रीय पार्टी का कार्य क्षेत्र बहुत सीमित होता है। उसकी शाखाएँ किसी विशेष प्रान्त या राज्य या भाग तक सीमित होती है जैसे आन्ध्रप्रदेश में तेलगुदेशम या पंजाब में शिरोमणी अकाली दल, बिहार में जनता दल यूनाइटेड आदि । क्षेत्रीय पार्टी का सरोकार अपने क्षेत्र के हित से होता है । हो सकता है कि ऐसी पार्टी राष्ट्रीय हित की उपेक्षा करके अपनी क्षेत्रीय हित के लिए संघर्ष करें ।
4. नयी अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
गुटनिरपेक्ष देशों के समय मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी । नव स्वतंत्र देशों की आजादी के लिहाज से भी आर्थिक विकास महत्वपूर्ण था । वगैर टिकाऊ विकास के कोई भी देश सही मायनों में आजाद नहीं रह सकता । उस परिपेक्ष्य में नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। 1972 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन (आंकड़ा) में 'टुवार्डस अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फोर डेलवपमेंट' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई । उस रिपोर्ट में वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया था ।
अथवा,
संयुक्त राष्ट्र की महासभा के संगठन की विवेचना कीजिए ।
महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वोच्च अंग है और उस प्रकार से विश्व की संसद को समान है । संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य उसके सदस्य हैं। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र उसमें पाँच प्रतिनिधि भेजता है परन्तु उसका एक मत होता है। वर्ष में एक बार उसका अधिवेशन होता है। उसकी स्थापना के समय उसके सदस्यों की कुल संख्या 51 थी जो बढ़कर 192 हो गई ।
5. क्या गुट निरपेक्षता एक नकारात्मक नीति है ?
नहीं, गुटनिरपेक्षता नकारात्मक नीति नहीं हैं । गुटनिरपेक्षता एक सकारात्मक नीति हैं । गुटनिरपेक्षता से तात्पर्य किसी प्रतिद्वन्दी गुट में शामिल न होकर स्वतंत्र रूप से अपनी वैदेशिक नीतियों
के संचालन से है। गुट निरपेक्ष देशों की ताकत की जड़ उनकी आपसी एकता और महाशक्तियों द्वारा अपने-अपने खेमें में शामिल करने की पुरजोर कोशिश के बावजूद ऐसे किसी खेमे में शामिल न होने के संकल्प में है ।
अथवा,
'पेरेस्त्रोइका' से आप क्या समझते हैं ?
सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने देश में राजनीतिक एवं आर्थिक सुधार आरंभ किए जिसे पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) के नाम से जाना जाता है । इस सुधार कार्यक्रम लागू होने के साथ ही सोवियत संघ का विघटन हो गया ।
6. बहुराष्ट्रीय निगम से आप क्या समझते हैं ?
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार के निमित बहुराष्ट्रीय कंपनी का गठन किया जाता है । ये निगन वैश्विक स्तर पर पूँजी निवेश कर बाजार पर नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं । इन कंपनियों का एक मात्र उद्देश्य लाभार्जन होता है ।
अथवा,
भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
एक अवधारणा के रूप में भूमण्डलीकरण की बुनियादी बात है - प्रवाह । प्रवाह कई तरह से हो सकते हैं विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना; पूँजी का एक से ज्यादा जगहों पर जाना; वस्तुओं का अनेक देशों में पहुँचना और उनका व्यापार तथा बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों की आवाजाही । उसका संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है ।
उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आर्थिक कार्यकलाप पर राज्य के नियंत्रण ढीले कर दिए जाते हैं और उन्हें बाजार की शक्तियों के हवाले कर दिया जाता है। सामान्यत: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कानूनों को अधिक उदार और सरल बना दिया जाता है, ताकि वस्तु निर्वाद्ध का प्रवाह होता है ।
7. कश्मीर समस्या पर एक टिप्पणी लिखिए ।
भारत में लगभग 550 देशी रियासतें थीं। 1947 के भारत स्वतंत्रता अधिनियम में यह प्रावधान था कि रियासत का राजा अपनी रियासत को भारत संघ में मिलाए या पाकिस्तान में मिलाए या स्वतंत्र बना रहे। कश्मीर के राजा हरि सिंह ने तीसरा विकल्प चुना अर्थात स्वतंत्र रहने का विकल्प । स्थिति का लाभ उठाते पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। 26 अक्टूबर 1947 को राजा ने भारत में कश्मीर के विलयपत्र पर पर हस्ताक्षर किए। तभी भारतीय सेनाएँ कश्मीर पहुँची और पाकिस्तानी सेना को पीछे खदेड़ दिया। संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा कश्मीर में युद्ध विराम का निर्णय हुआ । युद्ध विराम के बाद कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के अवैध कब्जे में चला गया जिसे आजाद कश्मीर का नाम दिया गया। और पूरे कश्मीर पर कब्जे के लिए पाकिस्तान 1947 के बाद से भारत के साथ युद्ध छेड़े हुए है। दोनों देशों के बीच 1965, 1971. 1999 तीन हो चुके हैं ।
अथवा,
गैर-कांग्रेसवाद से आप क्या समझते हैं ?
कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष एकजुट होकर संघर्ष का आहवान किया । समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इस रणनीति को गैर कांग्रेसवाद का नाम दिया। उन्होंने गैर कांग्रेसवाद के पक्ष में सैद्धान्तिक तर्क देते हुए कहा कि कांग्रेस का शासन अलोकतांत्रिक और गरीब लोगों के हित के खिलाफ है इसलिए गैर कांग्रेसी दलों का एक साथ आना जरूरी है ताकि गरीबों के हक में लोकतंत्र को वापस लाया जा सके ।
8. 'पंचशील' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
1954 ई० में भारत और चीन के बीच मित्रता और व्यापार की संधि हुई जिसकी प्रस्तावना में पाँच सूत्र रखे गए
(i) एक दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता व प्रभुसत्ता का सम्मान करना
(ii) किसी पर आक्रमण न करना
(iii) दूसरे के घरेलू मामले में हस्तक्षेप न करना
(iv) समानता व परस्पर लाभ तथा
(v) शांतिपूर्ण सह अस्तित्व ।
अथवा
मार्शल योजना क्या थी ?
युद्ध के कारण यूरोप की अर्थव्यवस्था एकदम छिन्न-भिन्न हो गई थी और चारों ओर असंतोष, दरिद्रता और आर्थिक कष्ट का साम्राज्य छाया हुआ था । ऐसी हालत में यूरोप में साम्यवादी व्यवस्था फैल जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गयी । अतएव अमेरिकी विदेश सचिव जार्ज मार्शल ने यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए एक योजना प्रस्तुत की जिसे मार्शल योजना नाम से जाना जाता है । उसके अन्तर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका ने चार वर्ष की अवधि में (1948-52) के लिए पश्चिमी यूरोप के 16 देशों को 20 अरब डॉलर की सहायता देना स्वीकार किया। मार्शल योजना के अन्तर्गत सहायता पाने के लिए यह शर्त लगायीं गयी कि सहायता पाने वाले देश अपनी सरकारों में कम्युनिष्टों को कोई जगह नहीं देंगें ।
10.भारत में विपक्षी दल के उदय पर एक टिप्पणी लिखिए ।
1952-67 के दौर में कांग्रेस का प्रभुत्व कायम रहा । उस युग को एकदलीय प्रभुत्व का दौर भी कहा जाता है। उस दौर में भी विपक्षी पार्टियाँ विद्यमान थीं। उनमें से कई पार्टियाँ 1952 के आम चुनावों से कहीं पहले बन चुकी थी। उनमें से कुछ ने साठ और सतर के दशक में देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । इन दलों ने कांग्रेस पार्टी की नीतियों और व्यवहार की सुचिन्तित आलोचना की। विपक्षी दलों ने शासक दल पर अंकुश रखा और बहुधा इन दलों के कारण कांग्रेस पार्टी के भीतर शक्ति संतुलन बदला । प्रमुख विपक्षी पार्टियों में स्वतंत्र पार्टी भारतीय जनसंघ, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया सोशलिस्ट पार्टी आदि प्रमुख हैं ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.1975 के आपातकाल के बाद की राजनीतिक पर एक टिप्पणी लिखिए ।
आपातकाल खत्म होते ही लोकसभा के चुनाव की घोषणा
विपक्ष ने 'लोकतंत्र बचाओ' के नारे के साथ चुनाव लड़ा । 1977 के मार्च में चुनाव हुए । सभी नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया । आपातकाल लागू होने के पहले ही बड़ी विपक्षी पार्टियाँ एक दूसरे के नजदीक आ रही थी । चुनाव के ऐन पहले उन पार्टियों ने एकजुट होकर जनता पार्टी नाम से एक नया दल बनाया । नयी पार्टी ने जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व स्वीकार किया । कांग्रेस के कुछ नेता भी जो आपातकाल के खिलाफ थे उस पार्टी में शामिल हुए । कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवन राम के नेतृत्व में एक नई पार्टी बनायी । उस पार्टी का नाम 'कांग्रेस फोर डेमोक्रेसी' था और बाद में यह पार्टी जनता पार्टी में शामिल हो गई ।
1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया । इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों पर छोड़ दिया । हजारों लोगों की गिरफ्तारी और प्रेस की सेंसरशिप की पृष्ठभूमि में जनमत कांग्रेस के विरुद्ध था ।
आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गई । कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिली थी । जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा के 542 सीटों में से 330 सीटें मिली । कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में एक कुल भी सीट न पा सकी । इंदिरा गाँधी राय बरेली से और संजय गाँधी अमेठी से चुनाव हार गए । किंतु विपक्षी दलों की यह सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल सकी । 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गाँधी की पुनः वापसी हुई ।
2. संविद अथवा साझी राजनीति से आप क्या समझते हैं ? इसके लाभ एवं दोषों का वर्णन कीजिए
संविद अथवा साझी राजनीति से तात्पर्य ऐसी राजनीति से है जिसमें चुनाव से पहले अथवा बाद में अनेक दलों में सरकार के गठन या किसी अन्य मामले पर सहमति बन जाए और वे सामान्यतः स्वीकृत साझे कार्यक्रम के अनुसार शासन करें। ऐसी राजनीति को साझी राजनीति के नाम से जाना जाता है ।
1989 के बाद साझी राजनीति का युग आरंभ हुआ। उस दौर में कांग्रेस के दबदबे के खात्मे के साथ बहुदलीय शासन प्रणाली का युग आरंभ हुआ। 1989 में गठित राष्ट्रीय मोर्चा; 1996 में बनी संयुक्त मोर्चे की सरकार, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार आदि उसके प्रमुख उदाहरण हैं ।
इसके लाभ - -
(i) अनेक दलों को सत्ता में आने और अपने कार्यक्रम को लागू करने का अवसर मिलता है ।
(ii) किसी एक पार्टी का प्रभुत्व स्थापित नहीं हो सकता ।
(iii) जन आकांक्षाओं को पूरा करने पर बल
(iv) क्षेत्रीय समस्याओं को मुख्यधारा में जुड़ने का अवसर
दोष
(i) शासन में स्थायित्व नहीं आ पाता ।
(ii) सामूहिक उत्तरदायित्व का सूत्र सच्चे अर्थों में लागू नहीं हो सकता ।
(iii) निर्णय लेने में कठिनाई
(iv) विदेशी पूँजी निवेश का अभाव
3.भारतीय विदेश नीति के मुख्य तत्वों का वर्णन कीजिए ।
एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ था। ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करने और शांति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने रखा। एक देश की विदेश नीति पर घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का असर पड़ता है। विकासशील देशों के पास अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूरा करने के लिए जरूरी संसाध नों का अभाव होता है उनका जोर इस बात पर होता है कि उनके पड़ोस में अमन-चैन कायम रहे और विकास होता रहे। इसके अतिरिक्त विकासशील देश आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा ताकतवर देशों पर निर्भर होते हैं। इस निर्भरता का भी उनकी विदेशी नीति पर असर पड़ता है द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के दौर में अनेक विकासशील देशों ने ताकतवर देशों की मर्जी को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति अपनाई क्योंकि इन देशों से उन्हें अनुदान और कर्ज मिल रहा था । इस वजह से दुनिया के विभिन्न देश दो खेमों में बँट गए। एक खेमा संयुक्त राज्य अमेरिका और
उनके समर्थक देशों के प्रभाव में रहा तो दूसरा खेमा सोवियत संघ के प्रभाव में ।
भारत इन दोनों गुटों में शामिल न होकर गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया । नेहरू ने कहा कि भारत युद्ध या शीत युद्ध में किसी के साथ नहीं होगा लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा व सहयोग के कार्य में सभी के साथ होगा ।
पंचशील सिद्धान्त भारतीय विदेश नीति के महत्वपूर्ण तत्व है जिसकी प्रस्तावना में पाँच विन्दु रखे गए हैं :
(i) एक दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता व प्रभुसत्ता का आदर करना ।
(ii) किसी पर आक्रमण न करना ।
(iii) दूसरे के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना ।
(iv) समानता व परस्पर लाभ ।
(v) शांतिपूर्ण सह अस्तित्व ।
नेहरू ने भारत की विदेश नीति में पाँच अन्य विन्दु जोड़ दिए :
(i) साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का खण्डन तथा अन्य देशों में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करना ।
(ii) दक्षिण अफ्रीका की नस्लीय भेदभाव या रंगभेद नीति की निन्दा करना ।
(iii) निःशस्त्रीकरण किया जाना तथा परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाना ।
(iv) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण तरीकों से निपटारा ।
(v) संयुक्त राष्ट्र संघ को पूरा सहयोग व समर्थन देना ।
4. एक ध्रुवीय विश्व पर एक निबंध लिखिए ।
गुटनिरपेक्ष देश अपना स्वतंत्र विदेश नीति अपना सकते हैं। यह आंदोलन मौजूदा असमानता से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था बनाने और अन्तर्राष्ट्रीय विश्व व्यवस्था को लोकतंत्र बनाने के संकल्प पर टिका है । शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी उसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व एक ध्रुवीय हो गया । एक ध्रुवीय विश्व का नायक अमरीका है । 1991 के बाद अमरीका के वर्चस्व की शुरूआत हुई । विश्व राजनीति में विभिन्न देश या देशों के समूह ताकत पाने और कायम रखने की लगातार कोशिश करते हैं। यह ताकत सैन्य प्रभुत्वे, आर्थिक शक्ति, राजनीतिक रूतबे और सांस्कृतिक बढ़त के रूप में होती है। वैविश्यक स्तर पर इन क्षेत्रों में बढ़त होने के कारण अमरीका को महाशक्ति का दर्जा प्राप्त है। जब अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था किसी एक महाशक्ति के दबदबे में हो तो बहुधा उसे एक ध्रुवीय व्यवस्था कहा जाता है । अमरीका की मौजूद ताकत की रीढ़ उसकी चढ़ी-बढ़ी सैन्य शक्ति है । आज अमरीका की सैन्य
शक्ति अपने आप में अनूठी है। आज अमरीका अपनी सैन्य क्षमता के बूते पर पूरी दुनिया में कहीं भी निशाना साध सकता है । अपनी सेना को युद्ध भूमि से अधिकतम दूरी पर सुरक्षित रखकर वह अपने दुश्मन को उसके घर में ही पंगु बना सकता है ।
अमरीका से नीचे कुल 12 ताकतवर देश एक साथ मिलकर अपनी सैन्य क्षमता के लिए जितना खर्च करते हैं कहीं ज्यादा अपनी सैन्य क्षमता के लिए अकेले अमरीका करता है। अमरीका के सैन्य प्रभुत्व का आधार सिर्फ उच्च सैनिक व्यय नहीं बल्कि उसकी गुणात्मक बढ़त भी है। अमरीका आज, सैन्य प्रौद्योगिकी के मामले में उतना आगे हैं कि किसी और देश के लिए इस मामले में उसकी बराबरी कर पाना संभव नहीं है ।
निसन्देह आज कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति के जोड़ का मौजूद नहीं है । भारत, चीन और रूस जैसे बड़े देशों में अमरीकी वर्चस्व को चुनौती दे पाने की संभावना है लेकिन इन देशों के बीच आपसी मतभेद है और इन मतभेदों के रहते अमरीका के विरुद्ध उनका कोई गठबंधन नहीं हो सकता ।
5. भारत में कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के पतन के मुख्य कारकों का परीक्षण कीजिए ।
भारत में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख के पतन के मुख्य कारक निम्नलिखित हैं :
(i) अंदरूनी कलह : सिंडिकेट बनाम इंदिरा की लड़ाई न कांग्रेस को कमजोर बना दिया । सिंडिकेट कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का समूह था । सिंडिकेट के नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी उनकी सलाह पर चलेगी। किंतु इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर खुद का मुकाम बना शुरू किया। दोनों में मतभेद के कारण अन्ततः कांग्रेस पार्टी का कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) और इंदिरा गाँधी की अगुवाई वाले कांग्रेस खेमे को कांग्रेस रिक्विजिनिस्ट) कहा जाने लगा था। इन अंदरूनी कलह के कारण कांग्रेस का प्रभाव घटा ।
(ii) ग्रैंड अलायंस (महा गठबंधन) : कांग्रेस के प्रभुत्व को समाप्त करने के लिए सभी बड़ी गैर साम्यवादी और गैर कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों न एक चुनावी महागठबंधन बना िलया था जिसके कारण कांग्रेस के प्रभुत्व का पतन हुआ ।
(iii) अलोकतांत्रिक निर्णय : इंदिरा गाँधी ने देश में आपात लागू कर 1975 में कई राजनीतिक नेताओं को जेल में डाल दिया । प्रेस पर सेंसरसिप लागू कर दिया गया । उस जनाक्रोश के कारण कांग्रेस को 1977 के आम चुनाव में सत्ता से बाहर होना पड़ा ।
(iv) जातिवादी राजनीति का उदय : कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने जातिवादी राजनीति को बढ़ावा दिया जिसके कारण कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आई ।
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