1.यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर – 18वीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत तुर्की की स्थिति कमजोर पड़ गई। इसका लाभ उठाकर राष्ट्रवादी शक्तियाँ सशक्त हो गईं। इन्हे यूनान के बौद्धिक आंदोलन तथा गुप्त क्रांतिकारी संगठनों का साथ मिला। परिणामस्वरूप, 1821 में मोलडेविया में व्यापक विद्रोह हुआ जिसे कुचल दिया गया। मोरिया में दूसरा विद्रोह हुआ। तुर्की के सुलतान ने इस विद्रोह को धार्मिक स्वरूप देने का प्रयास किया। मिस्र के शासक पाशा महमत अली की सहायता से उसने क्रूरतापूर्वक विद्रोह का दमन किया। इससे पूरा यूरोप स्तब्ध हो गया। तुर्की के विरुद्ध ब्रिटेन, रूस और फ्रांस संयुक्त कार्रवाई के लिए तैयार हुए। रूस द्वारा पराजित होकर 1829 में तुर्की ने उसके साथ एड्रियानोपुल की संधि की। यूनानी राष्ट्रवादियों ने इस संधि को स्वीकार नहीं किया। फलतः, 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान का उदय हुआ। बवेरिया का राजकुमार ऑटो यूनान का शासक बना।
2. भारत में कितने प्रकार कि सड़कें हैं? वर्णन करें।
उत्तर --- वर्तमान समय में भारत में निम्नलिखित प्रकार की सड़कें हैं।
(क) राष्ट्रीय राजमार्ग – इस सड़क का निर्माण व मरम्मत केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। देश • की सड़कों की कुल लंबाई का 2 प्रतिशत इन सड़कों का है। एकल, दो व कहीं-कहीं 4, 6 या 8 लेनवाली इन सड़कों की कुल लंबाई 76,818 (मार्च 2012 तक) किलोमीटर है। इनमें सबसे लंबा राष्ट्रीय महामार्ग-7 हैं जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक जाता है।
(ख) प्रांतीय राजमार्ग - इस प्रकार की सड़कों के निर्माण, अनुरक्षण और परिचालन का दायित्व राज्य सरकारों पर है। देश की सड़कों की कुल लंबाई का 3.38 प्रतिशत भाग इन सड़कों का है। इनके अतिरिक्त जिला (21.01%) एवं ग्रामीण (58.33%) सड़कें भी हैं जो क्षेत्रीय विकास में काफी योगदान देती हैं। कुछ शहरी सड़कें (9.54% ) तथा विभिन्न योजनाओं के तहत बनी सड़कें ( 6.15% ) भी हैं।
3. "कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर - बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। कृषि एक तरफ 10 करोड़ आबादी का भोजन जुटा रही है तो दूसरी तरफ ग्रामीणों की आय का यह प्रमुख स्रोत है। कई कृषि उत्पाद ऐसे हैं, जिनसे फूड प्रोसेसिंग उद्योग विकसित हो रहा है। राज्य में खाद्यान्न फसलों (चावल, गेहूँ, मकई, दाल, तेलहन) के अलावा रेशेदार फसलों (पटसन, जूट), नकदी फसलों (गन्ना, तंबाकू, पान) तथा फल और सब्जियों का प्रचुर उत्पादन किया जा रहा है। कृषि को अधिक उत्पादक बनाने के लिए सिंचाई, बीज, उर्वरक, यंत्रीकरण, ऋण प्रवाह पर अधिक बल दिया जा रहा है।
राज्य में अनेक फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। धान के प्रमुख उत्पादक जिले हैं— रोहतास, औरंगाबाद और पश्चिमी चंपारण। गेहूँ के प्रमुख उत्पादक जिले हैं – रोहतास, सीवान, मधुबनी, मुजफ्फरपुर एवं पूर्वी चंपारण मक्का के प्रमुख उत्पादक जिले हैं. -बेगूसराय, खगड़िया, समस्तीपुर, कटिहार और मधेपुरा। दलहनी फसलों के अग्रणी उत्पादक जिले हैं— पटना, औरंगाबाद, नालंदा, - भोजपुर और कैमूर। गन्ना के प्रमुख उत्पादक जिले हैं— पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज तथा पूर्वी चंपारण। समस्तीपुर, वैशाली, दरभंगा, पटना, भागलपुर, मुंगेर और मुजफ्फरपुर तंबाकू उत्पादन के प्रमुख जिले हैं। फलों में आम, अमरूद, लीची और केला प्रमुख हैं। सब्जियों के अंतर्गत आलू, प्याज, टमाटर, गोभी एवं हरी सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है। इन कृषि फसलों के उत्पादन व व्यापार से कृषकों एवं व्यापारियों को लाभ तथा सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है। कृषि के साथ पशुपालन भी किया जा रहा है। गाय, भैंस, भेड़, बकरी, एवं कुक्कुटपालन द्वारा लोगों को आजीविका व राज्य सरकार को आय की प्राप्ति हो रही है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अंतर्गत चाय प्रसंस्करण उद्योग, दुग्ध-उद्योग, मखाना उद्योग, शहद, बिस्कुट, बेकरी, शीतल पेय उद्योग का विकास हुआ है। राज्य में मत्स्य उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। अतः उपर्युक्त कृषि एवं अनुषंगिक कार्य ही बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
4. सूचना का अधिकार कानून लोकतंत्र का रखवाला है। कैसे ?
उत्तर – सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लोकतंत्र का रखवाला बन चुका है। इससे प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार मिल गया है कि वह विभिन्न समस्याओं के समाधान की दिशा में सरकार के द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्राप्त करे। उससे संबंधित निर्णय की प्रक्रिया कार्य की प्रगति और किसी भी अभिलेख की माँग करे। सरकारी अधिकारी के लिए माँगी गई सूचना उपलब्ध करना उसका कानूनी उत्तरदायित्व बन गया है। इससे गोपनीयता की जगह प्रशासन में पारदर्शिता आई है। पदाधिकारी सतर्क, पारदर्शी और निष्पक्ष रहने के लिए बाध्य हो गए हैं।
5. लोकतंत्र किस प्रकार आर्थिक संवृद्धि एवं विकास में सहायक बनता है?
उत्तर – लोकतंत्र जनता के प्रति उत्तरदायी और जनसमस्याओं के प्रति संवेदनशील शासन है। यह आर्थिक विषमता की जगह सामाजिक न्याय, शोषण से मुक्त एक सुखी, गरिमापूर्ण और अभावहीन जीवन को अपना लक्ष्य मानता है। आर्थिक संवृद्धि और चहुँमुखी विकास लोकतंत्र का लक्ष्य है। परंतु, आर्थिक संवृद्धि और विकास को लोकतंत्र नैतिक दृष्टि से भी देखता है।
केवल कुल राष्ट्रीय उत्पाद और प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि को लोकतंत्र आर्थिक संवृद्धि और विकास नहीं मानता है, बल्कि एक न्यायपूर्ण सामाजिक-आर्थिक जीवन, एक गरिमापूर्ण जीवन की स्थिति प्रदान करना इसका लक्ष्य है। इसलिए, शोषण से मुक्ति, अधिकतम रोजगार का सृजन, अवसर की समानता, उत्पादन में वृद्धि, संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण, पूँजी के केंद्रीकरण को रोकना, आर्थिक समानता, राजनीतिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक सामंजस्य लोकतंत्र के उद्देश्य हैं। समावेशी विकास को लोकतंत्र ने अपने विकास का सिद्धांत बनाया है। अतः, गरिमापूर्ण आर्थिक संवृद्धि और समावेशी विकास की दिशा में लोकतंत्र तेजी से प्रगति कर रहा है ।
6. गठबंधन की सरकारों में सत्ता में साझेदार कौन-कौन होते हैं?
उत्तर – भारत के वर्तमान युग को गठबंधन की सरकारों के युग की संज्ञा दी जाती है। यहाँ संसदीय शासन व्यवस्था स्थापित की गई है। केंद्र के स्तर पर लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल को सरकार बनाने का अवसर मिलता है। यही बात प्रांतों के साथ भी लागू होती है। नव निर्वाचन के उपरांत बहुमत के आधार पर गठित सरकार तभी तक टिक पाती है जब तक उसे लोकसभा या विधानसभा में बहुमत प्राप्त रहता है। 1967 तक प्रांतों तथा 1989 तक केंद्र में काँग्रेस को बहुमत प्राप्त रहा। परंतु, इसके उपरांत केंद्र और प्रांतों में सरकार बनाने के लिए कई दलों के सहयोग से बहुमत जुटाने के युग का प्रारंभ हुआ जिसे गठबंधन की सरकार की संज्ञा दी गई। गठबंधन में कई राजनीतिक दल सम्मिलित होते हैं। निर्दलीय भी गठबंधन में साझेदार होते हैं।
7.'मानवाधिकार' के महत्त्व पर लिखें।
मानवाधिकार का संबंध किसी देश के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों से है। इनकी सुरक्षा के लिए हमारे देश में 'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' की स्थापना की गई है। अन्य विकासशील देशों के समान ही हमारे देश के निर्धन एवं कमजोर वर्ग के लोगों का कई प्रकार से शोषण होता है। भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को समान सुविधा तथा समान अवसर का अधिकार प्रदान करता है। परंतु, आवश्यक कानून होने पर भी वे समान सुविधा तथा समान अवसर से वंचित हो जाते हैं। अतएव, हमारे समाज में बेसहारा और कमजोर वर्ग के मौलिक अधिकारों की प्रभावपूर्ण सुरक्षा के लिए इस प्रकार के एक आयोग का गठन करना आवश्यक था।
हमारे संविधान में सात मौलिक अधिकार दिए गए हैं जिनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार तथा आर्थिक शोषण से संरक्षण के अधिकार शामिल हैं। इन अधिकारों का हनन होने पर कोई भी व्यक्ति मानवाधिकार आयोग को आवेदन दे सकता है। इस आयोग का महत्त्व इस कारण और बढ़ जाता है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन होने पर यह स्वयं भी संज्ञान ले सकता है। उदाहरण के लिए, बिहार मानवाधिकार आयोग ने पिछले लगभग एक वर्ष में भूख से मौत, सामाजिक सुरक्षा नियमों की अवहेलना तथा निर्धनता निवारण योजनाओं के कार्यान्वयन जैसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर प्रभावी हस्तक्षेप किया है।
8. आर्थिक विकास क्या है ? आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अंतर बताइए।
आर्थिक विकास आय या उत्पादन में वह वृद्धि है जो उत्पादन की तकनीक एवं अर्थव्यवस्था के ढाँचे में परिवर्तन से प्राप्त हो । उदाहरण के लिए, हरित क्रांति एवं भूमि सुधार के कारण कृषि उत्पादन में हुई वृद्धि को हम आर्थिक विकास का सूचक मान सकते हैं। आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाना है। इसके लिए अर्थव्यवस्था के निष्क्रिय संसाधनों को गतिशील किया जाता है। जहाँ आर्थिक वृद्धि संसाधनों के संवर्द्धन से आसानी से प्राप्त की जा सकती है, वहीं विकास एक विस्तृत और जटिल प्रक्रिया है। विकास के उद्देश्यों में प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि के साथ-साथ गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, शिशु मृत्यु दर आदि में कमी भी शामिल हैं। अतः, विकास कल्याण एवं जीवन की गुणवत्ता से संबंधित है।
सारांश में, हम यह कह सकते हैं कि आर्थिक वृद्धि शब्द का प्रयोग विकसित राष्ट्रों के लिए किया जाता है जबकि आर्थिक विकास का व्यवहार विकासशील राष्ट्रों के संदर्भ में किया जाता है। अतः, यदि • धनी देशों की आय बढ़ती है तो यह 'आर्थिक वृद्धि' है जबकि निर्धन देशों की आय का बढ़ता स्तर 'आर्थिक विकास' का द्योतक है।
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