उत्तर-खमीरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें खाद्य पदार्थ में उपस्थित सूक्ष्मजीव आवश्यक भौतिक व रासायनिक परिवर्तन लाते हैं जिससे पोषक तत्त्व शीघ्र पचने वाले यौगिकों में बदल जाते हैं ।
2. रजोनिवृत्ति क्या हैं ;
उत्तर–प्रायः स्त्रिों में रजोनिवृति काल 40 वर्ष के बाद ही होता है जिसमें रजस्राव बंद हो जाता है तथा वाहिका प्रेरक में परिवर्त्तन आ जाता है। स्तन के ऊतक ढीले जाते हैं, डिम्ब ग्रंथियाँ छोटी हो जाती हैं तथा इससे अन्त:स्राव होना बंद हो जाता है।
3. कोलोस्ट्रम क्या हैं ;
उत्तर-शुरूआत के दो या तीन दिनों में माता के स्तनों से पीला द्रव्य निकलता है जिसे कोलस्ट्रम कहते हैं, जो बच्चों का पहला टीका होता है ।
4.दैनिक सफाई क्या हैं ;
उत्तर - दैनिक सफाई से तात्पर्य है हवा से उड़कर अनेक प्रकार के धूल व मिट्टी हमारे कमरे में आ जाते हैं। इसके साथ जूतों के साथ भी मिट्टी आदि कमरे में आ जाती है। इसके अन्तर्गत कमरे की सफाई, फर्श की सफाई, कपड़े की सफाई आदि आती है। इन सब गंदगियों की सफाई नित्य ही होना अनिवार्य है । तंतु
5. धुलाई (वाशिंग ) मशीन क्या हैं ;
उत्तर- धुलाई मशीन या धुलाई कल (वॉशिंग मशीन) एक घरेलू उपकरण है • जिसका उपयोग कपड़े धोने के लिए किया जाता है। सूखी धुलाई और पराधात्विक मार्जक (अल्ट्रासोनिक क्लीनर) के विपरीत घरेलू धुलाई मशीनें, कपड़े धोने के लिए पानी और • सूखे अथवा तरल डिटर्जेंट (अपमार्जक) का उपयोग करती है ।
6. एगमार्क क्या हैं ;
उत्तर- कृषि उत्पाद की गुणवत्ता एवं शुद्धता एगमार्क से आँकी जाती है। एगमार्क का अर्थ कृषि विक्रय उत्पाद की गुणवत्ता को उसके आकार, किस्म, नमी, रंग, भार, वसा की मात्रा तथा दूसरे भौतिक और रासायनिक लक्षणों द्वारा आँका जाता है ।
7. प्रतिभाशाली बालक क्या हैं ;
उत्तर - प्रतिभाशाली बालक से तात्पर्य ऐसे बालकों से है जो सामान्य बालकों की तुलना में बहुत अधिक बुद्धिवाले होते हैं। टरमैन तथा मेरियल ने कहा है कि प्रतिभाशाली बालकों का आई० क्यू० 140 या उससे अधिक होता है ।
8. जीवन रक्षक घोल क्या हैं ;
उत्तर- उबालकर ठंडे किए गए जल में उचित मात्रा में नमक व शर्करा मिलाने से जीवन रक्षक घोल बनता है। यह प्रायः निर्जलीकरण की अवस्था को रोकने के लिए किया जाता है जो कि हैजा, अतिसार तथा खाद्य विषाक्तता के कारण उत्पन्न होती है ।
9. पानी के प्राकृतिक स्रोत क्या हैं ;
उत्तर- पानी के प्राकृतिक स्रोतों में प्रमुख रूप से वर्षा का जल, समुद्र, नदी, झील, झरना, भूगर्भ में पाया जानेवाला पानी आदि है।
10. समेकित बाल विकास योजना क्या हैं ;
उत्तर- समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) का सरोकार मुख्यतः 0-6 वर्ष आयु समूह के बच्चों, किशोरियों और साथ ही गर्भवती धात्री महिलाओं से संबंधित योजनाओं का कार्यान्वयन है। इसके अन्तर्गत प्रदान की जानेवाली सेवा इस प्रकार हैं
(1) पूरक पोषण
(2) टीकाकरण/रोगप्रतिरक्षा
(3) स्वास्थ्य जाँच सेवाएँ
(4) रेफरल सेवाएँ
(5) स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा और
(6) पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा
11. प्रोटीन क्या हैं ;
उत्तर- प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्त्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फॉस्फोरस भी उपस्थित होता है ।
12. ग्रामीण स्वच्छता क्यों महत्त्वपूर्ण है ? ग्रामीण स्वच्छता में सुधार के लिए कुछ उपाय सुझाएँ ।
उत्तर-स्वस्थ गाँव में स्वस्थ नागरिक होते हैं। हमारे देश के अस्सी प्रतिशत व्यक्ति गाँवों में रहते हैं । इसलिए गाँवों की प्रगति पर ही देश की प्रगति निर्भर है। किन्तु गाँवों की उपेक्षा होने से ग्रामवासी स्वच्छ एवं स्वस्थ जीवन की सुविधाओं से वंचित हैं। स्वस्थ रहना सुखी जीवन के लिए आवश्यक है । जिसके लिए स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण आवश्यक है । गाँवों में स्वच्छ हवा, शुद्ध जल, शुद्ध भोजन के पर्याप्त मात्रा में मिलने के बावजूद स्वास्थ्य सम्बन्धी अज्ञानता के कारण ग्रामीण अस्वस्थ रहते हैं। गाँवों में अधिक गन्दगी एवं अस्वास्थ्यकर वातावरण द्वारा संक्रामक रोगों तथा बढ़ती जनसंख्या के कारण आस-पास के वातावरण भी दूषित हो रहे हैं । इसलिये ग्रामीणों को स्वस्थ रहने के लिए ग्राम्य स्वस्च्छता आवश्यक है। जिसके लिए ग्रामीणों को स्वास्थ्य-संबंधी ज्ञान होना जरूरी है। ग्रामीणों की ग्राम्य-स्वच्छता की समस्या का समाधान- विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण स्वास्थ्य एवं अयोग्यता के सुधार हेतु एवं आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए अनेक प्रयास किये गये तथा उनसे कुछ सफलताएँ मिली हैं। कुछ साध कारण स्वास्थ्य-संबंधी नियमों के पालन करने से ग्रामीणों का स्वास्थ्य सुधर सकता | ग्रामीण समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत हैं
1. स्वास्थ्यकर निवास स्थान- निर्माण योजना के अनुसार गाँवों में ऐसे भवन निर्मित कराना चाहिए जो स्वास्थ्य के अनुकूल हों। भवनों में खिड़कियाँ तथा रोशनदान, शुद्ध वायु के आने के लिए होना आवश्यक है । सीलन नहीं होने के लिए घर के दूषित जल के निष्कासन के लिए पक्की नालियों का प्रबन्ध होना चाहिए । रसोई-घरों से धुआँ निकलने के लिए उचित चिमनी तथा खिड़कियों का प्रबन्ध होना चाहिए । जानवरों के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए। घर के निकट बगीचा होने से ताजी साग-सब्जी उपजायी जा सकती है । मकानों में प्रकाश आने की व्यवस्था से सीलन नहीं रहते हैं। इस प्रकार के निवास स्थान स्वास्थ्यकर होते हैं।
2. शुद्ध पेय जल की व्यवस्था- गाँवों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए नहरें एवं आदर्श कुओं का निर्माण होना चाहिए। मुँहबंद कुएँ में नलियाँ लगाकर हस्तपम्प द्वारा शुद्ध जल प्राप्त होते हैं। कुओं पर मुड़ेर बनवाकर उसके चारों तरफ उचित पक्के नाली की व्यवस्था होनी चाहिए। कुएँ का कीचड़ वर्ष में एक बार अवश्य निकलवा देना चाहिए तथा उसमें पोटाशियम परमैगनेट या ब्लीचिंग पाउडर अवश्य डालना चाहिये । कुएँ की मेड़ पर बर्त्तन एवं कपड़े नहीं साफ करना चाहिए । कुएँ के पास पेड़-पौधा भी लगा नहीं होना चाहिए ताकि उसके पत्ते गिरकर जल को दूषित न कर दें। विशेषकर गाँवों में शुद्ध जल प्राप्त करने के लिए नलकूपों या सिंचाई के लिए बोरिंग की व्यवस्था करनी चाहिए । पंचवर्षीय योजनाओं से सरकार द्वारा ग्रामीण जलापूर्ति योजना के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था की जा रही है ।
3. मल-मूत्रादि और कूड़ा-कर्कट का उचित निवारण-गाँवों में मल-मूत्रादि के निवारण के लिए छिद्रवाले संडास, खाईदार संडास, सेप्टिक टैंक वाले शौचालय बनवाने चाहिए । सरकार की तरफ से सुलभ शौचालय द्वारा अनुदान प्राप्त कर बनवाये जाने चाहिए । घर का कूड़ा-कर्कट, गन्दगी आदि को घरों के नजदीक नहीं फेंककर उसमें राख और गोबर सहित गड्ढे में खोदकर डालना चाहिए तथा ऊपर से मिट्टी डाल देनी चाहिए । जिससे वह सब कुछ दिनों में अच्छी कम्पोस्ट खाद बन जाते हैं तथा वातावरण भी दूषित नहीं हो पाता है । उसके अलावे घर के कूड़े को रखने के लिए आँगन में ढक्कनदार टीन या पीपे का प्रबन्ध होना चाहिए । बर्तन के भरने पर प्रतिदिन उसे कम्पोस्ट बनाने वाले गड्ढे में डाल देना चाहिये ।
4. मकान के गन्दे पानी का निकासी-गाँवों के घरों से निकलने वाले गन्दे पानी से बाहर निस्तारण (निकासी) हेतु पक्की नालियों की व्यवस्था होनी चाहिए । नालियाँ ढँकी होनी चाहिए तथा मुँह पर जाली लगी होनी चाहिए । गन्दे पानी को दूर पक्की नालियों द्वारा जलपोषक गड्ढा में ही गिराना चाहिये ।
5. पर्यावरण की सफाई-ग्रामीणों को अपने गाँवों की सफाई के साथ-साथ वातावरण की शुद्धता के लिए व्यर्थ पदार्थों के सड़ने-गलने के स्थान को समाप्त कर देना चाहिए । जिसके लिए गढ्ढों को मिट्टी से भरवा देना चाहिए । गलियों एवं नालियों की नियमित सफाई की व्यवस्था ग्राम पंचायत द्वारा करायी जानी चाहिए ।
13. खाद्य परिरक्षण से आप क्या समझते हैं ? उपभोक्ता शिक्षा क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-खाद्य परीरक्षण (Food Preservation)- खाद्य परीरक्षण वैसा विज्ञान है जो भोज्य पदार्थ को अधिक समय के लिए संग्रह करने की विभिन्न विधियों का अध्ययन कराता है। उचित ढंग से संग्रह नहीं करने से काफी मात्रा में भोज्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं । अनाज, दालों एवं मसालों के संग्रहीकरण में सावधानियाँ रखनी पड़ती हैं, अन्यथा चूहे, कीट, झिंगुर, तेलचट्टे आदि नष्ट कर देते हैं या सड़-गल जाते हैं अथवा पाउडर बन जाते हैं । उचित रूप से संग्रह करने से भोज्य पदार्थों को महीनों सुरक्षित रखे जा सकते हैं 1 विधिवत संग्रहीत करने से भोज्य पदार्थों की गन्ध, आकार, रंग-रूप एवं पोषक तत्त्व पूर्ववत् बने रहते हैं । इस प्रकार संरक्षण का उद्देश्य भोजन में एन्जाइमों के कारण होने वाले परिवर्त्तन को रोकना होता है ।
14. उपभोक्ता शिक्षा से आप क्या समझते हैं ? उपभोक्ता शिक्षा क्यों महत्त्वपूर्ण 23. है ?
उत्तर-उपभोक्ता शिक्षा के अंतर्गत उपभोक्ताओं को उसके कर्त्तव्यों और दायित्वों का बोध कराना होता है । उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए यह अत्याधिक महत्वपूर्ण है कि उपभोक्ता स्वयं अपने अधिकारों को जानता हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि वस्तु खरीदने से पहले ही उसे वस्तु की जानकारी हो, जिससे विक्रेता उसे धोखा न दे सके । उपभोक्ता शिक्षण द्वारा जहाँ एक ओर उपभोक्ता को उसके अधिकारों का ज्ञान कराना आवश्यक है वहाँ उसे उसके दायित्वों (Responsibility) का बोध कराना भी आवश्यक है ।
एक जागरूक उपभोक्ता को अपने निम्नलिखित दायित्वों का ज्ञान होना भी अति आवश्यक है तथा उसे अपने इन दायित्वों के प्रति सचेत रहना चाहिए
(i) वस्तु विशेष के स्तर की सही जानकारी (Knowledge of proper quality of products) - उपभोक्ता का यह दायित्व है कि उसे वस्तु विशेष के स्तर की सही जानकारी होनी चाहिए। यह जानकारी उसे निजी अनुभव, जानकार मित्रों से चर्चा, छपे साहित्य, रेडियो एवं दूरदर्शन के कार्यक्रमों, जनसम्पर्क के माध्यमों द्वारा होती है । अतः उपभोक्ता को हर संभव प्रयत्न द्वारा विशेष के स्तर की सही जानकारी प्राप्त करनी चाहिए ।
(ii) वस्तु विशेष की कीमत की सही जानकारी (Knowldge of proper price of products) - उपभोक्ता का दायित्व है कि वह वस्तु विशेष की कीमत की सही जानकारी प्राप्त करें। इसके लिए वह दूसरों के अनुभवों का लाभ उठा सकता है तथा वस्तु को खरीदने से पूर्व दो चार दुकानों में जाकर उसके सही मूल्य की जानकारी प्राप्त कर सकता है। उपभोक्ता का यह दायित्व है कि वह वस्तुओं को उचित दामों पर ही खरीदे ।
(iii) फिजूलखर्ची एवं होड़ से बचना (Avoid extavagence and competition)- उपभोक्ता का यह एक प्रमुख दायित्व है कि वह फिजूलखर्ची एवं मित्रों तथा पड़ोसियों की होड़ से बचे। उपभोक्ता को केवल आवश्यक उपभोग की वस्तुएँ ही खरीदनी चाहिए तथा वस्तुओं की मात्रा अथवा संख्या भी आवश्यकता से अधिक नहीं खरीदनी चाहिए । उपभोक्ता को विवेकहीन होड़, फैशन अथवा अनुकरण मात्र के लिए क्रय करने से बचना चाहिए ।
(iv) विज्ञापन के प्रलोभन से बचना (Avoid being tempted by advertisement) - निर्माता एवं विक्रेता उपभोक्ताओं को अनेक प्रकार के प्रलोभन देते हैं। आजकल विज्ञापन ब्रिकी बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम है। विज्ञापनों ने अब व्यावसायिक कला (Commercial art) का रूप ले लिया है। विज्ञापनदाता अपनी वस्तुओं को इतनी आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करता है कि उपभोक्ता उसे प्राप्त करने के लिए लालायित हो जाता है, चाहे उसे उस वस्तु की आवश्यकता हो अथवा न हो। विज्ञापन में प्राय: उस वस्तु की झूठी अथवा अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा की जाती है अतः एक जागरूक उपभोक्ता का यह दायित्व है कि वह ऐसी प्रशंसा के मायाजाल में न फँसे और अपने विवेक से ही खरीदारी करे ।
(v) सेल अथवा डिस्काउन्ट के प्रलोभन से बचना (Avoid being tempted by sale or discount)-विशिष्ट अवसरों जैसे त्यौहार, मेले, प्रदर्शनी में निर्माता एवं विक्रेता उपभोक्ता को सेल लगाकर वस्तुओं की कीमत पर कुछ छूट (Discount) का लालच देता है। प्रायः अधिकांश विक्रेता ऐसी छूट बताकर वास्तविक कीमत वसूल करते हैं। अतः उपभोक्ता को ऐसी छूट वाली वस्तुओं को खरीदते समय सावधानी रखनी चाहिए तथा अनावश्यक प्रलोभन से बचना चाहिए।
(vi) वस्तु के उपयुक्त नाप एवं तौल का परीक्षण करना (Checking correct weights and measures)-प्रायः विक्रेता एवं निर्माता वस्तु के नाप एवं तौल में उपभोक्ता को धोखा देने की कोशिश करता है जैसे वस्तु की पैकिंग को बड़ा आकार देकर या फिर तौलते समय धोखाधड़ी करके । अतः एक जागरूक उपभोक्ता का यह दायित्व है कि वह खरीदी जानी वाली वस्तु के सही नाप एवं तौल के बारे में सचेत रहे ।
(vii) वस्तु खरीदने पर इसका बिल अथवा नकद रसीद लेना (Always take bill or cash memo of the goods purchased)-एक उपभोक्ता का दायित्व है कि वह वस्तु खरीदने पर उसका बिल अथवा नकद रसीद अवश्य लें। प्राय: विक्रेता ब्रिकी कर तथा अन्य झगड़ों से बचने के लिए नकद बेची गई वस्तुओं का बिल अथवा नकद रसीद नहीं देते हैं जिससे कई बार वस्तु ठीक न निकलने पर उपभोक्ता को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अतः उपभोक्ता का यह दायित्व है कि वह जो भी खरीदे उसका बिल अथवा रसीद अवश्य ले जिससे आवश्यकता पड़ने पर वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का लाभ उठा सके ।
(viii) विश्वसनीय एवं मान्यता प्राप्त दुकानों से खरीदारी करना (Buy only from reputed retail shop) - उपभोक्ता का दायित्व है कि वह केवल विश्वसनीय एवं मान्यता प्राप्त दुकानों से खरीदारी करे क्योंकि इन दुकानों पर धोखाधड़ी की संभावना कम होती है ।
(ix) विक्रय पश्चात् सेवा एवं अतिरिक्त पुर्जों का उपलब्धि का ज्ञान होना (Asurance of after sales service and spare parts availability)- किसी भी वस्तु को खरीदने से पूर्व उपभोक्ता को इस बात का निश्चित ज्ञान करना चाहिए कि उसे उपयुक्त विक्रय पश्चात् सेवा (After Sales Service) एवं उस वस्तु के अतिरिक्त पुर्जे आसानी से उपलब्ध होते हैं अथवा नहीं। कई बार इनके अभाव में वस्तु बेकार हो जाती है और उसे फेंकना पड़ता है (x) उपभोक्ता को अपने अधिकारों का ज्ञान होना (Knowledge of rights of consumer) - आज सरकार एवं निजी संगठन उपभोक्ता संरक्षण के लिए अनेक कार्य कर रहे हैं परन्तु एक आम आदमी को इसका ज्ञान नहीं है अथवा वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है जिससे उसे कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । अतः प्रत्येक उपभोक्ता को अपने अधिकारों का ज्ञान होना चाहिए तथा उसे अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए । उपभोक्ता का यह दायित्व है कि वह अपने अधिकारों का प्रयोग करे तथा किसी भी प्रकार की शिकायत होने पर निर्माता अथवा विक्रेता की धोखाधड़ी की सूचना उस शिकायत से सम्बन्धित अधिकारियों को दे। आय बढ़ाने के विभिन्न साधन क्या हैं? संक्षेप में वर्णन करें
रसोईघर में भोजन स्वच्छता का क्या महत्त्व है ? वर्णन करें ।
15. उत्तर-रसोईघर वह स्थान है जहाँ पर भोजन बनाया जाता है। अतः उनकी स्वच्छता का विशेष महत्व है :
(i) रसोईघर सदा प्रकाशमय व हवादार होना चाहिए । यदि रसोई घर में कुछ घंटे सूर्य की रोशनी पड़ती हो तो वहाँ की सीलन समाप्त हो जाती है, व कीटाणु भी मर जाते हैं । प्रकाशमय व हवादार रसोईघर में दुर्गन्ध नहीं आती तथा अँधेरे में रहने वाले कीड़े-मकोड़े भी पैदा नहीं होते।
(ii) रसोई घर के दरवाजे तथा खिड़कियों में जाली लगी होनी चाहिए ताकि मक्खियाँ अंदर न आ सकें ।
(iii) कूड़ेदान के अंदर प्लास्टिक लगा देना चाहिए व उसे रोज खाली करना चाहिए ।
(iv) रसोईघर के स्लैव व जमीन सरलता से साफ होनेवाला होना चाहिए ।
(v) भोजन पकाने व बर्तन साफ करने के लिए पर्याप्त ठंडा व गर्म पानी उपलब्ध होनी चाहिए।
(vi) रसोईघर को झाड़न व डस्टर साफ रखने चाहिए ।
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