प्रिय दोस्तों यह मॉडल सेट आप लोगों को 2023 में आने वाले परीक्षा में बहुत सहयोग देगा और आप अच्छे नंबर से उस दिन अवश्य होंगे हो सके तो आप अपने note book पर उतार लें
1. संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) प्रक्रिया का होना संस्कृतिकरण की पहली विशेषता यह है कि संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है और धारणा गतिशील रहती है।
(ii) उच्च जातियों का अनुकरण
(iii) परिवर्तन संस्कृतिकरण का सम्बन्ध परिवर्तन से होता है क्योंकि बिना परिवर्तन के संस्कृतिकरण नहीं हो सकता ।
(iv) संस्कृतिकरण सार्वभौमिक प्रक्रिया है यह प्रक्रिया सभी जगह अर्थात् विश्व के सभी समाजों में पायी जाती है ।
2. महिला सशक्तिरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर -महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत बनाने से है। 1990 के दशक में स्वयंसेवी महिला संगठनों ने महिलाओं के मुद्दे को लेकर देश के विभिन्न भागों में अनेक सम्मेलन आयोजित किये । इस सम्मेलन में लैंगिक भेदभाव तथा महिलाओं की घटती जनसंख्या पर विचार विमर्श किया। उसी दशक में वेश्यावृति से संबंधित मुद्दों को राष्ट्रव्यापी बहस का विषय बनाया गया । पटना की अदिति संस्था तथा अंकुर संस्था ने 1995 में महिला बचाओ अभियान चलाया । राष्ट्रीय स्तर पर कई महिला संगठनों ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1953 में पंचायती राजा अधिनियम में संशोध न कर सभी पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई है। बिहार सरकार ने तो 50% आरक्षण की व्यवस्था की गई है। महिलाओं को अधि कार सम्पन्न बनाने की दिशा में बिहार सरकार ने अग्रणी भूमिका अदा की है ।
3. बिहार में मद्यनिषेध के कार्यक्रम को उजागर करे ।
उत्तर -बिहार में 1 अप्रैल 2016 से शराबबंदी कानून लागू हो गया । इससे राज्य सरकार को लगभग 4 हजार करोड़ का नुकसान हुआ । लेकिन सरकार का मानना है कि शोसलं इंपैक्ट के लिहाज से ये कदम सही है। मद्य निषेध होने से कितनों के घर बर्बाद होने से बच गए । अपराध और घरेलू हिंसा में भी कमी देखी
4. साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों पर प्रकाश डोल। जा रही है ।
उत्तर
(क) संकीर्ण तथा कट्टरवादी मानसिकता का सूचक है जो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए घातक है ।
(ख) भारत में धार्मिक कट्टरता तथा संकीर्णता साधारणत: अशिक्षा, जागरूकता की कमी, नृजाति- केन्द्रिकता, पूर्वाग्रह, सामाजिक आर्थिक असमानता, प्रशासनिक शिथिलता तथा राजनीतिक निहित स्वार्थों के कारण पास जाली का वर्णन करें ।
उत्तरसांस्कृतिक जुड़ाव या समेकन की एक प्रक्रिया जिसके द्वारा सांस्कृतिक विभेद निजी क्षेत्र में चले जाते हैं और एक सामान्य सार्वजनिक संस्कृति सभी समूहों द्वारा अपना ली जाती है । इस प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रबल या प्रभावशाली समूह की संस्कृति को ही आधिकारिक संस्कृति के रूप में अपनाया जाता है। सांस्कृतिक अंतरों, विभेदों या विशिष्टताओं की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित नहीं किया जाता । कभी-कभी सार्वजनिक क्षेत्रमें ऐसी अभिव्यक्ति पर रोक लगा दी जाती है। एकीकरण नीतियाँ इस बात पर बल देती हैं कि सार्वजनिक संस्कृति को सामान्य राष्ट्रीय स्वरूप तक सीमित रखा जाए और 'गैर-राष्ट्रीय' संस्कृतियों को निजी क्षेत्रों के लिए छोड़ दिया जाए। ये नीतियाँ शैली की दृष्टि से अलग होती हैं, परन्तु इनका उद्देश्य समान होता है। एकीकरण की नीतियाँ केवल एक अकेली राष्ट्रीय पहचान बनाए रखना चाहती हैं जिसके लिए वे सार्वजनिक तथा राजनीतिक कार्यों में नृजातीय राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विभिन्नताओं को दूर करने का प्रयत्न करती हैं ।
5. भारतीय समाज में गृहस्थ आश्रम के दो महत्व की विवेचना करें।
उत्तर - गृहस्थ आश्रम के महत्त्व
(i) चारों आश्रमों में गृहस्थ आश्रम ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । इस आश्रम के माध्यम से व्यक्ति न केवल अतीत में अर्जित ज्ञान का प्रयोग कर गृहस्थ के कार्यों और कर्तव्यों का निर्वाह करता है वरन् मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक तैयारी भी करता है ।
(ii) पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए गृहस्थाश्रम सबसे महत्त्वपूर्ण है ।
6. एक व्यक्ति के समाजीकरण में संस्कारों के महत्त्व की व्याख्या करें
उत्तर:- संस्कारों का उद्देश्य हिन्दू संस्कृति की पृष्ठभूमि में व्यक्ति का समाजीकरण करना है । इसीलिए व्यक्ति को पवित्र बनाने वाले विभिन्न अनुष्ठानों और क्रिया कलापों को ही हम संस्कार कहते हैं । संस्कार पूर्णतया धार्मिक ही नहीं होते, बल्कि ये सामाजिक सरोकार भी रखते हैं, जिसकी अभिव्यक्ति हमारे सामाजिक जीवन में होती है। संस्कार व्यक्ति के क्रमिक विकास की प्रक्रिया से संबद्ध होते हैं। इनका आधार व्यक्ति की. आंतरिक क्षमताओं का सही रूप से मार्गदर्शन करना होता है। गर्भाधान संस्कार से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कार इसलिए बनाए गए हैं कि इनसे समाज का हित हो और समस्त प्राणी मात्र योग्य बने ।
7. ग्राम पंचायत के संगठन की विवेचना करें ।
उत्तर बिहार में ग्राम पंचायतों की स्थापना के लिए 1946 ई० में बिहार पंचायत राज अधिनियम पास किया गया । इसे 1949 ई० में लागू किया गया । पुनः 1957 ई०, 1961 ई०, 1963 ई० और 1978 ई० में इसमें संशोधन किये गये और समय-समय पर इसके विभिन्न अंगों के गठन, संचालन और निर्वाचन के संबंध में नियमावलियाँ बनायी गयीं । सरकार अधिसूचना निकालकर प्रत्येक ग्राम या विभिन्न ग्रामों के भाग में ग्राम पंचायत स्थापित करेगी। सरकार किसी ग्राम पंचायत में किसी ग्राम या ग्राम के हिस्से को शामिल करके या उसमें से हटा करके उस पंचायत को बदल सकती है। वह ग्राम पंचायत का नाम भी बदल सकती है। पंचायतों के निम्नलिखित अंग हैं ग्राम सभा, (ii). कार्यकारिणी समिति, (iii) मुखिया, (iv) ग्राम सेवक, (v) ग्राम रक्षा दल, (vi) ग्राम कचहरी ।
8. ग्राम कचहरी क्या है ?
उत्तर-गाँव की न्यायिक व्यवस्था के लिए ग्राम कचहरी की स्थापना की जाती है । यह ग्राम पंचायत को सौंपे गये न्यायिक कार्यों का संपादन करती है। इसमें एक सरपंच तथा आठ पंच होते हैं । सरपंच का चुनाव सीधा निर्वाचन द्वारा होता है । चार पंचों का मनोनयन होता है। सरपंच तथा पंचों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। अगर ग्राम कचहरी द्वारा कुल संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से किसी सरपंच या पंच के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दिया जाए तो राज्य सरकार उस व्यक्ति को उसके पद से हटा सकती है । ग्राम कचहरी ग्रामीणों द्वारा लाए गए छोटे-छोटे मुकदमों का निर्णय करती है । फैसला पाँच सदस्यों के एक बेंच द्वारा होता है जिसे पूरा बेंच निरस्त कर सकता है । ग्राम कचहरी को दीवानी और फौजदारी मुकदमों से संबंधित अधिकार दिए हैं । ग्राम कचहरियों का कार्यकरण संतोषप्रद नहीं है, क्योंकि वे पक्षपात, घूसखोरी, भ्रष्टाचार आभाईचायजाकद
9. ग्राम पंचयत की असफलता का कारणों का विश्लेषण करें। है.
ग्राम पंचयत की असफलता के कारण
(i) आफसरशाही का पंचयतों पर हावी होना ।
(ii) पात्र व्यक्तियों को पंचायत का लाभ न मिल पाना ।
(iii) अशिक्षा ।
(iv) घटिया निर्माण कार्य अंतर स्पष्ट करें ।
जाति शब्द का अंग्रेजी अर्थ 'कास्ट' बताया गया है । 'कास्ट' शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली मूल के शब्द 'कास्टा' से हुई है । 'कास्टा' शब्द का अर्थ है- विशुद्ध नस्ल । कास्ट शब्द का अर्थ विस्तृत संस्थागत व्यवस्था से है जिसे भारतीय भाषाओं में वर्णों व जाति जैसे शब्दों में प्रयोग किया जाता है । 'वर्ण' शब्द का तात्पर्य 'रंग' से है, जबकि जाति शब्द किसी भी वस्तु के प्रकार या वंश- श्रेणी को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पेड़-पौधों, पशु-पक्षी इत्यादि सभी जाति के अन्तर्गत सम्मिलित किए जाते । परन्तु भारतीय भाषाओं में जाति शब्द का प्रयोग जाति संस्थान के संदर्भ में ही किया जाता है ।
10. जाति व्यवस्था के दोषों की विवेचना करें ।
उत्तर - जाति व्यवस्था के भीतर एक सामाजिक प्रथा, जिसके द्वारा कथित निम्न जातियों के सदस्य कर्मकांडीय दृष्टि से इतने अपवित्र माने जाते हैं कि केवल छूने भर से कथित उच्च जाति के लोगों को अपवित्र या प्रदूषित कर देते हैं। अछूत जातियाँ सामाजिक पैमाने पर सबसे नीचे की श्रेणी में आती हैं और इन्हें अधिकांश सामाजिक संस्थाओं से बाहर रखा जाता है। अस्पृश्यता को छुआछूत भी कहा जाता है। अस्पृश्य मानी जाने वाली जातियों का अधिक्रम या जाति व्यवस्था में कोई स्थान ही नहीं है। उन्हें इस व्यवस्था से अलग ही रखा जाता है। उच्च जाति के किसी भी व्यक्ति द्वारा अस्पृश्य जाति के व्यक्ति के होने से उसे भी अशुद्ध ही माना जाता है। इससे उसे फिर से शुद्ध होने के लिए कई शुद्धीकरण क्रियाएँ करनी होती हैं। अस्पृश्य जातियों के साथ काफी भेदभाव बरता जाता है, जैसे- उन्हें पेयजल के स्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जाता। वे सामूहिक धार्मिक पूजा व उत्सवों में भाग नहीं ले सकते। उनसे अनेक छोटे-छोटे काम जबरदस्ती करवाया जाता है। अनादर और अधीनतासूचक अनेक कार्य सार्वजनिक रूप से कराना ही अस्पृश्यता का महत्त्वपूर्ण अंग है।
11. हिन्दू विवाह की प्रकृति की व्याख्या करें ।
उत्तर हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार है । हिन्दू सामाजिक विवाह में प्राचीन काल से ही विवाह की विशिष्ट पहचान रही है क्योंकि वैदिक युग से ही विवाह एक ध ार्मिक क्रिया के रूप में माना जाता रहा है। 'ऋग्वेद' में कहा गया है कि विवाह का उद्देश्य गृहस्थ बनकर यज्ञों का सम्पादन करना तथा सन्तान उत्पन्न करना है ।
हिन्दू विवाह का उद्देश्य अपने धर्म का पालन करना, प्रजा (बच्चे पैदा करना) तथा रति (यौन सुख) है । प्राथमिक रूप से इसका सर्वोपरि व मौलिक उद्देश्य धर्म ही है । हिन्दू विवाह, वास्तव में, स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक मान्यता प्राप्त अटूट बंधन है जो जन्म-जन्मान्तर तक बना रहता है। अतः हिन्दू विवाह को एक ऐसा औपचारिक कृत्य माना गया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपना गृहस्थ जीवन प्रारम्भ करता है तथा जीवन के अंतिम लक्ष्य पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होता है ।
12. जनजातियों में बहुपत्नी विवाह के तीन कारणों का वर्णन करें ।
उत्तर:- बहुपत्नी विवाह के कारणों में ये प्रमुख माने गए हैं
(क) जनजाति समुदाय में पुरुषों की संख्या स्त्रियों से कम होने के कारण एक पुरुष में कई स्त्रियों से विवाह करने लगा ।
(ख) अधिक संतान पाने की इच्छा ने एक पुरुष कई स्त्रियों से विवाह करने लगा ।
(ग) घर के कामों को आसान बनाने के लिए कुछ समाजों में कई स्त्रियों से विवाह करने लगे ।
(घ) हिन्दू समाज में तथा जनजाति समाज में सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए ऐसे विवाह को बल मिला ।
(ङ) मोक्षप्राप्ति या पितृऋण से मुक्त होने के उद्देश्य से भी ऐसे विवाह का प्रचलन हिन्दुओं में हुआ ।
13.पलायन विवाह से आप क्या समझते हैं
उत्तर :- पलायन विवाह में वर कन्या अपनी मर्जी से भाग कर कहीं अन्यत्र जाकर करते हैं। इसमें वर पक्ष अथवा हाथ पक्ष, की सहमति होनी आवश्यक नहीं है । ?
14. ग्राम सभा का गठन कैसे होता है
उत्तर* ग्राम सभा ग्राम पंचायत की व्यवस्थापिका सभा है। ग्राम पंचायत के अंतर्गत सभी स्त्री-पुरुष इसके सदस्य होते हैं । बशर्ते कि वे ग्राम में कम-से-कम 180 दिनों तक रह चुका हो, आयु कम-से-कम 18 वर्ष हो चुकी हो, पागल या दिवालिया या दंडित घोषित नहीं किया गया हो । ग्राम सभा की वर्ष में दो बैठकें होती हैं— खरीफ फसल और रब्बी फसल के बाद । इन दोनों बैठकों के अलावा मुखिया स्वेच्छा से या ग्राम सभा के सदस्यों के 6ठे भाग के आवेदन पर ग्राम सभा की बैठक बुलाता है। ग्राम सभा पंचायत के बजट कार्यक्रमों, योजनाओं तथा उसके कार्यक्रम के संबंध में विचार-विमर्श करती है । वह पंचायत को छोटा गणतंत्र (little ' (little republic) का स्वरूप प्रदान करती है ।
15. धर्मनिरपेक्ष की पाँच विशेषताओं का वर्णन करें
(i) धर्मनिरपेक्षता समाज में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा तर्कवाद को प्रोत्साहित करता है और एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष राज्य का आधार बनाता है ।
(ii) एक धर्मनिरपेक्ष राज्य धार्मिक दायित्वों से स्वतंत्र होता है सभी धर्मों के प्रति एक सहिष्णु रवैया अपनाता है
(iii) व्यक्ति अपनी धार्मिक पहचान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है इसलिए वह किसी व्यक्ति समूह के हिंसापूर्ण व्यवहार के खिलाफ सुरक्षा प्राप्त करना चाहेगा। यह सुरक्षा सिर्फ धर्मनिरपेक्ष राज्य ही प्रदान कर सकता ।
(iv) धर्मनिरपेक्ष राज्य नास्तिकों के भी जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करता है साथ ही उन्हें अपने तरीके की जीवन शैली और जीवन जीने का अधिकार भी प्रदान करता
(v) धर्मनिरपेक्ष राज्य राजनैतिक दृष्टि से भी ज्यादा स्थायी होता है । है ।
16. बाल मजदूरी की प्रकृति पर प्रकाश डालें ।
उत्तर बालश्रम का मतलब यह है कि जिसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है। इस प्रथा को कई देशों और अतंर्राष्ट्रीय संगठनों ने शोषित करने वाली प्रथा माना है। अतीत में बाल श्रम का कई प्रकार से उपयोग किया जाता था, लेकिन सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा के साथ औद्योगीकरण, काम करने की स्थिति में परिवर्तन तथा कामगारों श्रम अधिकार और बच्चों के अधिकार की अवधारणाओं के चलते इसमें जनविवाद प्रवेश कर गया । बाल श्रम अभी भी कुछ देशों में आम है। कितनी है ?
17. बिहार में अनुसूचित जातियों की संख्या कितनी है
उत्तर-बिहार में अनुसूचित जातियों की संख्या 56 है । 2011 की राष्ट्रीय जनगणना से संकेत मिलता है कि बिहार में अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी 10.4 करोड़ है। यानी कुल आबादी का 16 प्रतिशत ।
18. हिन्दू विवाह में गोत्र के महत्व का वर्णन करें ।
उत्तर प्राचीन काल से एक ही गोत्र के भीतर होने वाले लड़के और लड़की का एक-दूसरे से भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है । क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं इसीलिए वह सगे तो नहीं, लेकिन मूल रूप से भाई-बहन ही हुए । इसीलिए हिन्दू विवाह में गोत्र सिद्धांत के अन्तर्गत एक ही गोत्र के लड़के या लड़की का विवाह करने की मनाही होती है
19 निकाह एवं मुताह में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर :- सामान्य निकाह करने पर तलाक के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसके आध र पर ही पति-पत्नी अलग हो सकते हैं। मुताह विवाह में पत्नी के पास मेहर की रकम लेने का कोई अधिकार नहीं होता है, जबकि सामान्य निकाह के बाद अलग होने पर ये रकम ली जा सकती विवाह को परिभाषित करें । 2
20. मुस्लिम विवाह को परिभाषित करें
उत्तर :- मुस्लिम विवाह एक समझौता है जो समझौता में आये व्यक्तियों के बीच संभोग और संतानोत्त्पत्ति को वैधानिकता प्रदान करता है । इस प्रकार सम्भोग और संतानोत्पत्ति को वैध करना तथा सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करना उद्देश्य है!
21. स्वयं सेवी संस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :- स्वयं सेवी संस्था एक ऐसा सामाजिक स्वैच्छिक संगठन होता है जिसके बैनर तले सामाजिक कार्यकर्त्ता, व्यक्तियों का समूह, समुदाय, नागरिक, वोलंटियर्स आदि कार्य करते हैं
22. राष्ट्रीय एकीकरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना करें ।
उत्तर-राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया और भारत के संविधान के बारे में विविधता में एक बुनियादी सिद्धांत के विषय में हम यह कह सकते हैं कि भारत में विभिन्न क्षेत्र और भाषायी समूहों को अपनी संस्कृति बनाए रखने का अधिकार संविधान द्वारा ही दिया जा सकता है। हमने एकता को भावधारा से बँधे एक ऐसे सामाजिक जीवन के निर्माण का निर्णय लिया था, जिसमें इस समाज को आकार देने वाली तमाम संस्कृतियों की विशिष्टता बनी रहे । संविधान निर्माताओं ने भारतीय राष्ट्रवाद में एकता और विविधता के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है। राष्ट्र का मतलब यह नहीं है कि क्षेत्र को नकार दिया जाए। इस अर्थ में भारत का नजरिया यूरोप के कई देशों से अलग रहा, जहाँ सांस्कृतिक विभिन्नता को राष्ट्र की एकता के लिए खतरे के रूप में देखा गया।
23. हिन्दू विवाह में हो रहे आधुनिक परिवर्तनों का परीक्षण करें।
उत्तर-समृतिकाल से ही हिन्दुओं में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में भी इसको इसी रूप में बनाए रखने की चेष्टा की गई है। किन्तु विवाह, जो पहले एक पवित्र एवं अटूट बंधन था, अधिनियम के अन्तर्गत, ऐसा नहीं रह गया है। कुछ विधिविचारकों की दृष्टि में यह विचारधारा अब शिथिल पड़ गई है। अब यह जन्म जन्मांतर का संबंध अथवा बंधन नहीं वरन्, विशेष परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर, वैवाहिक संबंध विघटित किया जा सकता है।
(i) अब हर हिन्दू पुरुष दूसरे हिंदू स्त्री-पुरुष से विवाह कर सकता है, चाहे वह किसी जाति का हो । हिन्दू विवाह प्रणाली में अब निम्नांकित परिवर्तन दृष्टिगोचर हो
(ii) एकविवाह तय किया गया है। द्विविवाह अमान्य एवं दंडनीय भी है ।
(iii) न्यायिक पृथक्करण, विवाह-संबंध-विच्छेद तथा विवाहशून्यता की डिक्री की घोषणा की व्यवस्था की गई है
(iv) प्रवृत्तिहीन तथा विवर्ज्य विवाह के बाद और डिक्री पास होने के बीच उत्पन्न संतान को वैध घोषित कर दिया गया है। परंतु इसके लिए डिक्री का पास होना आवश्यक है।
(v) न्यायालयों में यह वैधानिक कर्त्तव्य नियत किया गया है कि हर वैवाहिक झगड़े में समाधान कराने का प्रथम प्रयास करें ।
(vi) बाद के बीच या संबंधि विच्छेद पर निर्वाह व्यय एवं निर्वाह भत्ता की व्यवस्था की गई है ।
(vii) न्यायालयों को इस बात का अधिकार दे दिया गया है कि अवयस्क बच्चों की देख-रेख एवं भरण पोषण की व्यवस्था करें।
विधिवेत्ताओं का यह विचार है कि हिंदू विवाह के सिद्धांत एवं प्रथा में परिवर्तन करने की आवश्यकता उपस्थित हुई थी उसका कारण संभवतः यह है कि हिंदू समाज अब पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति से अधिक प्रभावित हुआ है.
24. हिन्दू तथा मुस्लिम विवाह में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर हिंदु विवाह के परंपरागत सिद्धांत के अनुसार कन्यादान करना प्रत्येक माता-पिता का परम धर्म माना गया है। ऐसा माना जाता रहा है कि जो इस धर्म को पूरा नहीं करते उनको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती । इस अंधविश्वास ने विवाह-संबंधी अनेक कुरीतियों को जन्म दिया, जैसे बेमेल विवाह । कन्यादान के साथ एक दूसरी बात यह जुड़ी हुई है कि 'दान' के बाद लड़की लौटाई नहीं जा सकती है क्योंकि कन्या को 'पराया धन' माना गया है । कन्यादान की ऐसी धारणाओं ने हिंदु स्त्रियों की स्थिति को कमजोर कर दिया है, खासकर विधवाओं की । मुस्लिम स्त्रियों के तलाक एवं संपत्ति के अधिकारों की तुलना पुरुषों के अधिकारों से करने पर यह स्पष्ट होता है कि स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों के अधिकार एवं सत्ता अधिक होते हैं। साथ ही, उनके बीच आज भी पर्दा प्रथा का प्रचलन है। ऐसी स्थितियों ने स्त्रियों को समाज में कमजोर किया है।
25. नगरीकरण को प्रोत्साहन देने वाले करको की वयाख्या करें
1. औद्योगीकरण- नगरों का विकास हो जाने के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया बढ़ गई है। ग्रामीण उद्योगों के समाप्त होने और नये उद्योग-धंधों के विकास के कारण भारत में सामाजिक संगठन में परिवर्तन हुए हैं। पूँजीपति और श्रमिक वर्ग के बीच संघर्ष बढ़ गये हैं। श्रम की गतिशीलता में वृद्धि हो गई है। कारखानों की स्थापना से गंदी बस्तियों का विस्तार, हड़ताल, बिजली, पानी, यातायात, निवास और भोजन की समस्याएँ आदि उत्पन्न हो जाती हैं।
2. एकाकी परिवारों में वृद्धि-नगरों का विकास हो जाने से भारत में संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है। नगरों में एकाकी परिवारों को प्रोत्साहन मिल रहा है। संयुक्त परिवार की भावना धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।
3. संबंधों में औपचारिकता-नगरों की जनसंख्या अधिक होती है। आमने-सामने के घनिष्ठ और औपचारिक संबंध बड़े नगरों में समाप्त हो जाते हैं।
4. फैशन में वृद्धि-नगरीकरण के कारण सामाजिक जीवन में बनावट आ गई है। नगरों में चमक-दमक, सजावट व आकर्षण का महत्त्व बढ़ गया है। सामाजिक रहन-सहन के स्तर में परिवर्तन आ रहा है।
5. सामाजिक विजातीयता-नगर के लोग स्थायी संबंधों की स्थापना करने में असफल रहे हैं। नगर के लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले संबंधों का अभाव पाया जाता है। नगरों में विभिन्न प्रकार के व्यक्ति निवास करते हैं जो उद्देश्यों तथा संस्कृति में समान नहीं होते।
6. द्वितीयक समूहों की प्रधानता-नगरीकरण के कारण भारत में परिवार, पड़ोस आदि प्राथमिक समूह प्रभावहीन होते जा रहे हैं। वहाँ पर समितियों, संस्थाओं और विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा ही सामाजिक संबंधों स्थापना होती है। ये संबंध अस्थायी होते हैं।
7. सामाजिक नियंत्रण का अभाव-नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी विचारों और भावनाओं का विकास हुआ है। प्राचीन रीति-रिवाज प्रभावहीन हो गया है। रीति-रिवाजों, प्रथाओं और परंपराओं के अनुसार पहले लोग काम करते थे, लेकिन नगरीकरण के कारण परिवार, प्रथाएँ, धर्म आदि अब प्रभावहीन हो गए हैं।
8. भौतिकवादी विचारधारा का विकास-अभी तक भारत में अध्यात्मवाद की भावना पर अधिक बल दिया जाता था, परंतु नगरों का विकास होने पर लोगों में भौतिकवाद की भावना का विकास हुआ है। इस भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण भारत में वैयक्तिक संबंधों का अभाव पाया जाता है। समाज में सहयोग की भावना कम हो रही है और विभेदीकरण की प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली होती जा रही है!
9. श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण-नगरीकरण और औद्योगीकरण के विकास के कारण आज विभिन्न देशों में कुशल कारीगरों का महत्त्व बढ़ रहा है। श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण का प्रभाव बढ़ रहा है।
10. सामाजिक गतिशीलता-नगरीकरण ने समाजिक गतिशीलता को प्रोत्साहन दिया है। यातायात और संचार साधनों के विकसित होने से लोग काम और व्यापार के सिलसिले में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आ-जा सकते हैं। सामाजिक गतिशीलता में तेजी से परिवर्तन हो रहा है।
11. जातीय नियंत्रण का अभाव-अभी तक भारत में जाति प्रथा, बाल विवाह, स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति, विवाह संस्कार, तीर्थ स्थानों की पवित्रता, ब्राह्मण, गाय, गंगा के प्रति विश्वास और धार्मिक संस्थाओं की मान्यता थी, जातीय और सामाजिक स्थिति का ध्यान रखा जाता था, लेकिन अब जातीय और सामाजिक नियंत्रण समाप्त हो रहे हैं। शिक्षा का प्रसार, विवाह संबंधी अधिनियम का पास होना, विवाह की आयु का निर्धारण आदि होने पर परिवर्तन आ रही हैं। सामाजिक अधिनियमों द्वारा स्त्रियों और निम्न जातियों की स्थिति में सुधार किया गया है। अस्पृश्यता कम हो रही है। अतः स्पष्ट है कि नगरीकरण परिवर्तन हुए हैं।
26. साम्प्रदायिकता का अर्थ एवं विशेषताओं का वर्णन करें ।
उत्तर- साम्प्रदायिकता एक विशेष धर्म अथवा धार्मिक समुदाय की वह उग्र भावना है जिसके अन्तर्गत दूसरे धर्मों अथवा धार्मिक सम्प्रदायों के प्रति घृणा और विरोध का प्रदर्शन किया जाता है | संकट को निम्न रूप में देख सकते हैं। सम्प्रदायवाद के :
(i) साम्प्रदायिक संगठन : हमारे देश में आरंभ में मुस्लिम लीग और हिंदु महासभा ही दो ऐसे साम्प्रदायिक संगठन थे जो हिंदुओं और मुसलमानों को एक दूसरे के विरुद्ध भड़काते रहते थे । आज हिंदू और मुसलमानों के अतिरिक्त सिखों में भी ऐसे संगठन की संख्या बढ़ी है। ये संगठन अपने धर्म अथवा सम्प्रदाय के लोगों को संगठित करते हैं अन्य धर्मों और सम्प्रदायों के प्रति घृणा और विद्वेष का प्रचार करते हैं तथा अपने हितों को साधते हैं।
(ii) धार्मिक कट्टरता : धार्मिक प्रतिनिधियों अपने निजी स्वार्थ होते हैं जिसे साधने के लिए वे समाज में हिंसा और विद्वेष फैलाते हैं। समाज में धार्मिक क में वृद्धि के कारण अंदर ही अंदर विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है ।
(iii) सांस्कृतिक भिन्नताएँ : भारत में हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाईयों तथा पारसियों के रीति-रिवाज एक दूसरे से बहुत भिन्न है। उनके उत्सवों और त्योहार मनाने के ढंग अलग-अलग हैं। कभी ऐसा प्रयास नहीं किया गया कि नियोजित रूप से सभी समूहों को सांस्कृतिक आधार पर एक दूसरे के निकट लाया जाय । इसके फलस्वरूप विभिन्न धार्मिक समूहों तथा सम्प्रदायों के बीच बनी खाई घटने के स्थान पर ज्यों की त्यों बनी हुई है
(iv) दोषपूर्ण धर्म निरपेक्षता : भारत में धर्म निरपेक्षता के क्रियान्वयन में कुछ ऐसे दोष हैं जिनसे यहाँ साम्प्रदायिक तनाव को प्रोत्साहन मिला है। वर्तमान स्थिति यह है कि भारत में हिंदुओं, मुसलमानों तथा इसाईयों के लिए अलग-अलग सामाजिक कानून हैं उसके फलस्वरूप विभिन्न धार्मिक समूहों में न केवल सामाजिक दूरी बनी रहती है बल्कि सभी धार्मिक समूहों का यह प्रयत्न रहता है कि वे धर्म के आधार पर अधिक से अधि क संगठित होकर अपने लिए एक पृथक सामाजिक व्यवस्था की मांग कर सकें । ।
(v) राजनीतिक स्वार्थ : साम्प्रदायिक संघर्षों को बढ़ाने में बाटों पर आधारित दूषित राजनीति में सबसे सक्रिय भूमिका निभाई है । अनेक प्रत्याशी चुनाव के दौरान सम्प्रदायिक दंगे करवाकर परिस्थिति का लाभ उठाने की हमेशा कोशिश में लगे रहते हैं ।
(vi) मनोवैज्ञानिक - अनेक प्रकार मनोवैज्ञानिक दबाव भी हमारे देश में साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न कर देते हैं। उन मनोवैज्ञानिक दबावों का आधार अनेक प्रकार के सन्देह भय, अविश्वास तथा हीनता की भावनाएँ हैं।
27. भूमंडलीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं की विवेचना करें।
उत्तर-भूमंडलीकरण-आर्थिक, सामाजिक, प्रौद्योगिकीय, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों की एक जटिल श्रृंखला जिसने विविध प्रकार के स्थानों के लोगों और आर्थिक कार्यकर्त्ताओं में पारस्परिक निर्भरता, एकीकरण और अंतःक्रिया को बढ़ावा दिया है। जब 1980 के दशक में भारत ने अपने आर्थिक इतिहास के दौर में प्रवेश किया, तो इसका मुख्य कारण राज्यस्तरीय विकास से उदारवाद जैसी आर्थिक नीति था। इसी बदलाव से भूमण्डलीकरण के युग की शुरुआत हुई। भूमण्डलीकरण के कई पहलू हैं, जैसे-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं, पूँजी, समाचार और लोगों का संचालन एवं साथ ही कम्प्यूटर, दूरसंचार के क्षेत्र और अन्य आधारभूत सुविधाओं का विकास, जो इस संचालन को गति प्रदान करते हैं। भूमण्डलीकरण की एक विशेषता है कि दुनिया के चारों कोनों में बाजारों का विस्तार और एकीकरण इस भूमण्डलीकरण के आधार पर ही होता है। भूमण्डलीकरण के अंतर्गत सिर्फ पूँजी और वस्तुओं का ही नहीं बल्कि लोगों, सांस्कृतिक उत्पादों और छवियों का भी विश्व में परिचालन होता है। यह आदान-प्रदान के नए दायरों से प्रवेश करता है और नए बाजारों का निर्माण करता है। भूमण्डलीकरण से भारत में नई-नई कम्पनियों व बाजारों का निर्माण हुआ है। दूसरे देशों की बहुत-सी कम्पनियाँ भारत आई हैं जिससे बहुत-सी नौकरियाँ व रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए। पर प्रकाश डालें ।
28. बिहार में पंचायती राज की संरचना एवं कार्यो पर प्रकाश डाले
उत्तर -बिहार में 1961 ई० में पंचायत समिति और जिला परिषद् अधिनियम का निर्माण किया गया । इस बीच इसमें कई संशोधन लाए गए और नियमावली बनाई गई । 1964 ई० में बिहार राज्य के राँची, पटना, भागलपुर और मुजफ्फरपुर जिले में लागू किया गया। शेष जिलों में 1979 ई० में पंचायत समिति स्तर और 1980 ई० में जिला स्तर के चुनाव हुए। 14 नवम्बर, 1980 ई० को सम्पूर्ण बिहार में इसका उद्घाटन हुआ। पुनः 1993 ई० में नया पंचायती राज विधेयक बनाया गया, जिसे अभी लागू नहीं किया गया है ।
संरचना भारत के सभी राज्यों में थोड़ा-बहुत हेर-फेर के साथ पंचायत समिति की सदस्यता लगभग समान रूप में अपनायी गयी है । इसके सदस्य तीन प्रकार के होते हैं— निर्वाचित, संवाचित और सह-सदस्य । निर्वाचित सदस्यों में
(i) प्रखण्ड के अन्तर्गत सभी ग्राम पंचायतों के मुखिया,
(ii) नगरपालिकाओं के अध्यक्ष तथा नोटिफाईड एरिया समितियों के उपाध्यक्ष,
(iii) सहयोग समितियों के प्रतिनिधि,
(iv) केन्द्रीय सहकारिता बैंक की प्रबन्धकारिणी समिति द्वारा निर्वाचित समिति के एक सदस्य आते हैं। संवाचित . सदस्यों के अन्तर्गत आते हैं-
(i) लोक जीवन एवं ग्राम्य विकास अनुभव प्राप्त दो व्यक्ति,
(ii) दो महिलाएँ,
(iii) अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के दो प्रतिनिधि सह-सदस्य होते हैं । प्रखंड में निर्वाचित विधान सभा एवं लोक सभा के सदस्य और विधान परिषद् तथा राज्यसभा के सदस्य जिनका निवास उस प्रखंड क्षेत्र में हो।
बिहार में पंचायत सदस्य समित्तियों की संरचना इस प्रकार होती है ।
(i) प्रखण्ड के सभी ग्राम पंचायतों के मुखिया या 1,
(ii) सेन्ट्रल सदस्या -ऑपरेटिव बैंक की प्रबन्ध समिति का कोई एक सदस्य ।
(क) उपमुखिया) करेंगे- - उपर्युक्त सदस्य निम्नलिखित व्यक्तियों को संवाचित
महिलाएँ ।सार्वजनिक जीवन निवासी तीन
(i) प्रखण्ड में निवास करने वाले दो ऐसे व्यक्ति जिनके प्रशासन, या ग्राम विकास सम्बन्धी अनुभव से पंचायत समिति को लाभ पहुँच सके ।
(ii) प्रखण्ड
(iii) प्रखण्ड निवासी ऐसी निम्नलिखित कोटियों में से प्रत्येक से तीन व्यक्ति जिनकी जनसंख्या प्रखण्ड की कुल जनसंख्या के दस प्रतिशत से अधिक हो और यदि जनसंख्या दस प्रतिशत से कम किन्तु पाँच प्रतिशत से अधिक हो तो ऐसे दो व्यक्ति
(क) अनुसूचित जाति,
(ख) अनुसूचित जनजाति,
(ग) अनुसूचित जाति और अनुसूचित • जनजाति से भिन्न व्यक्ति,
(घ) प्रखण्ड निवासी ऐसी निम्नलिखित कोटि में से
(i) पिछड़ा वर्ग अनुबन्धन का एक सदस्य ।
(ii) पिछड़ा अल्पमत व्यक्तियों का एक-एक सदस्य।
(ग) सह-सदस्य- इस वर्ग में निम्नलिखित हैं-
(i) राज्य विधान सभा और लोकसभा का सदस्य ।
(ii) प्रखण्ड में निवास करने वाला राज्य विधान परिषद् और राज्य सभा का प्रत्येक सदस्य ।
(iii) प्रखण्ड के अन्दर गठित नगरपालिकाओं के अध्यक्ष और अधिसूचित क्षेत्र समितियों के अध्यक्ष;
(iv) सेन्ट्रल को-ऑपरेटिव बैंक से निम्न प्रखण्ड की विभिन्न सहयोग समितियों के तीन प्रतिनिधि |
सदस्यों की योग्यता तथा अयोग्यता-पंचायत समिति की सदस्यता के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ आवश्यक हैं-
(क) व्यक्ति जो भारत का नागरिक हो ।
(ख) उसकी उम्र 25 वर्ष या उससे अधिक हो
(ग) वह पागल न हो।
(घ) वह सरकारी पद पर न हो या कोई ऐसी संस्था का कर्मचारी न हो जिसे सरकार की ओर से सहायता मिलती हो (ङ) वह सरकारी पद से भ्रष्टाचार के अभियोग पर हटाया व्यक्ति न हो ।
(च) वह कुष्ठ यक्ष्मा जैसी बीमारियों से पीड़ित न हो ।
(छ) उसे चुनाव सम्बन्धी अपराध के लिए दण्ड नहीं दिया गया हो तथा
(ज) उसे राजनीतिक अपराध को छोड़कर अन्य प्रकार के अपराधों में 6 महीनों से अधिक की सजा न मिली हो ।
अगर कोई सदस्य लगातार समिति की चार बैठकों में अनुपस्थित रहे तो प्रमुख उस व्यक्ति को सदस्यता से वंचित कर सकता है। सदस्य की योग्यता तथा अयोग्यता सम्बन्धी अपील पर जिला न्यायाधीश निर्णय देता है ।
पदेन एवं संवाचित सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्ष तथा सह-सदस्यों का अपने संगठनों द्वारा निर्वाचन या मनोनयन के अनुसार होता है । कार्यकाल प्रमुख तथा उपप्रमुख पंचायत समिति अपने सदस्यों में से एक प्रमुख तथा एक उपप्रमुख निर्वाचित करेगा। इसका कार्यकाल तीन वर्षों का होता है। दो-तिहाई सदस्यों के अविश्वास प्रस्ताव द्वारा उन्हें हटाया भी जा सकता है। प्रमुख पंचायत समिति का प्रधान अधिकारी होगा । वह समिति की बैठक बुलायेगा और उसकी अध्यक्षता करेगा । वह समिति के कागजों की जाँच-पड़ताल करेगा, प्रखण्ड विकास पदाधिकारी पर नियंत्रण रखेगा; ग्राम पंचायतों का निरीक्षण करेगा और ग्राम पंचायत के अधिकारियों को सलाह देगा।
प्रत्येक पंचायत समिति में निम्नलिखित स्थायी समितियाँ होती हैं-
1 कृषि, पशुपालन, सहयोग और लघु सिंचाई समिति,
2. शिक्षा समिति, जन-स्वास्थ्य और जनकार्य समिति;
3. " स्थायी समितियाँ
4. यातायात और जनकार्य समिति;
5. वित्त तथा कर समिति;
6. समाज कल्याण समिति । प्रत्येक स्थायी समिति में से
7 सदस्य होंगे जिनका निर्वाचन पंचायत समिति अपने और सदस्यों के बीच करेगा । प्रखण्ड विकास पदाधिकारी प्रत्येक समिति का सचिव होगा ।
प्रखण्ड विकास पदाधिकारी — प्रखण्ड विकास पदाधिकारी पंचायत समिति का कार्यपालिका प्रधान होगा। वह समितियों की बैठकों की नोटिस जारी करेगा; पंचायत समिति के निर्णयों को लागू करेगा; पंचायत समिति के कोष से धन खर्च करेगा । पंचायत समिति के कर्मचारियों पर नियंत्रण रखेगा और अन्य कार्य करेगा; उसे संकटकालीन अधिकार भी दिये गये हैं। उनका प्रयोग वह बाढ़, अकाल, महामारी आदि की दशाओं में करेगा। पंचायत समिति की आय
-पंचायत समिति की आय के निम्नलिखित स्रोत हैं—
(i) कर या शुल्क;
(ii) स्थानीय शेष;
(iii) ठीके से प्राप्त आय;
(iv) दान और चन्दा;
(v) सरकारी अनुदान और
(vi) राज्य या दूसरे स्रोत से कर्ज ।
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