1. यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने भारत में नगरीकरण को क्यों बढ़ावा दिया ? दो कारण बतायें।
उत्तर- यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने निम्नलिखित कारणों से भारत में नगरीकरण को बढ़ावा दिया
(1) कच्चे माल की प्राप्ति
(II) निर्मित माल की खपत।
(III) इसाई धर्म का प्रचार
(iv) समृद्धि की लालसा ।
नगरों का उद्भव व्यावसायिक पूँजीवाद के उदय के साथ संभव हुआ। व्यापक स्तर पर व्यवसाय, बड़े पैमाने पर उत्पादन, मुद्रा प्रधान अर्थव्यवस्था, शहरी अर्थव्यवस्था जिसमें काम के बदले वेतन, मजदूरी का नकद भुगतान, एक गतिशील एवं प्रतियोगी अर्थव्यवस्था, स्वतंत्र उद्यम, मुनाफा कमाने की प्रवृति, मुद्रा, बैंकिंग, साख, बिल विनिमय, बीमा, अनुबंध कंपनी, साझेदारी, एकाधिकार आदि इस पूँजीवादी व्यवस्था की विशेषता रही। इन गतिविधियों ने नगरों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यह एक नए सामाजिक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आए।
2. कब और क्यों साइमन कमीशन भारत आया ?
उत्तर- भारत में संवैधानिक सुधार के मुद्दे पर विचार करने हेतु 1919 के भारत अधि नियम में यह व्यवस्था की गई कि 10 वर्ष के बाद आयोग नियुक्त किया जाएगा। यह आयोग अधिनियम में परिवर्तन पर विचार करेगा। सर जॉन साइमन के नेतृत्व में 1927 को साइमन कमीशन बना। जिस सात सदस्यीय आयोग का गठन किया गया उसमें एक भी भारतीय नहीं था। भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। फलतः 3 फरवरी 1928 को बम्बई पहुँचने पर साइमन कमीशन का पूरे भारत में विरोध हुआ और जनता पुनः संघर्ष के लिए तैयार हो गई।
3. संविधान निर्मात्री सभा का गठन कैसे हुआ ?
उत्तर- कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई 1946 ई० में किया गया। संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
4. स्थायी बंदोबस्त से आप क्या ) समझते हैं ?
उत्तर- स्थायी बन्दोबस्त के कारण बंगाल की आर्थिक व्यवस्था बिगड़ गई थी। एक लंबे विचार-विमर्श के पश्चात् तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्वीकृति लेकर लार्ड कार्नवालिस ने 22 मार्च, 1773 ई० को बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा बाद में उत्तरी मद्रास के कुछ इलाकों के लिए इस्तमरारी बंदोबस्त या स्थायी भूमि बंदोबस्त लागू किया। इसकी तीन प्रमुख विशेषताएँ थीं- प्रथम, जमींदारों व लगान वसूल करने वालों को पहले की भाँति अब केवल मालगुजारी वसूल करने वाले कर्मचारी के स्थान पर उन्हें हमेशा के लिए जमीन का मालिक बना दिया गया तथा स्थायी तौर पर एक ऐसी राशि तय कर दी गई जो वे सरकार को दे सकें। जमींदारों के स्वामित्व के अधिकार को पैतृक व हस्तांतरणीय बना दिया गया। दूसरी ओर, किसानों को मात्र रैयतों का नीचा दर्जा दिया गया तथा उनसे भूमि संबंधों व अन्य परंपरागत अधिकारों को छीन लिया। तीसरा, यदि किसी जमींदार से प्राप्त लगान की रकम कृषि सुधार पर प्रसार अथवा किसानों से अधिक रकम उगाहने के कारण राजस्व की रकम बढ़ जाती तो जमींदार को बढ़ी हुई रकम रखने का अधिकार दे दिया गया।
5. हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली की क्या विशेषतायें थीं ?
उत्तर- हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। यदि आप निचले शहर के नक्शे को देखें तो आप यह जान पायेंगे कि सड़कों तथा गलियों को लगभग एक 'ग्रिड' पद्धति में बनाया गया था और ये एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम-से-कम एक दीवार का गली से सटा होना
आवश्यक था।
6. विरूपाक्ष मंदिर की दो विशेषताएँ बताएँ ।
उत्तर- (1) मुख्य मंदिर के सामने एक आकर्षक मंडप बना हुआ है ।
(2) मंदिर की दिवारों पर शिकार करने, नाच, एवं युद्ध में जीत के जश्न मनाने के सुन्दर चित्र बनाए गए हैं।
7. चम्पारण सत्याग्रह का एक संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर- गाँधीजी ने अपना पहला सत्याग्रह 1917 ई. में बिहार के चंपारण जिले में किया । वहाँ पर जो किसान नील की खेती करते थे, उन पर यूरोपीय बागान मालिक बड़ा अत्याचार करते थे। उन्हें अपनी भूमि की पैदावार को निलहों द्वारा निश्चित दरों पर बेचने के लिए विवश किया जाता था। चंपारण के किसानों ने दक्षिण अफ्रिका में गाँधीजी के अभियानों के बारे में सुन रखा था। अतः उन्होंने गाँधीजी को चंपारण में आकर किसानों की सहायता करने के लिए आमंत्रित किया। 1917 ई. में गाँधीजी, राजेंद्र प्रसाद आचार्य कृपलानी और महादेव देसाई के साथ चंपारण पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने किसानों की दशा की जाँच शुरू की। इस पर सरकार ने क्रोधित होकर उन्हें चंपारण छोड़ने का आदेश दिया परंतु उन्होंने आदेश की अवहेलना की और मुकदमे और सजा के लिए तैयार हो गए। अंत में विवश होकर सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा। उन्होंने किसानों की दशा की जाँच के बारे में एक समिति नियुक्त की और गाँधीजी को उसका सदस्य बना दिया। अंत में किसानों की शिकायतों को दूर करने के लिए कदम उठाये गये। इस प्रकार गाँधीजी का सत्याग्रह सफल रहा।
8.अल बरुनी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- अलबरूनी मध्य एशिया के ख्वारिज्म का निवासी था। उसका जन्म आधुनिक उजबेकिस्तान में ख्वारिज्म के पास बेरू नामक स्थान पर 4 दिसम्बर 973 ई० को हुआ था। ख्वारिज्म शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। अलबरूनी ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की और एक विद्वान के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियायी, फारसी, हिब्रु तथा संस्कृत आदि भी थी। महमूद गजनी के भारत पर आक्रमण के समय ही अलबरूनी भारत आया। अलबरूनी ने भारत पर अरबी भाषा में लगभग बीस पुस्तकें लिखी लेकिन इन सबमें किताब उल हिन्द अथवा तहकीक ए हिन्द एक बेजोड़ ग्रन्थ है । 70 वर्ष की आयु में सितम्बर माह 1048 ई० में लगभग उनकी मुल्यु हो गई ।
9. अभिलेख किसे कहते हैं ?
उत्तर- अभिलेख उन लेखों को कहा जाता है, जो स्तम्भों, चट्टानों, गुफाओं, ताम्रपत्रों और पत्थरों की चौड़ी पट्टियों पर खुदे तत्कालीन शासकों के शासन का सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व धार्मिक चित्र खींचते हैं।
10. 1857 की क्रांति के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर - (i) 1857 ई. की क्रांति में हिन्दू-मुसलमान कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े ।
(ii) 1857 ई. की क्रांति ने कंपनी शासन का अंत करके कुछ वर्षों बाद स्वराज्य प्राप्ति के लिए प्रयास करने की पृष्ठभूमि तैयार की।
11. अकबर के शासन काल में भूमि का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया था ?
उत्तर- भूमि का वर्गीकरणउत्पादक क्षमता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया :
(i) पोलज (Polege) जिस भूमि पर हर साल बुआई होती थी ।
(ii) परती (Parti) - जिस भूमि पर कुछ वर्षों बुआई न हुई हो।
(iii) चचर (Chachar) — दो या तीन साल के बाद बोई गई भूमि ।
(iv) बंजर (Banjar) - अधिक समय तक
12 भारत क्यों छोड़ा ? किन्हीं दो अंग्रेजों ने कारणों की चर्चा करें ।
उत्तर - अंग्रेजों का भारत छोड़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
(i) द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन को बेहद नुकसान होना ।
(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रन्यास परिषद की स्थापना ।
(iii) भारतीय नेताओं एवं क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटेन की द्वितीय विश्व युद्ध में फंसे होने का लाभ उठाना ।
13. कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव प्रड़ा ?
उत्तर- 1. कलिंग युद्ध में एक भीषण रक्तपात को देखकर अशोक का दिल दह गया । उसे युद्ध के नाम से घृणा हो गई और उसने भविष्य में युद्ध न करने की शपथ उसने अपनी जीवनधारा को ही बदल दिया। कलिंग युद्ध के अधोलिखित प्रभाव पड़े. धर्म विजय (Victory of Religion) - अशोक ने अपने विश्व विजय के स्वप्न व प्रण को तोड़कर धर्म विजय की ओर कदम बढ़ाये। उसे अब प्रतीत होने लगा था कि विश्व पर सबसे बड़ी विजय मानव हृदयों पर विजय प्राप्त करना है ।
2. बौद्ध धर्म ग्रहण करना (To adopt Buddha Religion) - कलिंग युद्ध ने अशोक की आँखें खोल दीं। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। यह संभव हो सकता है गो बौद्ध धर्म ग्रहण न करता ।
3. जीवन शैली में परिवर्तन (Changes in life style)कलिंग युद्ध से पूर्व अशोक ने भी अपने पूर्वजों की भाँति युद्ध लड़े, शिकार खेले, माँसाहार किया और विलासिता का जीवन बिताया परंतु इस युद्ध ने उसकी जीवन धारा को ही बदल डाला। वह अहिंसा का पुजारी और दीन-दुखियों का रक्षक बन गया।
4. निर्बल सैनिक संगठन (Weak Military Administration) - युद्ध नीति का त्याग करने के साथ ही सेना का मनोबल गिर गया। मौर्य साम्राज्य के पतन के लिये सेना काफी हद तक उत्तरदायी है।
14. अकबर के शासनकाल में कर निर्धारण की क्या प्रणाली थी ?
उत्तर- दहसाला प्रणाली के तहत पिछले दस (दह) साल के दौरान अलग-अलग फसलों की औसत उपजों और उनकी औसत कीमतों का हिसाब लगाया जाता था । औसत उपज का एक-तिहाई भाग राज्य का हिस्सा तय किया गया। लेकिन राजस्व की माँग नकद की शक्ल में सामने रखी गई। यह काम पिछले दससालों की औसत कीमतों की अनुसूची के आधार पर उपज में राज्य के हिस्से को नकद में तब्दील करके किया गया। इस प्रकार राज्य के हिस्से में पड़ने वाली एक बीघा जमीन पर उपज 'मन' में बताई गई, लेकिन औसत कीमतों के आधार पर राज्य का हिस्सा प्रति बीघा रुपयों में तय किया गया।
15. समुद्रगुप्त की नेपोलियन से तुलना क्यों की जाती है ? दो कारण बताएँ ।
उत्तर- समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र था। उसकी माता कुमार देवी वैशाली के प्रसिद्ध लिच्छवी वंश की राजकन्या थी। समुद्रगुप्त, यद्यपि अपने पिता का सबसे बड़ा पुत्र नहीं था, परंतु वह अपने भाइयों में सबसे अधिक योग्य था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् जब समुद्रगुप्त राजसिंहासन पर बैठा तो देश में छोटे-छोटे राज्य थे। समुद्रगुप्त ने आर्य वृत की पहली लड़ाई में तीन राजाओं के संघ को हराया। दक्षिणी भारत की विजय उसकी बहुत बड़ी सफलता मानी जाती है। अनेक राजाओं को परास्त कर उसने 'अश्वमेघ' यज्ञ कर के 'चक्रवर्ती सम्राट' की उपाधि धारण की। समुद्रगुप्त की महान सैनिक सफलताओं के कारण डा. वी. ए. स्मिथ (Dr. V.A. (Smith) ने उसे 'भारतीय नैपोलियन' कहा है।
16. दांडी मार्च का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर- दांडी यात्रा का उद्देश्य दांडी समुद्र तट पर पहुँचकर समुद्र के पानी से नमक बनाकर, नमक कानून का उल्लंघन कर, सरकार को बताना था कि नमक पर कर बढ़ाना अनुचित फैसला है। साथ ही, यह सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के शुरूआत का संकेत भी था।
20. सगुण एवं निर्गुण भक्ति में क्या अंतर है ?
उत्तर- सगुण भक्ति से अर्थ है प्रभु के अवतारों को मानना । जैसे राजा दशरथ के पुत्र राम की भक्ति करना ।
निर्गुण भक्ति से अर्थ है कण कण में व्याप्त प्रभु को मानना । उसका कोई रूप नहीं है, वह जन्म नहीं लेता है। वह तो केवल हृदय में रहता है।
17. मुगल दरबार में अभिवादन के कौन से तरीके थे ?
उत्तर- शासक को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था। जैसे जिस व्यक्ति के सामने ज्यादा झुककर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत ज्यादा ऊँची मानी जाती थी। आत्मनिवेदन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत् लेटना था। शाहजहाँ के शासनकाल में इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम तथा जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए ।
18. भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को क्यों लागू किया गया ?
उत्तर-26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ जबकि संविधान 26 नवम्बर 1949 में पूरा बनकर तैयार हो गया था और कुछ आर्टिकल लागू भी हो गए थे । लेकिन संविधान को पूर्ण रूप से लागू 26 जनवरी 1950 को किया गया । दरअसल स्वतंत्रता सेनानियों ने तीस के दशक में ही देश का आजाद कराने की तारीख तय की ली थी । कांग्रेस ने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए 26 जनवरी 1930 की तारीख तय की थी । 31 दिसम्बर 1931 को लाहौर में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा फहराते हुए पूर्ण स्वराज की मांग कर दी थी। इसके बाद जब संविधान लागू करने के दिन की बात आई तो सभी ने उसी दिन को चुना जिस दिन आजादी की मुहिम शुरू हुई थी और 26 जनवरी 1950 को भारत में गणतंत्र दिवस के साथ पूर्ण स्वराज दिवस भी मनाया गया ।
19. महाजनपद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- महाजनपद प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाईयों को कहते थे। उत्तर वैदिक काल में कुछ जनपदों का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रंथों में इनका कई बार उल्लेख हुआ है।
20. भारत आने वाले दो विदेशी यात्री एवं उनके यात्रा वृत्तान्तों के नाम लिखें।
उत्तर-(1) मेगास्थनीज- मेगास्थनीज सेल्युकस के राजदूत के रूप में महाराज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। वो एक इतिहासकार और विद्वान था। जो कि अपनी इंडिका नामक पुस्तक में अपने समय के भारत के बारे में काफी कुछ लिखता है।
(ii) ह्वेनसांग- ह्वेनसांग प्राचीन भारत में आने वाले सबसे प्रसिद्ध यात्रियों में से एक है। उन्होंने अपनी पुस्तक सी-यू- की में भारत का वर्णन किया है ।
21. महावीर की जीवनी एवं उपदेशों का वर्णन करें ।
उत्तर- अकबर बड़ा ही महत्वाकांक्षी सम्राट था । वह एक महान साम्राज्यवादी था, किन्तु इस्लामी राजत्व सिद्धान्त उसके इस उद्देश्य में बाधक था, अत: डॉ. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव के शब्दों में, उसने नेतृत्व एवं राज्याधिकार के सिद्धान्त में आमूल परिवर्तन किया । मध्यकालीन भारत में इस्लामी शाहंशाही (एकछत्र) के संकुचित दृष्टिकोण को छोड़नेवाला वह पहला व्यक्ति था। उसका अपना सिद्धान्त था कि राजा अपनी प्रजा का चाहे वह किसी जाति, वर्ग अथवा धर्म की क्यों न हो, पिता होता है । इस सिद्धान्त द्वारा उसने प्राचीन हिन्दू आदर्श का पुनरुद्धार किया और शासक एवं प्रजा के बीच पैदा हुए भेदभाव को अधिकाधिक कम करने की भरसक चेष्टा की। अकबर का उद्देश्य समस्त भारत में एक सुसंगठित साम्राज्य की स्थापना करने का था। राजनैतिक दृष्टिकोण से तो निःसन्देह उसके पूर्ववर्ती भी कई शासक हो चुके थे, जिन्होंने भारत को एकछत्र के नीचे कर दिया था । किन्तु वह तो राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक एकता द्वारा भारत के संगठन का स्वप्न देख रहा था। यह उसकी राज्योचित भावना थी । सत्य तो यह है कि उस समय विश्व का कोई भी सम्राट तत्सम उत्कृष्ट आदर्शों से अनुप्राणित नहीं हुआ था ।
22. अकबर को एक "राष्ट्रीय सम्राट" क्यों कहा
राजत्व के श्रेष्ठतम प्राचीन हिन्दू सिद्धान्त के अनुरूप सिद्धान्त रखने के साथ-ही-साथ उसे साकार रूप देने की अनुपम क्षमता भी अकबर में थी। वह एक कुशल तथा योग्य शासक एवं अद्धितीय कूटनीतिज्ञ था। डॉक्टर आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव के अनुसार, वह नवीन विचारों और सिद्धान्तों का कुशल स्रष्टा था। शासन के मूलभूत मुख्य सिद्धांतों तथा राष्ट्र-सत्ता की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म समस्या के विशद् ज्ञान का सम्मिलित उपयोग निपुणता से करना उसकी ईश्वरदत्त प्रतिभा का सूचक था और साथ ही संकटकालीन उपयोगी भी । ऐसी शासन प्रणाली बनाना जो प्रजा के स्वभावानुकूल हो, उसकी अद्भुत मेधा की परिचायक है। अकबर का राजस्व विभाग का प्रबन्ध तथा केन्द्रीय और प्रान्तीय शासन में आमूल परिवर्तन उसकी शासकीय प्रतिभा के परिचायक हैं। उसके शासन में न्याय भी सस्ता, शीघ्र तथा निष्पक्ष करने का प्रयत्न किया जाता था और इस दिशा में उसे सफलता भी मिली। कुशल शासक की यह प्रथम विशेषता है। यही नहीं, नगद वेतन की प्रथा द्वारा ही उसने शासन सूत्र पर अपना सीधा नियंत्रण स्थापित कर लिया था जो कि शासन की कुशलता के लिए परम आवश्यक था। उसकी सर्वश्रेष्ठ शासकीय विशेषता यह थी कि उसने समस्त साम्राज्य के अंग-प्रत्यंगों में ऐसे शासन की व्यवस्था की थी जो कि समान थी । इस विषय में डॉक्टर आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव का कथन है कि, "पूरे राज्य भर में एक ही प्रकार की राज्य प्रणाली थी। चन्द्रगुप्त, समुद्रगुप्त तथा अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद बिन तुगलक तथा अन्य शासकों के समय में भी भारत का प्रधान भाग एक ही राज्य सत्ता के अधीन था। परन्तु तत्कालीन साम्राज्य के अवयव प्रान्त परस्पर इतने घनिष्ठ रूप से संबंधित न थे। एक ही सम्राट के प्रति राज्य भक्ति का होना ही उनमें पारस्परिक लगाव का माध्यम था। परन्तु अकबर ने अपने राज्य के सब प्रान्तों में राज्य प्रणाली, कर्मचारीगण, भूमिकर एवं सिक्कों की एक जैसी ही व्यवस्था स्थापित की। भिन्न-भिन्न प्रान्तों के कर्मचारियों के पद एक होते थे तथा वे इसी केन्द्रीय सत्ता के सदस्य माने जाते थे
जिसके फलस्वरूप सैनिकों और पदाधिकारियों की एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में बदली भी हो जाया करती थी ।" भारत जैसे विस्तृत तथा विभिन्न मतावलम्बियों के देश में एक विदेशी शासन द्वारा ऐसी शासन व्यवस्था तथा शान्ति की स्थापना करना और परिणामस्वरूप देश को नैतिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से तत्कालीन विश्व में महानतम स्थान तक पहुंचाना किसी साधारण प्रतिभा के शासक के वश की बात नहीं थी। अकबर के शासन-प्रबन्ध की प्रशंसा करते हुए कर्नल मालसन ने लिखा है, "अकबर का महान विचार एक सम्राट के अन्तर्गत सारे देश की एकता का था। उसका विधान एक शासक तथा एक साम्राज्य निर्माता के लिए सर्वश्रेष्ठ था। वे वही नियम थे, जिसके द्वारा आज भी पाश्चात्य शासक शासन कर रहे हैं। अकबर की ख्याति उसके अमर कार्यों पर आधारित है। अकबर द्वारा स्थापित साम्राज्य की नीवं इतनी गहरी थी कि बहुत कुछ अपने पिता के समान न होते हुए भी उसका पुत्र राज्य को संभालने में समर्थ हो सका । "
वास्तविकता तो यह है कि अकबर सोलहवीं शताब्दी के भारत का प्रतिनिधि शासक था । उसकी राज्य सत्ता राष्ट्रीय भावनाओं से अनुप्राणित थी। उसके कार्य में उसका भारतीयपन टपकता था। उसने मनसा, वाचा, कर्मणा से यह सिद्ध कर दिया था कि वह भारतीय है, विदेशी नहीं। इस देश के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास एवं वृद्धि में उसने उसी प्रकार दत्त चित होकर भाग लिया जैसे वह मूलतः भारतीय वंश और धर्म-परम्परा का ही अनुयायी हो । यद्यपि डॉक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी के मतानुसार उसका आदर्श एक विश्वव्यापी साम्राज्य था, एक देशी अथवा राष्ट्रीय नहीं । अकबर की मध्य एशिया तथा फरगना प्रान्त की जहाँ उसके पूर्वजों की राजधानी थी, विजय अभिलाषा और उन्हें अपने साम्राज्य में मिलाने की इच्छा के आधार पर ही त्रिपाठीजी का यह मत है। उनके अनुसार अकबर के सार्वभौमिक नृपत्व की भावना से प्रेरित और प्रभावित हुए बिना यह नितान्त असंभव था कि वह इतने विशाल राज्यक्षेत्र के ऊपर जिसमें इतनी भिन्न-भिन्न प्रकार की जातियां निवास करती हों, अपनी सत्ता स्थापित कर सकता । त्रिपाठीजी का यह मत तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ रह गया और वह अब केवल कल्पना का ही विषय है, किन्तु जैसा कि प्रोफेसर के. टी. शाह ने कहा है, 'अकबर मुगल बादशाहों में सबसे महान और यदि शक्तिशाली मौर्य शासकों के काल से नहीं तो कदाचित एक हजार वर्ष तक के भारतीय शासकों में सबसे महान था। अकबर की यह महानता इस कारण थी कि वह पूर्णतया भारतीय हो गया था। उसकी प्रतिभा ने हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियों को एक विशाल साम्राज्य की समान सेवा तथा नागरिकता के बन्धनों द्वारा एक राष्ट्र के रूप में परिणत करने की संभावना का अनुभव किया और उसके उत्साह ने यह कार्य सम्पादित किया। अकबर मनुष्यों का जन्मजात स्वामी था ।" यही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में जो कि उन्होंने अकबर के लिए कहे हैं, 'संगठित भारत के प्राचीन स्वप्न ने उसमें पुनः साकार रूप धारण किया । राजनैतिक एकता ही नहीं, अपितु जिस प्रकार से शरीर के अंग-प्रत्यंगों से शरीर का गठन होता है, उसी प्रकार से देश का भी गठन एक मनुष्य के रूप में हो । " कितना महान विचार है यह । "4
इसी उच्च भावना से प्रेरित होकर उसने भारत के विभिन्न मत-सम्प्रदायों को एकसूत्र में बाँधकर उनमें भातृत्व के संचार का प्रयत्न किया था और इसी आशय से सार्वजनिक सहिष्णुता (सुलहकुल) अथवा डॉक्टर परमात्मा शरण के मतानुसार धार्मिक स्वतंत्रता की नीति को अपनाया था । तत्कालीन संकीर्ण साम्प्रदायिक भावना का उसने पूर्ण परित्याग कर दिया । इस विषय में डॉक्टर ईश्वरी प्रसाद का कथन उल्लेखनीय है, "जिस समय यूरोप के देशों की प्रजा शासक द्वारा निर्धारित धर्मों को मानने के लिए बाध्य की जाती थी, अकबर ने अपने मुस्लिम समाज की धार्मिक संकीर्णता की घोषणा कर दी । सभी बातों पर ध्यान रखते हुए हम कह सकते हैं कि अकबर संसार के बड़े-बड़े नरपतियों में स्थान पाने का अधिकारी है । उसके इस उच्च आसन के आधार हैं, उसका चमत्कारी बुद्धि-बल, उसका दृढ़ चरित्र - बल और उसकी सफल राजनीतिक पटुता, जिसके बल से उसने एक छोटे तथा शक्तिहीन राज्य को अपने समय का विश्व का सबसे बड़ा, सबसे अधिक शक्तिशाली और सबसे अधिक समृद्धिशाली साम्राज्य बना दिया ।" लारेंस विनयन के मतानुसार भी, “एक शासक के रूप में अकबर का सबसे महान कार्य विभिन्न राज्यों, जातियों तथा धर्मों का एकीकरण था । इस लक्ष्य की प्राप्ति एक सुनिश्चित संगठन के द्वारा हुई थी । किसी भी वस्तु का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने की अकबर में अद्भुत प्रतिभा थी । विदेशी होते हुए भी उसने विचित्र भारत के साथ पूर्णतया आत्मीयता स्थापित कर ली और उसकी पद्धति का अधिकांश भाग प्रायः स्थायी रहा। अकबर और उसके मंत्रियों द्वारा प्रयुक्त नियम और व्यावहारिक कार्य बहुत सीमा तक अंग्रेजी शासन प्रणाली में अपनाये गये । सबसे बढ़कर बात यह थी कि अकबर में मानवता थी ।
अकबर मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था । उसने विरासत में मिले राज्य को सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया था । ऐसा ही चन्द्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त तथा अलाउद्दीन खिलजी ने भी किया था । ये भी महान विजेता तथासेनानायक थे। अतः अपने इस गुण के कारण तो अकबर अकबर महान की पदवी का अधिकारी नहीं होता है। वास्तविकता तो यह है कि कोई भी सम्राट अपने सुदृढ़ तथा सुव्यवस्थित शासन, उसकी उदारता तथा दयालुता, उसकी सहिष्णुता तथा व्यापक दृष्टिकोण, उसकी लोक-सेवा तथा प्रजा-पालन की भावना, उसकी धार्मिकता तथा उसकी न्याय-प्रियता के कारण ही महान् कहलाता है। अकबर में ये सभी गुण विद्यमान थे। वह पहला मुसलमान शासक था, जिसने एक सुदृढ़ साम्राज्य की स्थापना के हेतु यहां की बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा का समर्थन प्राप्त करने का प्रयत्न किया और भारत को एक सबल राष्ट्र बनाने की चेष्टा की। राष्ट्रीयता के लिए भारत के विभिन्न मतों में विभिन्न भाषाओं में विभिन्न जातियों में तथा विभिन्न विचारधाराओं में समन्वय की आवश्यकता थी। उसने इन सब क्षेत्रों में समन्वय स्थापित करने का सफल प्रयत्न किया। हिन्दुओं की असुविधाओं को दूर कर तथा उनको उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त करके उसने राजनीति में समन्वय स्थापित किया । हिन्दुओं की सामाजिक कुरीतियों को दूर कर उसने भारतीयों के सामाजिक जीवन में समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न किया। फतेहपुर सीकरी में इवादतखानों की स्थापना करके तथा दीन-ए-इलाही की योजना करके उसने धार्मिक जीवन में समन्वय की चेष्टा की। भारतीय साहित्य का फारसी में अनुवाद कराकर उसने सांस्कृतिक क्षेत्र में समन्वय की चेष्टा की। इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों में भी उसने समन्वयकारी कदम उठाये ।
उपर्युक्त विवरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अकबर एक महान राष्ट्र निर्माता था । उसके आदर्श तथा राजत्व सिद्धान्त आज भी हमारा पथ-प्रदर्शन कर सकते हैं। वह वास्तव में महान था ।
23. विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताएँ लिखें ।
उत्तर- विजयनगर शैली के भवन तुंगभद्रा नदी के सम्पूर्ण दक्षिण क्षेत्र में फैले हैं । इन्होंने पुराने मन्दिरों का विस्तार किया। कई मन्दिरों में गोपुरम का निर्माण कराया । यहाँ की स्थापत्य कला प्रमुखत: तीन भागों में विभाजित की जा सकती है- धार्मिक, राजशाही एवं नागरिक । विजयनगर शैली में चालुक्य, होयसल, पल्लव एवं चोल शैलियों का मिश्रण देखने को मिलता है । इन्होंने स्थानीय कठोर पत्थर (ग्रेनाइट) का बहुत उपयोग किया है । शिल्पकला में सेलखड़ी पत्थर का इस्तेमाल किया है। मन्दिरों के स्तम्भों की विविध एवं जटिल सजावट विजयनगर शैली की एक प्रमुख विशेषता है। हम्पी के मन्दिरों में कुछ स्तम्भों पर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । इन मूर्तियों में पिछले पैरों के बल खड़े हुये कुछ घोड़े दिखाये गये हैं। कहीं-कहीं कुछ उपद्रवीं जानवर भी बनाये गये हैं। स्तम्भों के दूसरी ओर हिन्दुओं की पौराणिक कथाओं के चित्र बने हुये हैं।
हम्पी के मन्दिरों में वर्गाकार या चार से अधिक भुजाओं वाले चबूतरों पर मंडप बने हुये हैं। मंडपों की छतों एवं छतों के किनारे पर सजावट की गई है । सामान्यतः यह मण्डप चार या पाँच फुट ऊँचे हैं ।
विजयनगर के कुछ प्रमुख मन्दिर निम्न हैं
(1) विट्ठल मन्दिर - इसका निर्माण कार्य देवराय द्वितीय काल में प्रारम्भ हुआ एवं कृष्णदेव राय व अच्यु • काल तक चलता रहा। यह मन्दिर 500 फुट लम्बे व 310 फुट चौड़ी एक चाहरदीवारी से घिरा है। इसमें गोपुरों से युक्त तीन प्रवेश द्वार हैं । मुख्य मन्दिर मध्य भाग में स्थित है। यह विट्ठल रूपी विष्णु का मन्दिर है। इसके तीन भाग हैं.
(1) सामने की ओर खुला स्तम्भ हाल, महामण्डप ।
(2) मध्य भाग में इसी तरह का बन्द हॉल, अर्द्ध-मण्डप ।
(3) इसके पृष्ठ भाग में गर्भगृह है ।
डेमिंगौस पेइज ने इस मन्दिर का वर्णन इस प्रकार किया है- " मन्दिर की बाहरी दीवारों पर नीचे से लेकर छत तक ताँबे के पत्र चढ़े हुये । छत के ऊपर बड़े-बड़े जानवरों की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। तब मन्दिर के अन्दर प्रवेश करते हैं तो उसके अन्दर स्तम्भों पर तेल से जलने वाले दिये रखे दिखते हैं। ये दिये 2500 से 3000 तक हैं जो रात्रि को जलाये जाते हैं । "...... मन्दिर के बाहर एक आँगन में सूर्य देतवा के लिये ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित रथ बने हैं। इन पत्थर के रथों के पहिये आज भी घुमाये जा सकते हैं ।
(2) विरुपाक्ष मन्दिर-अभिलेखों से पता चलता है कि विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण नवीं या दसवीं शताब्दी में किया गया था। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद उसे बड़ा करवाया गया । मुख्य मन्दिर के सामने जो मण्डप बना है, उसका निर्माण कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया। पूर्वी गोपुरम ( प्रवेश द्वार) भी उसी ने बनवाया था। यह मन्दिर नगर के केन्द्र में स्थित है। मन्दिर की दीवारों पर शिकार करने, नाच व युद्धों की जीत के जश्न मनाने के सुन्दर दृश्य दिखाये गये हैं।
( 3 ) गोपुरम - गोपुरम प्रवेश द्वार को कहा गया है। विजयनगर शासकों ने मन्दिरों में गोपुरम का निर्माण कराया । वे अत्यधिक विशाल एवं ऊँचे होते थे। ये सम्भवतः सम्राट की ताकत की याद दिलाते थे जो इतनी ऊँची मीनार बनाने में सक्षम थे। ।
24. भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं को लिखें । का वर्णन इस प्रकार है :
उत्तर भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं
(1) लिखित तथा विस्तृत संविधान (Written and Wide Constitution) : हमारे देश का संविधान लिखित है । यह संविधान लिखित होने के साथ-साथ विस्तृत भी है। इसका अर्थ यह है कि इसमें विभिन्न बातों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है । यह विश्व के संविधानों में सबसे बड़ा संविधान है। 1950 के संविधान में 39 धाराएँ थीं । इसमें अब तक लगभग 80 संशोधन किए जा चुके हैं ।
(2) लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना (Establishment of Democratic Government) : हमारे संविधान की एक विशेषता यह है कि इससे देश में लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की गई है। यहाँ की जनता को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपनी सरकार का चुनाव स्वयं करे! प्रत्येक व्यक्ति को मतदान करने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया है । इस प्रकार यहाँ एक ऐसी सरकार का गठन होता है जो लोगों के प्रतिनिधियों के माध्यम से चलाई जाती है ।
(3) संघात्मक व्यवस्था (Federal System): हमारे संविधान की अन्य विशेषता यह है कि हमारे यहाँ संघात्मक सरकार की व्यवस्था है। संघात्मक सरकार का अर्थ है शासन प्रबन्ध राज्य तथा केन्द्र दो स्तरों पर होगा तथा इनके अधिकार और शक्तियों का वर्णन संविधान में किया जाएगा। दोनों प्रकार की सरकारें संविधान के संघीय ढाँचे के अन्तर्गत कार्य करेंगी।
(4) स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका (Free and impartial Judiciary) : हमारे देश में एक स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका का प्रावधान है। संविधान में इसके क्षेत्राधिकार तथा शक्तियों का वर्णन मिलता है। न्यायपालिका को कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त रखा गया है। इस प्रकार न्यायपालिका निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र रूप से अपना कार्य करती है।
(5) धर्म निरपेक्ष राज्य (Secular State): हमारे संविधान ने भारत को एक ध र्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया है। इसका अर्थ यह है कि भारत सरकार किसी धर्म विशेष के प्रति कोई लगाव नहीं रखेगी। उसकी दृष्टि से सभी धर्म समान होंगे। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के मामले में पूर्ण स्वतन्त्रता होगी। धर्म के नाम पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। अपने धर्म का प्रचार करने की भी प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता होगी।
(6) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार ( Universal Adult Franchise) : सभी नागरिकों को मताधिकार प्राप्त है। सार्वभौमिक का अर्थ है बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक वयस्क की, जिसकी आयु 18 वर्ष अथवा उससे अधिक है, मत देने का अधिकार प्राप्त है।
(7) संसदीय सरकार (Parliamentary Form of the Government) : संविधान संसदीय व्यवस्था की स्थापना करता है। राज्य के अध्यक्ष (राष्ट्रपति) का पद नाममात्र का तथा सरकार के अध्यक्ष (प्रधानमन्त्री) का पद वास्तविक शासक की भाँति बनाने का प्रयास किया गया है। प्रधानमन्त्री तथा उसके मन्त्रिपरिषद् संसद से लिए जायेंगे जो संसद के प्रति उत्तरदायी होंगे ।
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