शहर मुम्बई में जगह की कमी और भीड़भाड़ के कारण एक खास तरह बनाई गई इमारते थीं । ये इमारतें बहुमंजिला होती थी, जिनमें एक-एक कमरे वाली आवासीय इकाईयाँ बनायी जाती थीं इमारत के सारे कमरों के सामने एक खुला बरामदा या गलियारा होता था ।
2.महात्मा गाँधी के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त विवरण दें।
मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था। ब्रिटेन में कानून की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वे वकालत करने के लिए दक्षिण अफ्रिका चले गए । न्याय की उच्च भावना से प्रेरित होकर उन्होंने नस्लवादी, अन्याय, भेदभाव और हीनता के विरुद्ध संघर्ष किया जिसका शिकार दक्षिण अफ्रिका में भारतीयों को होना पड़ रहा था ।
3. 1857 की क्रांति के धार्मिक कारणों की चर्चा करें ।
उत्तर :- ईसाई मिशनरियों ने धर्म प्रचार और तरह-तरह के लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने के कारण तथा डलहौजी द्वारा पारित कानून के कारण, जिनके अनुसार धर्म परिवर्तन करने पर भी उस व्यक्ति को पैतृक सम्पत्ति में बराबर हिस्सा मिलेगा, यह धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने का खुला संकेत था। इससे हिन्दू समाज में खलबली मच गई। अंग्रेजों को अपना कट्टर शत्रु समझने लगे। उन्हें प्रतीत होने लगा कि उनको ईसाई बनाने का षड्यंत्र अब सफल होने वाला है।
4. मीराबाई का संक्षिप्त परिचय दें ।
उत्तर :- मेड़ता के शासक रत्न सिंह राठौर की पुत्री मीरा का जन्म 1398 ई० में हुआ था। इनका विवाह राणासांगा के पुत्र के साथ हुआ था। मीरा कृष्ण भक्ति में लीन रहती थीं। उन्होंने कृष्ण भक्ति के कई अनमोल पदों का सृजन किया जैसे कि"मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ।
जो के सिर मोर मुकुट मेरो पति न सोई ।। '
कुलक्ष्णी मान मीरा को मारने के प्रयास भी हुए परंतु भक्ति में डुबी मीरा कृष्ण-प्रेम से तनिक भी डगमग नहीं
5. उत्तर - संघ सूची, राज्य समवर्ती सूची का संक्षिप्त विवरण दे
संघ सूची में देश भर में एक समान नीति होना आवश्यक है। जैसेप्रतिरक्षा, विदेश नीति, डाक - तार व टेलीफोन, रेल मुद्रा, बीमा व विदेशी व्यापार इत्यादि । इस सूची में कुल 35 विषय है । राज्य सूची में प्रादेशिक महत्त्व के विषय सम्मिलित किये गये थे जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया। राज्य सूची के प्रमुख विषय हैं- कृषि, पुलिस, जेल, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सिंचाई व मालगुजारी इत्यादि । इन विषयों की संख्या 66 थी '
6.राजेन्द्र प्रसाद का जीवन वृत्त दें ।
सीवान (सारण) जिलान्तर्गत जीरादेई की पावन भूमि में राजेन्द्र बाबू का जन्म हुआ था । उस भूमि की धूल में लोट-लोटकर ये बड़े हुए । इनकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू-फारसी में शुरू हुई । ये इन्ट्रेंस परीक्षा में कलकत्ता विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आये। इसके उपरान्त भी इन्होंने एफ०ए०, बी०ए०, एम० ए० तथा एम० एल० की उपाधियाँ प्रथम श्रेणी में प्राप्त कीं ।
इनका राजनीतिक जीवन विद्यार्थी जीवन से ही प्रारम्भ हुआ। अपने कॉलेज जीवन में इन्होंने बिहारी छात्र काँग्रेस की स्थापना की। चम्पारण के नील खेतिहर आन्दोलन के समय राष्ट्रपिता गाँधी के सम्पर्क में आये । उनके सहयोग आन्दोलन के समय इन्होंने अपनी चलती वकालत पर लात मार दी और सक्रिय रूप से उनका साथ दिया । अनेक बार उन्हें जेल की काल-कोठरियों में बन्द कर दिया गया । तरह-तरह की यातनाएँ सहनी पड़ीं, लेकिन राष्ट्र की वेदी पर अपनी आहुति चढ़ाने के लिए धू-धू कर जलती हुई क्रांति की ज्वाला को इन्होंने प्रज्वलित रखा । 1934 ई० में भयंकर भूकंप के अवसर पर असहायों की सहायता कर इन्होंने अपनी सच्ची देशभक्ति का परिचय दिया । ये भारत छोड़ो आन्दोलन के परामर्शदाता बने । 1950 ई० में राष्ट्रपति पद पर आसीन हो, उसे सुशोभित करते हुए, उसकी मर्यादा एवं गरिमा को 1962 ई० तक उन्होंने कायम रखा ।
राजेन्द्र बाबू महान् विद्वान थे, महान् साधक थे, महान् कर्मयोगी थे, महान् मानव थे । विद्वत्ता को इन्होंने अच्छी तरह पचाया, इनमें अपनी विद्वत्ता का जरा भी अभिमान नहीं, ईर्ष्या एवं द्वेष का नामो-निशान नहीं। खेद है, परमात्मा ने इन्हें बहुत दिनों तक हमारे बीच रहने नहीं दिया। पटना के सदाकत आश्रम में 28 फरवरी, 1963 ई० को इन्होंने अन्तिम साँस ली ।
7.गाँधी जी के प्रारंभिक आंदोलन कहाँ कहाँ हुए थे और क्यों?
उत्तर:- गाँधीजी ने भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र करवाने के लिए आंदोलनों का संचालन किया, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा । इनमें से प्रमुख आंदोलन इस प्रकार हैं
(i) चम्पारण सत्याग्रह (1917 ) भारत के बिहार राज्य में ब्रिटिश जमींदार किसानों को खाद्य फसलें उगाने नहीं देते थे। जमींदार किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे ।
(ii) खेड़ा सत्याग्रह (1918) वर्ष 1918 में गुजरात के खेड़ा में बाढ़ और सूखे के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब हो गयी थी जिस कारण किसान कर माफी की मांग कर रहे थे ।
(iii) अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918 ) गांधीजी ने अहमदाबाद
मिल मजदूर आंदोलन किया । इस आंदोलन का मुख्य कारण मिल मालिकों द्वारा दिए जाने वाले बोनस को समाप्त करना था ।
(iv) "खिलाफत आंदोलन (1920 ) खिलाफत आंदोलन विश्वव्यापी आंदोलन था । इसका मुसहकार आंदोलन (1920) गांधीजी मानते थे कि अंग्रेज भारतीयों के । कारण तुर्की के खलीफा का प्रभुत्व अंग्रेजों के द्वारा कम करना था । सहयोग से अपनी सत्ता स्थापित कर पाए हैं यदि हर भारतीय के द्वारा अंग्रेजों का असहयोग किया जाए तो वह देश छोड़ कर चले जाएँगे । में है ?
8. पूना पैक्ट के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर :-पूना समझौते का अर्थ (Meaning of Poona Pact) - सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं- डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पं. मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिड़ला, राजगोपालाचार्य और डॉ. भीमराव अंबेदकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ. अंबेदकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है । इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया ।
समझौते को मुख्य शर्तें Poona Pact)
(i) सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के लिए प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में सभी राज्यों में निर्धारित 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया ।
(ii) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई । दलितों के लिए चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था समाप्त कर दी गई ।
(iii) स्थानीय संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में दलितों के लिए उचि प्रतिनिधित्व निश्चित किया गया ।
(iv) दलितों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की सिफारिश की गई ।
(x) यह योजना आरंभ में 10 वर्षों के लिए होगी ।
9. कैबिनेट निशन भारत क्यों आया
उत्तर द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के पश्चात् ब्रिटेन में चुनाव हुए और वहाँ ने सँभाला। उन्हें श्रमिक दल की सरकार बनी । प्रधानमंत्री का पद सर क्लेमेट भारतीयों के साथ सहानुभूति थी और वह भारतीय समस्या का समाधान अति शीघ्र कर देना चाहते थे । इस उद्देश्य से उन्होंने भारत में एक मंत्रिमंडल अथवा कैबिनेट मिशन भेजने की घोषणा की । इस मिशन को किसी भी प्रकार का निर्णय का पूरा अधिकार था । मिशन का भारत आगमन (Arrival of the Mission in India): ऐटली की घोषणा के अनुसार एक मंत्रिमंडलीय मिशन मार्च, 1946 ई० में भारत पहुँचा। मिशन के तीन सदस्य थे-लॉर्ड पैथिक लौंरेंस, सर स्टैफ्फर्ड क्रिप्स तथा ए. वी. अलेक्जेण्डर । मिशन ने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों से बातचीत की और कुल मिलाकर 472 भारतीय नेताओं से भारतीय समस्याओं पर विचार-विमर्श किया । इतना प्रयास करने के बावजूद भी वह सांप्रदायिक समस्या तथा पाकिस्तान की माँग के विषय में किसी ठोस निष्कर्ष पर न पहुँच सका। इस प्रश्न का समाधान करने के लिए शिमला में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का सम्मिलित अधिवेशन बुलाया गया। अंत में मिशन ने दोनों को अपने निर्णयों पर राजी कर लिया। 16 जुलाई, 1946 ई० के दिन कैबिनेट मिशन ने अपनी योजना प्रस्तुत की के अभिलेखों पर टिप्पणी लिखें ।
10. अशोक के अभिलेखों पर टिप्पणी लिखें
उत्तरयद्यपि मौयों के इतिहास के जानने के लिए मौर्यकालीन पुरातात्विक प्रमाण जैसे मूर्ति कलाकृतियाँ, चाणक्य का अर्थशास्त्र, मेगास्थनीज की इंडिका, जैन और बौद्ध साहित्य व पौराणिक ग्रंथ आदि बड़े उपयोगी हैं लेकिन पत्थरों और स्तंभों पर मिले अशोक के अभिलेख प्राय: सबसे मूल्यवान स्रोत माने जाते हैं।
अशोक वह पहला सम्राट था, जिसने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए संदेश प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किये हुए स्तंभों पर लिखवाये थे। अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से धम्म का प्रचार किया। इनमें बड़ों के प्रति आदर, संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परंपराओं का आदर शामिल है। ।
11.हड़प्पा लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं
सामान्यत: हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो संभवत: मालिक के नाम व पदवी को दर्शाता है। विद्वानों ने यह सुझाव भी दिया है कि इन पर बना चित्र (आम तौर पर एक जानवर) अनपढ़ लोगों को सांकेतिक रूप से इसका अर्थ बताता था। अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं; सबसे लंबे अभिलेख में लगभग 6 चिह्न हैं। हालाँकि यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकती है, पर निश्चित रूप से यह वर्णमालीय (जहाँ प्रत्येक चिह्न एक स्वर अथवा व्यंजन को दर्शाता है) नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है-लगभग 375 से 400 के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौड़ा अंतराल है और बाईं ओर यह संकुचित है जिससे लगता है कि उत्कीर्णक ने दाईं ओर से लिखना आरंभ किया और बाद में बाईं ओर स्थान कम पड़ गया । मंथाल विवाह पर रोक दिपणी लिह ।
12. संथाल विद्रोह पर टिप्पणी दे
(i) संथाल लोगों ने पहाड़िया लोगों के सामने संघर्ष के समय झुककर जंगलों के अंदरूनी हिस्सों में स्थायी रूप से बसना शुरू कर दिया। उन्होंने खानाबदोश जिंदगी को छोड़ दिया । वे स्थायी रूप से बसकर बाजार के लिए कई तरह की वाणिज्यिक फसलों की खेती करने लगे थे। वे आस-पास के व्यापारियों और साहूकारों के साथ लेन-देन भी करने लगे थे लेकिन स्वार्थी व्यापारी और साहूकारों ने चालाकी के द्वारा संथालों से जब भूमि छीननी शुरू कर दी तो संथालों को अपनी हीन दिशा का अहसास हुआ, उन्हें लगा कि जिस जमीन को साफ करके खेती शुरू की थी उस पर ब्रिटिश सरकार भारी कर लगा रही थी ।
(ii) लगान भुगतान करने के लिए संथालों को व्यापारियों और साहूकारों से ऊँची ब्याज दर पर कर्जा लेना होता था। सरकार संथालों की बजाय व्यापारियों और साहूकारों का पक्ष लेती थी । संथालों को दामिन इलाके से धीरे-धीरे अपने दावे छोड़ने के लिए मजबूर किया गया ।
(iii) 1850 के दशक तक संथाली लोग यह महसूस करने लगे थे कि अपने लिए एक आदर्श संसार का निर्माण करने के लिए, जहाँ उनका अपना शासन हो, जमींदारों, साहूकारों तथा औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय अब आ गया है। 1855-56 के संथाल विद्रोह के बाद संथालपरगना का निर्माण कर दिया गया, जिसके लिए 5500 वर्गमील का क्षेत्र भागलपुर और वीरभूम जि 2 जिलों में से से लिया गया । क
13. 1857 के विद्रोह की असफलता के कारण
(Causes of the failure of the revolt of 1857) : 1857 के विद्रोह में भारतीय जनता ने जी-तोड़ संघर्ष कर अंग्रेजों का सामना किया, किन्तु कुछ कारणों से इस विद्रोह में भारतवासियों को असफलता मिली। इस विफलता के निम्न कारण थे
(1) यह विद्रोह निश्चित तिथि से पहले आरम्भ हो गया। इसकी तिथि 31 मई निर्धारित की गई थी, किंतु यह 10 मई, 1857 को शुरू हो गया ।
(2) यह स्वतंत्रता संग्राम सारे भारत में फैल गया, परिवहन तथा संचार के अभाव में भारतवासी इस पर पूर्ण नियंत्रण न रख सके।
(3) भारतवासियों के पास अंग्रेजों के मुकाबले हथियारों का अभाव था।
(4) भारत के कुछ वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया ।
(5) भारत में अंग्रेजों के समान कुशल सेनापतियों का अभाव था।
(6) अंग्रेजों को ब्रिटेन से यथासमय सहायता प्राप्त होती गई।
(7) क्रांतिकारियों में किसी एक योजना एवं निश्चित उद्देश्यों की कम
उत्तर- लक्ष्मीबाई झाँसी (उत्तर प्रदेश) की रानी थीं। अपनी सन्तान न होने पर उसने एक बच्चे को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया था तथा झाँसी का उत्तराधिकारी घोषत किया था। लेकिन अंग्रेजों ने उसके उत्तराधिकार की घोषणा के अधिकार को मान्यता नहीं दी थी । इसी कारण वह 1857 के विद्रोह के दिनों में अंग्रेजी सेनाओं से जूझ पड़ी । उसने नाना साहिब के विश्वसनीय सेनापति तांत्या टोपे और अफगान सरदारों की मदद से ग्वालियर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया । अन्त में कालपी के स्थान पर वह अंग्रेजों
14. विश्व के सात आश्चर्यों के नाम निम्नलिखित हैं
(i) गीजा के पिरामिड (iii) अर्टेमिस का मन्दिर । (v) माउसोलस का मकबरा । (vii) ऐलेक्जेन्ड्रिया का रोशनीघर । (ii) बेबीलोन के झूलते बाग । (iv) ओलम्पिया में जियस की मूर्ति । (vi) 630 विशालमूर्ति ।
15.गाँधी जी की दाण्डी यात्रा के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर - नमक यात्रा उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रतिरोध का प्रभावपूर्ण प्रतीक था क्योंकि
(i) यह प्रथम अवसर था, जब भारतीय नेताओं ने कानून तोड़ने का निर्णय लिया । लोगों को अब नं केवल अंग्रेजों से असहयोग के लिए परंतु औपनिवेशिक कानून तोड़ने के लिए भी कहा गया (ii) भारत के विभिन्न भागों में हजारों भारतीयों ने नमक बनाकर कानून तोड़ा और नमक की फैक्ट्रियों के समक्ष प्रदर्शन किए।
(iii) जैसे-जैसे आंदोलन फैला, विदेशी कपड़े का बहिष्कार किया गया और शराब की दुकानों की घेराबंदी की जाने लगी। किसानों ने लगान तथा चौकीदारी टैक्स देने से मना कर दिया, ग्रामीण अधिकारियों ने त्यागपत्र दे दिए और कई स्थानों पर सुरक्षित वनों में लकड़ी इकट्ठी करके व पशु चराकर वन संबंधी कानून का उल्लंघन किया ।
(iv) इस गतिविधि को देखकर उपनिवेशी सरकार ने एक-एक करके कांग्रेसी नेताओं को बंदी बनाना शुरू कर दिया। इससे कई स्थानों पर हिंसात्मक झड़पें हुईं । कुछ लोगों ने सड़कों पर प्रदर्शन किए तथा पुलिस की बख्तरबंद गाड़ियों और गोलीबारी का सामना किया । कई लोग मारे गए ।
(v) जब स्वयं गांधीजी को बंदी बनाया गया तो शोलापुर में औद्योगिक श्रमिकों ने पुलिस चौकियों, नगरपालिका भवनों, न्यायालयों तथा रेलवे स्टेशनों सहित उन भवनों पर हमले किए जो अंग्रेजी शासन के प्रतीक थे ।
(vi) इस आंदोलन का परिणाम यह था कि 5 मार्च, 1931 ई० को गांधी-इरविन समझौता हुआ। समझौते के तहत गांधीजी लंदन में हो रहे दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर राजी हो गए और सरकार राजनीतिक कैदी छोड़ने पर सहमत हो गई ।
16. कैबिनेट मिशन योजना क्या थी ? विवेचना करें ।
उत्तर - द्वितीय पहा शुद्ध की समाप्ति के पश्चात् ब्रिटेन में चुनाव हुए और वहाँ श्रमिक दल की सरकार ब । प्रधानमंत्री का पद सर क्लेमेट ऐटनी ने सँभाला। उन्हें भारतीयों के साथ सहानुभूति थी और वह भारतीय समस्या का समाधान अति शीघ्र कर देना चाहते थे । इस उद्देश्य से उन्होंने भारत में एक मंत्रिमंडल अथवा कैबिनेट मिशन भेजने की घोषणा की। इस मिशन को किसी भी प्रकार का निर्णय का पूरा अधिकार था।
मिशन का भारत आगमन (Arrival of the Mission in India): ऐटली की घोषणा के अनुसार एक मंत्रिमंडलीय मिशन मार्च, 1946 ई० में भारत पहुँचा। मिशन के तीन सदस्य थे-लॉर्ड पैथिक लौरेंस, सर स्टैफ्फर्ड क्रिप्स तथा ए. वी. अलेक्जेण्डर । मिशन ने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों से बातचीत की और कुल मिलाकर 472 भारतीय नेताओं से भारतीय समस्याओं पर विचार-विमर्श किया । इतना प्रयास करने के बावजूद भी वह सांप्रदायिक समस्या तथा पाकिस्तान की माँग के विषय में किसी ठोस निष्कर्ष पर न पहुँच सका। इस प्रश्न का समाधान करने के लिए शिमला में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का सम्मिलित अधिवेशन बुलाया गया। अंत में मिशन ने दोनों को अपने निर्णयों पर राजी कर लिया । 16 जुलाई, 1946 ई० के दिन कैबिनेट मिशन ने अपनी योजना प्रस्तुत की। इस योजना के गुण-दोष का वर्णन इस प्रकार है—
1. गुण (Merits): (i) इस योजना के अनुसार पाकिसतान की माँग को स्वीकार कर लिया गया था और भारत की अखंडता तथा राष्ट्रीय एकता को सुरक्षित रखा गया था।
कैबिनेट मिशन की योजना से कई उद्देश्यों की पूर्ति हुई—
(ii) इसमें संविधान सभा की व्यवस्था, उसके द्वारा संविधान का निर्माण तथा सभा के सदस्यों के निर्वाचन की व्यवस्था से भारत के भावी संविधान को प्रजातांत्रिक आधार प्रदान करने का शानदार प्रयास था ।
(iii) संविधान सभा में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व को अत्यंत सीमित कर दिया गया था।
(iv) संविधान बनने तक अंतरिम सरकार की व्यवस्था भी एक शानदार योजना थी । यह सरकार पूर्ण रूप से भारतीय होनी थी
(v) योजना के अनुसार देशी राज्यों की जनता के साथ भी न्याय किया गया था। अब देशी रियासतों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था भी कर दी गई थी । विशेष बात यह थी कि ये प्रतिनिधि राजाओं द्वारा मनोनीत न होकर एक मध्यस्थ समिति द्वारा निर्धारित किए जाने थे ।
(vi) भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल की सदस्यता छोड़ने का अधिकार दिया जाना स्वतंत्रता प्राप्ति का स्पष्ट चिह्न था ।
(vii) मुस्लिम लीग की संतुष्टि के लिए भी याजना में लगभग सभी महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएँ की गई थीं । उदाहरण के लिए प्रांतों को मिलाना, सांप्रदायिक चुनाव व्यवस्था तथा सांप्रदायिक प्रश्न पर निर्णय लेने के लिए संबंधित जातियों के प्रतिनिधियों के बहुमत की व्यवस्था इत्यादि ।
2. दोष (Demerits ) :
(i) भारत संघ की व्यवस्था अवश्य ही एक अच्छा प्रयास था, परन्तु संघ के केंद्र की शक्तियाँ बहुत कम थीं । इसे केवल विदेश नीति, सुरक्षा तथा संचार संबंधी बिषय ही सौंपे गए थे जिनके आधार पर कोई भी केंद्रीय सरकार सफल नहीं हो सकती थी ।
(ii) कैबिनेट मिशन का दूसरा मुख्य दोष यह था कि प्रांतों को ग्रुपों में बाँटने का आधार सांप्रदायिक भी हो सकता था। इसके बाद भी पाकिस्तान के निर्माण की संभावना हो सकती थी ।
(iii) भावी संविधान का आधार प्रजातान्त्रिक अवश्य था, परंतु उसमें अधिक ठोसता नहीं थी ।
(iv) योजना में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि प्रांतों का वर्गीकरण अनिवार्य है अथवा नहीं । इस बात पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग में मतभेद आरंभ हो गया, क्योंकि कांग्रेस इसे ऐच्छिक समझती थी जबकि लीग आवश्यक मानती थी ।
(v) देशी रियासतों के लिए यह अनिवार्य नहीं था कि वे भारत संघ में शामिल हों । यह बात भारतीय अखंडता और एकता के विरुद्ध थी ।
(vi) संविधान सभा की शक्तियाँ सीमित थीं। उसे योजना की सिफारिशों से हट कर संविधान बनाने का अधिकार नहीं था ।
(vii) अंतरिम सरकर की शक्तियाँ निश्चित नहीं थीं। साथ ही उसमें सिफारिशों से हटकर संविधान बनाने का अधिकार नहीं था ।
(viii) 'प्रांतीय समूहीकरण' सिक्खों के हितों के सर्वथा विपरीत था । अधिकांश सिक्ख पंजाब में ही थे, अतः मुस्लिम प्रांतों का समूह बन जाने के पश्चात् उन्हें मुस्लिम लीग की दया पर ही निर्भर रहना पड़ता।
(ix) अंतरिम सरकार की अवधि भी स्पष्ट नहीं की गई थी। इस विषय में कुछ नहीं कहा गया था कि ब्रिटेन कब और किस समय भारत को सत्ता हस्तांतरित करेगा । (x) योजना का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसे केवल स्वीकार अथवा अस्वीकार ही किया जा सकता है। इसमें किसी अन्य आवश्यक सुधार के लिए सुझाव देना असंभव था
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