1. लोकतंत्र में सूचना के अधिकार की क्या भूमिका है ?
उत्तर - भारतीय लोकतंत्र में सूचना का अधिकार की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । सूचना का अधिकार अधिनियम, जिसे 'आर टी आई एक्ट' के नाम से जाना जाता है । यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र को सशक्त करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका रखता है । समय के साथ संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का विस्तार होता गया । एक समय वह भी आया जब सूचना के अधिकार को एक मौलिक अधिकार माना गया । जानने का अधिकार किसी भी व्यक्ति का मानव अधिकार है तथा भारत के संविधान में उल्लेखित किए गए मौलिक अधि कारों में एक मौलिक अधिकार भी है जिसे अनुच्छेद 19 का हिस्सा बनाया गया है ।
2. राजनीतिक दलों के दो प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर - राजनीतिक दलों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है
(i) नीतियाँ एवं कार्यक्रम तय करना - राजनीतिक दल जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए नीतियाँ एवं कार्यक्रम तैयार करते हैं। इन्हीं नीतियों और कार्यक्रमों के आधार पर ये चुनाव भी लड़ते हैं । राजनीतिक दल भाषण, टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र आदि के माध्यम से अपनी नीतियाँ एवं कार्यक्रम जनता के सामने रखते हैं और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं ।
(ii) शासन का संचालन - राजनीतिक दल चुनावों में बहुमत प्राप्त करके सरकार का निर्माण करते हैं ।
(iii) चुनावों का संचालन - जिस प्रकार लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में राजनीतिक दलों का होना आवश्यक है उसी प्रकार दलीय व्यवस्था में चुनाव का होना भी आवश्यक है। राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों को खड़ा करने और हर तरीके से उन्हें चुनाव जीताने का प्रयत्न करते हैं । इसलिए राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार्य चुनावों का संचालन है ।
(iv) लोकमत का निर्माण- राजनीतिक दल लोकमत निर्माण करने के लिए जनसभाएँ, रैलियों, समाचार पत्र, टेलीविजन आदि का सहारा लेते हैं ।
3. संघीय शासन की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- संघात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) लिखित संविधान- लिखित संविधान संघात्मक सरकार का एक अनिवार्य तत्त्व है । लिखित संविधान होने से केंद्र और राज्य सरकारों का कार्यक्षेत्र स्पष्ट किया जा सकता है ।
(ii) कठोर संविधान-कठोर संविधान होने से कोई सरकार अपने हित में सरलता से संशोधन नहीं कर सकती है । संविधान में संशोधन के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है जो संघीय सरकार के हित में है ।
(iii) संविधान की सर्वोच्चता- संविधान की सर्वोच्चता से संघीय पद्धति की रक्षा होती है । कोई भी सरकार अपने को सर्वोच्च नहीं समझ सकती, क्योंकि संविधान का उसपर अंकुश बना रहता है ।
(iv) शक्तियों का विभाजन - संघीय सरकार में संविधान द्वारा ही केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है । इससे दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करती रहती हैं ।
(v) स्वतंत्र न्यायपालिका - संघीय सरकार में न्यायपालिका ही संविधान का संरक्षक होती है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को संविधान के विरुद्ध कार्य करने का अधिकार नहीं होता है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सांविधानिक विवादों का निपटारा वही करती है ।
4. नगर निगम की आय के प्रमुख स्रोत क्या हैं ?
उत्तर- नगर निगम के आय के निम्नलिखित स्रोत हैं :
नगर निगम को भी अपना कार्य चलाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है । यह धन उसे निम्नलिखित साधनों से प्राप्त होता है ।
1. चुंगी कर ( Octroi)
2. मकानों पर कर (House Tax)
3. लाइसेंस फीस (Licence Fees)
4. टोल टैक्स (Toll Tax)
5. पानी तथा बिजली कर (Water and Electricity Tax)
6. व्यापार तथा व्यवसायों पर कर ( Professional Tax)
7. मनोरंजन कर (Entertainment Tax)
8. पशुओं पर टैक्स ( Tax on Animals)
9. सम्पत्ति से आय (Income from its Propety)
10. ठेका (Contracts)
11. जुर्माने (Fines)
12. राज्य सरकार से सहायता (Help from the State Government)
13. ऋण (Loan) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
5. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए |
उत्तर - राजनीतिक दल लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में काफी महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं । जनता की विभिन्न समस्याओं के समाधान में राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है। किसी भी शासन-व्यवस्था में किसी भी समस्या पर हजारों लोग अपना विचार रखते हैं। किंतु इन विचारों और दृष्टिकोणों का कोई मतलब नहीं रह जाता है जब तक इन विचारों को किसी दल के विचारों से न जोड़ा जाए । राजनीतिक दल देश के लोगों की भावनाओं एवं विचारों को जोड़ने का कार्य करते हैं। इस दृष्टि से हमारे लिए राजनीतिक दलों की महती आवश्यकता है। इसके अलावा लोकतंत्र में राजनीतिक दल की आवश्यकता इसलिए भी है कि यदि दल नहीं होगा तो सभी उम्मीदवार निर्दलीय होंगे। उम्मीदवार अपनी नीतियाँ राष्ट्रहित में न बनाकर उस क्षेत्र विशेष के लिए बनाऐंगे जिस क्षेत्र से वे चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में देश की एकता और अखण्डता खतरे में पड़ जाएगी। इन समस्याओं से बचने के लिए राजनीतिक दल का होना अनिवार्य है। अतः राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है।
6. जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति' ने भारतीय राजनीति को किस प्रकार बदल दिया ?
उत्तर - बिहार के आंदोलन शुरू होने से पूर्व उस राज्य में इंदिरा कांग्रेस की सरकार थी । जहाँ आंदोलन छात्र आंदोलन के रूप में शुरू हुआ । यह आंदोलन न केवल बिहार तक बल्कि अनेक वर्षों तक राष्ट्रव्यापी प्रभावशाली और राष्ट्रीय राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला साबित हुआ । भेजा। बिहार आंदोलन के कारण (Causes of factors of Bihar Move ments) - 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया । आंदोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा जेपी तब सक्रिय राजनीति छोड़ चुके थे और सामाजिक कार्यों में लगे हुए थे । छात्रों ने अपने आंदोलन की अगुआई के लिए जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा था । जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा । इस प्रकार छात्र-आंदोलन ने एक राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और उसके भीतर राष्ट्रव्यापी अपील आई । जीवन के हर क्षेत्र के लोग अब आंदोलन से आ जुड़े आंदोलन की प्रगति एवं सार ( Progress and spread of the Movement)
(क) जयप्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की । उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में सम्पूर्ण क्रांति' का आह्वाव किया ताकि उन्हीं के शब्दों 'सच्चे लोकतंत्र' की स्थापना की जा सके । बिहार की सरकार के खिलाफ लगातार घेराव, बंद और हड़ताल का एक सिलसिला चला पड़ा । बहरहाल, सरकार ने इस्तीफा देने से इन्कार कर दिया ।
(ख) 1974 के बिहार आंदोलन का एक प्रसिद्ध नारा था " संपूर्ण क्रांति अब नारा है- भावी इतिहास हमारा है । "प्रभाव (Effects) – आंदोलन का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ना शुरू हुआ । जयप्रकाश नारायण चाहते थे कि यह आंदोलन देश के दूसरे हिस्सों में भी फैले । जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन के साथ ही साथ रेलवे के कर्मचारियों ने भी एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। इससे देश के रोजमर्रा के कामकाज के ठप हो जाने का खतरा पैदा हो गया । 1975 में जेपी ने जनता के 'संसद-मार्च' का नेतृत्व किया। देश की राजधानी में अब तक इतनी बड़ी रैली नहीं हुई थी । जयप्रकाश नारायण को अब भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी जैसे गैर-कांग्रेसी दलों का समर्थन मिला । इन दलों ने जेपी को इंदिरा गाँधी के विकल्प के रूप में पेश किया । (Comments) — जो भी हो जयप्रकाश नारायण बिहार के विचारों और उनके द्वारा अपनायी गई जन-प्रतिरोध की रणनीति की आलोचनाएँ भी मुखर हुईं । गुजरात और बिहार, दोनों ही राज्यों के आंदोलन को कांग्रेस विरोधी आंदोलन माना गया ।
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