12th intermediate Psychology question answer previous question paper 2010 कक्षा बारहवीं साइकोलॉजी प्रश्न उत्तर 12वीं में पूछे गए प्रश्न उत्तर साइकोलॉजी 2010 के प्रश्न उत्तर

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खण्ड-ब  तीन अंक के प्रशन उत्तर 
(1) अभिवृत्ति परीक्षण की उपयोगिता का वर्णन करें ।
 बी० ए० पारिख ने एन० सी० सी० परीक्षण के प्रति छात्रों की मनोवृत्ति या अभिवृत्ति को मापने के लिए एक परीक्षण का निर्माण किया है। इसमें 22 एकांश है जो एन० सी० सी० प्रशिक्षण एवं उसके विविध गतिविधियों या कार्यक्रमों आदि के पक्ष और विपक्ष में छात्रों की मनोवृत्ति क्या है, उसको प्रदर्शित करता है। यह परीक्षण स्वयं पर प्रशासित किया जा सकता है और विषय में छात्रों. की मनोवृत्ति क्या है इसको प्रदर्शित करना है । उसको पूरा करने में 10 मिनट का समय लगता है

2. क्या विद्युत आक्षेपी चिकित्सा मानसिक विकारों के लिए उपयोगी है ?
विद्युत आपेक्षी चिकित्सा मानसिक विकारों के लिए उपयोगी है । विद्युत आपेक्षी चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य है-
(1) रोगों को लक्षणों से मुक्त करना
(2) रोगी को अपने वातावरण में समायोजन स्थापित करने के योग्य बना देना 
(3) रोगी को आत्मनिर्भर बना देना ताकि वह स्वयं जीवन अर्जन करने का समझ हो सके, 
(4) रोगी इस योग्य बना देना कि वह अपने परिवर्तनशील वातावरण के साथ आवश्यकता अनुसार स्थापित करने में समझ हो सके ।

3. अभिवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षेप में वर्णन करें ।
 अभिवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है
(i) शैक्षिक निर्देशन के लिए 
(ii) व्यावसायिक निर्देशन के लिए
(iii) व्यक्तिगत निर्देशन के लिए
(iv) नैदानिक समस्याओं के समाधान के लिए

4. प्रतिबल को दूर करने के तीन उपायों का वर्णन करें ।
 दबावपूर्ण स्थितियों का सामना करने के उपयों के उपयोग में व्यक्ति भिन्नताएँ देखी जाती हैं । एडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित प्रतिबल को दूर करने के तीन उपाय निम्नलिखित हैं
1. क्रुल्य अभिविन्यस्त युक्ति दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं। यह सब इसके अन्तर्गत आते हैं । 
2. संवेग अभिविन्यस्त युक्ति - इसके अन्तर्गत मत में आभा बनाये रखने के प्रभाव तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं । 
3. परिहार अभिविन्यस्त युक्ति- इसके अन्तर्गत स्थिति को गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं ।

5. अभिघातज उत्तर दबाव विकार क्या है ?
 अभिघातज उत्तर दबाव वास्तव में विघटन की स्थिति होती है । शोर, भीड़, खराब संबंध आदि घटनाओं से यह सम्बद्ध होता है । दबाव की एक विशेषता यह भी है कि यह कारण तथा प्रभाव दोनों रूपों में देखा जाता है। कभी यह आश्रित चर और कभी स्वतन्त्र चर के रूप में देखा जाता है ।

6. सहयोग एवं प्रतिस्पर्धा के कारकों का वर्णन करें ।
सहयोग एवं प्रतिस्पर्धा के कारक हैं जो एक निर्धारित करते हैं कि लोग सहयोग करेंगे या प्रतिस्पर्धा ? इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं
1. पारितोषिक संरचना - मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि व्यक्ति सहयोग करेंगे अथवा प्रतिस्पर्धा करेंगे यह पारितोषित संरचना पर निर्भर करता है । यह संरचना वह है कि जिसमें प्रोत्साहक में परस्पर निर्भरता पाई जाती है । पुरस्कार पाना तभी सम्भव हो पाता है जब सभी सदस्य मिल कर प्रयत्न करते हैं । इस संरचना के अन्तर्गत कोई व्यक्ति तभी पुरस्कार प्राप्त कर सकता है जब दूसरे व्यक्ति पुरस्कार नहीं पाते हैं ।

2. अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण- संप्रेषण क्रिया और विचार-विमर्श को सुयोग्य बनाता है । इसके फलस्वरूप समूह के सदस्य एक-दूसरे को अपनी बात के द्वारा मनवा सकते हैं और एक-दूसरे के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
3. परस्परता - परस्परता का अभिप्राय यह है कि लोग जिस वस्तु को प्राप्त करते हैं उसे वापस करने में कृतज्ञता महसूस करते हैं। प्रारम्भिक सहयोग आगे चलकर अधिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है । प्रतिस्पर्धा की अत्यधिक प्रतिस्पर्धा को पैदा कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति आपको सहायता करता है तो आप की उस व्यक्ति की सहायता करना चाहते हैं । 

7. बुद्धि के मुख्य प्रकारों की व्याख्या करें ।
बुद्धि के प्रकार को थॉर्नडाइक ने तीन वर्गों में विभाजित किया है जो इस प्रकार है
(i) प्रत्यक्ष बुद्धि - इस बुद्धि द्वारा व्यक्ति को वस्तुओं एवं पदार्थों को पूर्णतः समझने की शक्ति प्राप्त होती है । इससे रचनात्मक शक्तियों की उत्पत्ति होती है ।
(ii) अप्रत्यक्ष बुद्धि - इस बुद्धि का सम्बन्ध ज्ञान प्राप्त करने से होती है । इसके अन्तर्गत चिह्नों एवं प्रतीकों का अध्ययन, पुस्तकीय ज्ञान आता है ।
(iii) सामान्य बुद्धि - ऐसे बुद्धि प्राणी को समाज के अनुरूप समायोजित होने की क्षमता प्रदान करता है । इस बुद्धि द्वारा प्राणी सामाजिक एवं सामुदायिक कार्यों को भली-भाँति करने में सक्षम हो पाता है ।
राजनीतिज्ञों अथवा समाज सुधारकों में ऐसे बुद्धि की अधिकता पायी जाती है । 

8.पूर्वाग्रह एवं रूढ़ी धारणा में अन्तर करें ।
 पूर्वाग्रह एवं रूढ़ी धारणा में अन्तर-पूर्वाग्रह किसी विशेष समूह के प्रति अभिवृत्ति का उदाहरण है । अधिकांशतः यह नकारात्मक होते हैं एवं विभिन्न स्थितियों में विशिष्ट समूह के सम्बन्ध में रूढ़धारण पर आधारित होते हैं । रूढ़धारण किसी विशिष्ट समूह की विशेषताओं से संबद्ध विचारों का एक पुंज होती है । इस समूह के सभी सदस्य इन विशेषताओं से परिपूर्ण होते हैं । यह विशिष्ट समूह के सदस्यों के बारे में एक नकारात्मक अभिवृति या पूर्वाग्रह को जन्म देती है। वहीं दूसरी ओर पूर्वाग्रह भेद-भाव के रूप में व्यवहार परक घटक में रूपान्तरित हो सकता है, जब लोक एक विशेष लक्ष्य समूह के लिए उस समूह की तुलना में जिसे वे पसंद करते हैं कम सकारात्मक तरीके से व्यवहार करने लगते हैं । प्रजाति एवं सामाजिक वर्ग या जाति पर आधारित भेदभाव के अनगिनत उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि कैसे पूर्वाग्रह घृणा, भेदभाव, निर्दोष लोगों को सामूहिक संहार की ओर से जाता है ।

खण्ड स ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )  छः अंक के प्रशन उत्तर 


9. अभिवृत्ति परीक्षण की उपयोगिता का वर्णन करें ।
 समाज मनोविज्ञान में मनोवृत्ति की अनेक परिभाषाएँ दी गई हैं। सचमुच में मनोवृत्ति भावात्मक तत्व का एक तंत्र या संगठन होता है । इस तरह से मनोवृत्ति ए० बी० सी० तत्त्वों का एक संगठन होता है । इन तत्त्वों को निम्न रूप में देख सकते हैं-
(i) संज्ञानात्मक तत्त्व - संज्ञानात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति वस्तु के प्रति विश्वास से होता है ।
(ii) भावात्मक तत्त्व - भावात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में वस्तु के प्रति सुखद या दुखद भाव से होता है । (iii) व्यवहारपरक तत्त्व - व्यवहारपरक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति के पक्ष में तथा विपक्ष में क्रिया या व्यवहार करने से होता है ।
मनोवृत्ति की इन तत्वों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) कर्षणशक्ति - मनोवृत्ति के तीनों तत्त्वों में कर्षणशक्ति होता है । कर्षणशक्ति से तालिका मनोवृत्ति की अनुकूलता तथा प्रतिकूलता की मात्रा से होता है ।
(ii) बहुविधता - बहुविधता की विशेषता यह बताती है कि मनोवृत्ति के किसी तत्त्व में कितने कारक होते हैं। किसी तत्त्व में जितने कारक होंगे उसमें जटिलता भी इतनी ही अधिक होगी । जैसे सह-शिक्षा के प्रति व्यक्ति की मनोवृत्ति को संज्ञा कारक सम्मिलित हो सकते हैं-सह-शिक्षा किस स्तर से आरंभ होना चाहिए । सह-शिक्षा के क्या लाभ हैं, सह - शिक्षा नगर में अधिक लाभप्रद होता है या शहर में आदि । बहुविद्यता को जटिलता भी कहा जाता है 
(iii) आत्यन्तिकता - आत्यन्तिकता से तात्पर्य इस बात से होता है कि व्यक्ति को मनोवृत्ति के तत्व कितने अधिक मात्रा में अनुकूल या प्रतिकूल है ।
(iv) केन्द्रिता - इससे तात्पर्य मनोवृत्ति की किसी खास तत्व के विशेष भूमिका से होता है । मनोवृत्ति के तीन तत्वों में कोई एक या दो तत्व अधिक प्रबल हो सकता है और तब वह अन्य दो तत्वों को भी अपनी ओर मोड़कर एक विशेष स्थिति उत्पन्न कर सकता है जैसे यदि किसी व्यक्ति को सह-शिक्षा की गुणवत्ता में बहुत अधिक विश्वास होता है अर्थात उसका संरचनात्मक तत्व प्रबल है तो अन्य दो तत्व भी इस प्रबलता के प्रभाव में आकर एक अनुकूल मनोवृत्ति के विकास में मदद करने लगेगा ।
स्पष्ट है कि मनोवृत्ति के तत्वों की कुछ विशेषताएँ होती हैं । इन तत्वों की विशेषताओं पर मनोवृत्ति की अनुकूल या प्रतिकूल होना प्रत्यक्ष रूप से आधारित है 

10.समूह निर्माण को समझने में टकमैन का मॉडल किस प्रकार सहायक है ? व्याख्या करें ।
 जब प्राणी के अभिप्रेरक एवं लक्ष्य एक समान होते हैं तो वे एक साथ मिलकर एक समूह को निर्मित करते हैं जो उनके लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सुगम बनाता है। मान लीजिए कि उन गरीब बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं जो स्कूल जाने में सक्षम नहीं हैं। किन्तु यह कार्य आप अकेले नहीं कर सकते क्योंकि आपके पास आपके स्वयं के अध्ययन का काम एवं गृह कार्य होता है । अतः आप समान रुचि वाले मित्रों के एक समूह का निर्माण करेंगे और ऐसे बच्चों का अध्यापन कार्य प्रारम्भ करते हैं । अतः आप वह करने में सक्षम हो जाते हैं जो आप करना चाहते हैं। याद रखें कि आप जीवन में दूसरी चीजों की तरह समूह को विकसित करते हैं। जब आप लोगों के सम्पर्क में आते हैं तब तुरन्त समूह के सदस्य नहीं बन पाते हैं । समूह सामान्यतया निर्माण, स्थायीकरण, निष्पादन और निष्कासन, अस्वीकरण की अनेक अवस्थाओं से होकर गुजरता टकमैन (Tuckman) के अनुसार समूह पाँच विकासात्मक अनुक्रमों से होकर गुजरता है। ये पाँच अनुक्रम हैं- निर्माण या आकृतिकरण, विप्लवन या झंझावत, प्रतिमान या मानक निर्माण, निष्पादन एवं समापन ।

(i) जब समूह के सदस्य पहली बार मिलते हैं तो समूह, लक्ष्य एवं लक्ष्य को प्राप्त करने के सम्बन्ध में निश्चितता नहीं होती है । व्यक्ति एक-दूसरे का जानने का प्रयास करते हुए यह मूल्यांकन करते वे समूह हेतु उपयुक्त रहेंगे । यही अवस्था निर्माण या आकृतिकरण कहलाती है । 

(ii) मूलतः इस अवस्था के पश्चात् अन्तर-समूह द्वन्द्व की अवस्था होती है जिसे विप्लवन या झंझावत के नाम से जाना जाता है । इस अवस्था में समूह के सदस्यों के मध्य इस बात को लेकर द्वन्द्व चलता रहता है कि समूह के लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाय, कौन समूह एवं उसके संसाध नों पर नियंत्रण है और कौन किस कार्य को निष्पादित करता है । इस अवस्था के समाप्त होने के पश्चात् समूह में नेतृत्व करने का एक प्रकार का पदानुक्रम विकसित होता है तथा समूह के लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए इसके लिए एक सुस्पष्ट दृष्टिकोण होता है ।

(iii) विप्लवन या झंझावत की अवस्था के पश्चात् एक अन्य अवस्था आती है जिसे प्रतिमान या मानक निर्माण की अवस्था कहा जाता है । इस समय समूह के सदस्य समूह व्यवहार से सम्बन्धि त मानक का विकास करते हैं। यह एक सकारात्मक समूह अनन्यता के विकास के मार्ग को उजागर करता है ।

(iv) चतुर्थ अवस्था निष्पादन कहलाती है । इस अवस्था तक समूह की संरचना का विकास हो चुका होता है तथा समूह के सदस्य इसे स्वीकार भी कर लेते हैं । समूह लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में समूह अग्रसर होता है । अतः कुछ समूहों के लिए समूह विकास की आखिरी अवस्था भी हो सकती है ।

(v) यद्यपि कुछ समूहों हेतु, जैसे- विद्यालय समारोह हेतु आयोजन समिति के विषय में एक दूसरी अवस्था हो सकती है जिसे समापन की अवस्था के रूप में जाना जाता है। इस अवस्था के अन्तर्गत जब समूह का कार्य समाप्त हो जाता है तब समूह भंग किया जा सकता है ।
सभी समूह सदैव ऐसे व्यवस्थित ढंग से एक के बाद दूसरी अवस्था में अग्रसर नहीं होते हैं । कभी-कभी एक साथ या एक ही समय विभिन्न अवस्थाएँ चलती रहती हैं तथा दूसरी ओर स्थितियों में समूह अनेक अवस्थाओं के बीच आगे-पीछे चलता रहता है तथा वह कुछ अवस्थाओं को छोड़ते हुए भी आगे बढ़ सकता है ।
हमें यह याद रखना चाहिए कि समूह संरचना तब विकसित होती है जब सदस्य आपस में अंतः क्रिया करते हैं। समूह निर्माण की प्रक्रिया की अवधि में समूह संरचना का भी विकास करता है । समय के साथ यह पारस्परिक अन्तःक्रिया निष्पादन किए जाने वाले कार्य के वितरण, सदस्यों के निर्दिष्ट उत्तरदायित्वों और सदस्यों की प्रतिष्ठा या सापेक्ष स्थिति में एक नियमितता दर्शाते हैं।

11. प्रतिबल क्या है ? इसके कारणों का वर्णन करें । 
प्रतिबल एक ऐसी शारीरिक या मानसिक दबाव की अवस्था है जिसकी उत्पत्ति आवश्यकता की पूर्ति में बाधा उत्पन्न हो जाने से होती है और इसका बुरा प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक जगत् पर पड़ता है जिसके कारण व्यक्ति इससे किसी भी प्रकार छुटकारा पाना चाहता है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि प्रतिबल एक दबाव की अवस्था है। यह दबाव शारीरिक या मानसिक किसी भी रूप में हो सकता है। इसकी उत्पत्ति आवश्यकताओं को पूर्ति में बाधा होने के कारण होती है। इसका बुरा प्रभाव शारीरिक और मानसिक जगत पर पड़ता है, और व्यक्ति इससे छुटकारा पाना चाहता है ।
साधारण प्रतिबल व्यक्ति के जीवन में गति प्रदान करनेवाली शक्ति है, जबकि अधिक तीव्र प्रतिबल अधिक घातक होते हैं। प्रतिबल की तीव्रता आवश्यकता की तीव्रता पर निर्भर करता है। व्यक्ति में प्रतिबल के प्रति सहनशीलता अलग-अलग मात्रा में पायी जाती है। प्रतिबल को निर्धारित करनेवाले कई कारक है । उन कारकों में निराशा, संघर्ष, दबाव आदि प्रमुख हैं । व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति में बाधा उपस्थित होती है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति निराशा का शिकार हो जाता है । यह प्रतिबल का प्रमुख निर्धारक है। कौलमैन ने संघर्ष को प्रतिबल का एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक माना है । जब व्यक्ति किसी कारणवश मानसिक संघर्ष का सामना करता है तो उसमें प्रतिबल की संभावना बहुत अधिक होती है । इसके अलावा दबाव को भी प्रतिंबल के निर्धारक के रूप में माना जाता है। व्यक्ति अपने परिवार, मित्र या समाज से दबाव का अनुभव करता है । यह भी प्रतिबल को निर्धारित करता है ।


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